Homeबुन्देलखण्ड के साहित्यकारPandit Gunsagar Sharma ‘Satyarthi’ पंडित गुणसागर शर्मा ‘सत्यार्थी’

Pandit Gunsagar Sharma ‘Satyarthi’ पंडित गुणसागर शर्मा ‘सत्यार्थी’

साहित्य तीर्थ चिरगांव जिला झांसी उत्तर प्रदेश में श्रावण शुक्ल एकादशी 1994 विक्रमी को जन्मे Pandit Gunsagar Sharma ‘Satyarthi’ को साहित्य संगीत एवं सांस्कृतिक विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी की वंश परंपरा से सहज ही प्राप्त हुई आपके पितामह श्री प्रेम बिहारी जी जो कि हिंदी जगत में मुंशी अजमेरी ‘प्रेम’ नाम से विश्रुत  है एक महान बहु आयामी साहित्यकार होने के साथ ही संगीतज्ञ और रंगकर्मी रहे।

वहीं पिता श्री गुलाब राय जी सुकवि एवं शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में कल्पनाशील रचना धर्मी के रूप में एकांत साधक रहे इस प्रकार गीत और संगीत अर्थात सुर और ताल इनके पीढ़ी दर पीढ़ी सैकड़ों वर्ष की वंश परंपरा की विशेषता रही है।

जन्म- 17 अगस्त 1937 चिरगांव, जिला झांसी उत्तर प्रदेश
पिता- संगीत नायक संत कवि पंडित गुलाब राय जी
माता- श्रीमती इमरती देवी
पितामह- स्वर्गीय प्रेम बिहारी जी मुंशी अजमेरी
सहधर्मिणी- श्रीमती मणि कंचन शर्मा
संतति- अल्पना (पुत्री) कलश, ज्योति (पुत्र) देव विनायक, रुद्रांग, ऋषिकेश (पौत्र)
कुल- वशिष्ठ गोत्र आदि गौड़ ब्राह्मण
शिक्षा-  हिंदी में स्नातकोत्तर, डिप्लोमा इन बेसिक एजुकेशन
संरक्षक एवं मार्गदर्शक- “बुंदेली झलक” (बुंदेली लोक कला, संस्कृति और साहित्य को समर्पित)

सत्ययर्थी जी का निधन 8 फरवरी 2023 दिन बुधवार फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष तृतीया को भोपाल मे हुआ । 
बुन्देली माटी  के लाल -साहित्यकार
सच्चे अर्थों में सत्यार्थी  जी  एक सुदीर्घ विरासत के उल्लेखनीय पोषक हैं। लोगों को यह भ्रम है कि गुण सागर शर्मा “सत्यार्थी” एक कवि अथवा साहित्यकार है कविता लिखना या साहित्य की किसी अन्य विधाओं में लेखन करना उनकी नियति नहीं अतिरिक्त रुचिकर गतिविधियां हैं।

सत्यार्थी जी कहते हैं कि  मूलतः मैं तो अपने आप को आज भी एक चित्रकार अथवा चित्रकला का विद्यार्थी समझता हूं जब की आयु की इस सांध्य बेला में शारीरिक क्षमता जवाब दे रहे हैं किंतु मेरे भीतर जो चित्रकार रूपी बीज मेरी बाल्यअवस्था में ही अंकुरित हो गया था वह सूखा नहीं है। जिस प्रकार पतझड़ के पश्चात वृक्ष की सूखी दिखने वाली शाखाओं पर हरितरंग की कोपलें फूटने लगती हैं वैसे ही मेरे भीतर का चित्रकार भी……..।

जिस समय विवाह हुआ था तब पं. गुणसागर शर्मा ‘सत्यार्थी’ जी की पहचान सिर्फ एक चित्रकार के रूप में ही थी। मैं किसी भी व्यक्ति को सम्मुख बैठाकर तीन से सात मिनट के भीतर उसका रेखाचिन बनाकर उसे भेंट कर देता था । मेरी इस आदत से मेरी धर्म पत्नी स्मृति शेष मणिकंचन शर्मा बेहद प्रसन्न होती थीं और स्वयं में गर्व करती थीं कि वे एक ऐसे चित्रकार की भार्या हैं ।

