Homeबुन्देलखण्ड का लोक नाट्यPahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति

Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति

बुन्देली लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन हेतु समर्पित संस्था Pahuna Lok Jan Samiti  ग्राम- मवई, ज़िला-टीकमगढ़ के सफर को तीन पड़ावों में विभक्त करके आसानी से समझा जा सकता है।पहले पड़ाव में बिना किसी के मार्गदर्शन में कच्ची उम्र और कच्ची सोच में किया गया ग्रामीण स्तर का रंग कर्म जिसमें नाटक के नाम पर सिर्फ़ शुद्ध मनोरंजन ही प्रमुख था।

पाहुना लोक जन समिति अपने सारे नाटक बुंदेली में करते हैं। जिसमे अपनी लोकसंस्कृति के सारे हिस्सों का समावेश करने का प्रयास करते हैं। जैसे -बोली, लोकगीत- लोक संगीत, लोक नृत्य व लोक कथाएं आदि इसी तरह हम अपने लोक जीवन के रीतिरिवाज, वेशभूषा ,रहन सहन भी अपनी नाट्यप्रस्तुतियों के माध्यम से सहेजने की कोशिश भी करते हैं।

कभी अपने लोक नाट्य शैली स्वांग भी निकालते हैं या स्वांग शैली में नाटक भी करते हैं। तो हमारी संस्था सिर्फ़ बुंदेली स्वांग शैली में रंगमंच के साथ-साथ पाहुना नाट्य संस्था के माध्यम से हम अपनी सम्पूर्ण लोक संस्कृति को सगर्व, समग्रता के साथ मंच पर प्रस्तुत करते है।

बुन्देली लोक संस्कृति की नाट्य यात्रा        
बुन्देली लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन हेतु समर्पित संस्था “पाहुना लोक जन समिति” ,ग्राम- मवई, ज़िला-टीकमगढ़ के सफर को तीन पड़ावों में विभक्त करके आसानी से समझा जा सकता है। पहले पड़ाव में बिना किसी के मार्गदर्शन में कच्ची उम्र और कच्ची सोच में किया गया ग्रामीण स्तर का रंग कर्म जिसमें नाटक के नाम पर सिर्फ़ शुद्ध मनोरंजन ही प्रमुख था । पर हाँ यह वक़्त और टूटा-फूटा नाट्य कर्म अंजाने में ही भविष्य की नींव रख रहा था। दूसरे पड़ाव में समझ के साथ रुक रुक के किया गया रंगकर्म क्योंकि नाट्य दल के सारे सक्रिय सदस्य उच्च अध्ययन हेतु गाँव छोड़कर चले गए और अलग-अलग क्षेत्रों में अपना कैरियर बनाने में जुट गए।

मैं भी आगे की पढ़ाई करने सागर विश्वविद्यालय चला गया लेकिन मैंने नाटक करना नही छोड़ा बल्कि रंगमंच के क्षेत्र में ही अपना भविष्य खोजने लगा। इसलिये पढ़ाई के साथ सागर में रंगमंच शुरू किया और भोपाल होते हुए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय
, नई दिल्ली तक की यात्रा की। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अध्ययन के पश्चात कुछ वर्ष जीविकोपार्जन की उधेड़बुन में यहाँ-वहाँ रंगकर्म करते बीत गए, इसीलिए दूसरे पड़ाव में पाहुना संस्था के रंगकर्म की गति धीमी पड़ गई । पहले हमारी संस्था का नाम पाहुना लोक मंच था।पर काम की धीमी गति और ध्यान नही देने की वजह से हमारा 1994 में “पाहुना लोक मंच” नाम से किया गया पंजीकरण रद्द हो गया था।

संस्था के सचिव संदीप श्रीवास्तव के प्रयासों से कई वर्षों बाद पुनः संस्था का पंजीयन “पाहुना लोक जन समिति” नाम से करवाया गया। तीसरे पड़ाव में संस्था ने गंभीरता पूर्वक रंगकर्म शुरू किया और अपनी सतत रंगयात्रा जारी रखी। इस पड़ाव में संस्था ने गाँव के साथ साथ टीकमगढ़ को अपना कर्म केंद्र बनाया और नियमित रूप से बाल एवं युवा प्रतिभाओं के लिये रंगकार्यशालाएं आयोजित की
, स्तरीय नाट्य प्रस्तुतियां तैयार की, रंग गोष्ठियाँ, और राष्ट्रीय नाट्यमहोत्सवो का आयोजन किया।

Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति
Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति


स्थान-
बुन्देलखण्ड क्षेत्र का गाँव मवई
, ज़िला-टीकमगढ़, मध्यप्रदेश। समय 1985-86, मैं युवावस्था की दहलीज पर कदम रख रहा था कि तभी गीत, नृत्य और नाटक की ओर रुचि बढ़ने लगी। हर काल में हर गाँव-कस्बों में दो चार युवा आपको रचनात्मक प्रवृत्ति के ज़रूर मिलेंगें जो धार्मिक ,सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं, और यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है।

मेरे गाँव मे भी कुछ ऐसे ही हमउम्र साथी थे जो फ़ितरत से आम बच्चों से अलग किस्म के थे तथा कलाप्रेमी भी थे। उनमें से संजय जैन
, बृजकिशोर नामदेव और संजीव शर्मा मेरे साथ शुरुआती दौर में काफी सक्रीय थे ।हम लोगों ने मिलकर शौकिया तौर पर गांव में ही नाटक शुरू किए । प्रारंभिक दौर में न हम रंगमंच, रंगकर्म और थिएटर जैसे नामों से परिचित थे, और न ही नाटक की अन्य विधाओं से परिचित थे । ले देकर सिर्फ नाटक ही जानते थे। और करते थे प्रहसन।

शुरुआत हास्य प्रहसन से हुई और यह प्रहसन पूर्व लिखित नही होते थे बल्कि कोई आंचलिक लोक कहानी या स्थानीय कोई घटना को कहानी का रूप देकर उसमें आठ-दस चुटकुले जोड़कर प्रहसन का रूप दिया जाता था यह पूरी प्रक्रिया जिसमे लेखन से मंचन तक की यात्रा थी
, मुश्किल से दो-तीन दिन में पूरी हो जाती थी। नाट्यप्रस्तुति, मंचन के पश्चात ग्रामीण दर्शकों की तालियां बटोरने में सफल भी होती थी। धीरे-धीरे हमारे शौकिया नाट्यकर्म और बेनाम नाट्यदल के चर्चे गांव मोहल्ले से विद्यालय तक पहुंच गए तब तत्कालीन इतिहास विषय के व्याख्याता श्री एम.एल. दोंदेरिया जी ने हमारे नाट्य दल के साथ एक नाटक तैयार किया जिसका नाम था कलिंग का युद्ध

यह पहला नाटक था जो विधिवत रूप से तैयार किया गया था इसकी प्रॉपर हम सबको स्क्रिप्ट दी गई थी। बाक़ायदा तीन चार दिन रीडिंग और बातचीत हुई चूंकि निर्देशक स्वयं इतिहास के व्याख्याता थे इसलिए उन्होंने नाटक की पृष्ठभूमि और चरित्रों के बारे में बहुत ही विस्तार पूर्वक बताया उसके बाद करीब दो हफ्ते तक रोज सर के घर पर ही नाट्याभ्यास किया । इस नाटक की वेश भूषा तथा मंच सामग्री सब यहाँ-वहाँ से जुटाई गई या फिर हम लोंगो ने खुद ही बनाई ।

Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति
Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति

यह प्रस्तुति निर्माण की प्रक्रिया बाकई कमाल की थी। गाँव छोटा था सो नाट्य अभ्यास के दौरान ही नाटक का अच्छा-खासा प्रचार-प्रसार बहुत हो गया था और जब 26 जनवरी की सुबह विद्यालय में ध्वजारोहण के बाद जब नाटक का मंचन हुआ तो विद्यालय प्रांगण में दर्शकों की अपार भीड़ थी। इस नाटक की वाहवाही ने नाटक करने की भूख में और इजाफा कर दिया ।अभी तक हम लोग ” नूतन कला मंच” नाम की कीर्तन मंडली में कीर्तन-भजन के साथ प्रहसन करते थे पर अब सिर्फ़ नाट्य कर्म को समर्पित संस्था की नींव रख दी गई, और सर्वसम्मति से संस्था का नाम “पाहुना लोक मंच” रखा गया।

जानकारी में अभाव में संस्था का सरकारी तौर पर पंजीयन नहीं कराया गया। “पाहुना लोकमंच” बनने के बाद जिन नाटको का मंचन किया उनमें प्रमुख थे – “डॉक्टर का दवाखाना”
, ‘एक हो जाएं”, ” मुक्ति के राही” यह तीनों नाटक विधिवत रूप से सीमित संसाधनों के साथ दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किये । इन प्रस्तुतियों को काफी सराहना मिली | चूँकि दल के अधिकांश सादस्य हायर सेकंडरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए गाँव से बाहर चले गए, मैं भी सागर विश्वविद्यालय पढ़ाई करने चला गया ।

धीरे धीरे बाकी लोगो का नाटक के प्रति रुझान कम होता गया लेकिन मेरी रुचि और गहरी होती गई । सागर में मैंने रंगमंच का एक अलग ही विस्तार देखा । रंगकर्म के लिए अनुशासन होना आवश्यक है , रिहर्सल पुनरावृत्ति के लिए नही बल्कि प्रस्तुति व अभिनय की गुणवत्ता बढ़ाने में ये की जाती है और कल्पना शीलता का किसी भी कला रूप में कितना महत्व है आदि महत्वपूर्ण बातों के बारे में जाना और उसका प्रभाव महसूस भी किया।

मैं सागर से छुट्टियों में जब भी गांव आता है तो नाटक की गतिविधियां जरूर करता था चूँकि मेरे सारे साथी कॉलेज की पढ़ाई और कैरियर की चक्कर में व्यस्त हो गए तब मैंने एक नया अध्याय शुरू किया
, अपने गांव के दो-चार नई युवा प्रतिभाओं तथा बच्चों को लेकर एक नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें मुझे काफी प्रतिभाशाली बच्चे मिले। उनके साथ मैंने नाटक करने शुरू किये बच्चों के साथ कई नाटक जैसे- “नहीं पढ़ो सो भुगतो”, “सोने की ईंट”, “पंच परमेश्वर”, और ” ईदगाह जैसे कई यादगार नाट्यस्तुतियों के गाँव मे ही प्रदर्शन किये।

1994 में “पाहुना लोक मंच” संस्था का आधिकारिक तौर पर पंजीयन हो गया। लेकिन मैं सागर और भोपाल में रंगमंच में बहुत व्यस्त होने की वजह से संस्था की गतिविधियों पर ध्यान नही दे पा रहा था। और 1997 में एनएसडी नई दिल्ली आ गया और धीमें-धीमे संस्था की गतिविधियों पर विराम सा लग गया। संस्था का पहला पड़ाव यहीं समाप्त होता है

Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति
Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति

2000 से आगे का सफ़र
Pahuna lok Jan samiti Ka Safar
पाहुना लोक मंच “ के लंबे विराम और सरकारी कागज़ी कार्यवाही में ढील-ढाल ने संस्था का पंजीयन रद्द कर दिया। पर हमने “पाहुना लोक मंच” संस्था के नाम के साथ ही अपनी रंगयात्रा को पुनः प्रारंभ किया। बाल रंगकार्यशाला के बच्चे जो अब युवा हो चुके थे उनके साथ नई नाट्यप्रस्तुतियाँ तैयार की । संस्था के सचिव श्री संदीप श्रीवास्तव ने संस्था को अपने कुशल नेतृत्व में नई दिशा प्रदान की।

सन
2000 से ग्रामीण बच्चों के साथ ही लगातार नाट्य कार्यशालाओं का आयोजन किया और कुछ श्रेष्ठ बाल नाटक तैयार किये गए जैसे- “ओ तोरे झुनझुन बाबा की”,(लेखन व निर्देशन- संजय श्रीवास्तव). “मोटेराम शास्त्री”(लेखक-मुंशी प्रेमचंद/निर्देशन-संजय श्रीवास्तव), “एक आँच की कसर” (लेखक-मंशी प्रेमचंद/निर्देशन-संजय श्रीवास्तव),”गधा मरो तो कथा करो”(लेखन व निर्देशन- संदीप श्रीवास्तव), “कफन” (लेखन-मुंशी प्रेमचंद/निर्देशन- संदीप श्रीवास्तव), और संस्कृत भाषा में महाकवि भास द्वारा लिखित व संदीप श्रीवास्तव निर्देशित “दूध घटोत्कच” नामक नाटक की प्रस्तुतियां सफलता पूर्वक दर्शकों के समक्ष मंचित की।
                                  
पाहुना संस्था ने ग्रामीण बाल रंगमंच के साथ साथ बुंदेली लोक सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण व संवर्धन हेतु बुंदेली लोक व पारंपरिक कलाओं को मंच पर लाने का प्रयास किया। जिले के गाँव-देहातों से कुशल लोक कलाकारों को एकत्रित कर उनके साथ भिन्न-भिन्न लोक कला विधाओं के लोक तत्वों तथा मौलिक रूप को बिना छेड़े मंचीय प्रस्तुति हेतु परिष्कृत किया। जैसे लोक नाट्य स्वांग में अच्छे कथानक होते हुए भी मात्र हँसाने के उद्देश्य से अश्लील सम्वादों का सहारा लेते थे । द्विअर्थी सम्वादों ,गीतों तथा नृत्यसंरचना में भी कई जगह अश्लीलता प्ररदर्शित करते थे।

हालांकि उनके सामाजिक दायरे में ये आम थी जिस दर्शक वर्ग के समक्ष वे अपनी प्रस्तुति का प्रदर्शन करते थे वहाँ अश्लीलता सहज स्वीकार है। पर मैं क्षेत्रीय लोक कलाओं तथा लोक कलाकारों को उनके सीमित दायरे से बाहर निकाल कर सबके सामने मंच पर ससम्मान प्रस्तत करना चाहता था। पाहुना लोक मंच ने
2003 में पहली बार ग्रामीण लोक कलाकारों के साथ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर के आयोजन “बाल संगम” में भागीदारी की। जहाँ पांच दिनो तक “लोक नाट्य स्वांग”, “जवारे”, “मौनिया”, ढिमरयाई और नागिन बैंड जैसी विभिन्न बुन्देली लोक कलाओं का प्रदर्शन किया।

इस आयोजन में प्रख्यात फ़िल्म अभिनेता अनुपम खेर ने पाहुना लोक मंच के लोक कलाकारों को सम्मानित कर बुंदेली लोककलाओं तथा लोककलाकारों का मान बढ़ाया। दूसरे पड़ाव में ही संस्था को गीत एवं नाट्य प्रभाग
,सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, की ओर से ग्रामीण अंचलों में जन जागरूकता योजनाओं के अंतर्गत अपनी सूचि में शामिल किया गया। पाहुना संस्था इस विभाग से जुड़कर केंद्र सरकार की जन हित से सम्बंधित योजनाओं को मध्यप्रदेश के गाँव देहातों में अब तक तकरीबन एक हज़ार से ज्यादा नुक्कड़ नाटको की प्रस्तुतियाँ गली , मोहल्लों ,चौपालों व चौराहों पर प्रस्तुत कर चुकी है। साथ ही समय समय पर मध्यप्रदेश सरकार की जनहित योजनाओं के अभियान से जुड़कर सैकड़ो नुक्कड़ नाटकों की प्रस्तुतियाँ आम जन के बीच जाकर प्रदर्शित कर चुकी है।

इस तरह नुक्कड़ नाटकों के प्रोजेक्ट मिलने से संस्था आज भी एक ओर सामाजिक सरोकारों का निर्वहन कर रही है तो दूसरी ओर लोक कलाकारों को रोजगार भी प्रदान कर रही है। संस्था आज भी नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन सफलता पूर्वक कर रही है। संस्था ने मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती को अपना स्थानीय तय आयोजन बना लिया है, जो प्रति वर्ष अयोजित किया जाता है। इस आयोजन में पाहुना परिवार के साथ शहर के वरिष्ठ रंगकर्मियों तथा साहित्कारों को आमंत्रित किया जाता है। जिसमे मुंशी प्रेमचंद से सम्बंधित व्यख्यान, कहानी पाठ एवं प्रेमचंद की किसी एक कहानी का मंचन किया जाता है।

बड़ी मेहनत
, मशक्कत और लम्बे इंतज़ार के बाद पाहुना लोक मंच का 2011 में *पाहुना लोक जन समिति के नाम से नए सिरे से पंजीकरण हुआ । हम संस्था का नाम पाहुना ही चाहते थे इसलिए समय काफ़ी लग गया। यहाँ रंगमंच ,बाल रंगमंच , लोककलाओं के संरक्षण व नुक्कड़ नाटकों के मंचन जैसी संस्था की गतिविधियाँ संदीप श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में अपनी रफ़्तार से चल रही थी वहीँ मैं देश भर में घूम-घूम कर रंगकर्म करते-करते ऊबने लगा था। अब मैं पाहुना संस्था के लिए समर्पित भाव से काम करना चाहता था।

Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति
Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति

पाहुना संस्था का तीसरा पड़ाव
Pahuna ka tisara Padav
सन 2013 में संस्कृति मंत्रालय से व्यक्तिगत नाट्यप्रस्तुति हेतु अवसर मिला और मैने स्थानीय लेखक श्री गुण सागर सत्यार्थी जी द्वारा लिखित नाटक “लाला हरदौल” की प्रस्तुति तैयार की । क्योंकि हरदौल के चरित्र को हमारे क्षेत्र में देवता की तरह पूजा जाता है।हर गाँव -देहात में हरदौल के चबूतरे मिलेंगे। बुन्देलखण्ड में जन-जन की आस्था हरदौल से आज भी जुड़ी है इसलिये यह नाटक मैं भव्य तरीके से स्थानीय दर्शकों के सामने प्रस्तत करना चाहता था।

इस प्रस्तति को टीकमगढ शहर में तैयार किया गया जहाँ शहरी युवा प्रतिभायें तथा ग्रामीण लोक कलाकारों को एक साथ लेकर काम किया गया। इसका मंचन टीकमगढ़ के ऐतिहासिक मंच राजेन्द्र पार्क के मुक्ताकाशी मानस मंच पर किया गया
,जहाँ हज़ारों की संख्या में दर्शकों ने इस प्रस्तुति का आनन्द लिया। संस्था को इस प्रस्तुति ने सामाजिक ,राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर पुख्ता पहचान दी।

इसके बाद पाहुना संस्था ने संजय श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित तथा निकोलाई गोगोल द्वारा लिखित “द जनरल इंस्पेक्टर” (चैनपुर की दास्तान
,-नाट्य रूपांतरण रंजीत कपूर) का बुन्देली नाट्य अनुवाद “दास्तान-ए-दानापुर” का मंचन कर शहर में रंग दर्शकों की संख्या में उम्मीद से दोगुना इज़ाफ़ा किया । टीकमगढ़ शहर में ही इसके कई मंचन हुए। और इसी प्रस्तुति को सागर, दमोह, छतरपुर,उज्जैन (कुम्भ में) और भारत भवन भोपाल जैसे राज्य के प्रतिष्ठित नाट्यमहोत्सवों में मंचन हेतु आमंत्रित किया गया।

सही मायने में पाहुना को राज्यस्तर पर इस प्रस्तुति ने पहचान प्रदान की। कास्ट ज्यादा होने की वजह से प्रस्तुति मुश्किल से दो तीन साल से ज़्यादा नही चल सकी। इसके बाद मुंशी प्रेमचंद की दो कहानियों
,- कफ़न और पूस की रात को मिलाकर ” साधौ घीसू मरे माधो” नाम से नई नाट्य प्रस्तुति संदीप श्रीवास्तव के निर्देशन में तैयार की गई। कम कास्ट होने और कम तामझाम होने की वजह से यह प्रस्तुति लगातर पाँच वर्षों से अभी तक देश के प्रतिष्ठित नाट्य समारोहो में प्रस्तुत की जा रही है। हाल ही में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के सहयोग से “साधौ घीसू मरे न माधो” के पांच शो आसाम और मेघालय ( उत्तर पूर्व राज्यों) में भी कराए गए। अहिन्दी भाषी राज्यों में भी दर्शकों ने बुंदेली बोली का आनन्द लिया।

Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति
Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति

पाहुना संस्था की एक और महत्वपूर्ण नाट्य
प्रस्तुति “सुरसी का लाल”, जो आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी भीमा नायक के जीवन पर आधारित थी। यह प्रस्तुति संजय श्रीवास्तव के निर्देशन में तैयार की गई, जिसका मंचन टीकमगढ़ के अलावा आदि विद्रोही नाट्य समारोह ,भोपाल में भी किया गया।

पाहुना संस्था ने अपना विस्तार करते हुए एक टीम दिल्ली में भी गठित की, जिसके तहत 2018 में संजय श्रीवास्तव द्वारा लिखित व निर्देशित पहली प्रस्तुति “डार्लिंग अपनी बात ही कुछ और है” तैयार की गई, जिसका मंचन ,कलमण्डली नई दिल्ली के वार्षिक आयोजन “विविधा2018″ में किया गया। इसके बाद संदीप श्रीवास्तव ने फणीश्वर नाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानी पंच लाइट पर आधारित नाटक “कथा एक गाँव की” संस्था के लिए तैयार की।।

