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Giddhpari गिद्धपरी-बुन्देलखण्ड की लोक कथा 

राजकुमार ने बैल को छोड़ दिया और जब गीध आया तो उसने गिद्धपरी को देने के लिये वचन ले लिया। गीध बेचारा घर आया और उसने गिद्धपरी Giddhpari को सारा हाल कह सुनाया। सुनकर उसने कहा कि तुम चिन्ता न करो। मैं सब ठीक कर लूँगी।

 किसी नगर में एक राजा रहता था। उसके चार बेटे थे और एक रानी। राजा बहुत अच्छा  था और प्रजा उससे खुश थी। एक दिन की बात है कि राज्य में एक दानव आ गया। दानव क्या था, आफत थी। जिसे पकड़ पाता, पेट में रख लेता। सारे राज्य में हाहाकार मच गया। राजा भी बड़े चिन्तित हुए। प्रजा की रक्षा के हेतु दानव को पकड़ने के लिये वह स्वयं गये लेकिन होनहार की बात कि दानव ने एक ही सपाटे में उनके प्राण ले लिये।

नगर के नर-नारी इधर-इधर भागने लगे। रानी ने जब देखा कि उसके चारों बेटे भी दानव के पेट में चले गये तो वह भी नगर छोड़कर अपने को बचाने के लिये चल दी। चलते-चलते वह अपनी राजधानी से बहुत दूर एक नगर में पहुँची और एक सेठ के घर नौकर हो गई। रानी के गर्भ था और कुछ दिन बाद उसके एक लड़का पैदा हुआ।

रानी के और तो कोई था नहीं। उसने राजकुमार का पालन-पोषण किया। जब राजकुमार बड़ा हुआ तो उसने अपने लिए एक धनुष-बाण तैयार कराया। उसे लेकर वह इधर-उधर शिकार के लिये जाने लगा। एक दिन की बात है कि सेठ के सामने एक चिड़िया आकर बैठी। राजकुमार ने झटपट निशाना लगाया और चिड़िया को मार डाला। इस पर सेठजी बहुत नाराज हुए और उन्होंने रानी और राजकुमार दोनों को घर से निकाल दिया।

रानी ने सोचा कि अब इस नगर में रहना ठीक नहीं। सो, वह किसी दूसरे नगर में पहुँची और वहाँ एक सेठ के यहाँ नौकरी कर ली। लेकिन राजकुमार की आदत शिकार खेलने की इतनी हो गई थी कि एक दिन सेठ के हजार मना करने पर भी उसने एक जानवर मार डाला। लाचार होकर सेठ ने उन दोनों को घर से निकाल दिया। रानी को बहुत दुःख हुआ।

राजकुमार भी अब बड़ा हो गया था। उसने सोचा कि अब मुझे भी कुछ करना चाहिये। सो, वे दोनों चले और एक दूसरे राजा के राज्य में जाकर खेती करने लगे। बेचारे राजकुमार को अनुभव तो कुछ था नहीं। बैल खरीदने जब वह गया तो उसने एक दलाल से पूछा कि क्यों भाई, बैल कैसे खरीदने चाहिये? दलाल ने मजाक में कहा कि ऐसे जिनके मुँह में एक भी दाँत न हो।

राजकुमार समझा सच और बिना दाँत के दो बैल खरीद लाया। वे बिचारे बुड्ढे बैल खेती में क्या काम के। सो राजकुमार झुंझला कर उनमें खूब मार लगाने लगा। जब बैलों की पिटाई बहुत होने लगी तो एक बैल ने कहा कि-ओ राजकुमार तू मुझे छोड़ दे। मैं चरता हुआ इस पहाड़ी पर चढ़ जाऊँगा और वहाँ से गिरकर मर जाऊँगा। तब मुझे खाने के लिये एक गीध आयेगा। जाल डालकर तुम उसे पकड़ लेना और कहना कि मुझे गिद्धपरी दो, तब छोड़ूँगा।

राजकुमार ने ऐसा ही किया। बैल को उसने छोड़ दिया और जब गीध आया तो उसने गिद्धपरी को देने के लिये वचन ले लिया। गीध बेचारा घर आया और उसने Giddhpari को सारा हाल कह सुनाया। सुनकर उसने कहा कि तुम चिन्ता न करो। मैं सब ठीक कर लूँगी।इतना कह सोलह श्रृँगार कर वह राजकुमार के पास गई। वहाँ उसका पहुँचना था कि झोपड़े की जगह सोने के महल खड़े हो गये। जिधर देखो, उधर ही धन जवाहरात के ढेर। तब गिद्धपरी ने राजकुमार से कहा-अब मैं जाती हूँ।

