Homeलोक कलाचित्योरी कला Chityori Art

चित्योरी कला Chityori Art

चित्योरी कला Chityori Art शास्त्रीय कला का रूप है, शास्त्रीय गुणों का ह्रास है अर्थात बुंदेलखण्ड की चित्रकला में शास्त्रीय गुणों का लोप होते होते जो कला थाती बची, वह “चित्योरी कला” है।

इतिहास – श्री सुखलाल झांसी में चित्योरी कला के प्रथम ज्ञात कलाकार है। श्री सुखलाल को झांसी के राजा गंगाधर राव (1843 – 53 ई.) का संरक्षण प्राप्त था। इस के पूर्व भी यह कला अस्तित्व में रही होगी, किंतु वर्तमान में कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के समय (11 जून 1857 से 04 जून 1858 ई. तक) श्री सुखलाल, श्री भीखम खाँ, श्री खुदाबक्स तथा श्री मंटू आदि चित्योरी कला के प्रसिद्ध चित्रकार थे।           

श्री सुखलाल के पुत्र श्री मगन लाल व श्री गिरधारी चित्रकार थे। श्री मगन लाल के पुत्र श्री परम तथा श्री भोजे भी कलाकार थे। इनके वंशधर झांसी के चितोरियाना मुहल्ला ( अंदर लक्ष्मी दरवाजा) में रहते है। कलाकारों में द्वितीय परिवार श्री भीखम खां का था, इनके पुत्र श्री रमजानी रानी के प्रिय कलाकार थे। श्री रमजानी के पुत्र श्री छज्जू तथा प्रपौत्र श्री अजीम भी चित्रकार थे। झांसी में तृतीय परिवार श्री परम लश्करी का था, इनके वंशधर ग्वालियर में बाड़ा के निकट रहते है तथा चित्रण करते है। श्री मंटू (मंटोले) श्री सुखलाल के समकालीन कलाकार थे। आप के वंशज श्री कुंजन सिंह वर्तमान में तलैया मुहल्ले में रहते है।

विषय – चित्योरी कलाकार मुख्य रूप से दो प्रकार के चित्र बनाते है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी ( श्री कृष्ण लीला के चित्र), दिवाली ( लक्ष्मी जी के चित्र) के अवसर पर कागज पर ‘पना’ बनाते है तथा वैवाहिक व मांगलिक अवसरों पर दीवारों पर चित्र बनाते है। विषय के आधार पर हम इन चित्रों को तीन भागों में बांट सकते है।  धार्मिक, सामाजिक तथा पशुओं के चित्र। धार्मिक चित्रों में लक्ष्मी, कृष्ण, वासुदेव, शिव व श्री राम। सामाजिक चित्रों में कलशधारिणी, झंडेवाला, हाथ जोड़े स्त्री, वरमाला लिए वर तथा वधु। पशु चित्रण में हिरन, शेर व हाथी प्रमुख है।

चित्रण विधि – चित्योरी कलाकार ‘पना’ बनाने के लिए साधारण कागज का प्रयोग करते है। सुखलाल चित्रकार तो जब जैसा कागज, गत्ता, रेलवे तथा पत्रिकाओं के मुद्रित पृष्ठ आदि जो सुलभ होते वे उन्ही पर चित्रांकन करते थे।सुखलाल तथा उनसे प्रभावित अन्य कलाकारों का रेखांकन बड़ा ही शक्तिशाली एवं प्रभावपूर्ण है।

रेखांकन के पश्चात आवश्यकतानुसार सपाट रंग लगाकर बहुत सूक्ष्म रेखाओं से उनकी खुलाई की जाती थी। वर्तमान चित्योरी कलाकार रेखांकन की आवश्यकता नहीं समझते है। रेखाओं की बारीकी समाप्त हो चुकी है, रेखाएं काली तथा मोटी हो गई है। इन चित्रों में सभी गुण लोक कला शैली के है, जिन को शास्त्रीय पद्धति का चित्र कहने में संकोच होता है।

रंग संयोजन – सुखलाल आदि कलाकारों के चित्रों के रंग खनिज तथा रसायनिक है। खनिज रंगों में हिरमीजी, गेरू, रामरज तथा स्वर्ण है। श्वेत रंग संगमरमर, सीप, शंख एवं कौड़ी के चूर्ण से प्राप्त किया जाता था। रसायनिक रंगो में फूंका सीसा, ईगुल, सिंदूर, प्योडी तथा काजल आदि का प्रयोग किया जाता था। यह परम्परा कलाकार जवाहर की मृत्यु (1956 ई.) तक चली।

वर्तमान चित्योरी कलाकार आधुनिक रंगो का प्रयोग करते है। ‘पना’ बनाने तथा दीवारों पर चित्रण के लिए ये कलाकार पोस्टर कलर, सिंथेटिक कलर व लाईम कलर का प्रयोग करते है। इनके प्रयोग किए गाए गए रंग बहुत चटकीले व गहरे होते है। रंगो में गहरा हरा, नीला, लाल, पीला तथा कला रंग बहुतायत से प्रयोग किया जाता है। हल्के रंगो में नारंगी, आसमानी व बैंगनी रंग का का प्रयोग किया जाता है।

