Buddhism and Sects
सनातन संस्कृति से निकल कर Baudha Dharma Aur Sampraday की स्थापना हुई सनातन संस्कृति के कुछ क्लेशठ सिद्धांतों और परम्पराओं को आसान करके बहुजन हिताय बहुजन सुखाय हेतु प्रतिपादित किया ।ईसा पूर्व छठी शताब्दी सकल संसार में आध्यात्मिक जागृति एवं वैचारिक क्रान्ति के लिए प्रसिद्ध है। इसी समय चीन में कन्फ्यूशियस और लाओत्से का, यूनान में पाइथागोरस, सुकरात और अफलातून का, ईरान में जरथुस्त्र का, इजराइल में नबियों का और भारत में महावीर और बुद्ध का प्रादुर्भाव हुआ।
ये सभी विचारक अपने-अपने भू-प्रदेशों में जनमानस को आध्यात्मिक चेतना से उद्धेलित करने में प्रवृत्त थे। बुद्ध का सन्देश भारतभूमि तक ही सीमित न रहकर चीन, जापान, श्रीलंका, कम्बोडिया, वियतनाम, बर्मा (म्यांमार), लाओस तथा थाइलैण्ड आदि देशों तक फैला। आज सकल विश्व में बौद्ध धर्म के मतावलम्बी पाये जाते हैं।
बौद्ध धर्म की यह विश्व व्यापकता भगवान् बुद्ध के असाधारण व्यक्तित्व की परिचायिका है। वेदों में प्रचलित यज्ञीय हिंसा, कर्मकाण्ड, विविध अन्धविश्वास, जातिवाद, वर्णव्यवस्था आदि के विरोध में ही बौद्धधर्म का उदय हुआ। इस धर्म ने सदा से त्रस्त मानव जाति के लिए औषधि का कार्य किया है।
महायान सम्प्रदाय
महायान शाखा का उदय, बौद्ध धर्म में नवीन परिवर्तन का प्रतीक है। बौद्ध धर्मावलंबियों की महात्मा बुद्ध में असीम श्रद्धा की भावना ने महायान के उदय में आधारभूत भूमिका निभायी। बौद्ध धर्मावलंबियों ने महात्मा बुद्ध को ईश्वर का रूप माना और ’दैवीय अवतार’ मानकर भगवान की तरह पूजना प्रारंभ कर दिया। बौद्ध धर्मावलंबियों ने महात्मा बुद्ध की मूर्ति पूजा प्रारंभ कर दी। महायान धर्म में महात्मा बुद्ध एवं बोधिसत्वों को देव रूप माना।
महायान ने महात्मा बुद्ध और अन्य बोधिसत्वों को देवरूप दे दिया। महात्मा बुद्ध के प्रति भक्ति और अनुराग अब मोक्ष के सर्वसुगम एवं सर्वश्रेष्ठ साधन बन गये, परिणामतः महायान भक्तिवादी, अवतारवादी और मूर्तिवादी बन गया। हीनयानी इसे विधर्म तथा कुछ विद्वान बौद्ध धर्म का विकृत रूप कहने लगे। कुछ विद्वानों ने महायान को बोधिसत्वों का धर्म कहा है।
महायान में बोधिसत्व की कल्पना एक ऐसी प्राणी के रूप में नहीं जो निर्वाण शीघ्र प्राप्त कर लेगा वरन् ऐसे प्राणी के रूप में जो अपने समय की उस अवधि तक प्रतीक्षा करेगा, जब तक क्षुद्रतम जीव भी सर्वोच्च उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर लेता।
महायान में बोधिसत्व की उपस्थिति को ईसाईयत् का प्रभाव मानते हैं। महायान के द्वार सभी प्राणियों के लिए खुले हुए थे। गृहस्थ भी इसे ग्रहण कर सकते थे। निर्वाण हेतु महायान साधक को ‘दस अवस्थाओं से होकर गुजरना होता था – मुदिता, विमला, प्रभाकारी, अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुक्ति, दूरगंभा, अचला, साधमती तथा धर्मसेध।
विद्वानों का मत है कि, महायान बौद्ध धर्म का जन्म प्रथम शताब्दी ईसवी पूर्व में आंध्रदेश में हुआ था। कनिष्क काल में कश्मीर में हुई चतुर्थ बौद्ध संगीति ने महायान बौद्ध धर्म को अभूतपूर्व प्रसिद्धि प्रदान की। नागार्जुन, आर्यदेव, आसंग तथा वसुबंधु के नेतृत्व में महायान बौद्ध धर्म पूर्ण प्रसिद्धि को प्राप्त हो गया।