राजकुमार- फिर कब आओगी? गिद्धपरी ने चार बाल उसे दिये। कहा कि इनको जब तुम आग में डालोगे, मैं आ जाऊँगी। बाल लेकर राजकुमार ने गिद्धपरी को विदा किया और आराम से रहने लगा। उस राज्य के राजा को जब सोने के महल का पता चला तो उसने यह सोच कर कि वह कोई बहुत बड़ा आदमी है। अपनी लड़की की शादी उसके साथ कर देने का विचार किया। उसने राजकुमार को दरबार में बुलाकर शादी की बातचीत की। राजकुमार ने अपनी सम्मति दे दी। शादी की तैयारियाँ होने लगीं। राजकुमार ने गिद्धपरी को बुलाया।

जब बारात जाने लगी तो राजकुमार ने गिद्धपरी से विदा मांगी और कहा कि तुम यहीं रहना। गिद्धपरी Giddhpari ने उसे एक मोमबत्ती दी और कहा कि इसे ले जाओ और जब यह जलने लगे तो समझना कि मैं यहाँ से चली गई। राजकुमार ने मोमबत्ती ले ली।

बारात ठीक समय पर पहुँची। जब भाँवरे पड़ने का समय आया तो पंडितों ने राजकुमार से पूछा कि वह मोमबत्ती हाथ में क्यों लिये हुए हो? राजकुमार ने उत्तर दिया कि हमारे यहाँ ऐसा ही रिवाज है। पंडित चुप हो गये। लेकिन जब तीन भाँवरे पड़ चुकीं तो एकाएक मोमबत्ती जल उठी। राजकुमार भाँवरे छोड़ तुरन्त वहाँ से भागा। सब लोग देखते ही रह गये।

राजकुमार तेजी से घर की ओर चला आ रहा था। रास्ते में उसे एक साधू मिले। राजकुमार ने उनकी खूब सेवा की। साधू ने प्रसन्न होकर पूछा-‘बेटा, तू क्या चाहता है? राजकुमार ने कहा-‘महाराज, मैं गिद्धपरी को चाहता हूँ।’ साधू ने कहा-‘बेटा, तूने तो ऐसी चीज मांगी है, जिसका मुझे भी पता नहीं। पूरब में बारह कोस पर सिद्ध बाबा रहते हैं। उनके पास जा।

राजकुमार सिद्ध बाबा के पास पहुँचा। लेकिन गिद्धपरी का वह भी कोई पता राजकुमार को न दे सके। लेकिन उन्होंने बारह कोस पश्चिम में एक साधू का ठिकाना बताया। राजकुुमार तो गिद्धपरी के पीछे पागल हो ही रहा था। भागा-भागा साधू के पास पहुँचा और उनकी खूब सेवा की। साधू ने खुश होकर जब कहा कि बेटा, जो कुछ मांगना हो सो मांग, तो राजकुमार ने गिद्धपरी को मांगा।

साधू ने कहा-गिद्धपरी मेरे पास तो है नहीं। पर मैं तुझे उसका पता बताये देता हूँ। राजकुमार ने कहा-बताइये। साधू बोले -‘तुम मानसरोवर झील पर जाकर बैठ जाओ। शाम के समय गिद्धपरी वहाँ स्नान करने आती है। जैसे ही वह पानी में घुसे, तुम उसके कपड़े लेकर भाग आना। वह कुछ भी कहे, कपड़े मत देना।

राजकुमार ने ऐसा ही किया। शाम होने से पहले ही वह मान सरोवर पर जा बैठा। जब गिद्धपरी आई और पानी में घुसी तो राजकुमार उसके कपड़े लेकर भागा। गिद्धपरी ने देखा तो उसका पीछा किया और कहा कि कपड़े दे दो। मैं तुम्हारे साथ चलूँगी। राजकुमार उसकी बातों में आ गया और कपड़े दे दिये। कपड़े लेकर

गिद्धपरी Giddhpari एकदम उड़ गई। राजकुमार देखता का देखता ही रह गया। निराश होकर वह बाबा की मढ़ी पर आया और उन्हें सारा हाल कह सुनाया। बाबा ने कहा-‘बेटा, धीरज धरो। कल तुम फिर वहाँ जाना और उसके कपड़े लेकर भाग जाना। उसकी बातों में मत आना।

