Bhaiya Doj Vrat Katha भइया दोज व्रत कथा

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भइया बैन कौ प्रेम तौ दुनिया में भौंतई बड़ो बनाव।  साल में दो दार भइया दोज परत । एक कातक में दिवाई के दूसरे दिना उर दूसरी चैत में होरी के दूसरे दिना भइया दोज परत ई दिना Bhaiya Doj Vrat Katha होत । ई दिना बैनें अपने भईयन कौ टीका करवें जातीं।

कजन कोनऊ कारन सें बैन भइया केनाँ न पौंच पाऊती तौ भइया खुदई बैन के ना टीका करावै पौंच जात । साबन के मईना में तौ हर बैन अपने भइयन खौं राखी बाँधवे के लाने उकतात रतीं । उर ई मौका पै भइयन खौं बैन की भौत खबर आवन लगत । साँसी कई जायतौ भैया दोज की लीलई न्यारी है ।

एक गाँव में एक मताई बाप के पाँच लरका हते । पाँच भईयन की पीठ पै एक बैन हो परी ती। ईसैँ बाप मताई ने ऊकौ नाव पाँचों धर दओ तो । पाँच भइया की बैन कौ नाव पाँचों साँसौ धरोतो। कछू दिना में बैन ब्याव लाख हो गई ती । सब भईयन ने मिल जुरकै बैन को अच्छा साके कौ ब्याव कर दओ । वा अपनी ससुरार में रेंकै घर गिरस्ती को काम समान लगी ।

ऐसई – ऐसई कैऊ साले कड़ गयीं तीं अकेले पाँचों बैन हती भौतई भोली भाली। कछू जादाँ जानतई समझत नई हती। एक दिनां दिवाई के मौका पै हल्के भइया खौं पाँचों बैन की खबर आ गयी । ऊनें सौसी कै दिवाई के दोज कौ टीका करवे अपनी बैन खौं लुआ ल्याअ । उतें सै चार कोस की मंजिल पै बैन कौ घर हो । ऊनें बड़े भुसारे कलेवा करो उर मूँढ़ सै स्वापी बाँध कै हात में लठिया लैकै बैन खौं लुआवे चल दओ। उर दिन बूढ़े पूछत – पूछत बैन के घरे पाँच गओ ।

भइया खौं देखतनई बैन की हाल फूल कौ ठिकानौ नई रओ | अपने भइया भौजाइयँन खौं देखवे की लालसा हो आई। रात कै तौ जो कछू बनो धरो तो सो वौ खा पीकै सो गओ । और अब भुन्सरा बैन खौं अच्छौ ख्वावे पियावे की इच्छा हो गई। बना कै कछू जानत नई हतीं । वा भइया खौ खीर पूड़ी ख्वावन चाऊतती। ऊनें परोस की लुगाइयँन सैं पूछीं कै काय वाई खींर पूड़ी कैसे बनाउने आउत ।

औरतन ने कई देखो घी में चाँवर चुरै लिइयौ उर दूध में पूड़ी सेंक लिइयों । वा विचारी दुपर नौ घी में चाँवर चुरेउत रई उर दूध में लुई। अकेले वे चुरई नई पांई । भइया भूखन के मारे भीतर वायरै होय रयो तो । वा फिर वायरै गयी और कछू जनईयंन सै पूछी कै काये जिज्जी घी में चाँवर उर दूध में पूड़ी चुरई नई रई । ऊकी वातें सुनकै औरतें हँसकै कन लगी कै तै कैसी सिर्रन है कऊ दूध में पूड़ी और घी में चाँवर चुरत हैं? दूध में चावर और घी में लुचई सेंक लें।

औरतन कै बताये सै खीर और लुचई बन गयी। भइया ने डट कै भोजन करें उर ब्याई नौ खौं सुसते हो गये । भइया ने बैन के ससुर उर सास के लिंगा जाकैं कई कैं हम दौज कौ टीका करावे खौं बैन खौं लुआवे आये । भुन्सरा सौकाऊ बिदा कर दिइयौ। ससुर बोले कै लाला साव अवै कतकई कै काम को मौका है अबै बहू खौं पौंचावे में दिक्कत है। अपुन ग्यारस हो गये आइयौ उर अपनी बैन खौं । लुआ लै जइयो ।