पं. गुणसागर शर्मा ‘सत्यार्थी’ जी ने धीरे-धीरे लिखने का शौक लगा और कविता, कहानी, लेखादि लिखने लगा । जिससे काफी शोहरत बढ़ी साथ ही लेखकीय स्वरूप बुन्देलखण्ड के लोक जीवन के प्रति समर्पित था मेरी आँखों में बचपन में देखे हुए वे अनेक परिदृश्य चलचित्र की भांति तीब्र गति से उभरने लगे जो विलुप्त होती लोक परम्परा की जीवन्त तस्वीरें थी।

सत्यार्थी जी ने निःसन्देह युवाकाल की धुंधलाती जा रही स्मृतियों में डूबकर लोकजीवन को रंगों के माध्यम से न केवल पुनर्जीवित किया है । बुंदेलखण्ड के इस मनमोहक लोक-रूपांकन को, बुन्देली लोक जीवन के चितेरे श्री गुणसागर जी ने इसकी लोक सम्मत मौलिकता को सहेजते हुए अपनी विशिष्ट शैली में खूबसूरती से प्रस्तुत किया है ।

सृजन की विधा- बुंदेली खड़ी बोली और डिंगल (राजस्थानी) में काव्य बुंदेली में गीत नाटक (ओपेरा) शोध निबंध, ललित निबंध और जीवनियां, रेडियो वार्ता, रेडियो रूपक, संगीत रूपक,  वृत्तचित्र हेतु आलेख,  लेखन,  गीत काव्य (रेडियो एवं फिल्म हेतु)  बाल साहित्य एवं फेंटेसी अनुवाद एवं भाषांतरण कार्य,  कहानी, उपन्यास,  नाटक लेखन (बुंदेली एवं खड़ी बोली में) चित्र कथा कार्टून चित्र कला आदि।

उपलब्धियाँ – पं. गुणसागर शर्मा “सत्यार्थी”  को उनकी अनवरत साधना के फलस्वरूप मान-सम्मान एवं प्रशस्ति पत्रों के साथ उपाधियों, अलंकरणों से विभूषित किया जा चुका है।

बुन्देली पुरस्कार-  (1970, बुन्देलीवार्ता शोध संस्थान गुरसरांय)
केशव पुरस्कार – (1987. ओरछा महोत्सव समिति द्वारा)
बुन्देल बन्धु अलंकरण-  (1975, जालौन जिला साहित्यकार परिषद )
बुन्देली बागीश अलंकरण-  (1984, बुन्देली साहित्य परिषद, समथर)
मनुश्री अलंकरण- (1994, चम्पा स्मृति व्याख्यान माला एवं अभिनन्दन समारोह समिति,वैरसिया)

सांदीपनि श्री अलंकरण-  (राष्ट्रीय चेतना समिति दतिया से)
साहित्यवारिधि उपाधि-  (1997,हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग)
साहित्य मार्तण्ड अलंकरण- (1998 नवोदित साहित्य परिषद ललितपुर)
मानस मृगेश मान-  (1999,मानस मृगेश पुस्तकालय सेवढ़ा)
राष्ट्रीय लोक साहित्य सम्मान-  (2001, गुंजन कला सदन जबलपुर)
राव बहादुर सिंह सम्मान-  (महामहिम । राज्यपाल म.प्र.)
जीवनमल नाहटा सम्मान- (महामहिम राज्यपाल गुजरात)
शिक्षक- शिक्षा के क्षेत्र में राज्य स्तरीय उत्कृष्टता सम्मान- (1998, महामहिम। राज्यपाल म.प्र.)
राष्ट्रीय शिक्षाविद सम्मान-  (2012, गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान नई दिल्ली मे डॉ. एस.एन. सुब्बाराव द्वारा।)

