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Bhaiyalal Vyas भैयालाल व्यास

विन्ध्य कोकिल भैयालाल व्यास का जन्म 5 अगस्त 1920 को दतिया (म०प्र०) में हुआ। स्वंतत्रता संग्राम एंव प्रख्यात साहित्यकार के रूप में Bhaiyalal Vyas किसी परिचय के मोहताज नहीं है। आपका गद्य एवं पद्य पर समान अधिकार था। जीवन के क्रम, आगपानी, साँझसकारे, विजयादशमी, पुन्यभूमि बुंदेलखंड, देश के देवता, जागा मेरा देश, जिंदगी की राह पर, तुम मत रोना जैसी काव्य कृतियाँ साहित्य की धरोहर हैं।


विन्ध्यकोकिल भैयालाल व्यास : बुंदेली माटी के अमूल्य रत्न
गद्य में –’चिंतन के क्षण’, संस्मरण, ललित निबध प्रकाशित हैं। ऑपेरा और नाटक काफी लोकप्रिय हैं। व्यास जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आपने बुंदेलखंड की माटी को गौरवान्वित किया है। डॉ० विद्यानिवास मिश्र, प्रभातशास्त्री, बालकवि वैरागी डॉ० नर्मदाप्रसाद गुप्त, डॉ० गंगाप्रसाद बरसैंया आदि विद्वानों ने व्यास जी के साहित्य पर अपनी-अपनी प्रतिक्रियायें व्यक्त की हैं। डॉ.  के० बी० एल० पांडेय ‘व्यास जी को जीवन के प्रति सकर्मकता, आस्था, उल्लास और सौंदर्य के कवि मानते हैं।’

व्यासजी ने छत्रसाल, शिवाजी, प्रताप, लक्ष्मीबाई जैसे जागरण गीत लिखकर प्रलयंकारी चेतना का संचार किया है। इनके गीत कंठों में रमें हुए हैं। व्यास जी विन्ध्य कोकिल हैं। उनके गीतों में यौवन का स्वर मुखरित हुआ है। रचनाओं में बुदेलखंड की ठसकीली धरती की मस्ती है। झरनों जैसा उल्लास हैं। लोक संस्कृति के चित्र खींचनें में वे सिद्धहस्त थे वे भारतीय संस्कृति, इतिहास, परंपराओं और मानवी आदर्शों के प्रति समर्पित थे–
तुम कलाकार के हाथ लिए,
साहित्यसत्य निर्माण करो।
जब तक प्राणों में प्राण रहें,
प्रण पर उनकों बलिदान करो।।
मेरे पूज्य हिमालय तुम पर फल चढ़ाने आया हूँ।
तेरा साका गाया जिसने, उसका गाने को आया हूँ।।


व्यास जी मूलतः गीतकार थे। उनका गीतकार हर क्षण जीवन में गुनगुनाते रहने का संदेश देता है।
गा रहा हूँ मैं सदा से,
और गाता ही रहूँगा।
आप यदि सुनते रहेगे,
मैं सुनाता ही रहूँगा।।
लंबी जीवन यात्रा में वे थके हुये पथिक नहीं थे। बराबर चलते रहने वाले राही।
आज तुम्हारे साथ यहाँ पर, लेकिन मैं कल नहीं रहूँगा।
मेरे साथी तुम मत रोना, सुघर संगाती धीर न खोना।


व्यास जी बेमिसाल इंसान थे। अतिभावुक,सहृदय और संवेदनशील । उनके अंतस में प्रेम का अमृतरस छलकता था। वे एक कर्मयोगी की तरह सतत् क्रियाशील थे। सौम्य, सुदर्शन, दीप्तिवान व्यक्तित्व आकर्षित करता था।

एक घटना मस्तिष्क में कौंध रही है। सेंवढ़ा एक कार्यक्रम में व्यास जी आये थे। एक पांडुलिपि मेरे हाथों में देते हुये शीर्षक देने का स्नेहिल आदेश दिया था। मेरे मुँह से पुन्य भूमि बुंदेलखंड निकला था और सबने पुस्तक का यह नामकरण स्वीकार कर लिया था। यह उनका बड़प्पन और स्नेह ही तो था मेरे प्रति वास्तव में व्यास जी बेहद उदार और सदाशय व्यक्ति थे। इस काव्य-कृति के पश्चात् तो उनकी पुस्तकें छपने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो ढेर सारी पुस्तकें छप गई। व्यासजी के पास खजाना है साहित्य का।

एक घटना चाहे जब याद आ जाती है। सेंवढ़ा में व्यास जी को मानस मृगेश सम्मान से सम्मानित किया गया था। रात्रि का भोजन मेरे घर था। डॉ० हरीश नवल दिल्ली, डॉ० स्नेहसुधा, डॉ० भगवानदास गुप्त, दादा राधाचरण वैद्य, डॉ. सुधा गुप्ता, बहिनजी रामरती व्यास, सीताकिशोर दादा, डॉ० श्यामबिहारी श्रीवास्तव, रामस्वरूप स्वरूप सभी भोजन कर रहे थे।

