Homeबुन्देलखण्ड के साहित्यकारDr. D. R. Verma ‘Bechain’ डॉ. डी. आर. वर्मा 'बेचैन'

Dr. D. R. Verma ‘Bechain’ डॉ. डी. आर. वर्मा ‘बेचैन’

डॉ. डी. आर. वर्मा ‘बेचैन’ ने  अत्यंत गरीब परिवार में बुन्देली के आशु कवि स्व. रामसहाय कारीगर के घर 3 जनवरी 1945 ई० को जन्म लिया। आपको बुन्देली कविता की प्रेरणा अपने पूज्यनीय पिताश्री से मिली। और 13 वर्ष की आयु से काव्य सृजन करने लगे। Dr. D. R. Verma ‘Bechain’ अहर्निश सेवा महे का लक्ष्य लिए दिन रात साहित्य सजन में लगे रहते हैं।

अनेक संस्थाओं से सम्मानित उ.प्र. हिन्दी संस्थान लखनऊ से राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त नामित पुरुष्कार महामहिम राज्यपाल उ. प्र. द्वारा प्रदान किया गया डॉ. डी. आर. वर्मा ‘बेचैन की पत्नी श्रीमती फूलवती वर्मा, शिक्षा प्रेमी, 20 वर्षों से गरीब छात्रों/छात्राओं को शिक्षा दिला रही हैं।

मेरी कहानी मेरी जुबानी बुन्देली कविता लिखवे की प्रेरना हमें अपने पूज्यनीय पिता जी आशु कवि बुन्देली फड़ काव्य (फागों) के बेजोड़ गायक व रचयिता स्व.श्री रामसहाय जी कारीगर से मिली। जब वे अपनी कविता भीत से टिककें बैठ के लिखतते तब हम उनकी बगल में बैठ जातते। ऊ बेरां हमाई उमर १०-१२ साल की हुइये और हम दरजा छै में पढ़तते। उनकी कविता वाचत रतते। ई वजह से बा बुन्देली कविता हमायें रोम-रोम में रच पच गई।

हलके अई से हमें ऊमें इत्तीं रूचि बड़ गई कै हम कछू कै नईं सकत। पिताजी जब कब हमाये आंगे फागें कविता गुनगुनाउते सौ वे लय व धुनें अच्छी तरा सें याद हो गईं। ओई बेरां हमनें गांव के चुनाव की एक लम्बी कविता बना डारी। दोहा शैर, टेक, लावनी, छंद, उड़ान ऊमें हतीं बा कछु जनन खां सुनाई। ऊमें गांव दारी को बर्नन हतो सो काउ की बुराई-भलाई हतीं। पिताजी में कई कै जौ कलंक तौ हमें लगै जब कै कविता हमनें बनाई नैंयां ।

उन्नें बुलाकें हमें भौत डाटो। कछू देर बाद उन्हें हमें बुलाओ उर समझा के आशीर्वाद दओ कै तुम भौत अच्छी कविता कर सकत। करौ, उर हमसें छंद शास्त्र के कछू नियम जरूर सीक लो। सो उनसें थोरौ सौ पिंगल सीको उर कविता पै चालू हो गये।

3 जनवरी 1945 ई० प्रमाण-पत्रों में जन्म तिथि है। ग्राम स्यावरी, तहसील मऊरानीपुर जिला झाँसी उ.प्र. है। पिताजी स्व.श्री रामसहाय आशुकवि हैं। हमाये दादा उर पर दादा सोउ कवि हते। पिता जी ने अपनी सब रचनाओं कौ नाव “नई टकसार” रखो तो अंग्रेजी राज में “नई टकसार” की कवितायें ग्राम स्यावरी के ही राम प्रेस से उनने छपवाईतीं। जमींदारों के अत्याचारों को वर्नन करौं तो उर अपनी कीमतीं एक सौ पचास बीगा जमीन को स्तीफा दै दओ तो माताजी को नाव श्रीमती लाड़लीदेवी हतौ।

