अपने बुन्देलखण्ड में Suhagalen सुहागलें करी जातीं । सुहागलें सोऊ कैऊ तरा की होती । में सुहागिन औरतन खौं न्योत कैं उनकी माउर माउदी टीका उर बूंदा लगाकै सबई की देवी जी की नाई पूजाकरी जात। फिर सबखौं बैठार कैं भोजन कराये जात । सब जनियन की ओली भर कैं फिर बिदा करी जात। कभऊँ- कभऊँ बिपदा आबे पै सुहागलन की बोल्लां करी जात ।
सुहागलन व्रत कथा
कभऊँ-कभऊँ बिटिया उर लरका के ब्याव होवै पै सुहागलें करी जात हैं। उनें खुशी की सुहागलें कई जात । कोनऊ भौत बड़ों संकट आवे पै जे सुहागलें करी जात हैं। उनें संकटा की सुहागलें कई जात। कभऊँ दसारानी वैभव लक्ष्छमी उर बीजासेन की पूजा के मौका पै सुहागलें करी जात हैं। उन मौकन पै कैवे वारी अलग-अलग तरा की कथायें हैं, इतै की बऊये बिटिया ओई मौका की कथा सुना उन लगती है। अपने इतै ऐसई एक खुशी की सुहागलन की कथा कई जात।
एक दार गाँव के जिमीदार के बड़ें लरका को ब्याव बड़ी धूम-धाम सैं होकै आव । गाँव भर खौं भारई हाल फूल भई। जइसैं बऊधन ने देरी के भीतर पाँव धरो सोऊ सगुन सातन के लाने गाँव की सुहागले न्योती गई। पुरेतन बाई ने सबकी पूजा करी, उर ऊ मौका पै जा सुहागलन की कथा सुनाई ।
ऐसे-ऐसें एक गाँव में बेन भइया रत्ते । उन दोईयन में भौतई प्रेम हतो । बैन कभऊँ अपने भइया के पेट कौ पानी नई डुलन देत ती । ऊसई भइया अपनी बैन कै लाने मरवे जीवे खौं तैयार रत्तो। ऊके भइया खौं चिरइयाँ पालवे कौ भौतई शौक हतो । ऊके बैठका में चार पाँच पिंजरा टँगई रत्ते। उन सबखौं दानों उर पानी कौ पूरौ – पूरौ इंतजाम भइअई करत तो । उयै ऐई काम करवे में अच्छौ लगत तो।
वौ दिनरात उनई चिरईयँन खौं चुनावे में बिबूचौ रत्तौ । उयै क्याऊँ जावे की फुरसतई नई रत्ती। एक दिना ऊकी सगाई हो गई, उर बरात जावे कौ समय हो गओ । अकेले भइया खौं ब्याव म्याव कछूनई पुसा रओ तो । उसै तो दूला बने पे सबई खौं हाल फूल होत । अकेले भइया रूआंयदौ सौ एक कुदाँऊ ठाढ़ो तो । उयै बरातें जान आफत सी पर रई ती।
बैन ने जईसै अपने भइया खौं मुरजानौ सौ देखो सोऊ ऊकौ जिऊ सकपकान लगो । बैन खौं तो भइया के ब्याव की भौतई खुशी हती । वा अपनी भौजी के साके सोयरे करन चाऊत ती । ऊने भइया के लिंगा कै ‘भइया का कछू तुमाव पिरात दुखत है । ब्याव की बेरां तो सबखौं हाल फूल होत ई मौका पै तुम अनमने से काय दिखा रये । साँसी – साँसी बताव कै का कारन है ।
भइया अपनी बैन खौं छिपा नई पाव साँसी कै दई कै बैन हमें इन चिरईयन की जादाँ चिन्ता है । हम बरातै चले जैय फिर इनकी देख रेख को करे । कजन इने दो दिना दानै पानी नई मिले तौ जे सबतौ पिंजरन में फरफरा कै मर जैय । उर हमाई इत्ते दिना की मैनत पै पानी फिर जैय ।
बैन बोली कैं भइया तुम अच्छी तरा सै दूला बनकै बरातें जाव । ब्याव कराकै भौजी खौं घरै आव। तुमाई चिरइयाँ भूकन प्यासन नई मर पैय दो दिना नौ हम उनके दाना पानी कौ पूरौ – पूरौ इंतजाम करें। भइया बेफिकर होकै बरातै चलो गओ । उर इतै ब्याव की भर-भर में बैन उन चिरईयन की खबर भूल गई । उर दो दिना नौ उनन खौं दानौ पानी नई मिल पाव, उर वे उनई पिंजरन में डरी-डरी मर गई ।
ओई बेरा बैन खौं खबर आ गई उर वा दौर कै चिरईयन कै पिंजरन नौ पोची। उन चिरईयन खौं मरो देखकै बैन भौत दुखी भई । सौसन लगी कै हमने तौ इनकी जुम्मेदारी लै लई ती। अब हम अपने भइया खौं का जबाब दैय । ऊने देवी जूके आगै हात जोर कै प्रार्थना करी कै माई तुम हमाई लाज बचा लैव। हम तुमाई पूजा करें वा पूजा के लाने गुर चना लैबे खौं। बायरै कड़ी इतेकई में दौरे में हुन एक बरात जात दिखानी ।