इसके साथ ही अन्य उपलब्धियों में डॉ. श्रीमती सरोज गुप्ता के निर्देशन में डॉ. हरीसिह गौर विश्वविद्यालय सागर (म.प्र.) द्वारा साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पं. गुणसागर शर्मा “सत्यार्थी के “साहित्य का अनुशीलन” विषय पर शोधार्थी रघुनाथ गड़रिया द्वारा शोध प्रबन्ध लिखा गया और “सत्यार्थी जी के बुन्देली काव्य में संगीत पक्ष”  विषय पर शोधार्थी गरिमा श्रीवास्तव द्वारा शोध-प्रबन्ध लिखा गया। दोनों की पी.एच.डी. पूर्ण हो चुकी हैं।
विशेष उपलब्धि-  वर्ष 2016 का मध्य प्रदेश शासन का अखिल भारतीय राजा वीरसिंह जूदेव पुरस्कार जिसे हरियाणा के महामहिम राज्यपाल श्री कप्तान सिंह सोलंकी द्वारा दिया गया।
ओरछा नरेश महाराजा वीरसिंहज देव (द्वितीय) ने 1934 में इसकी  स्थापना भारत के सर्वोच्च  हिंदी साहित्य पुरूस्कार के रूप में की थी। उसी ओरछा की अनूठी नायिका पर लिखे उपन्यास “एक थी राय प्रवीण” पर इस पुरूस्कार का मिलना बुंदेलखंड के लिये गौरव की बात है।

सत्यार्थी  सृजन
बच्चे गाएँ गाँधी गाथा – राष्ट्रपिता महात्मा गांधी – बालोपयोगी कथा काव्य (प्रकाशित) बापू के जीवन की छोटी -बड़ी घटनाओं के माध्यम से ऐसा मोहक एवं प्रेरक चितांकन किया है कि वह बच्चों के हृदय पर सहज ही अंकित हो जाएगा। महात्मा गाँधी को इसी शैली और भाषा द्वारा ही किशोरों तक पहुंचाया जा सकता था।

प्राचीन तपोस्थली-कुण्डेश्वर – शोध ग्रन्थ (प्रकाशित) प्रकाशक – कुण्डेश्वर मन्दिर ट्रस्ट   एक थी राय प्रवीण –  उपन्यास (प्रकाशित) प्रकाशक – नेशनल पब्लिशिंग हाउस दरियागंज, दिल्ली। मध्यकाल की एक बहुचर्चित सर्वकला प्रवीणा, ओरछा राज्य के कार्यकारी नरेश इन्द्रजीत सिंह की उपपत्नी राय प्रवीण पर केन्द्रित आपका प्रकाशित उपन्यास “एक थी राय प्रवीण” साहित्यकारों द्वारा ही नहीं, इतिहासकारों द्वारा भी सराहा जा रहा है।

आओ गाएँ राम गुण गाथा – बाल रामायण (प्रकाशित) प्रकाशक – सरस्वती साहित्य संस्थान इलाहाबाद। राम के जीवन की कहानी श्रीराम के मुख से बच्चों के लिए सरल भाषा में है। बुन्देली भाषा साहित्य के महाप्राण ईसुरी-  (प्रकाशित) प्रकाशक – सत्येन्द्र प्रकाशन, इलाहाबाद। ईसुरी को समझने और जानने के लिए सक्षिप्त में विशेष जानकारी गागर में सागर है ।

गहरे पानी पैठ – शोध निबन्ध संकलन (अप्रकाशित)
लीक से हटकर- शोध निबन्ध संकलन (अप्रकाशित), इन दोनों संकलन में उनके लिखे हुए वे निबन्ध हैं जो समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे है। अत्यन्त महत्वपूर्ण शोध निबन्ध – बुन्देलखण्ड की लोक-कला, लोक-साहित्य, लोक संस्कृति, लोक-संगीत और बुन्देली भाषा पर।