धीरे-धीरे हम अंगाई बड़े। सबसें पैलें गांधी विद्यालय इंटर  कालेज में १५ अगस्त खां हमनें कविता सुनाई। फिर कवि गोष्टी करीं कराईं। उर कवि सम्मेलनन में जान लगे। चौकड़ियां पैलऊ से भौत लिखीं ख्याल लिखे, कवित्त, सवैया, कैऊ तरा के। डॉ. भगवानदास माहौर (आजाद के मित्र) उनके चरनन में बैठ के पड़ो। उन्ने हमाई पैली किताब (फाग रसखान छंद) में अपनों आशीर्वाद दओ।

मस्ताना ख्याल, दानलीला, गारी मनभावन, युवक आवाहन, घरैलू चिकित्सा दोहावली, वर्मा इंगलिश गाइड, छपी। ‘महिला उत्थान सप्ताहिक’, ‘दैनिक जनहित दर्शन’ ‘दैनिक जागरण’ के संवाददाता रये, भास्कर, जागरण, मौलिक अधिकार, बुन्देली बसंत, बुन्देली दरसन और भौत अखवारन में पत्र पत्रिकाओं लेख कवितायें, निकरी उर निकररई, आकाशवाणी छतरपुर, झाँसी, दिल्ली, सागर सैं हमाई कवितायें, वार्ता, रेडियो रूपक, कहानियां निकरीं।

भौतसी साहित्यिक संस्थाओं में हमें प्रमाण-पत्र दै दैकें सम्मानित करो। बुन्देली बतासा”, “नई टकसार” को सम्पादन करौ। दिन-रात अबै साहित्य सेवा करनं लगे हैं। उनमें शब्द कोष बुन्देली, बुन्देलखण्ड की मूल संस्कृति चलरई । राष्ट्रीय बुन्देली विकास परिषद् में अब तक २३५ कवि गोष्टी उर कवि सम्मेलन मिलाकें हो गये। कैऊ तरा कौ साहित्य बुन्देली की रचौ गऔ। २५ सालें पूरी सन् २०१२ में होवें के कारन “चांदी जयन्ती मनाई गयी, बड़ी भारी जलसा कराओ। उर ‘बुन्देली बतासा’ की किताब निकारी।

‘बुन्देली चौकड़िया सागर’ को अगर दूसरौ नाव ‘समस्या पूर्ति प्रकाश’ धर दओ जातो तो भी भौतई नोंनो रतो। अकेलें चौकड़ियां जांदा लिख गई। कवि गोष्ठी में कवियन खां समस्यायें (दो) एक निश्चित ता. की कवि गोष्ठी में पूरी करके ल्यावे के लान दई जात्तीं। ई तरां से चौकड़ियां, कवित्त, सवैया, भौत बनकें तैयार हो गये। बुन्देली पै भौत काम भओ उर अबै भौत बनकें तैयार हो रओ।

चौकड़ियां हजार-हजार के खंड छपावें कौ विचार करो। पैलौ खंड अपुन के हांतन में है। ईको रस लेव। बुन्देली को रस पीवे वाये भौंरा अबै भौत हैं। बताशा तौ सबै मीठे लगतई हैं। सो मैनत सफल भई। ‘बुन्देली बतासा’ को दूसरो भाग छपावे की तैयारी है।

बुन्देली साहित्य पै हमाई पी.एच-डी. है। डिग्री उपाधि 1988 ई० में मिली ती। क्षेत्रीय वैद्य परिषद्, पृथ्वीपुर स्यावरी तथा धन्वतरि वैद्य सेवा सोसायटी (रजि.) बनाई। एम.ए. बी.एड. साहित्य रत्न (संस्कृत) आयुर्वेदरत्न, आयुर्वेद वृहस्पति (मानद) तक शिक्षा है बुन्देली साहित्य सेवा में दिन रात लगे रात, ‘मधुप्याली’ काव्य कृति प्रकाशित हो गई। शोधग्रन्थ, अप्रकाशित उर भौत सौ साहित्य अप्रकाशित है। जो अपुन सब के आशीर्वाद से छप भी जै ।