राजकुमार ने वह दिन बड़ी मुश्किल से काटा और अगले दिन शाम होने से पहले ही वहाँ छिपकर बैठ गया। गिद्धपरी शाम होने पर इधर-उधर देखती वहीं आई और कपड़े उतारकर जल में घुस गई। राजकुमार चुपचाप उसके कपड़े उठाकर भागा। गिद्धपरी ने उसका पीछा किया। बहुत सी लालच की बातें कहीं, लेकिन राजकुमार ने एक न सुनी और सीधे मढ़ी में आकर दम लिया। गिद्धपरी भी वहाँ आई। उसने राजकुमार को चार बाल दिये और कपड़े लेकर चली गई।

राजकुमार ने वे बाल साधू को दिखाये। उन्हें देखकर साधू ने कहा -‘बेटा, ये बाल हमें दे दो। राजकुमार बोला-‘बाल तो ले लो। लेकिन मुझे भी तो कुछ दो। साधू ने उसे एक डंडा दिया। कहा-‘यह डंडा बड़ा करामाती है। जब तुम इससे कहोगे कि चल बेटा अल्लादीन, तो जिसमें चाहेंगे,वह खूब मार लगायेगा।

राजकुमार ने बाल साधू को दिये और डंडा लेकर चल दिया। रास्ते में उसे लगी भूख। उसने सोचा कि बाल होते तो गिद्धपरी अभी मुझे खाना पहुँचा जाती। साधू बड़ा चालाक निकला। अपने पास बाल रख लिए और मुझे पकड़ा दिया यह डंडा। सो उसने डंडे को हाथ में लेकर साधू की खबर लेने के लिये उससे कहा-‘चल बेटा, अल्लादीन।

कहने की देर थी कि डंडे ने साधू में खूब मार लगाई और बाल छीन कर ले आया। राजकुमार ने एक बाल जलाया। तुरन्त गिद्धपरी आई। राजकुमार ने कहा कि मैं भूखा हूँ। मुझे खाना दे। गिद्धपरी बढ़िया-बढ़िया भोजन लाकर राजकुमार को दे गई। वहाँ से चलकर राजकुमार सिद्ध बाबा के पास आया। उन्होंने भी इससे बाल ले लिये और बदले में एक रस्सी देकर कहा कि जब तुम कहोगे कि ‘चल री रस्सी’ तो जिसे तुम चाहोगे, उसी के हाथ-पैर बांध देगी।

राजकुमार ने कहा-ठीक और बाल देकर, रस्सी लेकर चल दिया। थोड़ा चलने पर रास्ते में उसे फिर भूख लगी। उसने सोचा कि ये साधू लोग सबके सब बड़े चालाक हैं। देखो न, मुझे यह रस्सी देकर बाल अपने पास रख लिये हैं। यह सोच उसने डंडा और रस्सी दोनों को छोड़ा। थोड़ी देर में बाल उसे मिल गये। एक बाल जलाकर तब उसने गिद्धपरी से बढ़िया भोजन मंगाया और मजे से खाया।

वहाँ से चलकर अब वह उन साधू की मढ़ैया पर आया, जिनसे वह सबसे पहले मिला था। बाल देखकर उन साधू का मन भी ललचाया और एक तेगा देकर बाल ले लिए। कहा कि बेटा, इस तेगा में बड़ा हुनर है। इससे तू जिसकी गर्दन काटने को कहेगा, जरा सी देर में वह काट कर रख देगा।

राजकुमार तेगा लेकर चल दिया। रास्ते में पहले की तरह फिर उसे भूख लगी और फिर उसने डंडा और रस्सी की मदद से बाल मंगवा लिए। एक बाल और जलाकर उसने गिद्धपरी को बुलाया और भोजन मंगाकर अपना काम चलाया। वहाँ से चलकर वह घर पर आया। उधर, राजा को जब मालूम हुआ कि राजकुमार लौट आया है तो उसने खबर भेजी कि या तो तुम हमसे युद्ध करो, नहीं तो नगर छोड़कर चले आओ। राजकुमार ने लड़ना स्वीकार किया। फिर क्या था ! राजा की

एक बहुत बड़ी सेना मैदान में आ डटी। राजकुमार ने भी अपने डंडा और रस्सी को निकाला और सेना पर छोड़ दिया। बात की बात में सारे सिपाहियों के हाथ बंध गये और डंडे ने वह मार लगाई कि सिपाही मैदान छोड़-छोड़कर जाने का प्रयत्न करने लगे। लेकिन बेचारे हाथ-पैर बंधे होने के कारण बेबश थे। राजकुमार ने तब राजा से पूछा कि क्या अभी और लड़ना है?

