Homeबुन्देलखण्ड की लोक संस्कृतिNature of the village गाँव का स्वरूप

Nature of the village गाँव का स्वरूप

गाँव का स्वरूप Nature of the village अनेक पहलुओं से मिलकर बनता है, और यह भारत जैसे विविधताओं वाले देश में विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। यहाँ कुछ मुख्य बिंदु हैं जो गाँव के स्वरूप को स्पष्ट करते हैं:

 भौगोलिक विशेषताएँ: गाँव आमतौर पर शहरों की तुलना में अधिक प्राकृतिक और हरे-भरे होते हैं। यहाँ खेत, बाग-बगीचे, तालाब और पेड़-पौधे अधिक होते हैं।

 आर्थिक गतिविधियाँ: गाँव की आर्थिक गतिविधियाँ मुख्यतः कृषि पर आधारित होती हैं। किसान फसल उगाते हैं और मवेशियों की देखभाल करते हैं। इसके अलावा, ग्रामीण उद्योग जैसे हस्तशिल्प, मिट्टी के बर्तन, और स्थानीय व्यापार भी महत्वपूर्ण होते हैं।

 संस्कृति और परंपरा: गाँव की संस्कृति स्थानीय परंपराओं, त्यौहारों, और सामाजिक मान्यताओं पर आधारित होती है। यहाँ के लोग पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं और लोकगीत, नृत्य, और मेलों में भाग लेते हैं।

 सामाजिक संरचना: गाँव में सामाजिक ढाँचा पारंपरिक होता है। यहाँ अक्सर जाति, परिवार और बिरादरी आधारित समाज होता है। निर्णय लेने की प्रक्रिया में बुजुर्गों और ग्राम पंचायत का महत्वपूर्ण रोल होता है।

 सुविधाएँ और सेवाएँ: गाँवों में आमतौर पर शहरों की तरह आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं। लेकिन, हाल के वर्षों में विकास ने स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, और सड़क जैसे आधारभूत ढाँचे में सुधार किया है।

 पर्यावरणीय पहलू: गाँवों में प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग और संरक्षण होता है। जलवायु, मृदा की उर्वरता और वनस्पति का गाँव की कृषि और जीवनशैली पर गहरा असर होता है। प्रत्येक गाँव में पीपल, बरगद, जामुन, नीम, आंवला एवं बांस का बगीचा होना अति आवश्यक है।  

गाँव का स्वरूप समय के साथ बदल सकता है, लेकिन इसकी जड़ें और परंपराएँ इसे एक विशेष पहचान देती हैं।

आवश्यक परियोजना :
हर गाँव में एक लोक दल (संगठन) हो जो गाँव के बच्चों और युवाओं को स्वास्थ के प्रति जागरूक करे, लोक पर्वों को प्रोत्साहित करे और सुचारूप से चला सके ताकि शिक्षा और संस्कृति का विकास हो सके ।  प्रत्येक गाँव मे वाचनालय ,पुस्तकालयव्यायामशाला की व्यवस्था होनी चाहिए।

बुन्देलखण्ड का मार्शल आर्ट – दिवारी , पाईडण्डा, अखाड़ा आदि 

ग्रामीण खेल – कबड्डी , खो-खो , चपेटा, सोलह गोटी, गिल्ली-डंडा, कंचा-गोली, लंगड़ी टांग, छुपन-छुपाई, आंख-मिंचउव्वल (आंख-मिचौली), पुतरा-पुतरियां, पिट्टू, काना-दुआ, रस्सी कूदना, गिप्पी, चोर-सिपाही  आदि 

ग्रामीण लोक पर्व – नौरता – सुआटा , झींजिया, मामुलिया, टेसू , ओत-बोत, कार्तिक स्नान आदि 

लोक विज्ञान: यह कहना अनुचित नहीं होगा की हमारी जो भी परंपराएं हैं वह लोक विज्ञान पर ही आधारित है इनकी प्रमाणिकता के दस्तावेज हमारे पूर्वजों ने लिखित रूप में नहीं रख सके। यह सब मौखिक परंपरा पर आधारित हैं और मौखिक ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते रहे हैं। आदिकाल से ही इसकी कोई पांडुलिपि नहीं बनाई गई और कुछ पांडुलिपि बनी वे या तो नष्ट हो गई या नष्ट कर दी गई।  अगर आज इनकी प्रमाणिकता वैज्ञानिक आधार पर शोध किया जाए तो यह 100% कसौटी पर खरे होंगे।

यह दुर्भाग्य रहा है कि आज तक हमने अपने इस लोक विज्ञान को सहेज नहीं सके और नया ही इसकी कोई पांडुलिपि बना सके।  लेकिन आज भी दूरदराज गांव में बुजुर्गों की वह आखिरी पीढ़ी बची हुई है जिनके पास इनकी प्रामाणिकता  के कुछ पुख्ता सबूत है अगर समय रहते उन बुजुर्गों से लोक विज्ञान और उनसे जुड़ी परंपराओं के बारे मे जानकारी लेकर दस्तावेज बना लिए जाएं तो बहुत बेहतर होगा।

लोक विज्ञान की अवधारणा 

संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल

बुन्देली का स्वरूप और विशेषताएं 

 

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!