सन् 1964 में दैनिक जागरण झाँसी के सम्पादक जू नै अंशकालिक संवाददाता नियुक्त करो, “महिला उत्थान सा.’, दैनिक जनहित दर्शन के पत्रकार रैकें, भौत कछू लिखो, उर अबै लिख रये। लेख, कविता व्यंग, कलम की मौज, चलरई।

बुन्देलखण्ड हिन्दी शोध संस्थान, झाँसी के उपाध्यक्ष रये। ई कारन सें स्व.श्री रामचरण हयारण ‘मित्र’ भगवतीशरण श्रीवास्तव डॉ. सिया राम शरण शर्मा, डॉ. जवाहरलाल कंचन, आचार्य सेवकेन्द्र त्रिपाठी, महाकवि अबधेश, दुर्गेश दीक्षित आदि से मिला भेंटी होत रातती गुण सागर शर्मा सत्यार्थी’ हरिविष्णु अबस्थी, एम. एल. प्रभाकर, के.एल. बिन्दु, उमाशंकर खरे साहित्य मंडल, म. प्र. कन्हैयालाल शर्मा, कलश, नर्मदाप्रसाद गुप्त, पीयूष जी, और भौत साहित्य कारन में उत्साह बड़ो उनको प्रभाव परो, संस्थापक व संचालक -राष्ट्रीय बुन्देली विकास परिषद्, स्यावरी सन् १९८६ सें। अध्यक्ष-ईसुरी साहित्य शोध संस्थान मेंढ़की (मऊरानीपुर)(रजि.)

अन्त में अपुन सब बुन्देली के रचना कारन खां नमन उर आशीर्वाद की इच्छा में सेवा में लगो भओ….
विन्तवार- अपुनो अई
डॉ.डी. आर वर्मा पी,एच-डी, पूर्व प्राचार्य, अखण्डानंद जनता इंटर कालेज, गरौठा   नाम- डॉ. डी. आर. वर्मा ‘बेचैन’,
जन्मतिथि- 3/1/1945 ई०
पिताजी-कीर्तिशेष श्री रामसहाय कारीगर आशु कवि बुन्देली
माताजी कीर्तिशेष श्रीमती करारा वाली
दादा- कीर्तिशेष श्री हीरालाल (कवि)
परदादा-कीर्तिशेष श्री खुमान (कवि)
शिक्षा-पी-एच.डी., सेवा निवृत प्राचार्य
पुत्र-
(१) डॉ. एस. पी. वर्मा बी.ए.एम.एस., काया हर्बल प्रोडक्शन उरई (मालिक)
(२) डॉ. एल. पी. वर्मा, प्रोफेसर- फैजावाद यूनीवर्सिटी
तीन पुत्रियाँ-
श्रीमती कृष्णादेवी, श्रीमती पुष्पादेवी, श्रीमती कुशल । कक्षा छटवीं से काव्य सृजन प्रारम्भ। आकाशवाणी छतरपुर, झाँसी, सागर, एवं दिल्ली से वार्तायें, रेडियो रूपक कहानी, कविताओं का प्रसारण।

साहित्यकार, कवि लेखक के रूप में कवि की प्रकाशित रचनायें
1 –  नई टकसार कृति पूज्यपिता जी की – सम्पादन एवं प्रकाशन ।
2 –  फाग रसखान छंद (लोक काव्य)
3 –  मस्ताना ख्याल (बुन्देली)
4 –  बुन्देली बताशा भाग १ सम्पादन व प्रकाशन। क्षेत्रीय कवियों को प्रोत्साहन
5 –  बुन्देली बताशा भाग २ सम्पादन व प्रकाशन। क्षेत्रीय कवियों को प्रोत्साहन
6 – मधु प्याली (खण्ड काव्य) खड़ी बोली का उत्कृष्ट, सार गर्भित प्रकाशन
7 – वर्मा इंग्लिश गाइड (छात्रोपयोगी पुस्तक)
8 – धरैलू चिकित्सा दोहावली ।
9 – श्री कृष्ण दान लीला।
10 –  बुन्देली चौकड़िया सागर। (उ.प्र. सरकार द्वारा पुरुष्कृत)
11 –  गारी मन भावन (लोक काव्य)
12 – डॉ. डी. आर. वर्मा, अभिनन्दन संयुक्त – ईसुरी स्मृति
रचनाकार के सम्मान में प्रकाशित २०१६-२०२० बंदे मातरम् (राष्ट्रीय खंड काव्य, शहीदों एवं वीरांगनाओं के सम्मान का स्मृति ग्रन्थ)
आपके हाथों में विशेष-सैकड़ों लेख, व्यंग, फुटकर कवितायें, समाचार पत्रों में प्रकाशित।
पत्रकार- महिला उत्थान (३५ वर्ष रहे), दैनिक जनहित दर्शन अद्यतन।

