Homeभारतीय संस्कृतिSindhu Sabhyta Me Dharmik Avastha सिन्धु सभ्यता में धार्मिक अवस्था

Sindhu Sabhyta Me Dharmik Avastha सिन्धु सभ्यता में धार्मिक अवस्था

सिन्धु सभ्यता Indus Civilization से प्राप्त पुरातात्विक सामग्री तत्कालीन धार्मिक अवस्था पर व्यापक प्रकाश डालती है। खुदाई मे मिले अवशेषों से Sindhu Sabhyta Me Dharmik Avastha के अनुसार मातृदेवी, शिव, लिंग और योनि पूजा, पशु पूजा वृक्ष पूजा, जल पूजा, सूर्य पूजा आदि का ज्ञान होता है।

Religious Status in Indus Civilization

भारतवर्ष के आदितम् सभ्य निवासी एक देवी माता तथा उर्वरणशक्ति के एक सींग वाले  देवता की उपासना किया करते थे। उनके पवित्र पादप एवं पशु थे और उनके धार्मिक जीवन में प्रत्यक्ष रूप से कर्मकाण्डी अभिषेकों का महत्वपूर्ण स्थान था। क्षमता के प्रतीकों – देवी माता, नंदी , शृंगमय देवता तथा पवित्र वृक्षों की पूजा करते थे और आज भी हिन्दुओं की पूजा में इनका समावेश हैं।

मातृदेवी की पूजा
सिन्धु सभ्यता Indus Civilization के पुरास्थलों से बड़ी संख्या मे स्त्री प्रतिमाएँ प्राप्त है। स्त्री मृण मूर्तियाँ चार प्रकार की प्राप्त हुई है, नग्न स्त्री, खड़ी सुसज्जित स्त्री, बैठी स्त्री, माँ – पुत्र की मूर्तियाँ। स्त्री प्रतिमाओं में अलंकारों में गले की मालाएं, चूड़ियां तथा मेखला विशेष है। मातृदेवी की मूर्तियों में विशेषतः शक्ति  के प्रतीक चिन्ह, शिशु को गोद में लिए हुए, शिशु को दूध पिलाते हुए, स्त्री प्रतिमाओं के समक्ष पूजा आदि विशेषताओं से युक्त है।

एक स्त्री के गर्भ से एक स्त्री के गर्भ से पौधा निकलता हुआ प्रदर्शित हैं। सम्भवतः यह उर्वरता की प्रतीक पृथ्वी माता है। इन मूर्तियों के सामने अग्नि के दीपक या अग्निकुण्ड प्रज्वलित रहा होगा। हड़प्पा से प्राप्त एक मुहर पर एक तरफ स्त्री प्रतिमा तथा दूसरी तरफ एक पुरूष एक स्त्री की बलि देते प्रदर्शित है। मोहनजोदड़ो में एक मूर्ति मिली है । सिन्धु सभ्यता के परिवारों  में मातृदेवी का सर्वश्रेष्ठ स्थान था।

शिव पूजा
शिव सिन्धु सभ्यता Indus Civilization के प्रमुख देवता थे। अनेक पुरातात्विक साक्ष्य सिन्धु सभ्यता में शिव उपासना की पुष्टि करते है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर त्रिमुखीय पुरूष पद्मासन मुद्रा में चौकी पर बैठा है, इसके सिर पर सींग हैं। योगी के बाईं ओर गैंड़ा, भैंसा तथा दाई ओर हाथी, व्याघ्र एवं उसके सम्मुख एक हिरन है। योगी के ऊपर 6 शब्द लिखे हैं। विद्वानों के अनुसार मुद्रा में  ऊर्ध्वलिंग भी अंकित हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसका समीकरण भिन्न – भिन्न देवताओं से किया है। कुछ विद्वानों ने इसमें शिव के ‘त्रिशूलि, ‘पशुपति’, तथा ‘महायोगी’ रूपों की पूर्व कल्पना माना है।

एक अन्य मुहर पर एक शूलधारी मानवीय आकृति को वृषभ पर प्रहार करते दिखायी गयी है। इसमें शिव और दुंदुभि के संघर्ष का आभास माना है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक अन्य मुहर पर सींग वाले  त्रिमुखी आकृति योगासन मुद्रा में बैठा अंकित है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक अन्य मुहर पर योगासन मुद्रा में बैठी मानव आकृति अंकित है, जिसके आसपास हाथ जोड़े पुरूष खड़े है, तथा पुरूषों के पीछे सर्प के फन अंकित है। अतः अनेक पुरातात्विक साक्ष्य सिन्धु सभ्यता में शिव उपासना की पुष्टि करते है।

लिंग और योनि पूजा Penis and Vagina worship
सिन्धु सभ्यता Indus Civilization में बहुसंख्या में साधारण पत्थर, लाल अथवा नीले सैण्डस्टोन, चीनी मिट्टी, सीप के लिंग मिले हैं, ये दो प्रकार के हैं फौलिक (लिंगों का शीर्षभाग गोल) एवं वीटल्स (लिंगों का शीर्षभाग नुकीला)। कुछ अत्यन्त छोटे तथा कुछ लिंग चार फीट ऊँचे हैं। उस समय  लिंग पुजा मिस्त्र, यूनान और रोम में भी प्रचलित थी।