पुण्य स्मरण जीवनियाँ/ रेखाचित्र- (अप्रकाशित)
बुन्देलखण्ड की विस्मृत लोक परम्परा पंडवा- शोध ग्रन्थ (अप्रकाशित)
रीछ के गोड़े – बुन्देली कहानी संकलन (अप्रकाशित)
ऐसें ऐसें – भाग-1 पंचतंत्र बुन्देली में (अप्रकाशित)
ऐसें ऐसें – भाग –2 बुन्देली में जातक कथाएँ (अप्रकाशित)
गाथा हिन्द स्वराज की – छन्दोबद्ध आजादी का इतिहास (अप्रकाशित)
सिंहावलोकन-आत्मकथा-  (अप्रकाशित)
कवितांजलि पिता की छन्दोवन्द जीवनी (अप्रकाशित)
सुनो कहानी एक पुरानी – छन्दोवद्ध कहानियाँ (अप्रकाशित)
बेतवा कौ पानी- बुन्देली में नाटक संकलन (अप्रकाशित)
रंग फुआरौ – बुन्देली फाग संकलन (अप्रकाशित)

सत्यार्थी जी ईसुरी को आदर्श कवि मानते हैं, अतः ईसुरी को आदर्श मान बुन्देली चौकड़िया फागें लिखना प्रारम्भ किया। ‘रंग फुआरौ’ बुन्देली चौकड़िया का संकलन उनके भावाभिव्यक्तिकरण श्रृंखला की प्रथम कडी है। इस संकलन में कवि की श्रंगार रस से ओत-प्रोत बुन्देली रचनाएँ संकलित हैं।

विशेषता यह है कि- ईसुरी की देशकाल-परिस्थितियों में और श्री सत्यार्थी जी के देश-काल में सौ वर्ष का अन्तराल है। अतः उन्होंने मात्र भाषा और छन्द ही ईसुरी से लिया है। जबकि अभिव्यक्ति वर्तमान देश-काल परिस्थितियों के यथानुसार है अभिधा से ऊपर प्रतीकवाद इत्यादि प्रयोग इस संकलन में विशेष उल्लेखनीय हैं।

गुन गुन – स्फुट कविता संकलन (अप्रकाशित), इस संकलन में शुद्ध खड़ी बोली में स्फुट कविताएँ हैं, कुछ मुक्तक, वन्दना के स्वर आदि।

उफनत दूध- बुन्देली में प्रयोगवादी नई कविताएँ (अप्रकाशित), बुन्देली को साहित्यिक भाषा रूप में संस्कारित करके उसमें भाषायी गुणवत्ता की आभा उत्पन्न करने की दिशा में एक नया प्रयास, बुन्देली को साहित्यिक भाषा की पहचान मिले। अतः इस संकलन उनकी प्रयोगवादी बुन्देली कविताओं की बानगी है।

बौराया फागुन – खड़ी बोली में सरस गीतों का संकलन (अप्रकाशित), इस संकलन में खड़ी बोली में गीत हैं। इनमें से कुछ गीत रेडियो पर कलाकारों के स्वर में संगीतबद्ध रूप में गाये गयें। कुछ टीवी पर भी फिल्माए गये। 

कुकरा की बाँग – बुन्देली नवगीत संकलन (अप्रकाशित), इस संकलन ने बुन्देली को लीक से हटकर नई ऊंचाइयाँ दी।

मेघदूत – बुन्देली में काव्यानुवाद (प्रकाशित), प्रथम प्रकाशन – कालिदास अकादमी उज्जैन (म.प्र.) 1986 में, द्वितीय संस्करण – विश्व के चुने हुए श्रेष्ठ अनुवादों के साथ वृहत ग्रंथ में 1993 में सर्वभाषा । “कालिदासीयम” जोधपुर (राजस्थान) द्वारा प्रकाशित । इसके द्वारा सत्यार्थी। जी की इस कृति से बुन्देली को पहली बार अन्तराष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक भाषा के रूप में मान्यता मिली। 

आऔ दिन सौने कौ – बुन्देली गीत नाट्य OPERA संकलन (अप्रकाशित), इस संकलन में बुन्देली गीत नाट्यों का संकलन है। इनमें से कुछ रेडियो पर प्रसारित भी हुए। इस संकलन ने बुन्देली का सामर्थ्य सिद्ध किया।