अब ससुर की बात कैसे टार सकत ती। अपनौ सौं मौं लैकै रै गई । हल्कौं भइया निराश होंकै रै गओ उर अपनी बैन से कन लगो कै बैन हम बड़े भुका भुकें सें कड़ जैय। तुमाये ससुर ने पौंचावे सै नाई कर दई । अब हम इतै रैकै का करें घरें कछू काम कर लैय।

बैन की आशा टूट गई ऊनें सोसी कै भइया उतै भूके कितै फिरें हम बड़े भुन्सारै कलेवा बना देंय। आदी रातें उठी उर देखो कै कंसला में तो चूनई नइया । वा उत्तई रातें चकिया के लिंगा पीसवे खौं बैठ गयी। घर में इँदयारो सो डरो तो आज काल जैसी बिजली उर ना चक्की । पथरा की चकिया के पीसने आऊततो । वा टटकौरा गुटटा में पिसी भरल्याई । इँदयारे में कछू दिखाती नई रओ हतो। चकिया के मौ में साँप घुस गओ तो वा इँदयारे में पीसन लगी उर पिसी के संगै साँप पिस गओतो।

ऊनें चून गुट्टा में धर लओ उर इँदआरे में कुपरा में हुन चून मांडकै धर लओ । उर चार बजे सै लुचई बनावे बैठ गई । उर करइया में हुन सात ठऊवा लुचई काड़ दई । छ :ठौआ लुचई बांध के भइया के लाने धर दई उर एक लुचई कुपरा में धर दई ।

भुन्सर होतनई भइया जल्दी चिटपिटा कै उठो, उर जल्दी सैं मौ हात धौंकै बैन के पाँव पर के लठिया लैकै जान लगो । बैन नें ऊके हात में कलेवा गुआ दओ । वौ सूदो घर कुदाऊँ चल दओ । बैन वायरै ठाँढ़ी देखत रई उनक एक पलेर कुत्ता हतो वौ क्याऊँ से पूछ हलाऊत आ गओ । कुपरा में एक लुचई बची धरीअई हती। ऊनें उठा कैं बालुचई ऊ कुत्ता खौं डार दई । लुचई के खातनई कुत्ता घुमन लगो उर ओई के सामैं घुम-घुम कै उतै मरन लगो ।

देखतनई बैन के सटननारे छूट गये। जी लुचई के खाये सैं कुत्ता म गओं जेऊ हाल भइया कौ हो जैय । उत्तई देर में भइया मीलक दूर कड़ गओ हुइयै । वा प्रान छोड़कै भइया के पाँछै भगी। भइया आगे जाकै एक बाबरी पै मौ हात धोबे खौं रुक गओं । इतेकई में पाँचों बैन भगत-भगत पौंच गई। भइया तौ तनक दूर एक डार पै कलेवा टाँगकै टट्टी खौ चलो गओ बैन आऊतनई कलेवा खौं देखन लगी । पैड़पे टंगी पुटरिया उतार कै ना आव देखो ना ताव सूदी बाबरी में फैंक  कैं मौगी चाली लौट गई।

भइया टट्टी होत में कछू कै नई पाव अकेलै मनई मनई सोसन लगो । अब ई पागल खाँ कभऊँ लुआबे नई आउनें । उर वौ मोगौ चालों अपने घरै लौट गओं । भइया का जाने बैन की आत्मा खौं । बैन खौं कभऊँ भइया समज नई पाव सो बुरओ मान कै गुर्रा गओ। ऊने सोस लई कै अब कभऊँ बैन खौं लुआबे नई जैय । अकेलै बैन अपने प्यारे भइया खौं कैसे छोड़ सकतती।

