भारत का हृदय स्थल उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बसे बुन्देलखण्ड राज्य मे स्थित यह क्षेत्र जो वर्तमान में बाँदा जिले के रूप में जाना जाता है Banda Ka Itihas बाँदा का इतिहास पुरातन काल मे भी एक समृद्ध ऐतिहासिक परंपरा का दावा करता है। यहां पाषाण काल और नवपाषाण काल के पाए गए पत्थर की मूर्तियां और अन्य अवशेष यह साबित करते हैं कि मानव सभ्यता उन शुरुआती काल में अस्तित्व मे आ गया था ।
बाँदा (बुन्देलखण्ड) उत्तर प्रदेश का इतिहास
प्रागैतिहासिक काल में आदिवासी कोल, भील, सांबर आदिम लोग इस क्षेत्र में निवास करते थे। इस क्षेत्र के सबसे पहले ज्ञात पारंपरिक शासक यायाति थे जिनके सबसे बड़े पुत्र यदु को यह क्षेत्र विरासत में मिला था, बाद में उनकी संतानों द्वारा इसका नाम चेदि-देश रखा गया। कालिंजर के नाम से जानी जाने वाली एक पहाड़ी है जिसे पवित्र माना जाता है यह तपस्या-स्थान भक्ति की प्रथाओं के अनुकूल माना जाता है। महान ऋषि बामदेव के नाम से इस स्थान का नाम बाम्दा (बाद में बांदा) पड़ा, वे इसी क्षेत्र में रहते थे। बाँदा शहर बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित है। बाँदा शहर बाँदा जिले का मुख्यालय भी है। बांदा शहर केन नदी ( यमुना की सहायक नदी) के किनारे बसा है।
बाँदा जिले का नामकरण
बाँदा एक एतिहासिक ही नहीं पौराणिक शहर है। बाँदा शहर का नाम महर्षि वामदेव के नाम पर पहले बाम्दा और बाद में बाँदा हुआ । महर्षि वामदेव की तपोभूमि है बाँदा ।
बाँदा क्यों प्रसिद्ध है?
खास बात है की बांदा से निकालने वाली नदी केन नदी से गोमेद रत्नों के के निकालने के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है । गोमेद रत्नों का बाँदा से बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाता है। बांदा शहर और बांदा के आस-पास धार्मिक स्थल एवं हिन्दू मंदिर हैं। बांदा जिले के अन्तरगत 18वीं शताब्दी का किला कालिंजर स्थित हैं। मुस्लिमों, मराठों और अंग्रेज़ों के बीच चले संघर्षों के दौरान बाँदा अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करता रहा।
बाँदा जनपद की स्थिति
ब्रिटिश शासन काल के समय बांदा इलाहबाद मंडल में एक ज़िला था। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के अनतर्गत बांदा जिला हुआ । 1998 में कर्वी और मऊ तहसील को जिले से अलग करके नया चित्रकूट जिला बनाया गया।
बाँदा ज़िलें की बाघिन, केन तथा यमुना प्रमुख नदियाँ हैं। बाँदा जिला पठारी भूमि होने के कारण भूमि काफी उबड़ खाबड़ है। बाँदा ज़िले के उत्तर में फतेहपुर जिला, पूर्व में चित्रकूट जिला, पश्चिम में हमीरपुर व महोबा जिला स्थित है और दक्षिण में मध्य प्रदेश राज्य के छतरपुर तथा सतना ज़िला स्थित है। बाँदा ज़िले की चार तहसीलें बांदा, नरैनी, बबेरू, अतर्रा हैं।
आजादी के समय महात्मा गाँधी का बाँदा आगमन
आजादी के महासमर के दौरान नवंबर 1929 में, महात्मा गांधी ने बांदा का दौरा किया था। और फिर स्वतंत्रता की ज्योति ज्वाला बन कर संपूर्ण बुंदेलखंड में भभक उठी थी।
बांदा का एतिहासिक काल
बांदा जिला मे स्थित ब्लाक बड़ोखर खुर्द के गांव बसरही में हज़ारों वर्ष पुरानी एक चैकी है। इस चैकी को लोग राजा परमाल / परमर्दिदेव की गढ़ी के नाम से जानते हैं। कालिंजर के राजा परमाल / परमर्दिदेव ने यहां पर गढ़ी बनवाई थी। इस गढ़ी का नाम चैकी है। यहां पर राजा प्रजा की समस्याओ को सुनते थे और अपना निर्णय सुनाते थे।
बाँदा का प्रागैतिहासिक काल
