नर्मदा साधना का साक्षात् रूप । एक जीवित संस्कृति धारा है Sanskriti Salila Narmada। धरती पर दूध धारा। अमृत धारा । ममता – धारा । माँ का जल के राशि – राशि प्रवाह में रूपान्तरण। इसकी गोद मनुष्य का पहला बिछौना । अंचल में मनुष्य की आँखों का खुलना। इसकी देखरेख में मानव का विकास। इसके सान्निध्य में रहकर मनुष्य का दो-चार अच्छी बातें सीखना । ज्ञान के सोपान चढ़ना । जीवन जीने का सलीका पाना।
प्रकृति से दोस्ती और जीवन से राग रखने का भाव जन्मना। निसर्ग के सौन्दर्य के बीच में मानव का बड़ा होना । और बड़ा होना। एक दिन निसर्ग सौन्दर्य में मनुष्य के कर्म सौन्दर्य के बीच में मानव का बड़ा होना। और बड़ा होना । एक दिन निसर्ग सौन्दर्य में मनुष्य के कर्म सौन्दर्य का मिल जाना । धरती का निहाल हो जाना । पत्र – पत्र पर उल्लास का नर्तन होना। पक्षियों की चहक में जिजीविषा का शब्द पा जाना। एक नदी का अपनी ममता में माँ हो जाना ।
नर्मदा लोक की सर्जक। लोक संस्कृति की निर्मात्री। लोक की अधिष्ठात्री। वन देवी की प्रतिमा। धरती की रसधार । घाट-घाट पर उत्सवा। वन खण्डों में किलोला। पहाड़ों में संघर्षा। मैदानों में शान्ता। अँजुरी में अर्ध। हथेली में आचमन। झारी में जल। खेतों में पानी। प्यास में तृप्ता । तपन में शीतलता। अमावस – पूनम, वार- त्यौहार पर स्नान पर्वा । घाट-घाट पर पूज्या । शाप-ताप-हरा। पतित पावनी। जगदानन्दी। अमरकण्ठी। मेकल सुता। वनकन्या। रेवा। भक्त वत्सला। मातु। नर्मदे।
नर्मदा के तटों पर उत्सव के कितने रूप। जीवन के कितने आयाम। आस्था के कितने स्वरूप। जल के कितने रंग। निर्मलता की कितनी पारदर्शिता। तरलता की कितनी तेजस्विता। मानव के क्रिया – व्यापारों का कितना पसारा। आस्था की डुबकी। स्नान पर्व। पूजा के फूल । बेल पत्र भरी छाबड़ी । एक लोटा जल। औधड़ देव का अभिषेक। श्रद्धा के पान – फूल। सहज जुड़ गये हाथ। अभिमान रहित झुका माथ। खनकता रुपया । प्रसाद की मीठास । खोपरे की चिटक। बन्दरों को चने फुटाने । भिखारियों को भिक्षा। कंडों का जगरा। दाल-बाटी का स्वाद। डेरा की समेट। जीवन की अरदास। चलने की बिरियाँ। मैया से विदा। मैया का ध्यान । ‘अरू आवसाँ’ का नेह – छोह। भोले की दुहाई। मैया की जय।
नर्मदा का अंचल तपोभूमि। चिन्तन की ज़मीन । गुफा का द्वार । शरीर साधना धाम। ज़मीन छूती जटाएँ । ललाट का तेज़ । आँखों की ललाई । होठों का मौन। वाणी का प्रस्फुटन। शब्द ब्रह्म । अहोरात्र निर्धूम जलती यज्ञ – वेदी । मंत्रोच्चार । ऋचाओं की गूँज । धर्म की व्याख्या । ज्ञान – चर्चा । हरि कथा । तन का कसाव। मन का फैलाव । जीवन का लक्ष्य – संधान । प्रकाश की पकड़ । हंसा की उड़ान। आकाश का गाम्भीर्य । नीलिमा का पारावार। अधरों की बुदबुदाहट । वदन की कांति ।
