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Pran प्रण (प्रतिज्ञा )-बुन्देली लोक कथा

एक समय की बात है कै इते के राजा के कुँवर अपने घोड़ा पै बैठकें शिकार खेलवे जा रये हते। वे अपनो घोड़ा दौड़ात जा रयेते सो वे दूसरे राजा के राज में पौंच गये। वे समय राजा के महल से निकर रयेते ओई समय राजा की बेटी ने ऊपर से पान थूको, सो वो पान ससरो कुँवर के ऊपरे गिरो, इके  पूरे शरीर में आग लग गई। कुँवर ने घोड़ा रोककें कई कै जेने हमाये ऊपर पान थूको है हम आज जो Pran प्रन कर रये हैं कै ऊखों हम अदब्याही छोड़हें ।

राजा की बेटी ने सुनी सो वा सोई केन लगी कै हम तुमाये जाये से चना दरवा लेंहें। इन दोईयों ने प्रन करे अर अपने-अपने घरों खों गये। कछु दिनों में कुँवर ने ओई राजकुमारी सें अपने ब्याव की ठान लई वे तो खटपाटी लैंके सो रये। राजा ने सुनी तो राजकुमारी को पतो पामो लगाकें ब्याव पक्को करवा दओ। बरात गई पूरे नेग-जोग भये अर जब भाँवर परन लगीं सो आदी भाँवरें पर पाई हतीं और कुँवर ने कटारी सें अपनो गठजोरो काट दओ।

फिर वे उतै सें वापस चले आये । कुँवर ने तो अपनो प्रन कर दओ, अब राजा की बेटी ने सोची कै हम काये पाँछें रयें, सो इन्ने अपने पितासें कई कै हमें कछू दिनों खां घूमन -फिरन जाने है सो अपन की मौलत मिले। राजा ने कै दई कै तुम जा सकत हो । राजा की बेटी ने ग्वालन को भेस बनाव, अपनी मूंड़ पै दयी की मटकिया धरी अर कुँवर के राज में पौंच गई।

वे भौतई खपसूरत हतीं सो भैया वे कुँवर के सामने से जैसई कै निकरीं कै कुँवर को चित्त- बेचित्त हो गव। उनने हिकमत लगाकें ग्वालन से दोस्ती गाँठ लई सो जे दोई रोज-रोज मिलन लगे। फिर कुँवर ऊके तंबू में दूध पीवे जान लगे। अब जा पेट से हो गई सो वा अपने घरे आ गई। आऊत में वा ग्वालन कुँवर की निशानी उनकी कटार लै आई । समव पूरो भओ सो ईकें लरका हो गव। होत करता जो बड़ो हो गव । ओके मित्र पूछते कै तुमाये पिता को है सो बो अपनी मतारी सें पूछे, बा कछू ने कछू बहानो बना देवें ।

एक दिनां जब बो लरका जिद्द करन लगो तो ऊकी मतारी ने सब बातें बताईं कै तुमाये पिता ने मोय अदब्याही छोड़ दई हती । सो उनने अपनो प्रन पूरी कर लओ अब हमने जो प्रन ठानोतो बो तुमें पूरो करने है । ऊके बेटा ने कै दई कै मतारी तुम मोरो भरोसो करियो हम प्रन पूरो करहें ।

ऊ लरका ने कछू सामान लवो अर घोड़ा पै बैठकें उतै सें चल दब । वो तो अपने पिता से बदलो बहोरबो चाहततो सो वो पिता के राज में जा पौंचो । वो अपनी मतायी की बातें सुनकें बड़ो दुखी हतो। जहां सें जो निकरो उतै एक लुगाई पानी भरवे जा रयीती ऊके संगे एक बेटा हतो वा अपने मोड़ा से कै रयीती कै तुम लौट जाव नातर जो बाबा तुमाये कान काट लैहे। ई लरका ने कान काटवे की बात सुन लईती सो ओने आकें पूछी हम ईके कान काट लंये ऊने कई हओ और ऊंने कान काट लये।

वो आंगे गव सो उतै मिठाई की दुकान मिली। ईने एक मिठाई उठाकें पूछी के जो का आय, दुकानदार बोलो कै खाजा सो ऊने पूरो खाजा खा लओ । जब दुकानदार ने पैसा मांगे तो बो बोलो तुमने तो कई हती कै खाजा सो हमने खा लये अब कायेके पैसा ? उतें से आंगे चलो तो का देखत है कै सामने एक बुढ़ी डुकरिया सूतकात रई हती । डुकरिया ने मोड़ा सें पूंछी कै बेटा कॉसे आ रये, लरका बोलो लंका सें, बेटा लंका कैसे जरी ?

ऊने डुकरिया के घर में आगी धर दई अर कई कै ऐसे जरीती लंका । कछू देर में वो अपने पिता के महल के सामने पौंच गवो। ओने बाग की मालन से पूंछी कै हमें बाग में रूकने है मालन ने नाईं कर दयी । ऊने मालन खां एक मुहर पकरा दई फिर वो हर दिनां मालन खां एक मुहर देन लगो । मालन ने सोची कै अपने बाप को का जात जो मुसाफर रोज एक मुहर दे देत है डरो रये । वो मालन से मिलकें पैले राजा खो देखवे गव ऊने देखो कै ऊकी अर राजा की सूरत पूरी मिल रई है। ऊने सोची कै दोई एक सूरत के हैं सो हमाव काम आस्ती से हो जैहे ।

फिर भैया ऊने धीरे-धीरे महल में जावो शुरू कर दओ । पैले तो छोटी मोटी चीजें चुराउन लगो फिर मालन सें कैकें राजा की एक पोषक मंगवा लई सो वो राजा की पोषक पैरकें महल में चलो जाय। अब राजा की अर ऊंकी सूरत एकसी हती सो सब धुकया जायें। अब ऊ मौंड़ा ने बेधड़क महल में चोरी करवो शुरू करो सो सबरे हैरान हो गये । राजा खां पता चली सो वो चोर पकरवे की तरकीब सोचन लगो । राजा ने महल में इत्ते पहरा लगा दयै कै कौनऊ उतै ने आ सकत तो।

मनो वो लरका तो अपनो काम करके चलो जाय अर कौनऊं खां हवा तक न लगे। एक दिनां राजा ने पूरे महल में कलदार, हीरा – जबाहर, मुहरें बिछवा दयीं अर सबसें कै दई कै वो चोर जरूर आहे वो जैसई सामान उठावे खां झुके सो तुम ऊखां पकर लईयो । बो मौड़ा तो मालन सें पूरे महल की जानकारी लेत राततो सो ऊने अपने जूतन में कोनऊ ऐसो लेप लगाव जीसें नेचे के पैसा मुहरें जूतों में चिपकत रयी अर वो राजा की पोषक में घूमत रओ ।

राजा के नौकरों ने समजी कै राजा घूम फिर रये हैं। सो भैया राजा की जा बात सोई फैल हो गई। राजा ने अपने राज के बड़े-बड़े करमचारों खां बुलाकें सलाय करी सबने कई कै दो ऊँट बुलाव अरकऊ वो ऊँट लैवे आहे सो कहूं ने कहूं फंस जैहे । ईने ऊँट चुरा लये उने मार डारो उन ऊँटों खां मालन के घर मेई मारो हतो, राजा जासूस पता लगाऊत जब मालन के घर तक पौंचे सो उने ऊँटों के खून को चिखानो मिल गओ ।

