Homeलोक विज्ञानLokvigyaan लोकविज्ञान की अवधारणा

Lokvigyaan लोकविज्ञान की अवधारणा

लोकविज्ञान Ethnoscience/नृवंशविज्ञान का उद्भव लोक में हुआ,  लोक के कारण हुआ और लोक के लिए हुआ।  Lokvigyaan लोक जीवन का एक अहम हिस्सा आदिकाल से रहा है जिसकी कोई पांडुलिपि नहीं मिलती किंतु परिणाम विशुद्ध वैज्ञानिक है अतः यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आधुनिक विज्ञान की उत्पत्ति लोक विज्ञान से ही हुई है ।

प्रभु श्री राम जब वन को प्रस्थान कर गए हैं तब माता कौशल्या बदहवास सी भागती हुई उन्हें खोजने के लिए दौड़ पड़ीं नगर से निकाल कर जंगल की ओर जा रहीं थीं  तभी उनकी साड़ी जर बेरी के काँटों मे फस गई वह चिल्लाई जा रही थी किसी ने मेरे राम को देखा…  किसी ने मेरे राम को देखा… .  जरबेरी ने जवाब दिया हां मैंने देखा है !!!

वह भी इसी रास्ते से गए हैं जब वो जा रहे थे तो इसी तरह उनकी धोती भी  मेरे इन कांटों में फंस गई मैंने उन्हें कुछ देर बिलमाये रखा था । यह सुनते ही माता कौशल्या अति प्रसन्न हुईं  और उन्हें आशीर्वाद दिया जरवेरी को और कहा तुम्हारा कद जरूर छोटा है लेकिन मैं आज वरदान देती हूं कि तुम्हारी जड़ें  पाताल तक जाएं… अगर तुम्हें कोई काट भी दे तो तुम फिर से उग जाओगी क्योंकि तुमने मेरे राम को कुछ देर रोक कर रखा है।

यही हाल हमारी परंपराओं का है। हमारी परम्पराएं भी जरबेरी की तरह हैं । उनकी जड़ें पाताल तक गई हैं !!! वो कभी खत्म नहीं हो सकतीं । जिन्हें हमारे पूर्वजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी अनेक प्रयोगों से गुजरते हुए उनकी स्थापना की है । अपनी वर्षों की साधना से उस विज्ञान को मूर्त रूप देकर लोक के समक्ष खड़ा कर दिया उस लोक विज्ञान Ethnoscience/नृवंशविज्ञान को पहले धर्म से जोड़ा फिर उसे परंपरा का स्वरूप दे दिया । 

क्योंकि उस समय लोग विज्ञान को कम और धर्म को ज्यादा मानते थे यही कारण था कि  लोक ने विज्ञान को धर्म से जोड़ दिया और वह परम्पराएं  बन गई ताकि हम उनका अनुसरण करते हुए आगे बढ़ते रहे।  पीढ़ी दर पीढ़ी इन परंपराओं को हमने आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित किया ताकि यह लोक विज्ञान परंपरा के रूप मे युगो युगो तक जीवित रहे ।

जब हमारे पूर्वजों ने वर्षों तक लोक विज्ञान पर अनेक शोध किए और उनके बेहतर परिणामों को लोक जीवन मे ढालने के लिए उन्हे धर्म से जोड़ा क्योंकि आदिकाल से धर्म जनमानस के कल्याण के लिए कार्य कर रहा है । अतः लोक विज्ञान को धर्म से जोड़ना अति आवश्यक था।

लोक विज्ञान को आधार बनाकर हमारे पूर्वजों ने अनेक त्योहारों -पर्वों  की शुरुआत की और उन्हें धर्म से जोड़कर परंपरा का स्वरूप दे दिया इसी प्रकार खानपान में भी लोक विज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्थान है किस त्यौहार में हमें क्या खाना है किस तरह से खाना है इसको भी सबसे पहले धर्म से जोड़ा  और उसे परंपराओं का स्वरूप देकर उन्हें युगो युगो तक जीवित रखने का और जनमानस के विकास में सहायक होने का एक माध्यम बना दिया।

यह कहना अनुचित नहीं होगा की हमारी जो भी परंपराएं हैं वह लोक विज्ञान पर ही आधारित है इनकी प्रमाणिकता के दस्तावेज हमारे पूर्वजों ने लिखित रूप में नहीं रख सके। यह सब मौखिक परंपरा पर आधारित हैं और मौखिक ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते रहे हैं। आदिकाल से ही इसकी कोई पांडुलिपि नहीं बनाई गई और कुछ पांडुलिपि बनी वे या तो नष्ट हो गई या नष्ट कर दी गई।  अगर आज इनकी प्रमाणिकता वैज्ञानिक आधार पर शोध किया जाए तो यह 100% कसौटी पर खरे होंगे।

यह दुर्भाग्य रहा है कि आज तक हमने अपने इस लोक विज्ञान को सहेज नहीं सके और नया ही इसकी कोई पांडुलिपि बना सके।  लेकिन आज भी दूरदराज गांव में बुजुर्गों की वह आखिरी पीढ़ी बची हुई है जिनके पास इनकी प्रामाणिकता  के कुछ पुख्ता सबूत है अगर समय रहते उन बुजुर्गों से लोक विज्ञान और उनसे जुड़ी परंपराओं के बारे मे जानकारी लेकर दस्तावेज बना लिए जाएं तो बहुत बेहतर होगा।

बुन्देली झलक क्या है ?

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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