दानापुर से पलटन आने के बाद Banda Ke Nawab Aur Svtantrata Sangram दोनों एक दूसरे के पूरक हो गए । दानापुर के बागी सिपाहियों तथा अन्य सैनिक विद्रोहियों के अतिरिक्त बांदा नवाब की स्वयं की सेना जिसमें दस हजार बन्दूकची छः हजार सवार, एक हजार अन्य सिपाही तथा पन्द्रह तोपे थी।
इस बेड़े के अलावा बागी सिपाहियों का एक दल आठवीं पल्टन के सूबेदार महताब अली के अधीन नवाब की मदद कर रहा था । २७ नवम्बर 1857 को बाँदा इलाके में पूरब की ओर से आये बागी सिपाहियों की छः रेजीमेन्टे मौजूद थी जिसमें चार रेजोमेन्टें मऊ में तथा दो राजापुर के बरदवारा में ठहरी थी।
बांदा नवाब इस समय सैनिक तैयारी में संलग्न थे , नवाब अपनी उपस्थिति में तोपों में बारूद भराने में व्यस्त थे , इसलिये महल के द्वार बन्द करा दिये । इसी दरम्यान बागी सिपाहियों ने नवाब से अनुरोध किया कि हर सिपाही को सोलह रुपये माहवार के हिसाब से तथा हर सवार को पच्चीस रुपये माहवार के हिसाब से चार दिन के अंदर वेतन दिला दें अन्यथा उन्हें नगर को तथा महल को लूटना पड़ेगा ।
नवाब के पास धन को कमी थी, उन्हे हथियार और गोला बारूद भी खरीदना था । उसने अपने करिन्दा खुमान को नारायण राव के पास कर्वी भेजा और आर्थिक सहायता का प्रस्ताव रखवाया । नारायण राव ने प्रस्ताव को मान लिया । रुपया लेने के लिये नवाब स्वयं ही 15 नवम्बर को कर्वी गए उसके साथ में दो हजार सिपाही तथा पांचवीं अनियमित पल्टन भी अंग रक्षक के रूप में की गई। नारायण राव ने नवाब को दो लाख रुपये उधार दिये तथा अनुबन्ध लिखा गया
नारायण राव के पास परगने – छीबू, दरर्सेड़ा, तिरोहा, बदौसा, तथा आधा बबेरू। नवाब अली बहादुर के पास परगने – पलानी, सिमौनी, बांदा , सिहौंढा तथा आधा बबेरू।
कर्वी से लौटने पर बागी सिपाहियों ने बांदा के महाजनों को सम्पत्ति गिरवी रखने तथा रुपया देने के लिये विवश किया। उन्होंने नवाब के गहने व जवाहरात आदि महाजनों के पास गहन रख हो। जब सिपाहियों ने देखा कि महाजनों के पास रुपया है तो उन्होंने ये भी ले लिये और सम्पत्ति भी रहन के लिये नहीं दी।
नवाब को धन की कमी महसूस हो रही थी उसने 100 आदमियों के साथ एक तोप को मौहदा तहसीली का खजाना लूटने के लिये भेजा। वे तहसीली को लूटकर तेईस हजार रुपया ले आए । नवाब ने आर्थिक सहायता के लिये चरखारी राजा से भी अनुरोध किया लेकिन चरखारी राजा ने साफ मना कर दिया ।
मिर्जा बिलायत हसन तथा मोरन साहब ने 2 नवम्बर 1857 को बांदा के एक प्रमुख व्यापारी रतीराम के मकान को नींव से खोद डाला, इस लूट में उन्हें दो हीरे, स्वर्ण, चांदी और लगभग पचहत्तर हजार रुपये नगद मिले । इन लोगों ने हर व्यापारी से चार सौ पांच सौ रुपया वसूल किया ताकि सिपाहियों को वेतन दिया जा सके। रसद आदि खरीदने पर ही पैंतीस हजार रुपये व्यय हुए।
ब्रिटश सरकार के मुलाजिम तहसीलदार फरहत अली (बांदा), स्योढ़ा के तहसीलदार चिरजीलाल और बांदा के कोतवाल फजल मोहम्मद नवाब की सेवा में शामिल हो गये । हर एक को नवाब ने एक सौ रुपये मासिक वेतन पर रख लिया।
कर्वी तरोंहा से नवाब इलाहाबाद जाना चाहता था किन्तु वह इलाहाबाद नहीं जा सका । जो सिपाही उसके साथ कर्वी (तरोंहां) गये थे, वह नवाब का साथ नहीं छोड़ना चाहते थे। नवाब का कहना है कि सिपाहियों ने ही उसे नारायण राव से रुपया लाने के लिये विवश किया था। जब नारायण राव से नवाब दो लाख रुपया लाया तो सिपाहियों ने उस राशि को वेतन भत्ते के रूप में नवाब से ले लिया।