तिनके-सी देह – छूटन । जीवन का मर्म । जीने की सार्थकता। लहर-लहर पर किरणों की बिछलन । साँझ की उदासी । सगुन पंक्षी का पिंजरा तोड़कर उड़ जाना । कुटिया का सूनापन । कदली पादप का सूखना। फूलों का टप-टप झड़ना । फिर सुबह होना । कुटिया के सामने सिला पर बैठे फिर किसी संन्यासी के हाथों की चिलम पर आग का चिलकना। अमरकंठी का अविराम – अनवरत बहते चले जाना।
नर्मदा तीर्थ क्षेत्र । कोटि तीर्थ । ‘नर्मदा के कंकर, सारे ही शंकर ।’ कण-कण में भगवान। पग-पग पर देव धाम । तीर्थों की शोभा । घाटों की रौनक। दीप-दान। काकड़ा आरती। शंख, झाँज, नगाड़ों की ध्वनि । परकम्मावासी का जुड़ाव । पैदल यात्रा । मैया का भरोसा। माँग कर खाना, ज़मीन पर सोना। धर्मशालाओं का परमार्थ । दानियों द्वारा भण्डारा । संतों की जमात। गरीबों की क्षुधा – तृप्ति । मंदिरों के कलश । पंडितों की पूजा । पंडितों की छिड़क। भी का आनन्द । लुच्चों की सक्रियता । जेबों का कटना । माला- कण्ठी का गदराये शरीर पर सजना । नारियल, अगरबत्ती, धूप-दीप-वंदन, अर्चन, अर्पण।
नर्मदा किनारे आधुनिकता की विद्रूप हँसी । विकास बनाम विनाश का बढ़ता शिकंजा। कटते वन । जलते कछार । सोनचिरैया की झुलसती पाँखें । बिगड़ता पर्यावरण। बढ़ता प्रदूषण । तीर्थों पर घाटों के किनारे शौचालय । झिरपते पेशाबघर। गंदला होता नर्मदा – जल । सूखे फूल । नारियल की नट्टी । गंद कपड़े। जलती चिताएँ । अधजले शव । उद्योगों का बहता नरक । रेवा के पानी का मैला होता निर्मल वेश । आदमी की समझ पर लानत । युग की अंधी दौड़ को धिक्कार।
नर्मदा घाटी का चित्र | अपनी सम्पदा में सम्पन्न घाटी । अपने संतोष में शान्त घाटी। अपनी मेहनत और ईमान में बेजोड़ घाटी । सागौन -साल के वृक्षों की सोना- घाटी । पर अब अपनी ही ज़मीन से विस्थापन की खबर से अशान्त घाटी। बाँधों से अपनी प्राकृतिक सुन्दरता खोती घाटी । भय और आशंका में जीती घाटी। भविष्य के असंख्य प्रश्नों के उत्तर खोजती घाटी ।
अपने घर, गाँव, ज़मीन और संस्कृति के समाप्त होने के खौफ और शोक में डूबती घाटी। फिर भी माँ नर्मदा की करूणा पर टिकी घाटी । बचाव की आशा में संघर्ष में सन्नध घाटी ।नर्मदा के घाटों की मेरे द्वारा की गयी यात्राएँ । प्राप्त अनुभव। देखी गयी वास्तविकता । लोगों से चर्चा | माँ – पिता की नर्मदा के प्रति अगाध श्रद्धा ।
बचपन की नर्मदा जल पर तैरती स्मृतियाँ । केशोर्य जीवन का शिक्षा – संघर्ष । संघर्ष के क्षणों में अवचेतन में बहती हुई मैया रेवा की ढाँढस। संकटों से उबार । नर्मदा का बेदाग प्राकृतिक सौन्दर्य । प्रपातों से आती पुकार । पत्थरों पर से फिसलती ममता भरी आवाज़ । एक सम्मोहन । बहते जल का आकर्षण ।
कोटि-कोटि आशाओं का जल से निकलकर संस्कृतिमय अनुष्ठान । एक जुड़ाव। एक रचाव। एक भराव । एक नदी को संस्कृति धारा होते देखने की आश्वस्ति । एक विश्वास । उसी विश्वास के बल पर माँ की अभ्यर्थना में फूटे ये शब्द। वन्दना के स्वर। भाव – पूर्ण समर्पण । अच्छी तरह भान कि वाणी की आँखें नहीं, आँखों को वाणी नहीं । गिरा अनयन, नयन बिनु वाणी ।
दीपावली, संवत् 2063
डॉ. श्रीराम परिहार