Homeबुन्देलखण्ड का इतिहास -गोरेलाल तिवारीBundelkhand Me Gond Rajya बुन्देलखंड मे गोंड़ राज्य

Bundelkhand Me Gond Rajya बुन्देलखंड मे गोंड़ राज्य

बुंदेलखंड में गोंड राज्य गढ़ा-मंडला के शिलालेख में रानी दुर्गावती की बड़ी प्रशंसा की गई है । रानी दुर्गावती के उत्तम राज्य के कारण सारी भूमि हीरों और जवाहरों से भर गई थी कहनाअनुचित नही होगा। पर Bundelkhand Me Gond Rajya रानी दुर्गावती के पश्चात छिन्न-भिन्न होने लगा था ।  

बुन्देलखंड मे रानी दुर्गावती के पश्चात्‌ राजा चंद्रशाह ने भी अच्छा राज्य-प्रबंध किया। इसके समय में राज्य-संपत्ति फिर से बढ़ने लगी । चंद्रशाह का राज्य बहुत दिन नहीं रहा । चंद्रशाह के पश्चात उनका लड़का मधुकरशाह गद्दी पर बैठा। मधुकरशाह चंद्रशाह का बढ़ा लड़का नही था। इसने धोखा देकर अपने बड़े भाई को मरवा डाला और खुद गद्दी पर बैठा।

बुन्देलखंड मे गोंड़ राज्य प्रभाव रानी दुर्गावती के पश्चात 

परंतु मधुकरशाह को इस पाप का इतना पश्चात्ताप हुआ कि उसने एक खोखले पीपल के पेड़ में अपने को बंद करके आग लगवाकर अपने प्राण दे दिए। यह घटना वि० सं० 1647 की प्रतीत होती है क्योंकि यह इसी साल मरा था। इसके लड़के का नाम प्रेमशाह / प्रेमनारायण था ।

मधुकरशाह की मृत्यु के समय प्रेमनारायण दिल्ली मे था। दिल्ली से वापस आने पर प्रेमशाह गद्दी पर बैठाया गया। जहांगीरनामा से पता चलता है कि जहाँगीर की 12 वीं  पर्ष गाँठ के समय इसने 7हाथी भार 1 हथिनी भी भेंट की थी। इससे बादशाह ने खुश होकर इसे एक हजार का मनसब और कुछ जागीर दी थी, पर यह मालवा के अधिकार में ही बना रहा। अमोदा के शिलालेख से ऐसा प्रतीत  होता है कि यह मालवा की सूबेदारी से अलग कर दिया गया था। इससे अब यह राजा हो गया था और इसे महाराजा कहते थे ।

पिता की मृत्यु  का हाल सुनकर प्रेमनारायण दिल्ली से वापस चला आया। इसके आने के समय वीरसिंहदेव बुंदेला दिल्ली ही में थे। यह उनसे न मिल सका। इसे वीरसिंहदेव ने अपना अपमान समझा और वह मरने के समय जुझारसिंह से इसका बदला लेने के लिये चढ़ाई करने की वसीयत कर गया। इसी कारण जुझारसिह ने गोंड़वाने पर चढ़ाई कर दी। पर चढ़ाई करने का यह कोई कारण नही  था। अलबत्ता गोंड़वाने में उस समय गाय और बैल दोनों हल में जाते जाते थे।

जुझारसिंह ने लड़ने का यही बहाना सोचकर लड़ाई ठानी और  संवत्‌ 1671 में प्रेमनारायण के राज्य पर आक्रमण कर दिया । इस युद्ध में प्रेमनारायण मारा गया और जुझारसिंह ने चौरागढ़ का किला ले लिया। जिस समय यह युद्ध हुआ उस समय प्रेमनारायण का पुत्र हृदयशाह दिल्ली मे था। उसे इस युद्ध की और अपने पिता को मृत्यु की खबर वहीं मिली । हृदयशाह ने बादशाह शाहजहाँ से इस बात की शिकायत की । उसने इसे सहायता देने का वचन दिया।

शाहजहां ने इस आशय का एक पत्र जुझारसिंह के पास भेजा कि वह चौरागढ़ का किला राजा हृदयशाह को वापस दे दे और  इस अनाधिकार चेष्टा के बदले 10  लाख रुपए जुमाने के दे । जुझारसिंह ने ऐसा करने से इनकार किया और  लड़ने की तैयारी की। तब बादशाह ने औरंगजेब के सेनापतित्व में 20  हजार सिपाही जुझारसिंह को पकड़ने के लिये भेजे । इनके साथ में अब्दुल्ला खां  बहादुर, फीरोजजंग और खानदौरान भी गए थे । इनके सिवाय रीवॉ का बघेल राजा अमरसिंह और  चंदेरी का देवी सिंह भी था।

जुझारसिह ने भी 500  सवार और 1000 पैदल सिपाहियों की सेना तैयार कर रखी थी। इन्होंने शाही फौज को रोकना चाहा, पर वह बढ़ती ही आई । इसने अपनी हार देखकर अपने खजाने और  परिवार के लोगों को धामैनी भेज दिया। पीछे से थोड़ी सी सेना ओरछे की रक्षा के लिये रखकर खुद भी धामौनी चला  आया। शाही फौज ने ओरछे का किला तोड़ डाला और उसे देवीसिंह चंदेरीवाले के अधिकार में कर दिया।

फिर इसने जुझारसिंद का पीछा किया। जब यह सेना घामौनी के निकट आई तब वह यहाँ से चौरागढ़ की ओर भाग गया। शाही फौज ने घामौनी पहुँचते ही गोले बरसाना शुरू कर दिया। किले के तोप खाने में चिनगारी गिरने से आग भभक उठी और  सब बारूद जल गई, जिससे किले की 80  गज लंबी दीवार उड़ गई।

इस आग  से 300  मनुष्य और  200  घोड़े जल गए। धामौनी का खजाना कुओं में फेंक दिया गया था। इसे ढूँढ़ने पर मुगल सेना को केवल दो  लाख रुपए का माल मिला । इसकी देख-रेख करने के लिये सरदार खॉ यहाँ रखा गया और यह इलाका  रानगिर मे मिला दिया गया।

यहाँ से शाही फैज चौरागढ़ की ओर बढ़ी। जुझारसिंह ने फौज को आते देख किले की तोपें  तुड़वा दी  और प्रेम नारायण का खजाना ले दक्षिण की ओर रवाना हुआ, परंतु शाही फौज ने उसका पीछा नही  छोड़ा । यह गढ़ा और  लांजी होती हुई चाँदा की ओर बढ़ी। चाँदा में जुझारसिंह और बादशाही सेना से घनघोर युद्ध हुआ ।

उसके पास तो अधिक सेना थी नहीं, इससे वह हार गया और जंगल की ओर भाग गया। यहाँ पर गोंड़ों ने राजा जुझारसिंह और  उसके लड़के विक्रमाजीत को पकड़कर मार डाला । पीछे से खानेदौरान ने इनका सिर काटकर दिल्ली भेज दिया। यह घटना वि० सं० 1640 मे हुई |

जुझारसिंह के मरने पर हृदयशाह को अपने बाप का राज्य मिल तो  गया पर पीछे से शाहजहाँ ने इससे “वारयाँबाँ की सरकार बदले में माँगी भर इनकार करने पर अपने मनसबदार ओरछे  के राजा पहाड़सिंह को  वि० सं० 1708 मे आक्रमण करने को भेजा । पहाडसिंह ने हृदयशाह से चौरागढ़ का किला ले  लिया। इस तरह 18 वर्ष राज्य करने के बाद यह अपनी प्राचीन राजधानी चौरागढ़ से अलग  कर दिया गया।

अब  यह मंडला ( रामनगर ) चला  आया। यह घटना वि० सं० 1724 की है। इस बीच में यह कहाँ-कहाँ रहा, इसका पूरा पूरा इतिहास नहीं मिलता। ऐसा पता चलता है कि यह चौरागढ़ से भागकर बांधागढ़ के राजा अनूपसिंह के पास चला  गया था, पर पहाडसिंह ने यहाँ भी उसका पीछा न छोड़ा । इससे राजा अनूपसिंह को भी हानि उठानी पड़ी ।

हृदयशाह ने रामनगर की प्राकृतिक शोभा पर मोहित होकर  यहाँ पर एक किला और कई महल बनवाए थे। इसकी पत्नी का नाम सुंदरी था। इस रानी ने भी कई मंदिर बनवाए थे। इसी राज-वंश के लेखों से ऐसा भी पता चलता है कि इसका विवाह बघेल राजकन्या के साथ हुआ था। इसके छत्रशाह और  हरीसिंह नाम के दो लड़के थे। हृदयशाह की मृत्यु वि० सं० 1715 में हुई।

छत्रशाह अपने पिता के मरने पर गद्दी पर बैठा। इस समय हरीसिंह ने भी गद्दी के लिये दावा किया, पर सफल न हुआ। अंत  मे उसने अपनी जागीर पर ही संतोष किया । छत्नशाह ७ वर्ष राज्य कर मर  गया । इसके बाद केसरीसिह राजा हुआ, यह छत्रशाह का लड़का था। इसके समय में घर मे फूट उत्पन्न हो गई जिससे आपस में कलह होने लगी ।

