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Santan Saten सन्तान सातैं व्रत कथा

एक शिहिर में एक बड़े धर्मात्मा राजा राज करते । राजा की भौतई सुन्दर उर गुणन सैं भरी दोठउवा रानी हतीं । बड़ी रानी कौ नाँव सूर्यमुखी उर हल्की रानी कौ नाँव चंद्र मुखी हतो। बड़ी रानी तौ अपने बड़प्पन में मस्त रत्ती उयै पूजा पाठ सैं कछू मतलब नई हतो। मन कौ खाव पियो उर घुर्राटे की नींद सोऊत रई । हल्की रानी चन्दमुखी कौ स्वभाव तौ भौतई अच्छौ हतो ।  अच्छे प्रेम सैं भादौ के मईना में नियम सैं Santan Saten सन्तान साँतै कौ व्रत रत्ती ।

वे ऐसौ कठिन उपास करत ती कै कोई कर सकत तौ । सन्तान साँत के दिन तुलसी के सात पत्ता खाकै पानी पीकै दिन काड़ देत तीं। ऐसई ऐसै उन्ने पूरी जिन्दगी काड़ दई ती । हरा – हरा दोई रानियन की उमर पूरी हो गई उर वे सुर्गसिधार गई। दूसरे जनम मैं वे दोई जनी बंदरिया भई । बड़ी बंदरिया ने तौ कभऊँ कोनऊ ब्रत नई भूलो वे सन्तान सातै के दिना तुलसी के सात पत्ता खाकै उपास करत रई ।

कछू दिना में वे दोई बंदरियाँ चल बसीं, उर दूसरे जंगल में वे दोई जनी मछरिया बनी बड़ी मछरिया तौ पानी में मस्त रत्ती अकेलै हल्की मछरिया ब्रत करबौ नई भूली । सन्तान सातैं के दिना सात घूँट पानी पीकै वा उपासी बनी रत्ती। जब लौ जियत रई सो उपास करबौ नई भूली।

कछू दिना में वे दोई चल बसी उर अगले जनम में वे दोई मुर्गी भई बड़ी मुर्गी तौ चाय खेलत रत्ती अकेलै हल्की मुर्गी कौ खौतौ सन्तान सातै के ब्रत की पूरी-पूरी खबर हती । जई सैं भादौ को मईना आउत तो सो वा हल्की मुर्गी सात दाने चुनकै उपासी बनी रत्ती । जब नौ वा जियत रई ऊने ब्रत करबौ नई छोड़ौ कछू दिना में वे दोई मुर्गी चल बसी, उर अब की दारै वे दोई बैनन के रूप में पैदा भई ।

दोई जनन को अच्छे घरन में ब्याव हो गओ। बड़ी बैन खौं तौं व्रत उपास सैं कछू मतलब हतो नई । ऊने तौ कौनऊ जनम में ब्रत नई करो तो अब वा का ब्रत करती अकेलै वा हल्की बैन तौ हमेसई ब्रत करत  आई ती । अब वा मानस  की जौन में कैसे ब्रत भूल सकत ती । ब्याव होतनई वा लगातार व्रत करत रई ।

बड़ी बैन सो खा पी कै मस्त रत्ती । सन्तान सातैं की कृपा सैं हल्की बैन के सात लरका भये। अकेलै बड़ी बैन कै एकऊ संतान नई भई । उरवा बाँझई बनी रई । बड़ी बैन खौं बाँझ देखकै हल्की बैन खौं भौतई बुरओ लगत तौ। वा अपने साँतई लरकन खौं खेलबे के लाने बड़ी बैन केना पौंचा देतती। अकेलै बड़ी बैन उने देख-देख जरत बरत रत्ती ।

सोसत रत्ती के ई रड़वाल कै जो इत्तो बड़ो जाड़ कासै हो परो। जा मोंय निराबे उर मोव जी जराबे के लाने सातई लरकन खौं हमाये नाँ पौंचा देत। कजन जे सातई लरका मर जाते तौ मौय जीखौं तनक साता पर जाती । ऐसौ नई करें कै जीसै इन सातइयन कौ दिया बुज जाय। उर वा रांड रोऊत बैठी रए । जा सोस कै ऊने सातई लरका बैठार कै सातइयन खौं एक-एक लडुवा दओ उर पुटया के कई कै खालो भइया।

लरकन नें तुरतई लडुवा खा लए उर उने वौ विष अमरत की नाई हो गओ । लरकन को कछू नई बिगरो र वै ऊसई हँसत खेलत रये । बड़ी बैन माथो ठोक कै और कोसन लगी कै इनें जे विष के लडुवा खुआ दये तोऊ जे पापी मरे नइयाँ । एक दिना ऊने उन सातईयन खौं एक गैरे तला में पटकुवा दओं तोऊ उनको कछू नई बिगरो वे हँसत खेलत तैरत बायरै कड़ा आये ।

वा ता करकै रै गई सोसन लगी कैइनपै ऐसे कौन से देवता की छाया है। जो जै अबे नौ जियत बचे रये । देखत हैं अब इने को बचा पाऊत। एक दिना वा सातइयन खौं पुटया कै एक ऊंचे पहाड़ पै लोआ गई उर उतै सै नैचै ढकेल कै पटकुवा दओं अकेलै वे नैचे पौचई नई पाये। जैसें काउने उने बीचई में झेल लओ होय । वा अपनौ सौं मौ लेके रै गई।

अब एक उपाय और ऊनो बचो तो । ऊने ताते लोहे की सरियन सैं ठाढ़ी पिटवाऊत रई। अकेलै उने वे फूल से लगत रये । बड़ी बैन तौ पूरे उपाय करकै हार गई, उर उनन कौ कछू बिगार नई पाई हिये हारकै रै गई ।एक दिना वा हल्की बैन के लिंगा जाकै पूछन लगी कैं काय बैन तुम ऐसे कौन देवता की पूजा करत जी की कृपा सैं तुमाये सात लरका भये उर उनकौ कोऊ बाल बाकौ नई कर पा रओ। उर हम एक चुखरिया के लाने रो रये ।

हल्की बैन बोली कै जिज्जी हमतौ हर जोनी में सन्तान सातैं कौ ब्रत करत रये। उर तुमने कभऊँ ऊकौ नाव नई लओ । उनई की कृपा सैं हमाये कभऊँ बार बाकौ नई हो सकत। उर बड़ी बैन बोली कै हमे तौ कछू पतऊँ नईय तुम हमें ब्रत की पूरी विदी बता दो अब हम सोऊ सन्तान सातैं कौं ब्रत करें। बैन के बताये सैं बड़ी बैन सन्तान सातैं कौ ब्रत करन लगी, उर उनकी कृपा सैं ऊके एक बौरा लरका भओ ।

भली बौरा भओं अकेलै भओ तौ लरकई कम सै कम बाँझ कौ नावतौ मिट गओं ऐसौ होत सन्तान सातैं के ब्रत कौ प्रभाव । हर ऐवाती औरत खौ जौ ब्रत रखो चइये, तबई उये संतान कौ सासौ सुख डुमल पैय। ई किसा खौं सुनकै ऐसी कौन औरत हुइयै जो ब्रत नई करे। बाढ़ई ने बनाई टिकटी उर हमाई किसा निपटी ।

भावार्थ

एक नगर में एक धर्मात्मा और प्रजापालक राजा राज्य करते थे । राजा की गुणवान और परम सुंदर रानियाँ थीं। उनकी बड़ी रानी का नाम ‘सूर्यमुखी’ और छोटी रानी का नाम ‘चंद्रमुखी’ था। बड़ी रानी को तो अपने बड़प्पन का घमण्ड रहता था । इस कारण से उसे पूजा-अर्चना से कोई प्रयोजन नहीं था। वह मन का खा-पीकर आराम से सोती रहती थी, किन्तु छोटी रानी चंद्रमुखी का स्वभाव बहुत अच्छा था ।

वह अच्छे प्रेम से मन लगाकर भाद्रपद माह में संतान सप्तमी का व्रत रखती थी। वह ऐसा कठिन व्रत रखती थी कि कोई भी औरत ऐसा व्रत नहीं रख सकती है। वह संतान सप्तमी के दिन केवल तुलसी के सात पत्ते खाकर व्रत रखती थी। इस प्रकार का कठिन व्रत करते हुए अपना सारा जीवन व्यतीत कर दिया था । और अंत में वे दोनों रानियाँ स्वर्ग सिधार गईं। फिर वे दूसरे जन्म में दोनों बंदरियाँ बनीं और इस योनि में भी छोटी रानी तुलसी पत्र खाकर व्रत करती रही, किन्तु बड़ी बंदरिया को व्रत से कोई मतलब नहीं रहा ।

फिर अगले जन्म में वे दोनों मछली बनीं, किन्तु छोटी मछली इस योनि में भी व्रत करना नहीं भूली, वह संतान सप्तमी के दिन सात घूँट पानी पीकर व्रत रखती थी। जब तक मछली जीवित रही सो, लगातार व्रत करती रही।