कोरोना काल के दौरान संदीप श्रीवास्तव ने संगीत नाटक अकादमी
, नई दिल्ली के सहयोग से मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी “मुक्ति मार्ग” को भी निर्देशित किया जिसका मंचन मुक्तांगन में सरकार के नियमानुसार मात्र तीस दर्शकों के समक्ष किया गया, एवम साथ ही पाहुना संस्था के पेज पर इस नाट्य प्रस्तुति का लाइव प्रसारण भी किया गया। ऑन लाइन इस प्रस्तुति को ढाई हजार दर्शकों ने देखा।

Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति
Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति

पाहुना द्वारा आमंत्रित रंग निर्देशकों की रंग कार्यशालाएं तथा प्रस्तुतियां –
संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के सहयोग से पाहुना संस्था ने टीकमगढ़ में स्थानीय युवा प्रतिभाओं के अभिनय प्रक्षिक्षण हेतु — प्रसिद्द रंग व फ़िल्म अभिनेता श्री रघुवीर यादवकी अभिनय कार्यशाला तथा प्रख्यात रंग व फ़िल्म अभिनेता श्री *गोविंद नामदेवकी अभिनय कार्यशाला (2018) में आयोजित की।

मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय भोपाल के सहयोग से बीस दिवसीय दो प्रस्तुतिपरक नाट्य कार्यशालाओं का आयोजन पाहुना संस्था ने 2018 में किया ,एक कार्यशाला युवा रंगकर्मियो के लिए थी जिसमें शिविर तथा प्रस्तुति निर्देशक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली से स्नातक ,सुश्री स्वाति दुबे (जबलपुर) थीं। स्वाति दुबे ने आशीष पाठक द्वारा लिखित “प्रतिउत्तर” नामक नाटक तैयार किया । एवं दूसरी बाल कार्यशाला का निर्देशन मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल से स्नातक सुश्री मुस्कान गोस्वामी (मुंबई) ने किया। मुस्कान गोस्वामी ने बच्चों के साथ सुविख्यात रंगकर्मी स्व. अलख नंदन द्वारा लिखित नाटक” बुद्धि बहादुर” तैयार किया। कार्यशाला के दौरान जबलपुर से वरिष्ठ रंगकर्मी व नाटककार आशीष पाठक व तथा एनएसडी स्नातक योगेंद्र सिंह ने भी बच्चों को रंग प्रशिक्षण दिया।

2019 में रंग गोष्ठी हेतु वरिष्ठ रंगकर्मी एवं प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता मुकेश तिवारी जी ने “कस्बाई रंगमंच की ताक़त और चुनौतियाँ” विषय पर अपने विचार रखे।। तथा केंद्रीय विश्वविद्यालय हैदराबाद के रंगमंच विभाग के सहायक प्राध्यापक श्री कन्हैया लाल कैथवास ने “सीमित संसाधनों में रंगमंच कैसे करें” विषय पर अपने विचार रखे।


2020 में मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय भोपाल से स्नातक रीवा के युवा रंगकर्मी श्री अंकित मिश्र ने पाहुना संस्था के रंगकर्मियों के साथ कविताओं पर आधारित कार्यशाला आयोजित की जिसमे” कविता कोलाज” तैयार किया गया। जिसका मंचन टीकमगढ़ और छतरपुर में किया गया।

Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति
Pahuna Lok Jan Samiti पाहुना लोक जन समिति

पाहुना संस्था द्वारा आयोजित नाट्य समारोह –
पाहुना लोकजन समिति टीकमगढ़ (मध्यप्रदेश) ने अपना प्रथम तीन दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव 2 से 4 फरवरी 2017 के बीच टीकमगढ़ में अयोजित किया। यह महोत्सव बिना किसी सरकारी व गैर सरकारी अनुदान के स्थानीय जन सहयोग से सफलता पूर्वक सम्पन्न किया गया। इस आयोजन में पाहुना के सभी सदस्यों ने जी तोड़ मेहनत कर यह सिद्ध कर दिया कि हौसले और नेक नियति से यदि काम किया जाय तो सफलता निश्चित मिलती है।

प्रथम नाट्य महोत्सव में हम सब का हौसला बढ़ाने के लिए मुंबई से बुन्देलखण्ड माटी के प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता श्री मुकेश तिवारी जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।और अध्यक्ष के रूप में तत्कालीन जिला कलेक्टर श्रीमति प्रियंका दास जी उपस्थित हुईं। नाट्यमहोत्सव की शुरुआत देश के बड़े और हमारे समय के श्रेष्ठ अभिनेता एवं मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय भोपाल के निदेशक श्री आलोक चटर्जी के एकल प्रस्तुति “ऐसा ही होता है” से हुई।

इसके अलावा इस नाट्य समारोह में संदीप श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित “साधौ घीसू मरे न माधौ”
, संजय श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित “दास्तान ए दानापुर”, अंतिम दिन एनएसडी स्नातक श्री सुमन कुमार- सचिव, संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली द्वारा लिखित ,निर्देशित व अभिनीत एकल प्रस्तुति “नूगरा का तमाशा” व श्री सुमन कुमार द्वारा भुवनेश्वर की चर्चित कहानी “भेड़िए” पर आधारित नाट्यालेख “खारू का खरा क़िस्सा” नामक एकल प्रस्तुति को संजय श्रीवास्तव ने मंच पर प्रस्तुत किया। इस तरह पाँच अलग अलग तरह की नाट्यप्रस्तुतियों के साथ पाहुना संस्था का प्रथम राष्ट्रीय नाट्यमहोत्सव सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। जिसमें टीकमगढ़ नगर वासियों ने भरपूर सहयोग दिया। मंगलम न्यूज़ चैनल और स्थानीय पत्रकारों का भी सराहनीय सहयोग प्राप्त हुआ ।

