Ab Na Lage Ganv Me Niko अब ना लगै गाँव में नीको, मित्र बिछुर गओ जीकौ

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Ab Na Lage Ganv Me Niko अब ना लगै गाँव में नीको, मित्र बिछुर गओ जीकौ
Ab Na Lage Ganv Me Niko अब ना लगै गाँव में नीको, मित्र बिछुर गओ जीकौ

अब ना लगै गाँव में नीको, मित्र बिछुर गओ जीकौ।
आवौ-जावौ करे रातते, अब मौं देखों कीकौ।
कर और बार पुरा पाले में, लगत मुहल्ला फीकौ।
सौने कैसो पानी ईसुर, गओ उतर मों ईकौ।

महाकवि ईसुरी ने विरह पीड़ा के वर्णन में कहा है कि यह ऐसी आग है जो पानी से बुझाने से बुझती नहीं है। ये आग तो तभी बुझती है, जब विरही को उसका चाहने वाला मिल जाय।
होने जबई करेजो ओरौ, मिलै मिलनिया मौरौ।
परचत रए बिरह के अंगरा, छनकत रत रओ थोरौ।
जल के परत भवूका छूटत, कितनऊ सपरौ खोरौ।
और-और परचत है ईसुर, पंखन पवन झकोरौ।

महाकवि ईसुरी कहते हैं कि प्यार-मुहब्बत का चक्कर होता ही है बड़ा कठिन जिस किसी को ये चक्कर पड़ जाता है, उसका चैन छिन जाता है, खुशी चली जाती है, शरीर विरह आग में जलता रहता है। 
जबसे भई प्रीत की पीरा, खुशी नई जो जीरा ।
कूरा-माटी भओ फिरत है, इतै उतै मन हीरा।
कमती आ गई रकत-मांस की, बहै दृगन से नीरा।
फूकत जात बिरह की आगी, सूकत जात सरीरा।
ओई नीम में मानत ईसुर, ओई नीम कौ कीरा।

महाकवि ईसुरी का जीवन परिचय