किला चौक के भवानी पार्क में बिहारी लोहार और जगन्नाथ बढ़ई बैठे बातें कर रहे थे । लुहार कह रहा था कि तुमने अभी मेरा काम देखा ही कहाँ है, देखते ही दाँतों तले ऊगली दबाँते रह जाओगे। दूसरा कारीगर बढ़ई था जो Kath Ka Ghoda काठ का घोड़ा बनाता था, वह बोला तुम मेरा मुकाबला कर ही नहीं पाओगे, और दोनों लड़ने लगे इतने में ही एक जगदीश नामक सिपाही आया उसने उन दोनों से कहा कि इतनी देर रात तक तुम पार्क में क्यों बैठे हो और वह निकट बने कारागर में उन दोनों को बंद कर देता है पुलिस उन दोनों को चोर समझ कर बन्दी बनाए रही ।
सुबह ही राजा के समीप उन दोनों को लाया गया। राजा ने दोनों से लड़ाई का कारण पूछा दोनों ने अपनी-अपनी योग्यता की बढ़ाई की। राजा ने कहा तुम दोनों अपना-अपना कार्य करके दिखाओ। जिसका कार्य सर्व श्रेष्ठ होगा हम उसे सम्मानित करेंगे । दूसरे ही दिन दोनों कलाकार राजा के समीप सभा में उपस्थित हुए। सबसे पहले बिहारी लुहार ने अपना करिश्मा दिखाया और उसने आग्रह किया कि सभी सभासद लाला के ताल पर चलें। राजा ने उसका आग्रह स्वीकार कर ताल की ओर सभा सहित प्रस्थान किया।
लाला के ताल पर पहुचते ही बिहारी लुहार ने अपनी जेब में से एक लोहे की वस्तु निकाली और उसके पुर्त के पुर्त खुलते गये और एक मझोले किस्म की नौका बन गई। सभी को उसने उसमें बिठाया और उसको चलाते ही वह नाव मारुति कार की तरह भागने लगी। सभी को आश्चर्य था कि वह लकड़ी की बनी भी नहीं है फिर लोहे की नाव पानी में डूबी क्यों नहीं ? सभी खुश हो गये।
राजा ने कहा ठीक है ! अब बढ़ई को बुलाओ। बढ़ई ने भी अपना करिश्मा शुरु किया। बढ़ई बोला राज दरबार में ही अपना चमत्कार दिखाऊंगा। राजा की आज्ञा से दरबार में बढ़ई ने प्रवेश किया। और एक बड़ा थाल मंगवाया और थाल में एक पान का बीरा लगा हुआ उसमें रखा । उसके पश्चात एक काठ का घोड़ा जो मात्र एक हाथ भर का होगा उसमें रखा और सभा में घोषणा की, कि किसी में साहस हो तो आकर पान का बीड़ा मुह में दबाकर इस काठ के घोड़े पर बैठे ।
सभी ने मना कर दिया क्योंकि लोग जानते थे कि यह छोटे से काठ के घोड़ पर बैठने से वह टूट जाएगा और हम गिर जाएंगे राजा के कुंअर घनश्याम सिंह ने सोचा यह तो वीरत्व की परीक्षा है अगर घोड़े से गिर भी गए तो लोग समझगे कि घोड़ा तो लकड़ी का था ही उसे तो टूटना ही था उस पर जो बैठगा गिरेगा ही कुंअर घनश्याम सिंह बैठने को तैयार हुए। घोड़े पर कुंअर साहब बैठे और बढ़ई ने घोडी सिर पर लगी खूंटी को दाहिनी ओर घुमाया और घोडा एकदम हवा की तरह उडा। वायू मार्ग से घोड़ा हवा से भी तेज गति से चला जा रहा था।
कुंअर साहब घोड़ के रोकने का तरीका नहीं जानते थे। वह दो दिन तक लगातार उडते रहे फिर किसी तरह उन्हीं के हाथ से घोड़े के सिर पर लगी खडी को दबाते ही घोड़ा जंगल में एक संतरे के पेड़ पर रुक गया नीचे झरना बह रहा था राजा ने उतरकर वहीं पानी पिया और बैठ गया । उधर राजा साहब और सभासद दुखी हो रहे थे कि कुवर साहब कब आते हैं । राजा ने उस बढ़ई को कारागर में बंद कर दिया । चिता के कारण कई-कई दिनों तक खाना नहीं खाया।
कुअंर घनश्याम सिंह पेड़ पर चढ़कर घोड़े की खूटी दबाते ही गिर पड़े और एक समथर गाँव में रुके वहाँ के एक बगीचे में उन्होंने पाँच फूल से तुलने वाली एक राजकुमारी को देखा जिसका नाम सुनयना था। कुंअर ने देखा कि राजकुमारी बहुत सुन्दर है उनकी देह पर अनार जैसी लालिमा निखर रही रही थी। जो कुंअर के मन को लुभा गई।
रात्रि के समय कुंअर उस राजकुमारी के घर का पता लगाते हुए उसकी छत पर घोड़े सहित उतरे और उससे विवाह का प्रस्ताव रखा । और दोनों ने दूसरे दिन उस गाँव से भाग जाने की योजना बनाई और कुंअर रात्रि में यह वादा करके चले गए कि वह राजकुमारी सुनयना को लेने दूसरे दिन रात्रि में आऐगे लेकिन अगले ही दिन जब घोड़े से उड़कर जा रहे थे तब दीवान ने उन्हें जाते हुए देख लिया था ।
दीवान ने यह समाचार समथर नरेश को दिया। उन्होंने महल के चारों ओर सेना लगवा दी कि कल कोई भी व्यक्ति मेरी आज्ञा बगैर महल में न आए। लेकिन कुंअर घनश्याम सिंह अपने निश्चित समय पर रात्रि में घोड़े से सीधे छत पर उतरे और राजकुमारी को बिठाकर भाग गये । सारी सेना देखती रह गई समथर नरेश भी भौंचक्के बने दीवान की ओर देखते रहे।
उधर कुंअर घनश्याम सिंह के पिता बड़े चितित होकर दुबले हो गये थे तभी उनके मंत्री ने राजा को खबर दी कि राज कुमार एक राजकुमारी के संग लौट आए हैं। राजा के हृदय की साँसे पुनः महक गई । राजा अपने राजकुमार के गले लग गये और राजकुमार और उनकी नववधू ने राजा और रानी के चरणों को छुआ । राजा ने मंत्री से कहा जाओ । जगन्नाथ बढ़ई को बुलाकर सभा में उसके सम्मान की तैयारी करो और उसे एक लाख रुपये मेरी ओर से भेंट दी जाए। जगन्नाथ अपने करिश्में का सम्मान एवं धनराशि प्राप्त कर फूला न समाया।