हमारे शहर के दूसरे एनएसडी स्नातक श्री धीरेंद्र द्विवेदी ने मुम्बई से आकर तकनीकी सहयोग किया। संस्था आप सब का ह्रदय से आभार व्यक्त करती है। दूसरा रंगमहोत्सव “रंग संगम”
2 से 6 फरवरी 2018 के बीच संपन्न हुआ। यह भव्य आयोजन नाटक व विविध लोक कलाओं की अभिव्यक्तियों का राष्ट्रीय उत्सव था। यह महा उत्सव , रंग कार्यशाला, रंग गोष्ठियां, विभिन्न लोकनृत्यों तथा नाटकों का महाकुंभ था, जिसमे लगभग पाँचसौ कलाकारों ने अपनी प्रदर्शनकारी कलाओं का विशाल जान समूह के समक्ष प्रदर्शन किया। यह आयोजन संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के माध्यम से संपन्न हुआ। स्थानीय आयोजक हमारी संस्था, पाहुना लोक जन समिति टीकमगढ़ थी। साथ ही जिला प्रशासन का भी भरपूर सहयोग मिला।


रंग संगम महोत्सव 2018 की शुरूआत मुम्बई से आये फ़िल्म अभिनेता श्री गोविंद नामदेव एवं श्री रघुवीर यादव कीअभिनय कार्यशाला से हुई । इस कार्यशाला में बुंदेलखण्ड क्षेत्र के लगभग चालीस प्रतिभागियों ने अभिनय की बारीकियों का प्रशिक्षण प्राप्त किया।


रंग संगम महोत्सव में आयोजित सेमिनार में देश के विभिन्न राज्यों से रंग विशेषज्ञों ने स्थानीय प्रबुद्ध व रंग समाज के समक्ष अलग-अलग विषयों पर अपने व्याख्यान रखें । व्याख्यान के उपरांत स्थानीय लोगों से इंटरेक्शन सेशन भी रखा गया जिससे स्थानीय स्तर पर रंगमंच तथा लोक कलाओं के व्यापक फलक के विस्तार को समझा जा सके । पांचों वाली गोष्ठियों में- ” रंग संगीत के विभिन्न आयाम ” विषय पर श्री रघुवीर यादव (मुम्बई) ने, , “लोक व पारंपरिक कलाओं का महत्व” विषय पर श्री प्रकाश खांडगे (मुंबई) ने, “अभिनेता की तैयारी” विषय पर श्री अलोक चटर्जी,(निदेशक मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल) ने ,

बाल रंगमंच” विषय पर वरिष्ठ महिला रंगकर्मी श्रीमति शोभा चटर्जी (भोपाल) ने , ” रंगमंच और अन्य कलाओं की समीक्षा” विषय पर वरिष्ठ कला समीक्षक श्री गिरजा शंकर (भोपाल) ने , “कस्बाई रंगमंच और उसकी चुनौतियों” विषय पर श्री अरुण पांडे (जबलपुर ) ने ,”नाट्य पाठ एवं विश्लेषण” विषय पर श्री राजकमल नायक (रायपुर) ने , “लोकनाट्य स्वांग की प्रासंगिकता एवं बदलता स्वरूप” विषय पर डॉ. हिमांशु द्विवेदी (ग्वालियर) ने, तथा “बुंदेली लोकगाथा आल्हा” विषय पर फिल्म अभिनेता पदम सिंह (महोबा) ने अपने शोधपरक व्याख्यानों से सबका ज्ञानवर्धन किया ।    


रंग-संगम 2018 के कला महाकुंभ में लोक कला की प्रस्तुतियां
सर्वप्रथम बुंदेली लोकगीत सम्राट स्वर्गीय देशराज पटेरिया द्वारा बुंदेली लोकगीत की प्रस्तुति से “रंगसंगम” का शुभारंभ किया गया । इस शुभअवसर पर प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता श्री रघुवीर यादव, , श्री सुमन कुमार , उप सचिव संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली, विधायक – टीकमगढ़ श्री के.के. श्रीवास्तव, श्री अभिजीत अग्रवाल, (कलेक्टर टीकमगढ़), श्री कुमार प्रतीक (एस. पी. टीकमगढ़) तथा संस्थापक -पाहुना लोक जन समिति टीकमगढ़ श्री संजय श्रीवास्तव उपस्थित थे। तत्पश्चात क्रमश:- “धोबिया गीत” – जीवन राम और साथी, गाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश), “फरवाई

नृत्य”- शीतला प्रसाद व साथी
,अयोध्या ( उत्तर प्रदेश), “बधाई एवं नौरता लोकनृत्य”- उमेश नामदेव, सागर (मध्य प्रदेश), “गम्मत गायन”- बृज किशोर नामदेव,ग्राम- मवई ,टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश), “कर्मा सेना और गोंडी नृत्य”- जनजाति शोध एवं विकास संस्थान वाराणसी, (उत्तर प्रदेश), ” तुर्रा कलंगी”- बसरा खान ,पारंपरिक लोक व सूफी संगीत प्रशिक्षण संस्थान, बाड़मेर (राजस्थान), ” बुंदेलखंडी स्वांग”- संतोष साहू व अन्य साथी ,सागर (मध्य प्रदेश), ”