इसके चचा हरीसिंह ने इसे मार भगाया। अंत मे औरंगजेब ने हरीसिंह को भी अन्य जागीरदारें के समान वि० सं० 1641 मे अधिकार दे दिए। पर इससे  प्रजा खुश नही  थी, इससे यह अधिक दिन राज्य न कर सका। लोगों ने इसे 7वर्ष के पश्चात्‌ मार डाला । तब केसरीसिंह राजा हुआ और इसके बाद नरिंदसिंह ने गद्दी पाई। पर हरीसिंह के लड़के पहाडसिंह ने औरंगजेब से सहायता माँगी।

औरंगजेब ने पहाड़ सिंह की सहायता को अपनी सेना दी और पहाड़सिंह ने नरिंदशाह को हरा दिया, परंतु प्रजा ने पहाड़सिंह को नही  चाहा और  उसे वापस जाना पड़ा। इसी समय दिल्ली के बादशाह ने पहाड़ सिंह को और भी सहायता दी। पहाडुसिंह इसी युद्ध में मारा गया। उसके दे लड़के थे। वे औरंगजेब को प्रसन्न करने के लिये मुसलमान हो गए। ये दोनों लड़के भी युद्ध में मारे गए और नरिंदशाह अब निश्चित हो गया।

इन सब लड़ाई-झगड़ों से नरिंदशाह का राज्य क्षीण हो गया। मुगल सेना से युद्ध करने के लिये उसे कई राजाओं से मदद लेनी पड़ी थी। इस सहायता के बदले में उन राजाओं को देश का बहुत सा भाग देना पड़ा । पाँच गढ़ बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल को देने पड़े । इन पाँच गढ़ों में चार गढ़ सागर जिले के थे और  एक दमोह जिले का था। उसे मुगलों से सुलह कर लेनी पड़ी ।

इस सुलह के अनुसार मुगलों ने नरिंदशाह को गद्दी पर कायम रखना स्वीकार किया और पाँच गढ़ गोंड़वाने के इससे ले  लिए। इन पाँच गढ़ों में से तीन गढ़ तो सागर जिले  के थे और शेष दो  गढ हटा और  मड़ियादे नाम के दमोह जिले के । इस प्रकार सागर और  दमोह जिले गोंड राज्य से निकल गए । इसके पूर्व 10  गढ़ अकबर ने चंद्र शाह से और चौरागढ़ आदि शाहजहाँ ने हृदयशाह से ले  लिए थे ।

नरिंदशाह 37  वर्ष राज्य कर के वि० सं० 1789 में परलोक को सिधारा। इसके पश्चात्‌ इसका लड़का महाराजशाह गद्दी पर बैठा। इस समय इस राजवंश मे सिर्फ 29  ही गढ़ बाकी रह गए थे। ये सब जबलपुर और मंडला के ही आस-पास रहे होंगे। महाराजशाह मुगल बादशाह के अधीन था। पर महाराष्ट्र के पेशवा इस समय मुसलमानों से स्वतंत्र थे और  ये लोग अन्य हिंदू राजाओं को भी स्वतंत्र होने के लिये मदद देते थे ।

पेशवाओं ने गढ़ा मंडला के राजा महाराजशाह से मुगल बादशाहत से संबंध तोड़कर पेशवाओं की अधीनता स्वीकार करने के लिये कहा। महाराजशाह ने यह स्वीकार नही  किया। इस पर पेशवा ने संवत्‌ 1800 में मंडला पर चढ़ाई कर दी। महाराजशाह युद्ध में मारा गया ।  इसके शिवराजशाह और निजामशाह नाम के दो लडके थे।

शिवराजशाह ने मराठों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। इससे गोंड राज्य से प्रतिवर्ष चार लाख रुपए महाराष्ट्र को चौथ के रूप मे जाने लगे। नागपुर के भोंसले यहाँ की चौथ उगाहा करते थे। इसी बहाने से जब गोंड्वाने से चौथ शर्तों के अनुसार न पट सकी, वब गोंड राज्य से चौथ के बदले मे 6 किले भोंसलों को दिए गए।

शिवराजशाह 7 वर्ष राज्य कर विक्रम संवत्‌ 1807  में मरा। उसके बाद उसका लड़का दुर्जनशाह गद्दी पर बैठा । यह बड़ा क्रूर था भौर प्रजा इससे बहुत असंतुष्ट थी। राज्य प्रबंध भी इसके समय में बहुत खराब रहा। यह सिर्फ छः महीने ही राज्य कर पाया था कि इसके चाचा निजामशाह ने दुर्जनशाह को मरवा डाला और वह स्वयं गद्दी पर बैठा । यह योग्य शासक था।

निजामशाह ने राज्य की उन्नति का बहुत प्रयत्न किया, परंतु राज्य की दशा बहुत ही बुरी हो  गई थी। इससे यह उसकी यथोचित उन्नति न कर सका। यह 27  वर्ष राज्य कर परलोक को सिधारा।इसके मरने पर राज्य में गद्दी के लिये फिर झगड़े आरंभ हुए और  मराठों ने हस्तक्षेप किया। लोगों ने निजामशाह के भतीजे नरहरशाह को सहायता दी ।  इससे नरहरशाह को राज्य-गद्दी मिली । परंतु इससे मराठे प्रसन्न नही  रहे। तीन वर्ष बाद भराठों ने नरहरशाह को राज्यगद्दी से उतार दिया और सुमेरशाह को राजा बनाया।

पीछे से इन्होंने सुमेरशाह का पकड़कर गोरझामर के किले में कैद कर दिया। यह सिर्फ 9 महीने ही राज्य कर पाया था। फिर लोगों ने नरहरशाह को गद्दी पर बैठा दिया। इससे यह सागर वालों के अधीन हो गया, पर ये उसके हर एक कार्य में हस्तक्षेप करने लगे । जब नरहरशाह ने मोराजी की सेना का वि० सं० 1837  में विरोध किया तब वह भी खुरई मे कैद कर दिया गया और  गढ़ा राज्य पर मराठों ने अपना अधिकार कर लिया। नरहरशाह वि०-सं० 1846 में परलोक को सिधारा ।

सुमेरशाह पहले से ही कैद था। वह भी बि० सं० 1861 में मर गया। यहीं से गोंड़ राज्य का अंत हो गया, परतु मराठों ने सुमेरशाह के लड़के शंकरशाह को नाम मात्र के लिये राज्य दे दिया। इसने वि० सं० 1913  तक राज्य किया। पर संवत् 1914 में यह और  इसका भाई रघुनाथशाह दोनों राज-विद्रोहियों से मिल गए । अंत में पकड़कर इन्हें गोली मार दी गई ।  अब इस राजवंश की संतति दमोह जिले के सिलांपरी गांव में रहती थी  और  इसे ब्रिटिश राज्य की ओर से सिर्फ 50 रुपये प्रतिमाह  मिलते थे  ।

गोंड राज्य भूपाल ( भोपाल ), सागर, दमोह और  जबलपुर में फैल गया था । यह राज्य धीरे- धीरे चंदेलों के शक्तिहीन होने से और  मालवा में से मुसलमानों का अधिकार निकल जाने से बढ़ा। जबलपुर के उत्तर में गोंड़ लोगों के पहले पड़िहार (या परिहार) लोग  राज्य करते थे। कहा जाता है कि बिल्लहरी में पहले लक्ष्मणसेन पढ़िहार का राज्य था । लक्ष्मणसेन की लड़की का व्याह एक गोंड राजा के साथ हुआ था  इसी गोंड राजा को बिलहरी और उसके आस-पास का भाग सिल गया। इस ओर  परिहार लोगों का राज्य बहुत प्राचीन काल मे था।

चंदेलों ने पड़िहारों से राज्य लिया था। उचेहरा पहले ते पढ़िहारों के हाथ में था, फिर वह चंदेलों के हाथ में आया । पढ़िहारों का राज्य चंदेलों और गोंड़ लोगों के अधिकार मे आने के पश्चात्‌ पढ़िहार लोग चंदेलों और गोंड लोगों के राज्य के कहीं कहीं सूबेदार रहे। चंदेल्लों के राज्य का आरंभ और गोंड़ों के राज्य की नींव संभवत: समकालीन ही हो, पर प्रसाणों के आभाव के कारण निश्चित रूप से कुछ नही कहा जा सकता। चंदेल पहले बढ़े और पहले ही गिरे। गोंड लोगों का राज्य रानी दुर्गावती के राज्यकाल मे उन्नति

के शिखर पर पहुँचा | परंतु रानी दुर्गावती के मरने के बाद अवनति आरंभ हुईं। अकबर ने रानी दुर्गावती को हराने के पश्चात्‌ भोपाल का प्रदेश ले लिया । सागर और दमोह के जिले नरिंदशाह के हाथ से निकल गए और उनका भाग कुछ मुगलों के और कुछ बुंदेलों के अधिकार में चला गया। जे कुछ शेष बचा वह मराठों ने नष्ट कर दिया।

गोंड राजा हिंदू और जाति के क्षत्रिय होंगे। ऐसा कहते हैं कि एक गोंड़ राजा का विवाह लक्षमणसेन पढ़िहार की कन्या के साथ हुआ था । रानी दुर्गावती भी चंदेल राजा की कन्या थी। ऐसे ही हृदयशाह का विवाह भी बघेल राजवंश से हुआ था। ये ही उपर्युक्त कथन के प्रमाण हैं।

बुन्देलखण्ड में अंग्रेजों से संधियाँ 

संदर्भ -आधार
बुन्देलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास – गोरेलाल तिवारी

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