बखरी रैयत है भारे की, र्दइ पिया प्यारे की।
कच्ची भीत उठी माटी की, छबी फूस चारे की।
बे बन्देज बड़ी बेबाड़ा जेई, में दस द्वारे की।
बिना किबार-किबरियां वालीं,बिना कुची तारे की।
ईसुर चाय जौन दिन लैलो, हमें कौन वारे की।
रहना होनहार के डरते, पल में परलै परते।
पल में राजा रंक होत है, पल में बने बिगरते।
पल में धरती बूंद न आवै, पल में सागर भरते।
पल-पल की को जानै ईसुर, पल में प्रान निकरते।
ईसुरी जीवन की निरर्थकता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं…।