ऊने बरतयन सै कई कैं भइया हो पूजा के लाने तनक गुर उर चना ल्आन देव । अकेलै कोऊने ऊकी बात नई सुनी। सब मस्ती में ऐड़ांत से चले गये। जीसै उनकौ दूला बेहोश होकैं गिर परो । इतेकई में उयै कछू जने मुर्दा की ठठरी लयें जात दिखाने, ऊने उनन से कई कै भइया हरो पूजा के लाने तनक गुर चना ल्आन दो
उनमें सै एक जने ने गुर चना ल्आन दये । जीसै उनकौ मुर्दा जी उठो उर वे खुशी सैं अपने घरै चले गये । उर उतै दूला खौं बेहोस देख कैं बराती बिटिया नौ जाकै कन लगे कै बैन हमाये दूला खौं का हो गओं। वा बोली कै हम का जाने बेई देवी जू जाने तुम औरे उनई से प्रार्थना करों । सबई बरतयन ने देवी जू सै प्रार्थना करी जीसै उनकौ दूला चेतन्न हो गओं, उर वे खुशी सैं बरात लैके लौट गये।
उर तनकई देर में वे मरी मराई चिरइयाँ जी उठीं । ब्याव होकैं बरात लौट आई। भइया ने जब मरी चिरइयन के जीबे की बात सुनी सो आऊतनई ऊने बैन सैं पूछी कैं बैन वे मरी मराई चिरइयाँ कैसे जी उठी। बा बोली कै भइया कैसे जाने बेई सुहागिन मइया जाने अपनी नई भौजी खों देख कैं बैन खौं भौतई हाल फूल भई ।
भौजी को पानी उतार के भीतर लुआ गई । उर गाँव की ग्यारा जोड़ा सुहागनें न्योत कै उनकी पूजा करी । देवी जी खौ मनाव गओं उर ऊके भइया भौजी सुहागन मइया की कृपा सै हरे भरे हो गये। ऐसौ है सुहागलन की पूजा को पुण्य प्रताप । उदनई सैं अपने बुन्देलखण्ड में सुहागलन की पूजा होत चली आ रई हते ।
भावार्थ
बुंदेलखण्ड में सुहागिनी महिलाओं को भाग्यशाली माना जाता है और उनकी हमेशा पूजा की जाती है। विधवा को अपशकुन सूचक मानकर उनसे परहेज की जाती है। सुहागिनियों को देवी जी के रूप में मानकर उनकी पूजा की जाती है। हर प्रकार की साज-सज्जा और श्रृंगार करके उन्हें परोस-परोसकर सम्मानपूर्वक भोजन कराया जाता हैं । फिर अन्न से महिलाओं की गोदी भरकर उनकी विदाई की जाती है ।
सुहागिनें अनेक प्रकार की होती है । कभी किसी पर बहुत बड़ा संकट आने पर सुहागिनें करने का प्रण किया जाता हैं, उन्हें संकट की सुहागिनें कहा जाता है । पुत्र अथवा पुत्री की शादी के बाद जो सुहागिनें की जाती है वे हाल-फूल अथवा प्रसन्नता की सुहागिनें कही जाती हैं। कभी दसारानी, कभी वैभवलक्ष्मी, कभी बीजासेन और कभी संतोषी माता की सुहागिनें की जाती हैं। महिलाओं की पूजा-अर्चना की प्रक्रिया प्राय: एक ही प्रकार की रहती है। सुहागिनों के अवसर पर उन महत्त्व को प्रदर्शित करने के लिए कथाएँ सुनाई जाती हैं। पूजा अनुसार कथाओं में अंतर होता है ।
एक बार एक ग्राम के जमींदार के ज्येष्ठ पुत्र का विवाह हुआ । पुत्रवधू के घर में आते ही परिवार में आनंद की लहर दौड़ गई। खूब बाजे-गाजे और नृत्य गान के साथ पुत्रवधू की अगवानी की गई। दूसरे दिन ग्राम की सुहागिन महिलाओं का आमंत्रण किया गया। सुहागिनों की पूजा- अर्चना के पश्चात् ग्राम की वयोवृद्ध पंडितानी ने एक कथा सुनाई, जो इस प्रकार है
एक गाँव के भरे-पूरे परिवार में एक भाई और एक बहिन थी । उन दोनों भाई-बहिन में अटूट प्रेम था । बहिन भाई एक दूसरे के सुख-दुख का सदैव ध्यान रखते थे | भाई को चिड़िया पालने का बहुत शौक था। उसके भाई के कमरे में चिड़ियों के दो-चार पिंजड़े टँगे ही रहते थे। वह गृहस्थी के सारे काम छोड़कर चिड़ियों को खिलाने-पिलाने में ही व्यस्त रहता था। उसे किसी दूसरी जगह जाने का समय ही नहीं था ।
एक दिन उसके भइया की शादी निश्चित हो गई। शादी की बात सुनते ही भइया के सिर पर संकट का पहाड़ टूट पड़ा। उन्हें शादी की जरा भी चिंता नहीं थी और न रंचमात्र प्रसन्नता । वह सोचता था कि यदि मैं दूल्हा बनकर दो दिन के लिए बारात के साथ चला जाऊँगा तो फिर मेरी इन चिड़ियों की देख-रेख कौन करेगा?