कछू दिना में भइया के ब्याव कौ मौका आव । सो ऊने ना बैन के लुआबे की चर्चा करी उर ना उयै कछू खबर दई । अकेलै बैन खौं सब पतो चल गओं उर वा उपत कै पौंच गई गुर्राकै रैगओं। जब भइया के हाँत पै नारियल धरो जान लगो । सो वा बोली कै पैला हमाये हात पै नारियल धरो फिर भइया के हाँत पै नारियल धरो जैय। सबरन ने सोसी कै जातौ पागल हो गई है। चलो माय घरवारे ओई के हाँत पै नारियल धरबा दोऊ ।

ऐसई ऊनें लगुन की दार करो। लोंगन ने पैलाँ सै ओई के हात पै लगुन धरा दई । जब बरात जान लगी सो पाँचों बैन कन लगी कै हम सोऊ बरातें चले। कछू जने चलें कन लगे कै माय चली जान दो पगलू खौं । वा उतै जाकै टीका की बेरा कनलगी कै भइया कौ टीका दरबाजे पै हुन नई हुइये खिरकी पै हुन टीका हुइयै भइया कौ । अंत में ऊकी जिद सैं भइया कौ खिरकिअई में हुन टीका भओ । उर तनकई देर में दरवाजौ अर्रा कै नैचे गिर परो ।

तब लोगन की समज में आई कै पाँचों बैन भौतई जान कार है उर ऊकी जिद सैं भइया मरवे सैं बच गओ। हराँ – हराँ ब्याव हो गओ भौजाई की विदा होकै घरै आ गई। देई देवता पुजत में वा भइयँई के संगई संगै बनी रई । रात में सुहाग रात में बोली कै हम तौ भइअई के संगई ओई कोठा में सोय जीमें भइया भौजी के संगै सोय ।

सुनतनई सबई औरतें कन लगी कै तुमैं आ भइया के संगै सोउने  कै भौजी खौं । पाँचों बैन कन लगी कै तुमें ईसै का करनें जो हुइयै सो सब देखी जैय। अकेलै हम सोय तौ ओई घर मैं । कछू जनीं बोली कै परी रन दो माय एक बगल में डरी रैय। उर वा ओई घर में परी रई । आदी रातें तौ दूला उर दुलइया तौ सो गये अकेलै बैन तौ जगत रई । जौन साँप चकिया में पिस गओ तो वौ भइया खौं डसवे के काजैं ओई कमरा में घुस आव ।

भइया उर भौजी तौ सो ये ते। बैन तौ जागई रई ती । जईसै वौ साँप लफरयात भइया पै झपटो सोऊ बैन ने तलवार से काट कै कूढ़े तरै ढाँक कै धर दओ । फिर वा सुक की नींद सो गई । ई भेद कौ काऊये पतो नई चलो। भुन्सरा उठकै ऊनें घरवारन खौं कूढ़ौ उठा कैं मरो साँप दिखा दओ। सब जनें तां करकै रै गये । उर सोसन लगे कै कजन पाँचों बैन नई होती तौ भइया बचई नई सकत तो ।

भली भइया बैन सै कटो-कटो सौ बनो रओ । उयै का पतो कै ऊके सिर पै काल मड़रा रओ है। बैन होय तौ पाँचों कैसी। जीनें भइया के प्रान बचावे के लाने ऊकौ संग नई छोड़ो। भली ऊकी बेइज्जती हो । अंत में भइया बैन के त्याग उर समरपन भाव खौं अच्छी तरा सै जान कै बैन कै गोड़न पै गिरो। उदनई सै वे बैन भई उर वे साँसे भइया । हे भगवान ऐसे बैन भइया सबई के हौवे । कजन ऐसी बैनर भइया जाय तौ समाज कौ बेड़ा अपने आप पार हो जाय । बाढई ने बनाई टिकटी उर हमाई किसा निपटी ।

भावार्थ

भाई और बहिन का प्रेम तो शाश्वत और नित्य है। इसे पूर्ण स्वाभाविक और सहज कहा जाता है। बुंदेलखण्ड के हर परिवार में इस संबंध का निर्वाह विधिवत् किया जाता है। वर्ष में दो बार भाईदोज का पर्व आता हैं। पहली बार यह पर्व कार्तिक माह में दीपावली के दूसरे दिन और दूसरी बार चैत्र माह में होलिका दहन के दूसरे दिन आता है। इस दिन बहिनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर नारियल प्रदान करती हैं और भाई चरण स्पर्श करके द्रव्य, वस्त्र, अन्न और आभूषण प्रदान करता हुआ अपनी बहिन की रक्षा का प्रण लेता है ।

