इनकी बोलन भौतउ साजी, सुने होत मन राजी ।
कड़ते बोल कोकिला कैसे, दवा कौन खां माजी।
रोजउं-रोजउं हँसती रातीं, बोले से कओ आंजी।
ईसुर कभऊं काउ पै ना भई, मौं से ये इतराजी।
ऐसी हँस-हेरन मुनियां की, मौत भई दुनियां की।
बरबस जात मुठन ना पकरी, ना कांधे पनियां की।
डारे जात गरे में फांसी, गगर भरे पनियां की।
ईसुर पाप गठरिया बांधे, सिरजादी बनिया की।
पैरें छूटा कौन तरा के, भौजी संग हरा के।
अस कुसमाने कार विजाने, खुब रए गेर गराके।
डरवाये रेशम के गुरिया, बीच-बीच रह ताके।
ईसुर गरे गरो लेवे खां, गुलूबंद गजरा के।
नारी श्रृँगार में जितना महत्त्वपूर्ण स्थान गहनों-कपडों का है, उतना ही महत्त्व है गुदने का। महाकवि ईसुरी ने नारियों के गुदने Tetoos का भी बड़ी सुन्दरता के साथ वर्णन किया है। गुदना Tetoos लोकजीवन का पुराना व्यापक शौक है। ऐसी मान्यता है कि इसका प्रारंभ वात-व्याधि की चिकित्सा के रूप में हुआ।
बुन्देली जनजीवन में गुदने का व्यापक प्रचार है। ग्रामीण जनजीवन में गुदने Tetoos की अलग ही मान्यता है। इन्हें अनिवार्यता के रूप में स्वीकारा गया है। गुदना देह के विभिन्न अंगों में विभिन्न प्रकार से गोदे जाते हैं और महिलाएँ बड़ी रुचि के साथ गुदवाती हैं। नारियाँ अपने भाई- बहन तथा प्रिय के नाम भी अपने शरीर पर गुदवा लेती हैं। ईसुरी की फागों में भी गुदनों को देखिये।