जुबना नोकदार प्यारी के, बने बैसबारी के।
इनने रेजा इतने फारे, गोटा और जारी के।
चपेरात चोली के भीतर, नीचे रंग सारी के।
ईसुर कात बचन ना पावें, मसक लेव दारी के।
जुबना दए राम ने तोरें, सबकोई आवत दोरें।
आएं नहीं खांड़ के घुल्ला, पिएं लेत ना घोरें।
का भओ जात हात के फेरें, लएं लेत न टोरें।
पंछी पिए घटी न जातीं, ईसुर समुद्र हिलोरें।
राती बातन में भरमाएं, दबती नइयाँ छाएं।
आउन कातीं आईं नइयां कातीं थीं हम आएं।
किरिया करीं सामने परकें, कौल हजारन खाएं।
इतनी नन्नी रजऊ ईसुरी, बूढ़न कों भरमाएं।
महाकवि ईसुरी नायिका राग में डूबे लोगों के दिल की बातें उजागर करते हुए कहते हैं….।
दिन भर देबू करे दिखाई, जामें मन भर जाई।
लागी रहो पौर की चैखट, समझें रहे अबाई।
इन नैनन भर तुम्हें न देखें, हमें न आवे राई।
ईसुर तुम बिन ये जिन्दगानी,अब तो जिई न जाई।
महाकवि ईसुरी Mahakavi Isuri ने उपरोक्त फाग में कहा है कि हर नायक चाहता है कि उसकी नायिका उसकी आँखों के सामने रहे। वे कहते हैं कि नायक जब तक अपनी नायिका को जीभर के देख नहीं लेता है, तब तक उसके जी में चैन नहीं रहता है। यह ईसुरी के संयोग श्रृँगार रस की उत्कृष्टता का उदाहरण है।