जैसे-जैसे शादी का समय समीप आ रहा था, वैसे वैसे भइया की उदासी और चिंता देखकर बहिन ने कहा कि भइया आप इतने अधिक उदास क्यों है? भइया ने कहा कि बहिन जी मुझे सबसे ज्यादा चिन्ता इन चिड़ियों की है। शादी में जाने पर मेरी चिड़ियाँ भूखी प्यासी तड़फ – तड़फकर मर जायेंगी ।
भाई की बात सुनकर बहिन ने कहा कि भइया आप निश्चिंत होकर शादी कीजिये और हमारी भाभी को लेकर शीघ्र ही लौटकर आइयेगा । मैं आपकी चिड़ियों के खाने-पीने का प्रबंध करती रहूँगी। आपकी चिड़ियाँ भूखी-प्यासी नहीं रहेंगी । बहिन पर विश्वास करके भाई शादी करने के लिए चला गया। इधर उसकी बहिन विवाह की भीड़-भाड़ में चिड़ियों की खबर भूल गई और उधर सभी चिड़ियाँ भूख-प्यास से व्याकुल होकर पिंजड़ों में ही मर गईं।
इस बीच उसे अचानक उन चिड़ियों की याद आ गई और वह दौड़कर सीधी पिंजड़ों के पास पहुँची । वहाँ चिड़ियों को मरा हुआ देखकर बहुत दुखी हुई। उसने सोचा कि मैंने चिड़ियों की पूरी जिम्मेदारी ले ली थी। अब अपने भाई को क्या जवाब दूँगी । उसने देवी जी के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि माताजी आप हमारी लाज बचा लीजियेगा, मैं विधि-विधान से आपकी पूजा करूँगी I इतना कहकर वह पूजा के लिए गुड़ और चना लेने के लिए बाहर निकली, तो उसे दरवाजे के समीप से एक बारात जाती हुई दिखाई दी ।
उसने बारातियों से कहा कि भाइयों! माताजी की पूजा के लिए थोड़े गुड़ चना ला दीजिये, किन्तु किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। सब मस्ती में इतराते हुऐ चले गये, जिससे उनकी बारात का दूल्हा बेहोश होकर गिर पड़ा। कुछ देर बाद मुर्दा लिए हुए कुछ लोग श्मशान की ओर जाते हुए दिखाई दिये, उन्हें देखकर बहिन ने उनसे गुड़ और चना लाने की बात कही। उन्होंने देवी जी की पूजा के लिए गुड़ और चना ला दिए।
देवी उनसे प्रसन्न हो गई और उनका मुर्दा उठकर बैठ गया और सारे लोग खुश होकर घर लौट गये। दूल्हे को बेहोश देखकर बराती बहिन के समीप जाकर बोले कि बहिन हमारा दूल्हा कैसे स्वस्थ होगा? बहिन ने कहा कि संतोषी माता आपसे नाराज हो गई हैं। आप लोग उनसे प्रार्थना कीजिए, जिनकी कृपा से आपका दूल्हा स्वस्थ हो जायेगा ।
सब बारातियों ने मिलकर प्रार्थना की और उनकी कृपा से दूल्हा सचेत होकर बैठ गया। सारी बारात हँसी-खुशी से लौट गई और थोड़ी ही देर में सारी की सारी मरी हुई चिड़ियाँ जीवित हो गईं। इधर उसके भाई की बारात लौट आई। भइया को मरी चिड़ियों के जीवित होने का समाचार प्राप्त हुआ । उसने आते ही अपनी बहिन से पूछा कि बहिन ये सब चमत्कार कैसे हुआ?
बहिन बोली कि भइया ये सब सुहागिन माता की ही कृपा है। अपनी भाभी को देखकर बहिन को बहुत प्रसन्नता हुई और आदर – पूर्वक उसे घर के अंदर ले गई और फिर ग्राम की ग्यारह जोड़ सुहागिनें आमंत्रित कर उनकी पूजा करके सुहागिन मइया की पूजा की। उनकी कृपा से बहिन के भइया और भाभी हर तरह से भरे-पूरे रहकर पूर्ण सम्पन्न हो गये । ऐसा है सुहागिन मइया की पूजा का पुण्य प्रताप । उसी समय से सारे बुंदेलखण्ड में सुहागिनों की पूजा का प्रचलन हो गया ।