यदि किसी कारणवश कोई बहिन अपने भाई के घर नहीं पहुँच पाती, तो भाई स्वयं ही अपनी बहिन के घर टीका करवाने के लिए चला जाता है। सावन के माह में तो हर बहिन अपने भाई को राखी बाँधने के लिए लालायित रहती है । इस अवसर पर भाइयों को अपनी बहिन की बहुत ही याद आती है। अतः भ्रातृ द्वितीया का यह पर्व बहुत महत्त्वपूर्ण है।

एक गाँव में एक ‘माते कक्का निवास करते थे । माते की पत्नी बहुत ही भोली और सरल थी। माते के पाँच लड़के और एक लड़की थी । पाँच लड़कों के बाद एक लड़की उत्पन्न हुई थी। इस कारण से उसके माता-पिता ने बड़े लाड़-प्यार से उस पुत्री का नाम रखा था ‘पाँचो’। धीरे- धीरे वह लड़की विवाह के योग्य हो गई ।

पाँचों भाइयों ने मिल-जुल कर अपनी बहन बहुत ही अच्छी शादी कर दी। वह अपनी ससुराल में रहकर घर-गृहस्थी का कार्य सँभालने लगी। इसी तरह ससुराल में रहते हुए एक वर्ष व्यतीत हो गया । उसकी छोटी बहिन तो बहुत ही भोली-भाली थी। इधर-उधर की बातों से उसे कोई प्रयोजन नहीं रहता था । केवल अपने काम से ही उसको मतलब था ।

एक दिन दीपावली के पर्व को छोटे भाई को अपनी छोटी बहिन ‘पाँचो’ की याद आ गई। उसने सोचा कि दीपावली की दोज का टीका करवाने के लिए हम अपनी बहिन को घर लिवा लायें। वहाँ से लगभग पन्द्रह कि.मी. दूरी पर बहिन का घर था। उन दिनों आवागमन के साधन विकसित नहीं हुए थे।

लोगों को पैदल यात्रा ही करनी पड़ती थी । उसका छोटा भाई सिर पर साफी बाँधकर हाथ में लाठी लेकर थोड़ा सा नाश्ता करके बहिन ‘पाँचो’ की ससुराल की ओर चल दिया और शाम तक पूछते-पूछते बहिन के घर तक पहुँच गया। अपने छोटे भाई को देखकर बहिन को अत्यधिक प्रसन्नता हुई, उसके मन में अन्य भाई और भाभियों को देखने की लालसा उत्पन्न हो गई। रात को जो कुछ बना रखा था, भइया खा-पीकर सो गया।

फिर दूसरे दिन बहिन ने बढ़िया- बढ़िया पकवान बनाकर भइया को भोजन करवाये। वैसे तो वह कुछ जानती ही नहीं थी। वह अपने प्यारे भाई को खीर-पूड़ी खिलाना चाहती थी । उसने पड़ौस की औरतों से खीर-पूड़ी बनाने की विधि पूछी, औरतों ने उस भोली के साथ मजाक किया। कहा कि देखो तुम दूध में पूड़ी सेंक लेना और घी में चावल तैयार कर कर लेना औरतों ने उसे उल्टी प्रक्रिया समझा दी ।

वह बेचारी उसी प्रक्रिया का उपयोग करती रही, जिससे न खीर बनी और न पूड़ी, वह परेशान हो गई । कुछ औरतों ने उसके उस तमाशे को देखकर कहा कि पागल तुम दूध में चावल और घी में पूड़ियाँ तैयार करो, तभी तुम्हारा भोजन बन पायेगा । उसने वैसा ही किया और खीर-पूड़ी तैयार करके अपने भाई को अच्छी तरह से भोजन कराया।

फिर छोटे भाई ने बहिन के सास-ससुर से कहा कि हम दोज के टीका के लिए बहिन को लिवाने के लिए आए हैं, आप आज्ञा दीजिए। आप बड़े प्रात:काल विदा कर दीजिएगा। सास- ससुर ने कहा कि अभी कार्तिक की फसल आ रही है । इन दिनों भारी व्यस्तता है। इस कारण से वधू को भेज नहीं पायेंगे। आप ग्यारस के बाद आकर बहिन को ले जाइयेगा। अब छोटा भाई कहता ही क्या?

