Chandel Kalin Khan-Pan चंदेल कालीन खान-पान

Photo of author

By admin

चंदेलकाल बुंदेलखण्ड की समृद्धि और सुख का प्रतीक रहा है, Chandel Kalin Khan-Pan में भी विविधता और सम्पन्नता दिखाई पड़ती है। जैन बौद्ध धर्म द्वारा मांस-भक्षण पर नियंत्रण से शाकाहार को बहुत बढ़ावा मिला था। चंदेलों की शिवभक्ति में नंदी (बैल) की पूजा से और गाय को पूज्य मानने से भी मांस-भक्षण में रूकावट आयी। कृषि में गाय-बैल की उपयोगिता से उनका मांस बिल्कुल वर्जित था।

दूसरे पशुओं का मांस-भक्षण कुछ जातियाँ करती थीं। श्राद्ध और यज्ञों के विशेष अवसरों पर मांस-भक्षण होता था। सुरापान भी वर्जित था, किन्तु वन्य जातियों, शूद्रों और क्षत्रियों  में नियंत्रण नहीं हो सका। राज्य करनेवाले क्षत्रियों के लिए इतिहासकार अलबेरूनी लिखता है कि कुछ भी खाने के पहले वे मद्य पीते हैं, तब खाने के लिए बैठते हैं‘ (सचाउ भाग 1, पृ. 188)। लेकिन यह चंदेलनरेशों के लिए सत्य नहीं है।

सामान्य क्षत्रिय और सामंत मद्यपान करते थे। चंदेलों ने हर गाँव-नगर में तालाब खुदवाये थे, जिनकी वजह से कृषि और उपज ने इस अंचल को भर दिया था। गेहूँ, चावल, जौ आदि से निर्मित पक्वान्न, पशुओं से प्राप्त दूध, दही, घी, मक्खन और उनसे बने मिष्ठान्न, वनोपज से प्राप्त फल और कंद, जलाशयों से प्राप्त कमलककड़ी, कमलगटे, सिंघाड़े आदि, गन्ना एवं ईख से बना राब, गुड़, शक्कर और उनसे बने रसीले व्यंजन तथा अनेक प्रकार की तरकारियाँ भोजन-पेय को पौष्टिक और शक्तिप्रदायक बनाने में समर्थ हुईं।

जातीय कट्टरता इतनी अधिक थी कि सहभोज असंभव हो गया था और अस्पृश्यता की भावना बढ़ गयी थी। (प्रबोध चन्द्रोदय, श्रीकृष्ण मिश्र, पृ. 51)। इस युग में नियम इतने कठोर हो गये थे कि बिना पैर धोये ब्राह्मण भी भोजन नहीं करता था (वही, पृ. 52)।

दूसरी तरफ भिक्षुओं तक में भ्रष्टाचार बढ़ गया था और वे “अहो सुरायाः सौनदर्यम्” कहकर मद्य पीते थे। इन दोनों सीमाओं के बीच जेजाभुक्ति की सामाजिकता झूलती रहती थी। नियमों का पालन न करने पर किसी भी व्यक्ति को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था।

बुन्देली आल्हा गायकी 

Leave a Comment

error: Content is protected !!