Dhap Ki Fag ढप की फाग

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’दफ‘ अरबी शब्द से डफ या ढप बना है। संभव है कि यह बाद्य बुन्देलखंड में मुसलमानों या पठानों के आने के बाद ही प्रचलित हुआ हो। इस फाग के गायन में ढ़प के प्रयोग से ही इस फाग का रूप का नाम Dhap Ki Fag रखा गया है। इस फाग की सभी पंक्तियाँ दोहों की हैं।

प्रथम पंक्ति में दोहे के प्रथम चरण की अद्र्धाली में ’मनमोहाना‘ जोड़कर टेक बना ली जाती है और दूसरी पंक्ति में दोहे की शेष अद्र्धाली के साथ ’पिया

अड़ घोलाना‘ अनुप्रास के लिया या तुक मिलाने को रख दिया जाता है। शेष पंक्तियों मे दोहे के एक-एक चरण में ’पिया अड़ घोलाना‘ के योग से पूर्ति की जाती है।

हरे पाठ के फूंदना, मनमोहाना।
कहाँ धराऊँ तोय, पिया अड़ घोलाना।
गंगा जी की रेत में लंबे लगे बाजार, पिया अड़।
घोलाना। हरे…
इक गोरी इक साँवरी दोउ बजारें जाँय। हरे…
कौना बिसा लए काजरा कौन बिसा लये पान। हरे…
गोरी बिसा लये काजरा राधे बिसा लये पान। हरे…
किनके ढुर गये काजरा राधे बिसा लये पान। हरे…
गोरी के ढुर गये काजरा राधे के खा गये पान। हरे…

यह भी संभव है कि ’मनमोहाना‘ और ’पिया अड़ घोलाना‘ के स्थान पर अन्य तुकें भी जोड़ी जाती हों। यह फागरूप अब प्रचलित नहीं है, अतएव इसकी गायन-शैली के सम्बन्ध में कुछ भी कहना उपयुक्त नहीं है। उपर्युक्त राई की गायन शैली वही रही है, जो आज की राई की है। वर्तमान राई से दोहा लुप्त हो गया है, केवल टेक की पंक्ति ही पूरा गीत बन गई है। राई बुंदेलखण्ड का प्रसिद्ध फाग-नृत्य है। राई गीत के साथ ढोलक या मृदंग, नगड़िया, झाँझ और झींके के समवेत तालों पर बेड़िनी नृत्य करती है। नृत्य को गति देने के लिए एक ही पंक्ति दुगुन और चैगुन में गायी जाती है।

सपने में दिखाय, सपने में दिखाय
पतरी कमर बूंदावारी हो।
राई (ताल दादरा)
नि सा रे रे ग – रे रे सा सा सा नि
स प ने ऽ में ऽ दि ऽ खा ऽ ऽ य
रे रे रे रे रे – रे रे सा सा सा सा
प त री ऽ क ऽ म र बूँ ऽ दा ऽ
नि नि नि सा सा –
वा ऽ र हो ऽ ऽ
म म – म – म म म – म – म
प ऽ ने ऽ में ऽ दि ऽ खा ऽ य
म म म ग ग म म रे रे रेसा- –
सा प ऽ ने ऽ में ऽ दि ऽ ख ऽ य
रे रे रे रे रे – रे – सा, सा स – रे
प त री ऽ क ऽ म र बूँ ऽ दा ऽ
नि नि – सा – – वा ऽ ऽ हो ऽ ऽ
नोट:- उक्त पंक्ति नृत्य गीत को देने के लिए द्विगुन और चैगन में गायी जाती है।

बुन्देलखण्ड की लोक नृत्य कला 

संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल

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