खजुराहो के मन्दिरों में Khajuraho Mandir-Shringar Aur Kamkrida नारी सौन्दर्य को इस प्रकार दर्शाया गया है कि वर्तमान आधुनिक एवं पाश्चात्य सभ्यता भी इस कामुक दर्शन को देखकर धूमिल व रस हीन लगती है। वास्तव में उन शिल्पियों की साधना, उत्साह एवं धैर्य का ही परिणाम है कि उनकी छैनी हथौड़ी से पत्थरों पर भव्य विशाल एवं सुन्दर मूर्तियां बन गई हैं।
खजुराहो के मन्दिरों में मैथुन मूर्तियां हमेशा ही दर्शकों को चौंकाती रही हैं। काम जीवन की मुख्यतम वृत्ति है। यहां मन्दिरों में मोहिनीकरण, वशीकरण एवं उच्चारण आदि का विभिन्न रूपों में चित्रण किया गया है। तत्कालीन समय में नारी का समाज में अहम् स्थान रहा है। वह घर के काम के अलावा पुरुषों का हर हालत में साथ देती थी उन्हें लज्जा नहीं थी लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उस समय की स्त्रियां चरित्रहीन हों ।
यहां पर स्नान आदि से लेकर प्रत्येक अंग को सजाने संवारने प्रत्येक प्रकार के दृश्य दिखाये गये हैं। रूप और श्रृंगार के साथ ही स्त्रियों की भाव भंगिमाएं, अंग-प्रत्यंग विभिन्न मुद्राएं देखते ही बनती हैं एवं कलाकर की कल्पना जो सजीव लगती हैं एक अध्ययन का विषय बन गई हैं। पुरुष के लिए खजुराहो के मन्दिरों में जो स्त्रियों का चित्रण हुआ है वह साधिका व साधक का है। उसमें स्त्री को साधिका के रूप में खुलकर अभिव्यक्त किया है। स्त्री की सहज लज्जा को दरकिनार कर उसके यौवन भार को बेकाबू होते दिखाया गया है।
यहां पर स्त्री अपने परमानन्द अवस्था में पुरुष में ही समा जाना चाहती है। पुरुष की इच्छा पर वह झुक गई है। वह इतना झुक गई है कि उसके अन्दर की अस्थियों का भी अस्तित्व ज्ञात नहीं होता। वह अपने अंतःपुर में यौवन की उल्लास तरंगों में खुलकर खेल रही है। वह इतनी आनन्दित है कि वह स्त्री की सहज लज्जा का भी ध्यान नहीं रख पाती है। यहां पर स्त्री पुरुष को आपस में ही एक-दूसरे की शरण में ही नहीं वरन् पशुओं के साथ भी सम्भोग का आनन्द लेते हुए दिखाया गया है एवं सामूहिक सम्भोग की क्रिया को भी बहुत ही सुन्दर ढंग से दर्शाया गया है।
विद्वानों के मन में हमेशा यह जिज्ञासा रही है कि ऐसी भोगपूर्ण मूर्तियां धार्मिक स्थानों पर दर्शाने का क्या औचित्य है? कुछ विद्वानों का मत है कि मूर्तियां एक समुदाय विशेष तांत्रिक (वाम मार्गी शाखा) के क्रिया-कलापों का चित्रण हैं। उनके अनुसार जिस प्रकार योग से मोक्ष की प्राप्ति होती है। उसी प्रकार भोग से मुनष्य जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भोग की इस क्रिया को धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पाठ की तरह सम्पन्न करते थे। उसी की अभिव्यक्ति इन मन्दिरों में मैथुन मूर्तियों के रूप में दर्शाई गई है।
कुछ विद्वान मानते हैं कि मन्दिरों के निमार्ण काल के समय अर्थ-धर्म-काम और मोक्ष की सिद्धी ही मनुष्य जीवन के परम लक्ष्य होते थे और इन्ही चारों का चित्रण किया गया है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार बिजली के प्रकोप से बचाने के लिए ही कामुक मूर्तियां मन्दिरों की दीवारों पर अंकित की गई हैं। उनके अनुसार बिजली की देवी ‘यामिनी’ जो कि अविवाहित है, मैथुन अथवा सम्भोग की मूर्तियों के कारण लज्जावश वह इनके पास नहीं आती। लेकिन पुरातत्व विभाग इस बात को नहीं मानता है। इसलिए उसने तड़ित चालक मन्दिरों में लगवा दिये हैं।
कुछ विद्वान इन मूर्तियों को योगियों की परीक्षा के लिए बनाई गई हैं कि नहीं वह उन्हें देखकर विचलित तो नहीं होते। कुछ विद्वान मैथुन मूर्तियों को जिसका उदाहरण कन्दरिया महादेव का एक पुरूष तीन स्त्री, चार मूर्तियों वाला दृश्य है, कुंडलनी योग शक्ति के रूप में मानते हैं। कुंडलनी शक्ति मां भगवती अथवा चित्त शक्ति है।
यह प्रचण्ड ऊर्जा प्रत्येक नर व नारी के मूलाधार चक्र में, सर्प की भांति कुंडली मारे हुए सुप्तावस्था में रहती है। असंयामी साधक को असावधानी के साथ इस शक्ति को जाग्रत करने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। कुंडलनी नीचे की ओर प्रवृत्त होकर भोग-वासना को बढ़ा सकती है। इस प्रकार एक साधक अपनी शक्ति को ऊपर की ओर प्रवृत्त करने में लगा हुआ है जो कि शीर्षासन की मुद्रा में है।
कुछ विद्वान इसे बुरी तरह नजर से बचाने के लिए इन मैथुन मूर्तियों को मन्दिरों की दीवारों को बड़े ही रोचक एवं सुन्दर ढंग से सजाया गया है। जिस प्रकार एक स्त्री अपने बच्चे को बुरी नजर से बचाने के लिए काजल चेहरे पर लगा देती है। सत्य जो भी हो लेकिन लक्ष्मण मन्दिर एवं विश्वनाथ मन्दिर में तांत्रिकों द्वारा धार्मिक अनुष्ठान के तौर पर इनका प्रयोग दर्शाते हैं।
कामसूत्र के सिद्धांत के अनुसार आलिंगनों की भी प्रधानता कुछ मन्दिरों में दिखाई देती है जैसे चित्रगुप्त, जगदम्बा, वामन मन्दिर में कुछ इसी प्रकार के दृश्य हैं। भारत वर्ष के अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान एवं कर्नाटक आदि में भी मन्दिरों में इस प्रकार के दृश्य देखने को मिलते हैं। उड़ीसा में कोणार्क के सूर्य मन्दिर में कुछ अधिकता से शिल्पकारों ने बहुत मार्मिक ढंग से चित्रण किया हुआ है।
जितनी प्रचुरता, प्रधानता विस्तारपूर्वक शिल्प विविधता प्रचुर मात्रा में खजुराहो में दिखाई है उतनी शायद अन्यत्र देखने को नहीं मिलती है। प्रभाव की दृष्टि से यह काम उत्तेजक नहीं है बल्कि मैथुन करने के विभिन्न सिद्धांतों के चित्रण होने के कारण ज्ञानवर्धक है विभेद एवं विस्मयकारी दृश्यों से पर्यटकों में काम कला के प्रति सहज ही अन्वेषण करने की प्रेरणा देता है।