सब्जी में मिर्च बहुत मेज हो गई थी। व्यास जी तेज मिर्च का खाना प्रेम से खा रहे थे और तारीफ कर रहे थे। जैसे मिठाई खा रहे हों। मिर्च के तीखेपन से उनकी आँखों में आँसू निकल रहे थे और वे हँसते हुए घर-भर की कुशलक्षेम पूँछ रहे थे मेरी माँ से और बड़ी बहिन से बहुत पुरानी बातें पूछ रहे थे।

कितना अपनापन और प्रेम उनके व्यवहार में छलक रहा था। मैंने अंदर जाकर आलू की सब्जी चखी तो रोने लगी। इतनी तेज मिर्च। व्यासजी अस्वस्थ थे और उनकी मिर्च बंद थी। बुरा लग रहा था और खुद पर गुस्सा आ रहा था। व्यास जी के आशीर्वाद पत्रों के द्वारा मिलते रहे हैं। आधा कॉर्ड आत्मीय संबोधनों और विशेषणों से भरा हुआ। विभिन्न विश्वविद्यालयों में व्यास जी के कृतित्व पर शोध कार्य हो चुके है और हो रहे हैं। वे बुंदेलखंड की माटी के अमूल्य रत्न हैं।

साहित्यकार के पास निज का कुछ नहीं होता उसका तो जो है सबका है। उसका दर्द समाज का दर्द है। बुंदेलखंड की धरती का कण-कण व्यास जी का पूजाधाम है। उनकी कविताओं में सरल-रेखाओं के मानिंद प्रभाव है। दिल की गहराईयों से निकलकर सबके गले मिलने वाले अनुभव हैं। संघर्षों के वातायन, धरती से जुड़े भाव, ललकारती हुई विचारधारा और चिंताये हैं। जीवन-मूल्यो को अगली पीढ़ी के लिये सुरक्षित कर देने की चिंता कवि को है।

उनके लिए साहित्य-सृजन एक अनुष्ठान है, साधना है, पावन यज्ञ है, जहाँ आंनद ही आनंद है। कविता व्यास जी के जन्म और जीवन से जुड़ी है। लय है। गुनगुनाहट है। मस्ती है उल्लास है व्यास जी के आत्मसंघर्ष ने ऐसे कालजयी साहित्य को जन्म दिया जो साहित्य की अमूल्य पूँजी है कोई एक विन्ध्यकोकिल वर्षों बाद पैदा होते है। वे इस धरा की धरोहर की हैं।

व्यास जी नवीन उदभावनाओं के प्रणेता थे। उन्होंने जड़ता को चीरकर चेतना देने की कोशिश की है। शून्यता में संगीत की रागिनी झंकृत की है। उनका गीतकार मधुमास गीत गा उठता है  गेंदा फूल गयें बागन मे आ गऔ वंसत गेंदा फूल गयें।

कुंजावती का भात निमंत्रण, हरदौल का विषपान हृदय को छूने वाली प्रभावपूर्ण मार्मिक रचनायें हैं। कवि के लिए सर्वोपरि-सबसे बड़ी देश को मान है । कवि की दृष्टि में राष्ट्र सबसे बड़ा है। जहाँ हिमालय है, गंगा है, खेत हैं। पहाड़ हैं। नदियाँ हैं। हवायें है व्यास जी प्रेम और सदभाव के गायक है। जागा मेरा देश कृति की अपनी बात में वे लिखते हैं- दतिया में वंसत पंचमी से वसंत उत्सव आंरभ होकर होली के बाद नववर्ष की प्रतिपदा तक चलते।

आज मेंहदी की टौरिया वाले सय्यद पर वंसत बँध रहे हैं, कल ईशुबशाह की टौरिया पर। परसों किसी दरगाह पर तो कभी किसी मंदिर में। गाँव-गाँव फागों की फड़वाजी तों मंदिर में फागोत्सव होते। इन आयोजनों में मंदिरों के अंतरभागों, तक बलार मृदंगवादक, गायक-वादक मुसलमान, अन्य जातियों के सभी कलावंत मस्जिदों-मंदिरों सय्यदों पर तिलकधारी पंडित जी जनकू महाराज सभी अपना गायन प्रस्तुत करते। यह है दतिया की संस्कृति । समाहित कर लेने की संस्कृति समन्वय और भाईचारे तथा प्रेम की संस्कृति।

जो संस्कार व्यासजी के प्रेरणा स्त्रोत थे। व्यास जी का साहित्य प्रासंगिक है। व्यास जी को अपनी माँ के चक्की पीसने और भजनों के गानों से जो प्रेरणा मिली थी उन्होंने उनके गीतों को लोक स्वर दिया राष्ट्रीयता की भावना दी। आज व्यास जी की ये भावनायें सबकी भावनायें बने। उनके गीत समाज को सकारात्मक दिशा दें।

देश भक्ति की नई चरचा को कवि ने आज सुनाई रे
निर्माणों को नव स्वर देती, संकल्पित शहनाई रे।।
व्यासजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखा जाना सरल नहीं है। वे तो दिव्य पुरुष थे। भाव पुरुष थे। वे वंदनीय हैं। अभिनंदनीय हैं।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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