अन्य साहित्यिक कार्यसाहित्यिक संस्था की स्थापना
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जन्म शताब्दी वर्ष सन् 1986 ई० में 25.12.1986 को पूज्य पिता बुन्देली के आशुकवि की स्मृति में”राष्ट्रीय बुन्देली विकास परिषद्’ की स्थापना इसके संस्थापक / अध्यक्ष / संचालक हैं। जो अभी चल रही है।
1 –  अध्यक्ष- राष्ट्रीय बुन्देली विकास परिषद, स्यावरी जो अब तक २४५ कवि सम्मेलन मय गोष्ठियों के कर चुकी है।
2 – लोकांचल में छिपे हुए धूल भरे हीरे, रा. बुन्देली विकारस परिषद् द्वारा अपनी चमक दिखाकर ख्याति प्राप्त चुके हैं।
3 – अनेक कवि व साहित्यकारों को सम्मानित कर चुके हैं।
4 –  रा. बुन्देली विकास परिषद् से बहुत सी बुन्देली रचनाओं व पुस्तकों का प्रकाशन हुआ।

अध्यक्ष – धन्वन्तरि वैद्य सेवा सोसायटी, स्यावरी (रजि.) अध्यक्ष- ईसुरी साहित्य शोध संस्थान मेंढ़की (झाँसी) की स्थापना व संचालन (रजि.) सम्मान-सैकड़ों सम्मान-पत्र स्मृति चिन्ह प्राप्त जिनमें प्रमुख
श्री राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त नामित पुरुष्कार, उ० प्र० सरकार द्वारा सम्मानित।
राव बहादुर सिंह बुन्देला सम्मान बसारी (म० प्र०)
श्रीमंत मधुकार शाह जू देव ओरछा नरेश द्वारा बुन्देली साहित्य समिति, झाँसी से सम्मानित।

कवि का अप्रकाशित साहित्य
1 –  बुन्देली कहावतें एवं मुहावरे।
2 –  बुन्देली सबद समुन्दर (लेखन जारी)
3 – बुन्देलखंड की मूल संस्कृति (लेखन जारी)
4 – बुन्देली को अटका साहित्य । (बुन्देली)
5 – अनौखे लोकगीत । (बुन्देली)
6 – बुन्देली की परम्परागत कहानियाँ । (बुन्देली)
7 –  सूक्ति सुधा संग्रह । (साहित्यिक)
8 –  बंग विजय (खंड काव्य)। (साहित्यिक)
9 – युवक आह्वान (खंड काव्य) (साहित्यिक)
10 – गद्य रत्न माला (निबन्ध) (साहित्यिक)
11 – कुंडलिया कुंज । (बुन्देली)
12 –  फाग सागर (फड़ काल्या) (बुन्देली)
13 – मस्ताना ख्याल भाग-२ । (बुन्देली) “वन्देमातरम्” आपके कर कमलों में ।
अन्य योग्यतायें
1 – आयुर्वेद रत्न
2 – आयुर्वेद वृहस्पति (मानद)
3 – साहित्य रत्न (संस्कृत)
4 – बी. एड.
5 – पंजीकृत चिकित्सक
6 – गरीब छात्र/छात्राओं को निशुल्क शिक्षण व सहायता अद्यतन।
7 – पी-एच.डी. 1988 ई. में बुन्देलखंड वि.वि.झाँसी से ।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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