राजा ने कहा -‘हाँ’ इस पर राजकुमार को बहुत गुस्सा आया और उसने तेगा छोड़ दिया। तेगा का छूटना था कि सटासट सिपाहियों के सिर कट-कट कर गिरने लगे। तब राजा राजकुमार के पैरों पर आ गिरा। राजकुमार को दया आ गई और उसने राजा को क्षमा कर दिया।

राजकुमार का राजकुमारी के साथ विवाह हो गया और वह आनन्दपूर्वक रहने लगा। हमें कौन तुमसें मूसर बदलाउने (उक्त कहावत का बुन्देलखण्ड में बहुत प्रचार है। इसका अर्थ है कि हमारा तुमसे कोई काम नहीं अटका, जो हम तुमसे दबें। यह कहावत कैसे प्रचलित हुई, इसकी एक कहानी है।)

एक यादव गरीबी से तंग आकर परदेश भाग गया। बहुत दिनों तक भटकता रहा। अंत में एक शहर में उसे कुछ काम मिल गया। भाग्य ने उसका साथ दिया और कुछ ही दिनों में उसके हाथ में काफी पैसा हो गया। फिर क्या था, उसने शादी कर ली और मौज से रहने लगा।

एक दिन अकस्मात् उसे अपने देश की याद आई और ऐसा लगा कि कुछ भी हो, उसे अब अपने देश चलना चाहिये। उस समय मोटर या रेल तो थी नहीं। चोर-डाकुओं का डर था और धन-संपत्ति लेकर बैलगाड़ी से यात्रा करना जोखिम से खाली न था। अतः उसकी समझ में न आया कि वह करे तो क्या करे। तब उसने सारा हाल अपनी स्त्री से कहा। स्त्री थी बुद्धि की बड़ी तेज। उसने एक युक्ति खोज निकाली। पति से कहा कि किसी बढ़ई से एक पोला मूसर बनवाओ और अपनी सारी जायदाद बेचकर रूपये से सोना खरीद लो और मूसर में भर लो।

अहीर देवता को यह युक्ति पसंद आई। उसने तुरंत ही एक मूसर तैयार कराया और उसमें सोना भरकर ऊपर से मूँह बंद कर दिया। ठीक समय पर पति-पत्नि देश के लिये चल पड़े। यात्रा की कई रातें तो निर्विघ्न निकल गईं। अंतिम रात्रि में उन्होंने एक अपनी जाति वाले के घर बसेरा लिया। जिसके घर ठहरे, उसकी स्त्री बड़ी चालाक थी।

जब उसने देखा कि पति-पत्नि की निगाह हर समय मूसल पर ही रहती है और उसे बड़ी हिफाजत से रखा जाता है, तो उसने सोचा कि मूसर में जरूर कुछ विशेषता है। वैसे भी देखने में वह बड़ा सुन्दर लगता था। अतः उस स्त्री ने रात को जब पति-पत्नि सो गये, तो मूसर बदल लिया।

अहीर और उसकी पत्नि बड़े तड़के उठे और अपने घर की ओर चल दिये। घर पहुँचकर जब उन्होंने मूसर में से सोना निकालना चाहा तो उसमें सोना न पाकर बहुत निराश हुए। सोना मिलता कहाँ से, मूसर तो पोला ही नहीं था। अहीर देवता सिर पीटकर रह गये। पर पत्नी ने हार न मानी। वह अपने धन को यों ही न जाने देना चाहती थी। उसने सोचा कि हो न हो, उनके साथ छल हुआ।

बहुत-कुछ सोचा-बिचारी के बाद उसने अपने पति से कहकर बहुत से मूसर तैयार कराये और उन्हें एक गाड़ी में भरकर पति-पत्नि उसी गाँव में पहुँचें जहाँं उनका मूसर बदला गया था। वहाँ जाकर उन्होंने गाड़ी खोल दी और गाँव-वालों से कहा कि हम एक मूसर के बदले में दो मूसर देते हैं। जो चाहे सो बदल ले। कहने की देर थी कि मूसर बदलने का तांता लग गया।

जिस स्त्री ने इनका मूसर बदल लिया था, वह उस दिन घर नहीं थी। उसके पति ने सोचा कि चलो, अǔछा है, एक मूसर के बदले दो आ जायेंगे। यह सोच वह मूसर लेकर पहुँचा। पति-पत्नि मूसर देखते ही पहचान गये। मूसर बदल लिया गया। फिर उन दोनों ने सोचा कि उनका काम तो बन गया। अब एक के बदले दो मूसर देकर नुकसान उठाना बेकार है। इसके बाद जो लोग आये, उनसे उन्होंने  कहना शुरू किया-‘हमें कौन तुमसे मूसर बदलाउनें। उसी दिन से यह कहावत प्रचलित हो गई।

बुन्देली लोक कथा का उद्भव और विकास 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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