बाँदा में पाषाण काल और नवपाषाण काल के पाए गए पत्थर की मूर्तियां और अन्य अवशेषों यह साबित करते हैं कि मानव सभ्यता बाँदा में भी वैसी थी जैसे देश के अन्य हिस्सों में थी। प्रागैतिहासिक काल में आदिवासी या आदिम लोग इस क्षेत्र में रहा करते थे। इस क्षेत्र की संस्कृति ऋग्वेद में उल्लिखित थे। माना जाता है कि इस क्षेत्र में एक समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। बांदा के पहले शासक ययाति थे उनके बाद उनके पुत्र यदु को यह क्षेत्र विरासत में मिला था, बाद में उनकी संतानों द्वारा इस प्रदेश का नाम चेदि-देश रखा गया।
कालिंजर का किला
बांदा जिले में स्थित कालिंजर का किला एक इतिहास और संस्कृति को बखान करता दुर्ग है। कालिंजर दुर्ग बुन्देलखण्ड क्षेत्र में विंध्य पर्वत पर स्थित है यह दुर्ग भारत की धरोहर है । यह स्थल खजुराहो से 97.7 किमी दूर है। कालिंजर मे स्थित ये प्रसिद्ध पहाडी जिसे पवित्र माना जाता है और इसका वेदों में भी उल्लेख किया गया है।
लोककथाओं के अनुसार प्रसिद्ध कालिंजर की पहाड़ी कलंजराद्री का नाम स्वयं भगवान शिव से लिया गया है, जो कालिंजर के मुख्य देवता हैं जिन्हें आज भी नीलकंठ कहा जाता है। इस जगह का उल्लेख अनेक धर्म शास्त्रों , पुस्तकों रामायण, महाभारत और पुराणों में भी किया गया है।
बनवास के समय श्रीरामचन्द्र का आगमन
यह भी माना जाता है कि भगवान राम ने अपने बनवास के समय 14 में से 12 वर्ष चित्रकूट में बिताए हैं, जो कुछ वर्ष पहले तक बांदा का हिस्सा था। बाँदा का क्षेत्र चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास मगध के नंद साम्राज्य में मिला दिया गया था, बाद में इसने 236 ईसा पूर्व में अशोक की मृत्यु तक मौर्य साम्राज्य के तहत यह क्षेत्र रहा है ।
बाँदा मे अनेक राजाओ का शासन
पुष्यमित्र शुंग ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया जो लगभग 100 वर्षों तक शुंग के अधीन रहा और उसके बाद कुछ ही समय के लिए कुषाणों ने भी बाँदा की भूमि पर शासन किया। नागाओ तथा गुप्तो ने भी इस क्षेत्र पर शासन किया। इस क्षेत्र का नाम बाद में जेजाकभुक्ति (या जाझोटी) रखा गया। केवल कुछ समय के लिए यह क्षेत्र हों और फिर पांडुवमसी-राजा उदयन के अधीन हो गया। राजा हर्ष-वर्धन (606-647 ई०) ने उत्तर भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित किया, बाँदा क्षेत्र इस प्रभुत्व का एक हिस्सा था।
बाँदा का एतिहासिक स्वरूप
11 वीं शताब्दी के पहले भाग में महमूद गजनबी ने कई बार कालिंजर पर आक्रमण किया लेकिन सफल नहीं हो पाया । 1182 ई० के दौरान, दिल्ली और अजमेर के चौहान राजा प्रियव्रजा के नाम से प्रसिद्ध चंदेला राजा परमर्दिदेव को पराजित किया गया था और परमदिदेव ने जल्द ही स्वयं को स्वतंत्र कर अपना स्थान पुनः प्राप्त कर लिया।
1202 ई0 में कुतुब-उद-दीन ऐबक ने कालिंजर के किले पर कब्जा कर लिया था लेकिन चंदलों ने अपने पराक्रम से क्षेत्र को पुनः प्राप्त किया और 13 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान इस पर शासन किया।
लोदी-सुल्तानों ने भी थोड़े समय के लिए कालिंजर पर कब्जा कर लिया था लेकिन फिर से हिंदू राजा के कब्जे में आ गया था । मुगल राजकुमार हुमायूँ ने इसे पुनः प्राप्त करने का काफी प्रयास किया लेकिन 1530 ई0 में उसके पिता बाबर की मृत्यु ने उसे इस कदम को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
1545 ई. मे शेरशाह सूरी ने कालिंजर के किले को घेर लिया, लेकिन इसके कब्जे से पहले एक जंग के दौरान वह मारा गया। अंतिम रूप से उनके बेटे जलाल खान को इस्लाम शाह की उपाधि के तहत कालिंजर किले में शाही सिंहासन पर बैठाया गया था। चंदेला राजा और उसके सत्तर सैनिकों को को धोखे से मार दिया गया और इस तरह कालिंजर पर चंदेला-शासन का अंत हो गया।
