Chida-Chidi चिड़ा-चिड़ी-बुन्देली लोक कथा

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By admin

इमली के पेड़ पर Chida-Chidi रहते थे। एक दिना कहीं से, चिड़ा लाओ दाल को दाना और  चिड़ी लाई चाबल को दाना दोई ने मिलके हड़िया में खिचड़ी पकाई । चिड़ी, चिड़ा से बोली, में नदी जा रई हूँ सपरबे खों  लौट के आ जाऊँ, फिर दोई जनें खिचड़ी खाहें।

नदी में मिल गई चिड़ी की पुरानी गोईं, दोई बड़ी देर तक बतियात रई । इते भूँको चिड़ा चिड़ी की रस्ता देख ओ तो । बड़ी देर हो गई जब भूँक बस की नई रई तो चिड़ा ने सोची थोड़ी-सी खिचड़ी चखके देख लऊँ । खिचड़ी चखी तो बाय भोत अच्छी लगी। बाने सबरी खिचड़ी खा लई ।

तनक देर बाद चिड़ी नदी से सपरके आ गई। बाने खाली हड़िया देखी तो भोत गुस्सा भई । बाने चिड़ा से कई, अब में तुमाये  संगे  एक मिनट नई रेहों , में मायके जा रई हूँ। चिड़ा बाय भोत  मनात रहो मनो बाने बाकी एक नई सुनी। चिड़ी फुर्रर्र से उड़के अपने मायके चली ।

जैसईं बा नदी के ऊपर पोंहची एक कानो कौआ काँओं- काँओं करके बोलो, “चिड़ी-चिड़ी काँ चली ? चिड़ी बोली मायके । कौआ बोलो, काय ? चिड़ी बोली, “चिड़ा ने मोहे भूँको रखो, अकेले पूरी खिचड़ी खाई । कौआ बोलो, चिड़ी रानी मायके मत जा मेरे घर रह जा । चिड़ी बोली,  तुम काँ रहत हो, का खात हो ?  कौआ बोलो, पेड़ पे रहत हों ओर नीम की निबौरी खात हों । चिड़ी बोली, मोहे नई खानो करई -करई  निबौरी, नई रहनो तेरे संग ।”

इतेक कै कें बा उड़ चली । उड़त – उड़त बाहे मिट्ठू मिलो। मिट्ठू बोलो, “चिड़ी-चिड़ी काँ चली ?” चिड़ी बोली, मायके । मिट्ठू बोलो, काय ? चिड़ी बोली, चिड़ा ने मोहे भूँको रखो, अकेले पूरी खिचड़ी खाई । मिट्ठू बोलो, मेरे पास रह जाओ । चिड़ी बोली, “तुम काँ रहत हो, का खात हो ?” मिट्ठू बोलो, “पेड़ की पोल में रहत हों  ओर मिरची खात हों  ।” चिड़ी बोली, “मोहे नईं खानो चिरपरी मिरची, नईं रहने  तेरे संग बड़ो आओ मिरची बारो।

बा जल्दी -जल्दी उड़ चली। जब बा अपने गाँओं पोंहची तो गाँओं के बाहरई बूँचो कुत्ता मिल गओ । कुत्ता बोलो, चिड़ी – चिड़ी काँ चली ?” चिड़ी बोली, मायके । कुत्ता बोलो, काय ? चिड़ी बोली, “चिड़ा ने मोहे भूँको रखो, अकेले पूरी खिचड़ी खाई । कुत्ता बोलो, “चिड़ी तू मेरे साथ रह जा तोहे खूब अच्छे से रखूँगो ।” चिड़ी बोली, तू रहत काँहे, खात का हे? कुत्ता बोलो, “पटेल के घर में रहत हों  ओर गुड़-फुटाने खात हूँ।” गुड़-फुटाने को सुनके चिड़ी के मों में पानी आ गओ । बोली, “में तुमरे संग रह जाऊँगी पर पहले गुड़-फुटाने खिला ।”

कुत्ता बाय  एक साहूकार की दुकान पे ले गओ । साहूकार कोनऊ काम से घर के भीतर गओ हतो  । कुत्ता जल्दी- जल्दी गुड़-फुटाने खान लगो, चिड़ी भी बाके संग चुगन लगी। इत्ते में साहूकार आ गओ । चिड़ी तो फुर्र से उड़ गई। बाने डण्डा से कुत्ता खों  खूब मारो।   कुत्ता लंगड़ात – लंगड़ात भगो तो पेड़ पे बेठी चिड़ी बासे बोली, “नीम की निबौरी खाबे बारो कौओ छोड़ो, मिरची खाबे बारो मिट्ठू छोड़ो, भले मिले तुम बूंचे कुत्ते, खूब खिलाए तुमने गुड़ फूटे । ”

चिड़ी ने सोची, “सबसे अच्छो बईको चिड़ा हे जो दाल खिलात हे।”

बुन्देली लोक कथा परंपरा

संदर्भ
मिजबान बुंदेलखंडी लोक कथाओं का संकलन
पुनर्लेखन-  संपादन-  प्रदीप चौबे, महेश बसेड़िया
एकलव्य प्रकाशन भोपाल

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