उन जासूसों ने मालन के घर के बाहर खून की कट्टस बना दई। फिर वे राजा कें जाकें सब हाल बता आये । इते ई मोड़ा खां पता परी के वे आदमी खून की कटट्स बनाकें गये सो ईने उतै के पूरे घरों में ऊंसई कट्टसें बना दई । भुसारें जब राजा के आदमी आये सो वे कातते कै जो तो हमाव बाप निकरो ईने पूरे घरों में ऊंसई चिखाने बना दये। राजा ने सुनी तो उने बड़ो क्रोध आओ, उन्ने कई कै अब हम खुदई ऊ चोर खां पकरबू तुमोरें अपने-अपने घरों बैठो अपने हांतन में चुरियाँ पैर लो।

राजा चोर की तलास में निकरे जा बात ईखां पता परी तो ऊने मालन सें एक चकिया अर दरबे के लाने कछू चना मंगवाके बीच चौगड्डा पै बैठ गव । राजा उतै सें निकरे उन्हें ऊंसे पूंछी कै चोर तो नई दिखानो ? ऊ कात तो कै राजा साब वो आंगे दौरत दिखानो हतो । राजा ने आंगे देखो सो वो ने मिलो। वे लौटकें आये फिर पूंछी ऊ लरका ने कई कै ई तरपै गओ है ।

राजा उतै गये मनो वो होतो तो मिलतो। जब राजा जादां भिजूमान हो गये सो वो लरका उनसे बोलो कै हजूर आप कयें तो मैं ऊखां ढूंढ ल्यांव. ….. । राजा ने कई कै ऐसें अच्छो और का हो सकत है। लरका ने कई महाराज तुम अपनी पोशाक हमें देव अर हमायी तुम पैरो, इतै बैठो हम ऊखां पकरकें आपके सामने हाजर करें देत ।

राजा परेशान तो हतेई सो उर्ने लरका की बात जच गई। वे उतै बैठ गये अर ऊ लरका चोर खां लैवे गव। राजा सें वो बोलो कै आप जे चना दरों कायसें नातर मोरों हरजा हुइये, सो भैया राजा चना दरन लगे। वो लरका दूसरे दिनां राजा के दरबार में हाजर हो गव । राजा सें बोलो कै महाराज मैई चोर हों । राजा खां ऊकी बात को भरोसो न हतो सो ऊ लरका नें राजा के इते सें जित्ती चोरी करीं हतीं वो सबरो माल बता दओ ।

जब राजा ने चोरी को कारन पूंछों सो ऊ कन लगो कै हमाई मतारी ने प्रन करोतो कै हम तुमाये जाये सें चना दरवाहें सो महाराज हमने तुमसें चना दरवा दये। अब हमायी मतारी को प्रन पूरो हो गव । तुमने अधब्याही छोड़वे को प्रन करोतो सो वो तुमने जबई पूरो कर लओ हतो। सो आप दोईयन के दो प्रन पूरे भये । महाराज आप हमाये पिता हैं। सबूत के ला जा आपकी कटार है अर वे ग्वालन हमारी मतारी हैं। राजा खां सब बातें याद आईं, उनने लरका की मतारी खां बुलबाव ऊके संगे बाकी के फेरे लये फिर वे राजा-रानी भये अर ऊ लरका राजा को कुँवर । सो जो अटका सुरज गव।

प्रतिज्ञा भावार्थ 

किसी राज्य के राजा के कुँवर एक समय शिकार खेलने को गये। अपने घोड़े को सरपट दौड़ाते हुए दूसरे राज्य में पहुँच गये। जैसे ही वे उस राजा के महल से निकले तो ऊपर ‘उस राजा की बेटी ने पान खाकर थूका तो वह पान की पीक कुँवर के ऊपर गिरी । उन्होंने घोड़ा रोककर ऊपर देखा तो राजकुमारी दिखी, उसके समक्ष कुँवर बोले कि मैं आज यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि तुझे अधब्याही छोडूंगा।

राजकुमारी भी तो आखिरकार राजा की ही बेटी थी, उसने भी कह दिया मेरी प्रतिज्ञा भी सुनते जाओ। मैंने यदि तुम्हारे जाये से ही चने नहीं दलवा लिये तो मेरा नाम नहीं। कुँवर वहाँ से सीधे अपने राज्य को लौट आये। कुछ समय पश्चात् कुँवर ने उसी राजकुमारी से विवाह करवाने की जिद पकड़ ली और अंततोगत्वा विवाह तय भी हो गया । बारात आयी जब फेरे पड़ने लगे तो आधे ही फेरे हुए थे कि कुँवर ने कटार निकालकर गठबंधन को काट दिया और शादी की पूरी रस्म हुए बिना ही ये वापस आ गये।

यह कार्य इस तरह से हुआ था कि जिसे केवल राजकुमारी ही समझ पाईं। कुँवर ने तो अपनी कसम पूरी कर दी । इधर राजकुमारी ने भी सोचा कि मैं क्यों पीछे रहूँ। उन्होंने अपने पिता महाराज से घूमने जाने की इजाजत मांगी इजाजत मिल जाने के पश्चात् अपनी बनाई गुप्त योजना को कार्यरूप में परिणित करने में लग गईं। उसने एक ग्वालिन का भेष बनाया, सिर पर दूध-दही के बर्तन रखे और उसी कुँवर के राज्य जा पहुँची ।

उसे विधाता ने तो रूप दिया ही था, इस पर वह नये लिबास में और भी ज्यादा निखर आया। ग्वालिन कुँवर के सामने से निकली । उन्होंने उसे देखा तो ये उसके रूप में फँस गये और धीरे- धीरे उसके ऐसे दीवाने हो गये कि उन्हें बगैर मिले चैन ही नहीं मिलता था। दोनों में गहरी दोस्ती हो गयी ।

होते-होते कुँवर सीधे ग्वालिन के तंबू में ही दूध पीने जाने लगे। उनकी मित्रता प्रेम में बदल गई । उसका परिणाम यह हुआ कि ग्वालिन बनी राजकुमारी गर्भवती हो गई, उसने यह घटना कुँवर को नहीं बतलाई और वहाँ से वापिस अपने राज्य को लौट गई। निशानी के तौर पर वह राजा की कटार लाई थी। कुछ समय पश्चात् उसके पुत्र हो गया। धीरे-धीरे समय के साथ-साथ वह बड़ा होने लगा । उसके मित्र उससे पूछते कि तेरा पिता कहाँ है, वह लाजवाब हो जाता।

माँ से घर जाकर अपने पिता के बारे में पूछता तो माँ टाल जाती थी। लेकिन एक रोज वह जिद्द करने लगा – मेरा पिता कौन है? कहाँ है? माँ ने उसे सारी आपबीती सुना दी उससे कहा कि बेटा तेरे पिता ने तो मुझे अधब्याही छोड़कर अपना प्रण पूरा किया, लेकिन मेरा प्रण तो तू ही पूरा करवा सकता है। लड़के ने कहा कि माँ तू मेरे ऊपर भरोसा रख, तेरी प्रतिज्ञा पूरी कराके ही चैन लूँगा ।

उसके पश्चात् उस लड़के ने कुछ आवश्यक सामान लिया और घोड़े पर सवार होकर चल दिया । उसे अपने पिता के राज्य की अपनी माँ से जानकारी मिल ही गई थी। पिता से प्रतिशोध लेने का निश्चय करके बौखलाया हुआ सा घर से निकल पड़ा ? उस राज्य की सीमा पर आ गया। रास्ते में एक स्त्री पानी भरने जा रही थी । उसके पीछे उसका छोटा बच्चा आ रहा था, वह स्त्री बच्चों को कह रही थी कि बेटा लौट जाओ, नहीं तो बाबा कान काट लेगा।