 वर्तमान स्थिति – वर्तमान में झांसी के चित्योरी चितोरियाना मुहल्ला ( अंदर लक्ष्मी दरवाजा) में रहते है। इस परिवार के कुछ सदस्य बड़ा बाजार एवं पठौरिया मुहल्ला में रहते है तथा चित्रकारी करते है। ये लोग अपने आप को चित्रकार सुखलाल के वंशधर बताते है। इन कलाकारों की जीविकोपार्जन का एक मात्र साधन चित्योरी कला है।इस से इन्हे 60 से 80 हजार रुपए वार्षिक की आय हो जाती है, जो बहुत कम है। उचित माध्यम, प्रचार एवं प्रोत्साहन न मिल पाने के कारण झांसी के बाहर इनकी कोई पहचान नहीं बन पाई है।

 समस्याओं का कारण – वर्तमान समय में लोग प्राचीन भारतीय कला, संस्कृति एवं संस्कारों को भूलते जा रहे है।आज व्यक्ति आधुनिकता को अपनाने में गर्व महसूस करता है, इस विचारधारा का प्रभाव इस चित्योरी कला पर भी पड़ा है। पहले की अपेक्षा अब कम लोग ही वैवाहिक अवसरों पर इन चित्रों को बनवाते है।

वर्तमान में दीपावली पर चितेरो द्वारा बनाए जाने वाले पना ( लक्ष्मी जी के चित्र) का स्थान ऑफसेट पर मुद्रित लक्ष्मी जी के रंगीन चित्र ने ले लिया है परिणामस्वरूप इन की आय दिनों दिन काम होती चली जा रही है।

इनकी दूसरी समस्या है बाजार का अभाव और इन कलाकारों ने भी कभी यह कोशिश नहीं की कि किस प्रकार इन चित्रों की बिक्री को बढ़ावा मिल सकता है क्योंकि इन कलाकारों में कलाकारों में शिक्षा का अभाव है, अतः प्रचार माध्यमों एवं शासकीय सुविधाओ से अनभिज्ञ है। इसलिए ये चित्योरी कलाकार आज बहुत कम कीमत पर कार्य करने को मजबूर है।

सीमित कार्य क्षेत्र हो जाने के कारण इन कलाकारों में सहयोग के स्थान पर स्पर्धा की भावना आ गई है, जिस का लाभ दलाल किस्म के लोग उठा रहे है। कुछ कलाकार नशे की लत का शिकार हो कर धन, समय एवं स्वास्थ को बर्बाद कर रहे है।

निराकरण के उपाय – बुन्देलखण्ड की कला एवं कलाकारों को उतना प्रचार व प्रोत्साहन नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था। अब इसके लिए शासकीय स्तर पर विशेष प्रयास किया जा रहा है जिससे झांसी की चित्योरी कला को जीवित रखा जा सकेगा। यह परम आवश्यक है कि लोगो में अपनी गौरवमयी प्राचीन कला एवं संस्कृति के प्रति रुचि पैदा की जाए। इसके लिए सामाजिक संस्थाये भी आगे आ कर सहयोग कर सकती है।

चित्योरी कलाकारों को भी संगठित हो कर एक संस्था के रूप में कार्य करना चाहिए। यह संस्था खजुराहो व ओरछा जैसे पर्यटन स्थलों पर अपने प्रतिनिधियों द्वारा चित्रों की बिक्री अच्छी कीमत पर कर सकती है।

आर्थिक सहायता पाने के लिए ये कलाकार सहकारी समतियां अथवा स्वयं सहायता समूह बनाकर ब्लॉक स्तर से व जिला उद्योग केंद्र के माध्यम से ऋण प्राप्त कर सकते है। भारत सरकार तथा उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग में अपना पंजीकरण करा कर विभाग से मिलने वाले लाभों को प्राप्त कर सकते है। ये विभाग कलाकारों को आर्थिक सहायता, कलाकृतियों के प्रदर्शन एवं बिक्री की समुचित व्यवस्था प्रदान करते है।

वर्तमान में शासन प्रशासन के द्वारा चित्योरी कला को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रशासन द्वारा अर्बन हाट में चित्योरी कलाकारों को कारखाना उपलब्ध करवाया गया है, जहां कलाकारों को निःशुक्ल बिजली, पानी, चित्रण सामग्री तथा इससे जुड़े उपकरण दिए जाते है। साथ ही उनके चित्रों की बिक्री के प्रयास भी किए जाते है।

                   आलेख – चित्रकार श्री विकास वैभव सिंह  झांसी

बुंदेलखंड की लोक नाट्य परंपरा 

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!