Alha Ki Mahoba Vapsi –Kathanak आल्हा की महोबा वापसी –कथानक

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Alha Ki Mahoba Vapsi –Kathanak एक भावनात्मक मोड है।  माहिल हमेशा षडयंत्रकारी काम करता है जिससे महोबा वालों को हमेशा मुश्किलों का सामना करना पडा लेकिन एक समय ऐसा आया तब आल्हा की महोबा वापसी  हुई ।  दूसरों की प्रसिद्धि से जलने वाले उनको हानि पहुँचाने का अवसर खोजते रहते हैं। माहिल ऐसे ही स्वभाव का व्यक्ति था।

ऊदल के कन्नौज जाने की जानकारी जैसे ही माहिल को मिली, वैसे ही वह दिल्ली पहुँच गया। पृथ्वीराज को जाकर उकसाया कि अब महोबे में कोई मर्द नहीं है। बिना देर किए चलकर महोबा को लूट लो। जबकि माहिल की सगी बहन है मल्हना। उसी को बार-बार धोखा देने और नुकसान पहुँचाने का वह प्रयास करता है।

लूट से भी उसे कुछ नहीं मिलेगा, पर उसका दुर्भाव संतुष्ट होगा। पृथ्वीराज भी लोभी-लालची था। जहाँ उसकी अपनी बेटी ब्याही है, उसी परिवार को अपमानित करने और लूटने को तैयार हुआ। अपना लश्कर तैयार किया और घेर लिया महोबा को।

वही माहिल हमदर्द बनकर बहन मल्हना के पास आया और बोला, “पृथ्वीराज को दंड (जुर्माना) दे दो तो वह वापस चला जाएगा, वरना महल ही नहीं, पूरे शहर को लूट लेगा।” मल्हना ने कहा, “पंद्रह दिन की मोहलत मुझे सोचने के लिए दे दो। सोलहवें दिन मैं दंड न भरूँ तो जो जी में आए, सो करना।”

माहिल ने जाकर पृथ्वीराज को पंद्रह दिन की मोहलत की बात बताई। इधर मल्हना ने जगजेरी पहुँचकर जगनिक से भेंट की। जगनिक को पृथ्वीराज के आक्रमण की सारी बात बताई। जगनिक से कहा कि मेरा पत्र ले जाकर आल्हा को देना और शीघ्र महोबा आने का आग्रह करना। पहले तो जगनिक ने मना किया, परंतु फिर परिस्थिति समझ, जाने को तैयार हो गया।

शर्त रख दी कि ब्रह्मानंदवाला घोड़ा हरनागर मिले तो मैं जाऊँगा। मल्हना ने शर्त मान ली और ब्रह्मा पर दबाव डालकर हरनागर घोड़ा भी उसे दे दिया। जगनिक पत्र लेकर चल पड़ा। माहिल ने फिर चौहान को खबर कर दी कि जगनिक ऊदल को बुलाने जा रहा है। वह जाने ही न पाए, इसलिए नदी के किनारे घाट पर घोड़ा छीन लो। फिर तो ब्रह्मानंद भी कमजोर हो जाएगा।

पृथ्वीराज ने चौंडा राय और धाँधू को घाटों पर भेज दिया। जगनिक इनसे बचकर निकल गया, साथ ही धाँधू की कलगी उतार ले गया। कुडहर पहुँचकर वह एक बगिया में घोड़ा खड़ा करके आराम करने लगा। माली ने राजा को सूचित किया और राजा ने घोड़ा खुलवाकर अपने महल में बाँध लिया। आँख खुली तो घोड़ा न देखकर जगनिक राजा के पास पहुँचा। राजा ने उसकी बात नहीं सुनी, पर रानी से जगनिक ने महोबे की समस्या सुनाई तो उसने घोड़ा दे दिया।