चाक पर घूमती जिन्दगी – रेडियो रूपक संकलन (अप्रकाशित), रेडियो पर प्रसारित हुए रूपक जिन्हें संकलित कर एक पुस्तक का आकार दिया।

चौखूटी दुनियाँ – फैण्टेसी (प्रकाशित), प्रकाशक – साहित्यवाणी इलाहाबाद, 1991 में। बाल साहित्य में सत्यार्थी जी की यह पहली कृति थी जो अत्यन्त सफल हुई। तत्पश्चात उन्हें बाल साहित्य लिखने की प्रेरणा मिली।

तीन खूट का गरम समोसा – बाल गीत संकलन (प्रकाशित), प्रकाशक – सत्येन्द्र प्रकाशन इलाहाबाद, 1992 में।

वनवास – काव्यानुवाद, (प्रकाशित), निवास प्रकाशक -बालभारती प्रकाशन इलाहाबाद 2003 में। यह गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टेगौर की कविता ‘वनवास’ का बांग्ला से खड़ी बोली में सरल सुबोध बच्चों के स्तर पर काव्यानुवाद है।

नाव चली- रूसी चित्रकथा का बुन्देली अनुवाद (प्रकाशित), प्रकाशक – एकलव्य पाल (म.प्र.)

चुखरा को मिली कलम- रूसी चित्रकथा बुंदेली मे अनूदित (प्रकाशित) प्रकाशक – एकलव्य भोपाल (म.प्र.)।

सबसे बड़ा कौन –  चित्रकथा (प्रकाशित) प्रकाशक राज्य संसाधन केन्द्र, इन्दौर। चुहिया की  करामात- चित्रकथा (प्रकाशित) प्रकाशक- अभिव्यक्ति संसाधन केन्द्र भोपाल।

रामायण-बाल महाकाव्य – संयुक्त लेखन (प्रकाशित), प्रकाशक जे.पी.ग्राम विकास संस्थान इलाहाबाद। यह कृति  सत्यार्थी जी ने अपने पितामह द्वारा रचित अपूर्ण ‘बाल रामायण’ के डेढ़ काण्ड को इस प्रकार पूर्णता प्रदान की कि इनके द्वारा रचित शेष साढ़े पाँच काण्ड ऐसे लगते हैं मानो पितामह ने इनके अन्दर अज्ञात प्रवेश कर स्वयं लिखे हों। सत्यार्थी जी ने खडी बोली पद्य में संक्षिप्त महाभारत की रचना की है।

बाल महाभारत – बाल महाकाव्य (प्रकाशित), प्रकाशक – अल्पना प्रकाशन।

लोगों को यह भ्रम है कि श्री गुण सागर शर्मा “सत्यार्थी” एक कवि अथवा साहित्यकार है कविता लिखना या साहित्य की किसी अन्य विधाओं में लेखन करना उनकी नियति ही नहीं अतिरिक्त रुचिकर गतिविधियां हैं। सत्यार्थी जी कहते हैं कि  मूलतः मैं तो अपने आप को आज भी एक चित्रकार अथवा चित्रकला का विद्यार्थी समझता हूं जब की आयु की इस सांध्य बेला में शारीरिक क्षमता जवाब दे रहे हैं किंतु मेरे भीतर जो चित्रकार रूपी बीज मेरी बाल्यअवस्था में ही अंकुरित हो गया था वह सूखा नहीं है। जिस प्रकार पतझड़ के पश्चात वृक्ष की सूखी दिखने वाली शाखाओं पर हरितरंग की कोपलें फूटने लगती हैं वैसे ही मेरे भीतर का चित्रकार भी।

सत्यार्थी जी द्वारा “विरासत” बुंदेलखंड की नाम की पुस्तक मे बुंदेली संस्कृति की झलकियां चित्रों के रूप में उकेरी गई हैं कुछ ऐसी परंपराएं जो विलुप्त हो गई हैं उन्हें सत्यार्थी जी ने अपनी बाल स्मृति के आधार पर अंकित किया है। यह पुस्तक प्रकाशित भी हो चुकी है। इस चित्रकला पुस्तक में सत्यार्थी जी ने बुंदेलखंड की व्रत, त्यौहार, संस्कृति, नृत्य आदि के चित्र स्वयं बनाए।