यह लड़का वहाँ से निकला तो उसने स्त्री की बात सुन ली। बच्चे के पास आकर उसने बच्चे की माँ से पूछा कि बगो के कान काटलूँ । उस बेचारी को क्या पता था कि यह बावला सचमुच में ही कान काट देगा। पूछे जाने पर उसने हाँ कह दी तो सचमुच में ही उसने बच्चे के कान काट लिये और आगे बढ़ गया। आगे चलकर उसे एक मिठाई की दुकान दिखी, उसमें कई तरह की मिठाइयाँ रखी देखीं।

परदेशी ने दुकानदार को एक मीठे की तरफ इशारा करके पूछा- यह क्या है? दुकानदार बोला- खाजा, उसका इतना कहना था कि उसने मीठा खाना शुरू कर दिया। भरपेट खाकर वहाँ से चलने लगा, तब दुकानदार ने पैसे मांगे तो उसने जवाब दिया कि आपने ही कहा था, खा जा सो मैंने खा लिया। आगे चला तो एक जगह बुढ़िया सूत कात रही थी उस बुढ़िया ने परदेसी से पूछा कि बेटा कहाँ से आ रहे हो, उसने जवाब दिया कि लंका से, बुढ़िया ने पूछा कि बेटा लंका कैसे जली? रावण कैसे मरा?

तो युवक ने बुढ़िया की झोपड़ी में आग लगा दी कहा कि लंका ऐसे जली, फिर बुढ़िया को घसीटकर कहने लगा कि रावण ऐसे मरा । वह जुनूनी बालक बुढ़िया को छोड़कर आगे चल दिया। कुछ समय पश्चात् वह अपने पिता महाराज के महल के सामने पहुँच गया। वह सीधा बाग के माली के घर पहुँचा तथा मालिन से रूकने के लिए कहने लगा, तो मालिन ने मना कर दिया । इस पर इसने एक मुहर उसे दी तो मालिन ने कहा कि रूक जाओ।

वह मालिन को प्रतिदिन एक मुहर देने लगा । मालिन ने सोचा कि अपना क्या जाता है, रूका रहे। इसने चुपके से मालिन से मिलकर पहले अपने पिता को देखा तो हूबहू दोनों हमशक्ल ही थे। इसने सोचा कि चलो काम और भी आसान होगा। धीरे-धीरे उसने महल में घुसकर छोटी- मोटी चीजें चुरानी शुरू कर दीं, फिर बड़ी चोरियाँ होने लगीं।

इसने मालिन से मिलकर राजा की एक पोषाक भी चुरा ली थी। उसे पहनकर महल में बेधड़क जाता, नौकर-चाकर यही समझते कि महाराज ही हैं। धीरे-धीरे बात इतनी बढ़ गई कि खजाना खाली होने लगा । राजा को भी इसकी जानकारी मिली। सबने मिलकर उसे पकड़ने की योजना बना डाली । महल के रास्तों में रूपये, सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात आदि बिछा दिये गये तथा चारों तरफ सख्त पहरा लगा दिया गया कि जो भी नीचे झुककर कुछ उठाने की कोशिश करेगा, वही चोर होगा। अभी तक तो चोर अज्ञात ही था।

उस गुप्त योजना के बारे में मालिन ने कुँवर को बतला दिया । इधर इन्होंने अपने जूतों में कुछ इस तरह का पदार्थ लगा रखा था कि सभी वस्तुएँ उसमें चिपकती जातीं थीं। वह महाराज की पोशाक में चारों तरफ घूमता जा रहा था । इसी तरह से सारा सामान भी उसने एकत्रित कर लिया और पकड़ा भी नहीं जा सका। राजा ने सबको बुलाकर विचार-विमर्श किया कि चोर तो बड़ा शातिर है। हमारी योजना बनते ही वह समझ जाता है तथा चोरी भी बराबर होती है ।