बघेल राजा राम चंद्र ने कालिंजर का किला खरीद लिया था लेकिन बाद में अकबर के प्रतिनिधि मजनूं खान कुक्साल द्वारा कालिंजर पर कब्जा कर लिया गया और कालिंजर किला मुगल प्रभुत्व का एक अभिन्न हिस्सा बन गया था । बाद में राजा बीरबल ने कालिंजर को अपना जागीर बना लिया। मुगल शासन के दौरान बांदा जिले के अंतर्गत अधिकांश क्षेत्र कालिंजर राज्य के अंतर्गत आता था। दस महल थे, जिनमें से कालिंजर-सिरकर में छह थे जैसे कि औगासी, सिहौंद, सिमौनी, शादीपुर, रसिन और कालिंजर बांदा के वर्तमान जिले का हिस्सा है।
1691 ई. में छत्रसाल पन्ना ने यमुना के दक्षिण में लगभग पूरे इलाकों को जीत लिया, जो आज बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है।
1728 ई. मे इलाहाबाद के गवर्नर मुहम्मद खान बंगश ने बुंदेलखंड को फिर से हासिल करने की कोशिश की लेकिन उसे वापस जाना पड़ा। छत्रसाल के दूसरे पुत्र, को बांदा के चारों ओर किले और प्रभुत्व प्राप्त हुए जिन्हें राजधानी बनाया गया और केन नदी के पश्चिमी तट पर भूरा गढ़ का किला 1746 ईस्वी के दौरान बनाया गया।
बाजीराव मस्तानी का बाँदा से सम्बन्ध
बाजीराव से संबंध के कारण मस्तानी को भी अनेक दुःख झेलने पड़े पर बाजीराव के प्रति उनका प्रेम अटल था। मस्तानी के 1734 ई० में एक पुत्र हुआ। उसका नाम शमशेर बहादुर रखा गया। बाजीराव ने काल्पी और बाँदा की सूबेदारी उसे देने की घोषणा कर दी। शमशेर बहादुर ने पेशवा परिवार की बडे लगन और परिश्रम से सेवा की।
अवध नवाब का बाँदा मे आक्रमण
1762 में अवध नवाब ने बुंदेलखंड को जीतने की कोशिश की, लेकिन बुंदेलों की एकजुट ताकतों ने तिंदवारी क्षेत्र के निकट नवाब की सेना को हरा दिया। कमांडर करामत खान और राजा हिम्मत बहादुर को पलायन करने के लिए यमुना में कूदना पड़ा। 1791 ई। में नोनी अर्जुन सिंह की देख-रेख में बांदा के राजा बुंदेला ने आक्रमणकारियों का मुकाबला किया, जो पेशवा बाजी राव और उनकी पत्नी मस्तानी और उनके दोस्त हिम्मत बहादर गोसाई से संबंधित थे।
अली बहादर और बाँदा रियासत
अली बहादुर को पेशवाओं द्वारा बांदा का नवाब घोषित किया गया इसके बाद सन 1802 ई में कालिंजर किले पर कब्जा करने की कोशिश करते हुए अली बहादुर ने अपनी जान गंवा दी। यह मृतक अली बहादुर के पुत्र शमशेर बहादुर की शासन के दौरान था, जिसने बांदा को अपना निवास स्थान बनाया था। बुंदेल लोग इससे कभी संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने बांदा के नवाब का अंत तक विरोध किया। 1803 में बसीन की संधि ने ब्रिटिश शासन के तहत कानूनी तौर पर बांदा लाया, हालांकि बांदा के नवाबों ने उनके प्रवेश का विरोध किया। हिम्मत बहादुर, नवाबों के एक समय के दोस्त ने उन्हें धोखा दिया और अंग्रेजों को बर्खास्त कर दिया और नवाब शमशेर बहादुर को पराजित किया गया और 1804 ईस्वी में ब्रिटिश शासन के अधीन होना पड़ा।
1857 की क्रांति में बाँदा का योगदान
मार्च 1819 में बांदा शहर को नव निर्मित दक्षिणी बुंदेलखंड जिले का मुख्यालय बनाया गया था। नवाब अली बहादुर द्वितीय ने 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। तब बांदा जिले के निवासियों ने पूर्वी जिलों से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरित होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ बड़ी संख्या में हथियार उठाए। 14 जून को ब्रिटिश अधिकारियों ने बांदा छोड़ दिया और नवाब ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। बांदा के नवाब ने न केवल बांदा में अपने शासन का आयोजन किया, बल्कि बुंदेलखंड में अनेक जगहों पर क्रांतिकारी प्रयासों में सहायता की।