Pandit Gunsagar Sharma ‘Satyarthi’ Pandit Gunsagar Sharma ‘Satyarthi’ Pandit Gunsagar Sharma ‘Satyarthi’

सम्पादन-
मुन्शी अजमेरी श्रद्धांजलि ग्रंथ 1966
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त श्रद्धांजलि अंक 1966
राज्य स्तरीय स्काउट गाइड रैली आगर की स्मारिका 1971
स्व. मुन्शी अजमेरी जन्मशती स्मारिका 1981
ओनामासी (साक्षरता गीत संकलन)। 1993
पं. बनारसीदास चतुर्वेदी : शताब्दी स्मरण 1994 (सहसम्पादन)
बुन्देलखण्ड प्रकृति और पुरुष (सह सम्पादन)
पं. कृष्ण किशोर द्विवेदी अभिनन्दन ग्रंथ (सह सम्पादन)

म.प्र. की शैक्षिक पत्रिका ‘पलाश’ में (सह सम्पादक रहे)
अन्य प्रकाशन एवं प्रसारण – स्थानीय, प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन…
आकाशवाणी के लखनऊ, भोपाल, ग्वालियर अम्बिकापुर, गोरखपुर, रोहतक, बालाघाट और उदयपुर केन्द्रों से समय-समय पर प्रसारण । आकाशवाणी के अनुबंधित गीतकार हैं। दूरदर्शन के लखनऊ, भोपाल, जयपुर और दिल्ली केन्द्रों से प्रसारण।

वृत्तचित्र – गोरेलाल, नौरता के आलेख लेखन के अलावा वृत्तचित्र – डॉ. एस.एन. सुब्बाराव में गीतकार के रूप में योगदान।
फीचर फिल्म – रक्त चन्दन मे कला निर्देशन । ” बुन्देली नाटकों का प्रदेश” में यत्र-तत्र पाहुना मंच एवं इप्टा द्वारा सफल मंचन हुआ।


बरबै छंद (प्रारोषित पतिका नायिका)
कमल सरीखे लीले चंचल नैन।
असुवा बै रये जिनसैं, दिन अरु रैन।।

बिंब फलन से उनके अधरन लाल।
उन असुवन सैं, गीले हो रये गाल।

ई मौका जिनके पिया न पास।
कीसैं कबैं विचारी, रतीं निराश।।

कर कर खबर पियन की रोजऊ रोय।
कीके संगै सुख की, निदियन सोय।।

नील कमल के समान जिनके चंचल नेत्र हैं। उन नेत्रों से रात-दिन अश्रु बह रहे हैं। उनके अधर कुंदरु (रक्तफल) के समान लाल रंग के हैं। उनके अश्रु-जन से दोनों गाल गीले हो रहे हैं। इस अवसर पर उनके प्रियतम पास में नहीं है। वह अपने मन की बात कहे, अतः उदास रहती है। पति के बिना आनंद की नींद कैसे संभव है अतः पति की याद में नित्य रोती रहती है।

चौपई छद
‘कमलन कैसे कोरे हात, चम्पा कैसो पीरौ गात।
उनकी उम्दा मुइयाँ होत, चंदा की फीकी भई जोत

जितै जितै हुन कड़ती जाय, फूल सरीसो तन माँकाय
धरें पिया हातन पै हात, कैसी घुर घुर कर रई बात।

तिरियँन के मन चुलबुल होंय, कब प्रीतम के संगै सोय।
मनई मनई मन हँसत दिखाय, भौगी चाली भीतर जाय।।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

शोध एवं आलेख – डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)

 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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2 COMMENTS

  1. आदरणीय श्री गुणसागर सत्यार्थी बब्बा जी सच में श्रेष्ठ साहित्यकार और कलाकार हैं। उनकी सहजता प्रणम्य है।मन कहता है कि उनसे बार बार मिला जाए और सीखा जाए। प्रणाम बब्बा जी

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