अगले जन्म वे दोनों मुर्गी बनीं। बड़ी मुर्गी तो इधर-उधर घूमती रहती थी, किन्तु छोटी मुर्गी व्रत करना नहीं भूली । भाद्रपद माह आते ही सात दानों को चुगकर छोटी मुर्गी व्रत रखती रही। जब तक वह जीवित रही, सो लगातार व्रत करती रही। कुछ दिन बाद वे दोनों चल बसीं और दूसरे जन्म में वे दोनों सगी बहिनों के रूप में एक ही घर में उत्पन्न हुईं।

बड़ी होने पर दोनों बहिनों का विवाह हो गया। बड़ी बहिन को तो उपवास से कोई मतलब था नहीं, किन्तु छोटी बहिन विवाह के बाद भी उपवास करती रही। बड़ी बहिन खाने-पीने और मन का आराम करती रहती थी । उस व्रत के प्रभाव से छोटी बहिन के सात लड़के उत्पन्न हुए, किन्तु बड़ी बहिन की कोई संतान नहीं हुई।

वह जीवन भर निःसंतान ही बनी रही। संतान के बिना बड़ी बहिन का घर सूना-सूना सा रहता था, जिसके कारण वह बहुत दुखी रहती थी। अपनी बड़ी बहिन को नि:संतान देखकर छोटी बहिन को बहुत बुरा लगता था। इस कारण से वह अपने सातों लड़कों को अपनी बड़ी बहिन के घर पर खेलने के लिए पहुँचा देती थी, किन्तु बड़ी बहिन उसके बच्चों को देख-देखकर मन ही मन जलती भुनती रहती थी।

वह सोचती रहती थी कि इस पापिन के यहाँ इतने बच्चे कैसे पैदा हो गये । लगता है कि वह मेरे मन को जलाने के लिए अपने बच्चों को हमारे घर भेज देती है। यदि इसके सातों लड़के मर जाते तो मुझे कुछ शांति मिल जाती । वह सोचती थी कि ऐसा कोई उपाय करना चाहिए, जिससे ये सातों लड़के मर जायें और यह रांड रोती बैठी रहे ।

उसने विष मिलाकर एक लड्डू बनाकर रख लिया और सातों लड़कों को समझा बुझाकर खिला दिया, किन्तु संतान सप्तमी माता की कृपा उनका कुछ भी नहीं बिगड़ पाया और वह विष उनके लिए अमृत बन गया। बड़ी बहिन सिर पीटकर रह गई । सोचने लगी कि विष के लड्डू खिलाने पर भी ये दुष्ट मरे नहीं हैं।

एक दिन उसने उन सातों लड़कों को एक गहरे तालाब में फिंकवा दिया, किन्तु वे सातों हँसते खेलते और तैरते हुए सकुशल तालाब से बाहर निकल आये । वह पछता कर रह गई, । एक दिन वह उन सातों को समझा बुझाकर एक ऊँचे पहाड़ पर चढ़ा ले गई, उसने उन सातों को पहाड़ से नीचे फिंकवा दिया, किन्तु वे नीचे गिर ही नहीं पाये, जैसे किसी ने उन्हें बीच ही में संभाल लिया हो।

वह अपना सा मुँह लेकर रह गई। उसने अबकी बार उन्हें गर्म लोहे के सरियों से खूब पिटवाया, लेकिन उनका कुछ भी नहीं बिगड़ सका। वे गर्म सरिये उन्हें फूलों के समान कोमल प्रतीत होते रहे ।

एक दिन वह बड़ी बहिन अपनी छोटी बहिन के समीप जाकर पूछने लगी कि बहिन तुम ऐसे कौन देवता की पूजा करती हो, जिनकी कृपा से तुम्हारे सात पुत्र उत्पन्न हुए हैं और उनका कोई बाल बाँका नहीं कर पा रहा है। छोटी बहिन बोली कि मैं हर योनि में संतान सप्तमी का व्रत करती रही हूँ और उनकी ही कृपा से मेरे यहाँ सात पुत्र उत्पन्न हुए हैं। आज उनका कोई बाल बाँका नहीं कर पा रहा है।

बड़ी बहिन बोली कि मुझे तो व्रत का कोई ज्ञान ही नहीं है। तुम हमें व्रत का विधि-विधान बता दो और मैं भी संतान सप्तमी का व्रत रखा करूंगी। छोटी बहिन ने उसे व्रत का विधि-विधान समझा दिया । तब बड़ी बहिन भी व्रत करने लगी । माता जी की कृपा से उसके यहाँ एक गूँगा पुत्र उत्पन्न हुआ और उसका बाँझ का नाम मिट गया। ऐसा होता है, संतान सप्तमी के व्रत का प्रभाव। वैसे हर सौभाग्यवती महिला को यह व्रत रखना चाहिए, जिसके प्रभाव से संतान सुखी और समृद्ध रह सकती है। 

नाँदन भैंस व्रत कथा 

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