Baurigadh Ki Ladai- Kathanak बौरीगढ़ की लडाई- कथानक

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By admin

उदल अपनी बहन  चंद्रावलि को लेने बौरीगढ जाता है और माहिल अपनीआदत के अनुसार लोगों को लड़वाता रहता है जिसकी वजह  से Baurigadh Ki Ladai हुई। बौरीगढ़ के राजकुमार सूरजमल का विवाह परिमाल राजा की पुत्री चंद्रावलि से तब हुआ था, जब आल्हा-ऊदल बालक ही थे।

दस्सराज और बच्छराज को धोखे से मार दिया गया था। राजा परिमाल अपने शस्त्र समुद्र को अर्पित करके युद्ध से संन्यास ले चुके थे। बौरीगढ़ के राजा वीर शाह अपने पुत्र के साथ महोबा पर आक्रमण करके चंद्रावलि को ब्याहने आ चुके थे।

तब रानी मल्हना ने राजा परिमाल को समझाया था कि बेटी चंद्रावलि का विवाह किसी राजकुमार से करना ही है, फिर बौरीगढ़ के राजा यदुवंशी हैं। राजकुमार सुंदर है, वीर है। युद्ध का विचार त्यागकर बेटी के ब्याह की तैयारी करो। समधी राजा को बरात लेकर द्वार पर पधारने का निमंत्रण भेजो। रानी की समझदारी से बिना रक्तपात के चंद्रावलि का विवाह धूमधाम से हो गया।

चौदह वर्ष बीत जाने पर भी चंद्रावलि कभी मायके नहीं भेजी गई। छोटे भाई युवा हो गए, परंतु किसी ने बहन को देखा तक नहीं था। एक बार सावन में तीज से पहले रानी मल्हना को बेटी की याद आ गई। बहुत दिन से कुशलता का समाचार भी नहीं मिला था।

मल्हना के नेत्रों से आँसू छलक पड़े। उसी समय ऊदल वहाँ आ पहुँचा। पूछने पर माता ने अपनी वेदना कह सुनाई। चौदह वर्ष से बेटी को नहीं देखा। सावन में सब अपने मायके आती हैं, परंतु उसके ससुराल वालों ने उसे कभी नहीं आने दिया।

इस पर ऊदल ने ठान लिया कि मैं उसे लेकर आऊँगा। ससुराल के लिए कुछ भेंट का प्रबंध कर दिया जाए। कुछ थोड़ा सा लाव-लश्कर तथा ढेर सारी देने योग्य भेंट लेकर ऊदल चल पड़ा। राजा परिमाल ने कहा, “बौरीगढ़ से पहले दिल्ली जाते हुए पृथ्वीराज से सलाह लेकर जाना।”

ऊदल ने पहला डेरा दिल्ली से बाहर ही डाला। समाचार पाकर पृथ्वीराज ने ऊदल को बुलवाया, परंतु ऊदल से पहले ही माहिल वहाँ जा पहुँचा। उसने दिल्लीपति पृथ्वीराज को ऊदल के विरुद्ध भड़काया। माहिल बोला, “रायपिथौरा! आपका भला इसी में है कि ऊदल को पकड़कर मरवा दो।

बौरीगढ़ के बहाने वह दिल्ली पर आक्रमण करेगा। आप पहले ही उस पर हमला कर दो।” पृथ्वीराज ने माहिल की बात नहीं मानी। वे उरई नरेश माहिल की बातों से पहले भी धोखा खा चुके थे। माहिल तब बौरीगढ़ चला गया। अनेक सेनाओं तथा राजाओं को लड़वाने और मरवाने में माहिल का दोष सर्वाधिक है।

पृथ्वीराज ने ऊदल को अपनी सभा में बुलवाया। ऊदल ने बताया कि वह बौरीगढ़ जाकर चंद्रावलि बहन को सावन में घर लाने जा रहा है। पृथ्वीराज ने न केवल प्रसन्नता व्यक्त की, बल्कि पृथ्वीराज तथा उसकी रानी ने बिटिया के सास-ससुर के लिए कीमती उपहार भी दिए। फिर ऊदल बौरीगढ़ के लिए रवाना हुआ।

बौरीगढ़ से बाहर तीन कोस पर ऊदल ने डेरा डाल दिया और राजा को संदेश भेज दिया कि वह अपनी बहन को महोबा ले जाने के लिए आया है। राजा ने दूत भेजकर ऊदल को प्रेम से बुलवाया, स्वागत किया और चंद्रावलि को प्रेम से विदा करने की तैयारी की जाने लगी।

इतने में माहिल राजा के पास जा पहुँचा। माहिल को आसन देकर सम्मानपूर्वक बिठाया और हाल पूछा। माहिल बोला, “ऊदल और आल्हा को राजा परिमाल ने महोबा से निकाल दिया है। वह चंद्रावलि को लेने आया है, ताकि उसे अपने साथ ले जाकर दासी बनाया जा सके।” राजा यह सुनकर दुःखी हुए, तब माहिल ने कहा, “आप ऊदल को पकड़ लो और मरवा दो तो राजा परिमाल पर एहसान होगा।”

माहिल तो आग लगाकर चलता बना। इधर राजा ने पुत्रों को ऊदल को काबू करने का आदेश दिया। ऊदल सहज ही काबू में नहीं आ सकता था। अत: बहुत से वीर मारे गए, परंतु अंत में ऊदल को बाँध लिया गया और महल के पीछे की गहरी खाई में फेंक दिया। चंद्रावलि हैरान, परेशान थी। उसने रात को रस्सी से बाँधकर खाई में ऊदल को भोजन पहुँचाया, परंतु ऊदल ने कहा, “बहन! किसी प्रकार महोबा में सूचना भिजवा दो। वहाँ से भाई मुझे छुड़ाकर ले जाएँगे और आपको भी महोबा ले चलेंगे।”

चंद्रावलि ने विश्वस्त दूत के हाथ (तोता) संदेश भेजा। माता मल्हना ने पत्र पढ़ा और आल्हा, मलखान, ढेवा और ब्रह्मा को तुरंत बौरीगढ़ भेजा। बौरीगढ़ में भारी युद्ध हुआ। फौज तो अनगिन मारी ही गई; बौरीगढ़ के सातों राजकुमार भी बारी-बारी कैद कर लिये गए।

स्वयं वीर शाह भी युद्ध करने आया। आल्हा और मलखान ने वीर शाह को भी बाँध लिया। मलखान ने राजा से कहा कि ऊदल को बिना कारण के कैद कर लिया। इतने दिन बाद चंद्रावलि बहन को विदा कराने आए भाई से आपने ऐसा व्यवहार किया।

तब वीरशाह ने माहिल की बात बताई और बार-बार क्षमा प्रार्थना की। आल्हा ने ऊदल को तो छुड़ा ही लिया था। तब वीर शाह के सातों बेटों को बंधन-मुक्त कर दिया। राजा को सम्मान सहित आजाद कर दिया। राजा ने चंद्रावलि को विदा करने का प्रबंध किया।

सातों राजकुमारों और राजा-रानी को उपहार भेंटकर सम्मानित किया। बहन चंद्रावलि को विदा करवाकर पालकी में बिठाकर महोबा ले आए। माता मल्हना ने आरती करके स्वागत किया। महोबे में खूब खुशियाँ मनाई गई।

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