बुंदेली भक्ते”- राजेश विश्वकर्मा व साथी, मवई, टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश) ,”बुंदेली फाग”-चिंतामन लोधी, दिनरयाना, टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश), “बुन्देली रावला लोकनृत्य”-बुंदेलखंड नृत्य”- शोभाराम विश्वकर्मा एवं साथी, मवई ,जिला/टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश), “बुंदेलखंड का लोक नृत्य मौनिया” -हृदेश गोस्वामी व साथी ललितपुर ( उत्तर प्रदेश), ”

कूचामणी ख्याल -अमर सिंह राठौर”-बंसीलाल खिलाड़ी व दल
, नागौर (राजस्थान), “बुन्देली लोक नृत्य ढिमरयाई” -चुन्नीलाल रैकवार व साथी,कर्रापुर, सागर (मध्य प्रदेश), “पंडवन के कड़े”- गफरुद्दीन मेवाती एवं साथी भरतपुर , (राजस्थान), “राजस्थानी लोक नृत्य” – सुआ देवी ,जोधपुर ,(राजस्थान), “नेटुआ नृत्य”- वीरेंद्र कालिंदी व दल पुरुलिया ,(पश्चिम बंगाल), “कश्मीर का पारंपरिक लोक नाट्य भांड पाथेर शिकारगाह”- करम बुलंद फोक थिएटर, चाडूरा बड़गांम,(कश्मीर), ”

छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोक गायकी- पंडवानी” – प्रभा यादव व साथी ,रायपुर,(छत्तीसगढ़), सैरा नृत्य डॉ.ओम प्रकाश चौबे ,लोक अभिनय सांस्कृतिक मंच,सागर (मध्यप्रदेश), “बुन्देलखण्ड का प्रसिद्ध लोकनृत्य “राई” नृत्य” – संतोष पांडे एवं साथी , सागर (मध्यप्रदेश), “आल्हा गायन”- शीलू सिंह राजपूत, रायबरेली (उत्तरप्रदेश), “आल्हा गायन” रामनारायण ,महोबा (उत्तरप्रदेश), “जादू का खेल” – इस्लामुद्दीन खान व साथी(दिल्ली), “तमूरा भजन”-आनंदीलाल, मकरोनिया ,सागर (मध्य प्रदेश), ” इंडियन एकायन” – लोक संगीत संयोजन -उमाशंकर (दिल्ली), तथा “वरेदी व काँडरा लोकनृत्य”- मनीष यादव, सागर (मध्यप्रदेश) मनमोहक रंग-बिरंगी लोक व पारंपरिक प्रस्तुतियों का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया गया।


 रंग संगम 2018 ,टीकमगढ़ में देश भर से जिन श्रेष्ठ नाट्यप्रस्तुतियों को आमंत्रित किया गया । इस महोत्सव में प्रत्येक दिन दो नाट्य प्रस्तुतियों का प्रदर्शन किया गया। प्रथम दिन की नाट्यसन्ध्या का शुभारंभ “रंगश्री लिटिल बैले थिएटर, भोपाल की हिंदी नृत्य बैले “रामायण” से हुआ। तत्पश्चात “परिवर्तन समूह ग्वालियर ने नौटंकी शैली में “बाबू जी” नामक नाट्यप्रस्तुति प्रस्तुत की। दूसरे दिन प्रसिद्द फ़िल्म अभिनेता रघुवीर यादव (मुंबई) द्वारा निर्देशित व अभिनीत नाट्यप्रस्तुति “पियानो” का मंचन हुआ।

ततपश्चात सन्तोष साहू सागर के नाट्य दल ने बुंदेली स्वांग प्रस्तुत किया। तीसरे दिन श्री संदीप श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित
,पाहुना लोक मंच की प्रस्तुति “साधौ घीसू मरे न माधौ” तथा श्री राजीव अयाची द्वारा निर्देशित ,युवा नाट्य मंच ,दमोह की प्रस्तुति नागबोडस लिखित नाटक “खबसूरत बहु” को बुन्देली में प्रदर्शित किया गया। चौथे दिन श्री संजय श्रीवास्तव के निर्देशन में प्रेमचंद की मशहूर कहानी “पूस की रात” का मंचन तथा रंग सरोकार,नाट्य संस्था, नरसिंहपुर द्वारा बुन्देली में “निःशब्द कथा” नामक नाट्य प्रस्तुति का मंचन किया गया। अंतिम दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त रंगनिर्देशक स्व.हबीब तनवीर जी के प्रसिद्ध नाटक “चरणदास चोर” के भव्य प्रदर्शन से रंग संगम का समापन हुआ।।

पाहुना संस्था के सभी सक्रीय सदस्यों के अथक परिश्रम ने टीकमगढ़ नगर में अभूतपूर्व ऐतिहासिक रंग संगम”
2018 का आयोजन करके एक इतिहास रच दिया। बतौर दर्शकों की प्रतिक्रिया अनुसार टीकमगढ़ नगर में आज तक विभिन्न लोक कलाओं तथा नाटकों का इतना विशाल आयोजन कभी नही हुआ। अध्यक्ष, सचिव और उप सचिव, (नाटक) संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली,संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार का हृदय से आभारी हूँ कि उन्होंने “रंग संगम ” जैसे भव्य आयोजन हेतु मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर, मेरे अपने शहर टीकमगढ़ में आयोजित किया। पाहुना लोक जन समिति पर भरोसा करके स्थानीय आयोजक बनाया और मुझे इतने बड़े महोत्सव का संयोजक व परिकल्पक नियुक्त किया। श्री सुमन कुमार उप सचिव,(नाटक) संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली का मैं विशेष आभार व्यक्त करता हूँ वे उन दिनों अस्वस्थ होने के बाद भी पूरे समय अपनी टीम के साथ टीकमगढ़ में रहे, और हरसंभव अपना सहयोग व मार्गदर्शन प्रदान करते रहे। 