योगाचार (विज्ञानवाद) सम्प्रदाय
योगाचार (विज्ञानवाद) सिद्धांत के संस्थापक प्रसिद्ध महायान बौद्ध धर्म के विचारक मैत्रयनाथ थे। योगाचार (विज्ञानवाद) सिद्धांत का मानना है कि, ’बाह्म सत्ता की जानकारी ज्ञान से होती है। ज्ञान, विज्ञान और चित्त वास्तविक सत्ता हैं।
विज्ञान को ही एक मात्र सत्ता स्वीकारने के कारण ‘विज्ञानवाद’ तथा योग और आचार पर विशेष बल देने के कारण ‘योगाचार’ कहा गया। योगाचार (विज्ञानवाद) के प्रसिद्ध प्रचारक मैत्रयनाथ ने धर्मधर्माताविभंग, मनुष्यांतविभंग, योगाचार भूमिशास्त्र आदि ग्रंथों की रचना की थी। असंग ने ‘पञ्चभूमि, अभिधर्म समुच्चय’’, महायान संग्रह की रचना की। योगाचार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना लंकावतार सूत्र’ हैं।
माध्यमिक (शून्यवाद) या सापेक्षवाद सम्प्रदाय
माध्यमिक (शून्यवाद) या सापेक्षवाद सिद्धांत के संस्थापक महायान बौद्ध धर्म के महान् विचारक नागार्जुन थे। माध्यमिक (शून्यवाद) या सापेक्षवाद सिद्धांत का मानना है कि, ’प्रत्येक वस्तु किसी कारण से बनी है, इसलिए वह शून्य है। इस प्रकार वस्तुओं का अस्तित्व ‘सापेक्ष’ सिद्ध होता है। यह भाव और अभाव की स्थिति है। निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता, इसलिए यह माध्यमिक दर्शन है।’ माध्यमिक (शून्यवाद) या सापेक्षवाद सिद्धांत के विचारक नागार्जुन ने ‘माध्यमिककारिका’, युक्तिषाष्ठिका, शून्यतासप्तति, विग्रहव्यावर्तनी, प्रज्ञापारमिताशास्त्र आदि ग्रंथों की रचना की थी।
हीनयान सम्प्रदाय
हीनयान सम्प्रदाय, बौद्ध धर्म का मूल रूप है। हीनयान सम्प्रदाय बौद्ध धर्म के प्राचीन मूल रूप को मानता था। वस्तुतः प्राचीन मूल बौद्ध धर्म का परिपालन हीनयान बौद्ध सम्प्रदाय में होता था। हीनयान का अभिप्राय है, निर्वाण हेतु अनुपयुक्त तथा निकृष्ट मार्ग का अनुसरण। हीनयान को ‘श्रावकयान्’ भी कहते हैं। श्रावक उस व्यक्ति को कहते हैं, जो जीवन के क्लेश से त्रस्त होकर, निर्वाण पथ पर अग्रसर होता है। हीनयान साधक ‘अर्हत्’ पद को सर्वोत्कृष्ट एवं परम् लक्ष्य मानते हैं। वैभाषिक एवं सौत्रान्तिक हीनयान सम्प्रदाय के दो प्रसिद्ध मत है।
वैभाषिक सम्प्रदाय
वैभाषिक सिद्धांत का मानना है कि, जगत् का अनुभव इन्द्रिया के द्वारा होता है, जो उसकी बाह्म सत्ता होती है। प्रत्यक्ष या अनुमान दोनों से इसका परिज्ञान होता है। विषयगत् और विषयिगत् दो दृष्टियों से तत्वों का विचार इस मत में किया जाता है। वैभाषिक मत के दो भेद थे – कश्मीरी और पाश्चात्य वैभाषिक, जिसका केन्द्र गांधार था। इस मत के प्रधानतः चार आचार्य धर्मत्रात, घोषक, वसुमित्र, बुद्धदेव थे।
सौत्रान्तिक सम्प्रदाय
सौत्रान्तिक सिद्धांत के संस्थापक कुमारलात थे। सौत्रान्तिक सिद्धांत का मानना है कि, ’यह बाह्म सत्ता को अवश्य स्वीकारता है, किन्तु इसका ज्ञान ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में नहीं होता। चित्त शुद्ध और निरकार है।’ कुमारलात के शिष्य श्रीलाभ भी सौत्रान्तिक सिद्धांत के विचारक थे।