राजा ने कहा कि दो बड़े ऊँट बुलवा लो, वह शातिर चोर उन्हें अगर चुरायेगा तो कहीं न कहीं तो पकड़ा ही जायेगा और यदि उन्हें मार भी डालेगा तो भी खून एवं उनके शव आदि से भी तो हम उसे पकड़ सकते हैं। दो ऊँट मंगवाकर छोड़े गये, इसने ऊँटों को चुराया और उन्हें मार डाला उसने मालिन के घर में ही मार डाला था।

इधर राजा के जासूस ढूँढते – ढूँढते मालिन के घर पहुँच गये, वहाँ पर खून का चिन्ह मिल गया और वे मालिन के घर के बाहर खून का ही निशान बनाकर चले गये। लड़के को जैसे ही उसकी जानकारी मिली तो उसने सारे घरों में उसी तरह के चिन्ह खून के लगा दिये।

सुबह जैसे ही राजा के जासूस घर की तलाशी को आये तो उन्होंने सारे घरों में एकसे चिन्ह देखे तो असमंजस में पड़ गये । रात्रि में लगाये निशान की सही परख न कर पाये । राजा को यह सुनकर बड़ा क्रोध आया। उन्होंने कहा कि अब मैं स्वयं ही चोर को पकडूंगा और वे उसे ढूँढने निकले। लड़के को जानकारी मिली तो उसने मालिन से कुछ चने तथा उन्हें दलने के लिए चक्की ले ली तथा बीच चौराहे पर वह चने दलने लगा।

राजा वहाँ से निकले तो उस लड़के से चोर के बारे में जानकारी ली उसने कहा कि वह चोर आगे की तरफ गया है । राजा उसके बताये रास्ते में गये तो उन्हें वहाँ चोर न मिला फिर लौट आये । पुन: पूछा तो उसने दूसरी दिशा में चोर के जाने की बात कही। राजा उस दिशा में गये, लेकिन चोर कहाँ से मिलता ।

इस तरह से उस लड़के ने राजा को चारों तरफ दौड़ा-दौड़ा कर थकवा दिया। राजा लौटे तो वह बोला कि आप परेशान न हों, यदि मेरी बात मानें तो आप अपनी पोशाक मुझे दे दें और आप मेरी पोशाक पहन लें। आप यह चर्ने दलें, मैं उसे ढूंढकर आपके समक्ष प्रस्तुत कर दूँगा। राजा ने उसकी बात मान ली।

वह राजा के कपड़े पहनकर मालिन के घर जाकर सोता रहा, दूसरे दिन उठकर वह राजा के दरबार में पहुँच गया तथा राजा से बोला कि – राजन मैं ही चोर हूँ । राजा को उसकी बात का भरोसा नहीं हुआ । उसने राजा का सारा चोरी किया माल-खजाना दे दिया। राजा के कारण पूछने पर उसने कहा कि मैंने अपनी माता की प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए यह सब किया था। लेकिन आज उनकी प्रतिज्ञा पूरी हुई। महाराज मैं आपका बेटा हूँ, सबूत के रूप में आपकी दी हुई कटार यह रही, उसने कटार दे दी।

फिर राजा को पुरानी बात का स्मरण करवा दिया कि आपने भी तो प्रतिज्ञा ली थी कि मेरी माँ को अधब्याही छोड़ेंगे तथा उन्होंने कहा था कि आपके जाये से चने दलवाऊँगी, उन्होंने भी करके दिखा दिया । राजा ने सारी स्थिति समझकर उस लड़के की माँ बुलवा लिया। उसके साथ शेष फेरे पूरे किये व सपत्नीक मय कुंवर के साथ-साथ रहने लगे। सो बेटा पूतगुलाखरी ये वही दो प्रण थे, जिनके बारे में तुमने मुझसे पूछा था । तुम्हारा अटका पूरा हुआ, अब सो जाओ, सुबह फिर सफर करना है।

डॉ ओमप्रकाश चौबे का जीवन परिचय 

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