फाग की गायन शैलियों में एक है, होरी की फाग Hori ki Fag जो होली के अवसर पर गायी जाती है। इन गीतों में राधा, कृष्ण और गोपियों द्वारा होली खेलने का वर्णन है। इस गीत में पुरूष वर्ग का समूह गायन होता है। एक कोई गायक फाग उठाता है, शेष उसे दुहराते हैं।
पहले इसे मध्य लय में गाते हैं, फिर धीरे-धीरे द्रुत में पहुँचते हैं और अंतिम चरण में फिर मध्य लय में आ जाते हैं। गीत का रस श्रृंगार और ताल दादरा रहता है। होरी की फाग में संगत करने वाले लोकवाद्य हैं- मृदंग, टिमकी, झाँझ। यह फाग क्षेत्रगत अंतर से पूरे बुंदेलखण्ड में गायी जाती है।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल