अब दिन गौने के लग आये, हमने कईती काए।
सुसते नई काम के मारें, ऐंगर बैठ न पाए।
आसों साल वियाब भये ते, परकी साल चलाए।
तेवरस साल विदा की बातें, नाऊ संदेशा लाए।
सब सेवा विरथा गई ईसुर, आशा जीव जिवाए।
महाकवि ईसुरी कब ,कहाँ, कैसे, क्या कहना है वे भली भांति जानते थे । वो कहते हैं कि इस दुनियादारी के चक्कर में पड़कर दो घड़ी स्वजनों के साथ बैठकर बातें नहीं कर पाए। इस वर्ष व्याह, दूसरे वर्ष गौना और तीसरी साल विदा का समय आने वाला है। इसी फेर में जीवन निकल गया। न काम ही पूरा हो पाया है और न ही हरि स्मरण भी कर पाए हैं।