इन फागों में फागकार छंदयाऊ फागों के माध्यम से स्वर व्यंजनों के क्रमानुसार शब्दावली गठित कर Swar Vyanjan Ki Fagen की फागों की रचना करते है । श्री शिवदयाल पटेल की स्वर व्यंजन की एक लम्बी फाग का उदाहरण प्रस्तुत हैं –
टेक : ‘आ’ अलख अगोचर गांऊ आदि पुरुष को ध्याऊ ।
‘इ’ में इष्ट देव है मोरे ईश्वर नाम भनत हो तोरे ।
‘उ’ में उमानाथ है मोरे, ऊसई छवि के ।
‘ऋ’ में ऋद्धि-सिद्ध के दाता ।
‘ए’ में एक रहन को गाता ।
‘ऐ’ में ऐरावत मुख प्याजा, स्वामी कवि के ।।
उडान : ‘ओ’ में ओमहरी को भजकें, अपने पाप न सॉऊ ।
‘औ’ में औगड़दानी चितवर, औगुन दूर भगाऊँ ।।
टेक : ‘त्र’ में त्रिभुवन पति की महिमा, देख देख हरसांऊ ।
छत्र : ‘ज्ञ’ में ज्ञानदेव से जानी, होवे महिमा जिसने जानी ।
ज्ञाता चार वेद गुण खानी, कहिए सोई ।
ऐसी अपनी मति अनुसार रचके फाग करी तइयार ।
अक्षरै अक्षर को उच्चार, माला गोई ।
उडान :
माला गोई हरी नामकी, संतन को पहराऊं ।
खेतसिंह याही से अपनी जीवन सफल बनाऊं । ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि फाग बुंदेलखण्ड में प्रचलित एक ऐसा काव्य रूप है जिसमें नृत्य और गायकी का समुचित समावेश है। परिणामतः लोक जीवन में प्रचलित अन्य लोक काव्य रूपों की सर्वाधिक लोकप्रिय है। परम्परा के रूप में होलिकोत्सव के अवसर पर गाये जाने वाले लोकगीतों से विकसित होते-होते आज यह अनेक रूपों में गाई जाती है। लोक काव्य के सर्जको ने श्रंगार के अतिरिक्त अन्य भावों की अभिव्यंजना भी इसमें प्रारम्भ की है।