जगनिक पूछताछ करता हुआ राजगिरि पहुँचा। जगनिक के आने की सूचना आल्हा को दी गई। उसे फिर ऊदल मिल गया, तो आदर सहित आल्हा से मिलवाने ले गया। माता मल्हना का पत्र पढ़कर आल्हा चलने को तैयार हो गया, परंतु जब उसे पता चला कि मलखान मारा गया, तो वह दुःखी हुआ और चंदेलों ने उसकी न सहायता की, न हमें खबर करी, यह सोचकर महोबा जाने से इनकार करने लगा।

ऊदल, सुनवां, माता दिवला ने समझाया, तब वह जयचंद से अनुमति लेने गया। जयचंद ने इनकार कर दिया। फिर ऊदल ने उसे अपने कौशल से राजी कर लिया। लाखन को भी साथ ले लिया तथा उसकी फौज भी साथ ले ली। लाखन को रोकने की कुसुमा रानी ने कोशिश की, परंतु वह गंगाजली उठा चुका था, अतः ऊदल के साथ चल पड़ा।

रास्ते में परहुल के राजा सिंहा ठाकुर से युद्ध करना पड़ा, फिर कुडहरि के गंगा ठाकुर से युद्ध किया, तब महोबे की ओर आगे बढ़े। सिंहा ठाकुर और गंगा ठाकुर को भी सेना सहित साथ ले लिया। जब महोबे के पास पहुँच गए, तब जगनिक रानी मल्हना को समाचार देने के लिए पहले आगे चल दिया। जगनिक जैसे ही महल में पहुँचा, तभी माहिल भी आ पहुँचा। जगनिक ने बताया कि आल्हा ने बात नहीं मानी।

मल्हना माता रोने लगी। जगनिक ने पूछा, “अब बताओ कि चौहान पिथौरा राय क्या-क्या चीज दंड में माँग रहा है?” माहिल ने बताया कि वह ग्वालियर शहर माँग रहा है। पाँच उड़ने घोड़े और खजहागढ़ महल, मल्हना का नौलखा हार और चंद्रावलि का डोला, सबसे पहले वह सोना बनानेवाली पारसमणि माँगता है।

Alha Ki Mahoba Vapsi –Kathanak में जगनिक ने कहा कि पारसमणि तो पूजा की कोठरी में रखी है, इसे तो अभी ले लो। बाकी चीजें हम गिनवा देंगे। माहिल तो पारसमणि उठाने कोठरी में गया। जगनिक ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया, क्योंकि सब झगड़े की जड़ माहिल ही तो है। यह ही इधर-उधर चुगली करता है। ऊदल की चिट्ठी तब जगनिक ने मल्हना को दी।

रानी ने पत्र पढ़ा और तुरंत राजा परिमाल देव को बुलवाया। राजा ने भी पूरा पत्र पढ़ा तो दोनों बहुत खुश हुए। माहिल भी दरवाजे से कान लगाए सबकुछ सुन रहा था। भीतर से माहिल ने कहा, “बहन! तुम्हारे बिछुड़े बेटे मिल गए हैं। इस खुशी में मुझे बाहर आने दो। अब मैं कोई परेशानी पैदा नहीं करूँगा।”

बहन तो बहन होती है। माहिल जैसे दुष्ट भाई पर भी बहन मल्हना को दया आ गई और उसे आजाद कर दिया, पर माहिल तो कुत्ते की पूँछ था, जो कभी सीधी होती नहीं। झटपट वहाँ से निकलकर वह पृथ्वीराज के पास पहुँचा और बोला, “अब बनाफर बंधु महोबा पहुँचनेवाले हैं। बेतवा नदी के उस पार हैं। ऐसा करो कि नदी के सब घाटों पर सेना लगा दो।

कोई इस पार आ ही न सके। आल्हा-ऊदल को नदी के इस पार आने से पहले ही मार दो। बस फिर तुम्हारा काम बन जाएगा। फिर तो लूट-ही-लूट होगी। Alha Ki Mahoba Vapsi –Kathanak में “पृथ्वीराज माहिल की सलाह को सर्वोपरि मानता था। अत: उसने सब घाटों पर अपनी सेना लगा दी। न कोई नदी के पार जाए, न कोई महोबे की ओर आए।

नदी बेतवा की लड़ाई 

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