उसने बड़े सबेरे लौटने का निर्णय ले लिया, उसने अपनी बहिन से कहा कि हम बड़े सबेरे घर लौट जायेंगे । आपके ससुर साहब ने तुम्हें भेजने से मना कर दिया है। अब यहाँ रुकना निरर्थक है। घर जाकर कुछ काम संभालेंगे । बहिन की आशा टूट गई और वह उदास होकर रह गई। उसने कहा कि मैं तुम्हारे लिए सबेरे नाश्ता बना दूँगी। तुम भूखे कहाँ भटकते फिरोगे?

वह आधी रात को उठी और देखा कि टीन में आटा नहीं है । वह एक बर्तन में गेहूँ रखकर चक्की पर आटा पीसने के लिए बैठ गई । घर में अंधेरा पड़ा हुआ था । अंधेरे में एक काला सर्प चक्की के मुँह में बैठ गया । अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दिया और गेहूँ के साथ सर्प भी पिस गया। उसने चक्की आटा निकालकर कोपर में रख लिया और आटा गूँथकर अंधेरे में ही तैयार करके रख लिया।

उसके साथ ही विषैला सर्प भी गुंथ गया । वह सबेरे चार बजे उठकर पूड़ी बनाने के लिए बैठ गई। पाँच पूड़ियाँ भइया के नाश्ता के लिए एक कपड़े में बाँधकर रख दीं और एक पूड़ी बचाकर कोपर में रख ली। बड़े सबेरे उसका भाई उठकर बहिन के चरण स्पर्श करके हाथ- – मुँह धोकर, लाठी लेकर चल दिया । बहिन ने हाथ में नाश्ता दे दिया ।

वह नाश्ता झोले में रखकर घर की ओर चल दिया और बहिन बाहर खड़ी खड़ी देखती रही फिर निराश होकर घर-गृहस्थी के कार्यों में व्यस्त हो गई। सवेरा होते ही घर का पालतू कुत्ता पूँछ हिलाता हुआ पहुँच गया। उसने वह बची हुई पूड़ी कुत्ते को फेंक दी । पूड़ी खाते ही वह कुत्ता वहीं चक्कर खाता हुआ गिरकर मर गया।

यह देखते ही बहिन घबड़ा गई। उसने सोचा कि पूड़ियों के साथ कोई विषैला पदार्थ मिल गया है, जिसके खाने से कुत्ते की मृत्यु हो गई। पूड़ी खाने से यही हाल भइया का होगा। सोच-सोचकर वह घबड़ा गई। जब तक भइया काफी दूर निकल गया था । वह भइया के पीछे-पीछे दौड़ गई । चिल्लाती गई और दौड़ती गई और दौड़ती गई । दौड़ते-दौड़ते वह बुरी तरह से थक गई थी, किन्तु उसने पीछा नहीं छोड़ा।

चलते-चलते भइया एक बावड़ी के समीप रुक गया । उसने नाश्ते का झोला एक पेड़ की डाल पर लटका दिया और दूर बैठकर शौच करने लगा । बहिन उसी स्थान पर पहुँच गई। उसने नाश्ते के थैला में से नाश्ता निकालकर बावड़ी के पानी में फेंक दिया और निश्चिन्त होकर घर की ओर लौट गई।

भइया उस समय उससे कुछ कह नहीं पाया, किन्तु मन ही मन नाराज होकर रह गया । वह सोच रहा था कि किसी कारणवश मेरी छोटी बहिन पागल हो गई है। अब मैं उसे कभी लिवाने के लिए नहीं जाऊँगा। यह सोचकर वह भूखा-प्यासा अपने घर लौट गया।