केंद्र व राज्य शासन के विभिन्न आयोजनों में संस्था की भागीदारी
संस्था की प्रस्तुतियाँ समय-समय पर मध्यप्रदेश शासन , संगीत नाटक अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली तथा मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय भोपाल के महत्वपूर्ण नाट्यमहोत्सवों में प्रदर्शित हो चुकी है जैसे- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के राष्ट्रीय लोक व पारम्परिक कलाओं का राष्ट्रीय आयोजन “बाल संगम” (2003), उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत कला अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल का आयोजन “मध्यप्रदेश नाट्य समारोह दमोह” (2016), भारत भवन का प्रतिष्ठित मध्यप्रदेश रंगोत्सव (2017),

महाकुंभ उत्सव,उज्जैन ,मध्यप्रदेश शासन,, संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली में राष्ट्रीय समारोह “रंग संगम” (2018) हेतु टीकमगढ़ (म.प्र) में स्थानीय आयोजक की भूमिका तथा विभिन्न बुंदेली लोक कला विधाओं का प्रदर्शन का अवसर भी संस्था को प्राप्त हआ। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग, स्वराज संस्थान संचालनालय का आयोजन “आदि विद्रोही नाट्य समारोह (2018), मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नवीन रंग प्रयोगों के प्रदर्शन की साप्ताहिक श्रृंखला “अभिनयन”-(2018), राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के सहयोग से 2019 में उत्तर पूर्वी राज्यो में प्रस्तुति प्रदर्शन।

इसके अलावा विगत कई वर्षी से मध्यप्रदेश के वार्षिक आयोजन “भारत पर्व” में अलग अलग शहरों में नाटक व लोक नृत्यों का प्रदर्शन । इसके अलावा कई अलग अलग शहरों में समय-समय पर आयोजित होने वाले विभिन्न नाट्य समारोहों में आमंत्रित प्रस्तुति प्रदर्शन के कई अवसर प्रदान हुए। पाहुना जन समिति रंगमंच के अलावा सामाजिक सरोकारों से जुड़े कार्यों हेतु भी सतत कार्यरत है
, वृक्षारोपण तथा स्वच्छता अभियान में बढ़चढ़कर भूमिका निभाता है। विगत दो वर्ष पूर्व संस्था ने केरल के बाढ़ पीड़ितों हेतु सहायता राशि एकत्रित कर प्रशासन के माध्यम आर्थिक मदद की ।संस्था ज़रूरत पड़ने पर अपने सदस्यों को आर्थिक मदद करने के लिये भी संकल्पित है।


1985 से लेकर अब तक संस्था के सफ़र में लगभग 400 सदस्यों का साथ और सहयोग रहा। जो सदस्य साथी पहले जुड़े रहे उनका हार्दिक धन्यवाद और जो वर्तमान में जुड़े है उनका एवं नए सदस्यों का हार्दिक स्वागत तथा उज्जवल भविष्य की ढेरों शुभकामनाएं।


2021 की शुरूआत
कोरोना काल के लंबे अंतराल के बाद पाहुना संस्था ने ,मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल के सहयोग से टीकमगढ़ नगर में 17 नवंबर 2020 से एक माह की प्रस्तुतिपरक नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया है जिसमे 35 स्थानीय रंग प्रतिभाओ को रंग प्रशिक्षण दिया गया तथा शिविर निर्देशक श्री संजय श्रीवास्तव द्वारा लिखित व निर्देशित बंन्देली नाटक “भोरतरैया का सप मंचन किया गया। एवं प्रतिभागियों के जोश व तथा अटूट दर्शकों के उत्साह को देखकर लगा कि इस नाट्यप्रस्तुति ने कोरोना काल के लंबे अंतराल में फैले अवसाद और निराशा भरे जीवन मे रंग भरने का काम किया।

भोरतरैया नाटक की भव्य प्रस्तुति के पश्चात पाहुना संस्था द्वारा संस्कृति मंत्रालय
, भारत सरकार के सहयोग से टीकमगढ़ में तीन दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य महोतसव का आयोजन किया गया ।जिसमें समागम रंगमण्डल ,जबलपुर के द्वारा स्वाति दुबे द्वारा निर्देशित नाटक “अगरबत्ती”, इप्टा छतरपुर के द्वारा शांतनु पांडे के निर्देशन में “जाति ही पूछो साधु की ” तथा संजय श्रीवास्तव के निर्देशन में पाहुना संस्था की नवीन प्रस्तुति भोरतरैया का प्रदर्शन किया गया। चलते-चलते एक सुखद ख़बर और बताएं कि देर से ही सही पर 2019 में संस्कृति मंत्रालय,भारत सरकार की ओर से पाहुना संस्था को 1+2 सदस्यों की रंगमण्डल स्वीकृति भी प्रदान हो गई। …… जय रंगमंच, जय बुन्देलखण्ड, जय हिन्द।

बुन्देली झलक ( बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य )

संजय श्रीवास्तव (रा.ना.वि. स्नातक)
संस्थापक
पाहुना लोक जन समिति, टीकमगढ़(म.प्र.)

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!