मानुस कबै-कबै फिर होने, रजऊ बोल लो नौनें।
चलती बैरां प्रान छोड़ दए, की के संगे कौनें।
जियत-जियत को सबकोउ, सबको मरे घरी भर रौनें ।
होजें और जनम खां बातें, पाव न ऐसी जोनें।
हंड़िया हात परत न ईसुर, आवै सीत टटौनें।
महाकवि ईसुरी ने कहा है कि आदमी को समाज में अपने बोल चाल एवं कार्य व्यवहार का ध्यान रखना चाहिए। वाणी में मधुरता लाने की जो शिक्षा दी गई है, उसका सदा पालन करना चाहिए। ईसुरी ने मनुष्य शरीर की क्षणभंगुरता को बडे़ आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करते हुए कहा है।