सिन्धु सभ्यता से पत्थर चीनी मिट्टी, सीप आदि के आधे इंच से लेकर चार इंच तक छल्ले मिले हैं। कुछ छल्लों (चक्रों) के बीच में छेद के साथ ही पेड़ों और पशुओं तथा नग्न स्त्री आकृति चित्रित है। विद्वानों ने इन्हें ’योनि पूजा’ का प्रतीक माना है। शिव इस युग के प्रमुख देवता थे और उनकी उपासना लिंग तथा मानवीय दोनों रूपों में होती थी।

पशु पूजा Animal Worship
सैन्धव सभ्यता Indus Civilization में पशु – पूजा भी प्रचलित थी। पशुओं में कुबड़दार बैल एवं एक श्रृंगी वृषभ का अंकन बहुतायत से प्राप्त हुआ है। एमव्म् धवलीकर के अनुसार, ‘‘कृषि में उपयोगी होने के कारण वृषभ पूज्य रहा होगा। संभवतः वृषभ पूजा सम्प्रदाय रहा होगा।’’ विद्वानों के अनुसार, ’गोर्क नस्ल’ के वृषभ की पशु – पूजा प्रचलित थी। कुछ मुहरों पर एक सींग की आकृति, हाथी, गैंडा, गरूड़ आदि चित्रों के सामने धूपदान को दिखाया गया है।

उस समय पशुओं का धार्मिक महत्व रहा होगा , पशु आकृतियों का भी धार्मिक महत्व का रहा होगा। एक मुद्रा पर ‘नाग की पूजा’ करते हुए एक व्यक्ति चित्रित है। लोथल से प्राप्त ताबीज पर एक नाग चबूतरे पर लेटा हुआ चित्रित है इससे पता चलता है कि सिंधु सभ्यता में नाग पूजा भी प्रचलित थी।

वृक्ष पूजा tree worship
सैन्धव सभ्यता Indus Civilization में वृक्ष – पूजा प्रचलित थी। वृक्षों में पीपल, शीशम, बबूल, नीम आदि वृक्ष पवित्र माने जाते थे। मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक मुद्रा पर दो जुड़वा पशुओं के शीश पर नौ पीपल की पत्तियाँ दिखाई गई हैं। मार्शल भी इन पत्तियों को पीपल की मानते हैं। एक आश्चर्यजनक मुद्रा है, जो पीपल के वृक्ष के नीचे एक सींग वाली  देवी, जिसके सामने मनुष्य के शिरोभाग वाला एक बकरा है, एक आकृति पूजारत् हैं और शिखायुक्त सात नारियों की एक पंक्ति है, जो सम्भवतः परिचर्या में संलग्न पुजारिनें हैं।  इससे स्पष्ट है कि, पीपल पूजा सर्वाधिक प्रचलित है।

जल पूजा water worship
मोहनजोदड़ों से प्राप्त महास्नानागार के आधार पर विद्वानों का मानना है कि, इसका धार्मिक महत्व रहा होगा। यह सैन्धव सभ्यता में जल-पूजा का प्रमाण है। हिन्दू मंदिरों के जलाशय की भाँति सम्भवतः महास्नानागार का भी धार्मिक महत्व था तथा छोटे – छोटे कक्ष महन्तों के निवास स्थान रहे होंगे।  सिंधु  सभ्यता में जल-पूजा के अंतर्गत नदी-पूजा, तालाब पूजा, कुआ पूजा आदि  की जाती होगी।

सूर्य पूजा sun worship
पुरातात्विक साक्ष्य सिन्धु सभ्यता में सूर्य पूजा की पुष्टि करते है। कुछ मुद्राओं पर सूर्य चिन्ह् स्वास्तिक, पहिया प्राप्त होता है। इसी आधार पर विद्वानों का मानना है कि, क्रीट में पाषाण स्तम्भों और स्वास्तिक चिन्हों की पूजा होती थी। उक्त सैन्धव/ सिंध  धर्म, आधुनिक हिन्दू धर्म से गुणों में समान रखता है। आधुनिक हिन्दू धर्म अधिक अंश में सिन्धु घाटी की संस्कृति का ऋणी है।

अंतिम संस्कार Funeral
अंतिम संस्कार धार्मिक विश्वास का अभिन्न अंग है। अंतिम संस्कार में  दिवंगत आत्मा की तृप्ति और मोक्ष की कामना की जाती है। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल, कालीबंगा आदि स्थ्लों से मृतक के अंतिम संस्कार के प्रमाण मिले है। पुरातात्विक साक्ष्यों से सिन्धु सभ्यता के नगरों से बाहर मृतक का अंतिम संस्कार करने के प्रमाण मिले है।

पुरातात्विक उत्खनन से अंत्येष्टि सामग्री के रूप में आभूषण, मृदभाण्ड, उपकरण एवं अन्य वस्तुएँ मिली है। पुरातत्वविदों को कपाल क्रिया के भी प्रमाण मिले है। सिन्धु सभ्यता में अंतिम संस्कार तीन प्रकार से करने के प्रमाण मिलते है- पूर्ण समाधीकरण (अर्थात् मृतक के संपूर्ण शरीर को दफनाना), आंशिक समाधीकरण (अर्थात् मृतक के शरीर को अग्नि में जलाकर या मृतक के शरीर को जंगली पशुओं द्वारा भक्षण करने के बाद शरीर की प्रमुख हड्डियों को दफनाना), एवं दाहकर्म (अर्थात् मृतक के संपूर्ण शरीर को अग्नि में जला देना)।

सिंधु घाटी  साभयता 

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