बांदा नवाब 3 दिसम्बर को तरोहा से बादा लौट आये उस समय बागो सिपाहियों की दो अन्य टुकड़ियाँ भी नवाब की सेना में आ मिली । ये सिपाही अपने साथ अठारह तोपें भी लाये थे। नवाब ने अब भूरागढ़ के किले को मजबूत किया और उसे गोला बारुद, हथियारों से लैस किया। तत्पश्चात उसने इस बढ़ी हुई फौजी ताकत की बदौलत मौहदा और खनडेह को भी ले लिया।
नवाब को धन जुटाने के लिए अन्य हथकन्डे भी अपनाने पड़े। विरोधियों को भी लूटा । वांदा का कोतवाल और उनका भतीजा फहीम जमा अकसर नवाब की तथा बागियों की गति विधियों के समाचार ब्रिटिश अधिकारियों के पास भेजा करते थे । जब नवाब को यह पता चला तो उनको पकड़वाया । कोतवाल को तो फाँसी पर लटका दिया गया फहीमजमा पर भारी अर्थ दंड लगा दिया गया ।
नवाब ने नगर के ही कीरत पुरवार कासी नाहर एव मदारी लाल के मकान को नष्ट कर दिया और उनकी सम्पत्ति को लूट लिया । सम्पत्ति का मूल्य लगभग सवा लाख रुपये होगा। नवाब ने चांदी का हौदा और चाँदी की घडी काशमीरी महाजन जमनादास के पास कभी गिरवी रखी थी। वह भी नवाब ने जबरदस्ती जमुनादास से छीन लिये ।
तरोंहा के पेशवा नारायणराव धन से तो नवाब की मदद करता ही था वह भी खुलकर विद्रोह करने लगा और नवाब को अकसर प्रोत्साहित करता रहता था । नारायण राव की शह पर नवाब बांदा ने नन्दो जौहरपुर गांव पर आक्रमण किया और उसे लूट लिया । अग्रेज विहीन बांदा इलाके में विद्रोहियों का होसला बुलन्द था यही नहीं मानिकपुर में राजस्व वसूली के लिये बांदा का नायब तहसीलदार मो० हुसैन गया हुआ था। उससे कहा सुनी हो जाने पर नारायणराव माधवराव ने उसे मार डाला । नवाब को मदद देने के लिए बाहर से बागी पल्टनों के सिपाही कानपुर की ओर चले गये । स्थानीय दी तथा नई भती के लोग नवाब की सेना में काम करते रहे ।
1 – (१)राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन १८८ दिनांक ८-१२ १८५७, सिक्रेट, पोलिटिकल, बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम सविस मेसेज दिनाँक २७-११-१८५७ ।
(2) सिन्हा एस० एन० रिवाल्ट आफ १८५७ इन बुन्देलखण्ड पृष्ठ ६६ 2 – सिन्हा एम० एन० रिवाल्ट आफ १८५७ बुन्देलखण्ड, पृष्ठ ८४
3 – राष्ट्रीय अभिलेखागार -रिवाल्ट इन सेन्ट्रल इण्डिया पृष्ठ २८ म[१] राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन २०५ दिनांक २६-१-१८५८, दुर्गा प्रसाद का बयान ।
4 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलिटिकल प्रासीडिंग्ज ३०-१२-१८५६ द्वितीय भाग, अनु क्रमांक ४६, नवाब अली बहादुर का कथन ।
5 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-३ [२] के अनुसार ।
6 – राष्ट्रीय अभिलेख गार -३ [२] के अनुसार।
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार – रिवो इन सेन्ट्रल इडया, राष्ट्रीय अभिलेखागार – कन्म नटेशन २३३-३४, दिनांक २८-५-१८५८, सिक ट; गवर्नर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३१७ दिनांक २६-५-१८५८ ।
8 – राष्ट्रीय अभिलेखागार [१] पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज ३०-१२-१८५८, ग्यारहवां भाग अनुक्रमांक २१८०. पोलीटिकल एजेन्ट रीवा की ओर से भारत सरकार के पत्र संख्या ३०७ दिनांक २७-३-१८५८ । [२] कन्सलटेशन १८८, दिनांक ८-१२-१८५७;
9 – सिक्रट पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम सवित मेसेज दिनाँक २७-११-१८५७ ।
10 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-सिक्रेट प्रासीडिंग्ज २७-११-१८५७, अनुक्रमांक १४५, पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम सविस मेसेज दिनांक १६-११-१८५७। 11 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-८ के अनुसार ।