इतना सब होने के बाद भी ‘ पाँचो’ बहिन का अपने भाई के प्रति अटूट प्रेम था । कुछ समय बाद भइया के विवाह का अवसर आया, किन्तु उस छोटे भाई ने अपनी बहिन को बुलाने की कोई चर्चा नहीं की । बहिन को उसकी शादी का पता चल गया और वह बिना बुलाये ही भइया के घर पहुँच गई। उसे देखते ही भइया आग बबूला होकर रह गया । वह अपने भाई की सच्ची हितचिंतक थी।

वह अपने भाई के भावी जीवन की दुर्घटनाओं से भलीभाँति परिचित थी। शादी के अवसर पर वह भइया के साथ सदैव रहना चाह रही थी । जब भइया के हाथ पर नारियल रखा जाने लगा, तब वह बोली कि मेरे भी हाथ पर नारियल रख दीजियेगा। लोगों ने सोचा कि अरे! ये तो पागल हो गई, चलो रखवा दीजिये । उसी तरह लगुन रखते समय वह जिद करने लगी। तब लोगों ने उसके भी हाथ पर लगुन रखवा दी, फिर बारात जाने का भी अवसर आ गया और वह बारात के साथ जाने के लिए भी जिद करने लगी।

तब कुछ लोगों ने कहा कि चलो इस पागल को भी चले जाने दीजिये। पाँचो, बारात में भी साथ चली गई । वह अपने भाई को भावी दुर्घटनाओं से बचाना चाह रही थी। टीका के समय उसने कहा कि हमारे भाई का टीका मुख्य द्वार पर नहीं होगा, खिड़की के समीप खड़े होकर होगा । लोग उसकी बात मान गये और टीका खिड़की के समीप खड़े होकर होने लगा। इसी बीच मुख्य दरवाजा भड़-भड़ाकर गिर पड़ा और दूल्हे के प्राण बच गये। इस आकस्मिक दुर्घटना को देखकर सारे लोग ‘पाँचो’ की बातों पर विश्वास करने लगे।

शादी हो गई और विदा होकर भाभी घर आ गई। अब सुहागरात का अवसर आया, तब उसने कहा कि सुहागरात के अवसर पर मैं भइया के साथ उसी कमरे में लेटँगी। लोगों को लगा तो बहुत ही अटपटा, किन्तु किसी दुर्घटना के भय से उसे उसी कमरे में सो जाने दिया । आधी रात के समय दूल्हा और दुल्हिन तो सो गये, किन्तु ‘पाँचो’ जागती रही। जो सर्प चक्की में पिस गया था, वह उसके भाई को डँसने के लिए आधी रात को उसी कमरे में पहुँच गया।

उस समय पाँचो तो जाग ही रही थी। ज्यों ही वह सर्प भइया की ओर झपटा त्यों ही पाँचो ने तलवार से सर्प के टुकड़े कर दिए और एक मिट्टी के बर्तन के नीचे ढँक कर रख दिया। फिर वह सुख की नींद सो गई। सवेरा होते ही उसने सारे परिवार के लोगों को वह मरा हुआ सर्प दिखा दिया। देखते ही लोग दंग रह गए और सोचने लगे कि यदि आज पाँचो बहिन न होती तो भइया मर ही गया होता।

भले ही भाई अपनी बहिन से कुछ नाराज सा बना रहा, किन्तु उसके सिर पर तो काल मंडरा रहा था। इसलिए यदि बहिन हो तो भाई की हितचिन्तिका पांचो जैसी, जिसने अपने भाई के प्राण बचाने के लिए उसका साथ नहीं छोड़ा। भले ही उसका निरादर होता रहा । भाई भी अपने बहिन के त्याग और समर्पण भाव को अच्छी तरह से समझ गया था । वह क्षमा याचना करता हुआ, बहिन के चरणों पर गिर पड़ा।

उसी दिन से दोनों बहिन और भाई में अटूट प्रेम हो गया । भगवान ऐसी बहिन सभी भाइयों को दे। इससे बड़ा त्याग और बलिदान कुछ नहीं हो सकता। आज आवश्यकता हैं ऐसी बहिनों और भाइयों की ।

नाँदन भैंस व्रत कथा 

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