हीनयान और महायान सम्प्रदाय में अंतर
1 – हीनयान महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित मूल बौद्ध धर्म था, जबकि महायान, हीनयान का संशोधित एवं परिवर्तित रूप था।
2 – हीनयान केवल महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को मानता है, जबकि महायान महात्मा बुद्ध, प्रत्येक बुद्ध तथा बोधिसत्वों की शिक्षाओं को मानता है।
3 – हीनयान प्रमुखतया दर्शन है और महायान धर्म है।
4 – हीनयान की अपेक्षा महायान का कार्यक्षेत्र विस्तृत है। हीनयान का लक्ष्य व्यक्ति विशेष को और महायान का सम्पूर्ण विश्व को निर्वाण दिलाना था।
5 – हीनयान महात्मा बुद्ध को एक महापुरूष तथा महायान उन्हें देवता का प्रतिरूप मानता है।
6 – हीनयान के सिद्धांत कठोर हैं। चार आर्य सत्य एवं आष्टांगिक मार्ग का पालन करने पर ही निर्वाण प्राप्ति संभव है, जबकि महायान सरल एवं सुगम है। महात्मा बुद्ध के प्रति श्रद्धा भक्ति – प्रदर्शन द्वारा भी मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
7 – हीनयान का परम् लक्ष्य ‘अर्हत्’ प्राप्ति, जबकि महायान बोधिसत्व को परम् लक्ष्य मानता हैं।
8 – हीनयानियों का मानना है कि, महात्मा बुद्ध ने अपने सभी अनुयायियों को एक ही प्रकार के उपदेश दिये। वहीं, किन्तु महायानियों का मानना है कि, बुद्ध ने साधारण कोटि में शिष्यों को ‘प्रगट उपदेश’ तथा अधिक योग्य शिष्यों को ‘गुह्म उपदेश’ दिये।
9 – हीनयान ‘प्रज्ञा’ (ज्ञान) प्रधान तथा महायान ‘करूणा’ प्रधान है।
10 – हीनयान ‘संन्यासी’ व महायान गृहस्थ जीवन पर बल देता है।
11 – हीनयान की अपेक्षा महायान अधिक आशावादी है।
12 – हीनयान मूर्ति उपासना नहीं मानता, महायान में मूर्तिपूजा की जाती है।
13 – हीनयान ने ‘पाली’ तथा महायान ने ‘संस्कृत’ भाषा का प्रयोग किया।
वज्रयान सम्प्रदाय
वज्रयान सम्प्रदाय बौद्ध धर्म का तांत्रिक सम्प्रदाय था। वज्रयान सम्प्रदाय का उदय पाँचवीं – छठीं शताब्दी ईव्म् में हुआ था। वज्रयान सम्प्रदाय तंत्र-मंत्र द्वारा ईश्वरीय सत्ता की प्राप्ति का मार्ग बताता था। एव्म् एलव्म् बाशम का कथन है कि, ‘वज्रयान सम्प्रदाय में ईश्वरीय उत्पादन की क्रिया की कल्पना यौन संबंध के रूप में की गयी थी। वह विचार उतना ही प्राचीन था, जितना ऋग्वेद।’ बौद्ध धर्म के तंत्र सिद्धान्त ‘मंजूश्रीमूलकल्प और गुह्मसमाज’ ग्रंथों में संग्रहित है।
कालचक्रयान सम्प्रदाय
9-10 वीं शताब्दी में उदय हुआ। कालचक्र दर्शन में कालचक्र को परम देवता के रूप में माना गया। इसमें ‘शून्यता’ और ‘करूणा’ है, जो प्रज्ञात्मक शक्ति से संयुक्त है। कालचक्र में अद्वयतत्व की धारणा व्यक्त होती है, जिसे कालचक्र में आदिबुद्ध कहा जाता है। इसमें मानव शरीर को ब्रह्माण्ड का प्रवर्तन माना गया है। ‘कालचक्रतंत्र’ और उसकी ’विमलप्रभा टीका’ इस सम्प्रदाय क आधार ग्रंथ हैं।
छठी शताब्दी ई पू के धार्मिक बौद्धिक आंदोलनों ने महात्मा बुद्ध और उनके बौद्ध धर्म के उदय में आधारभूत भूमिका निभाई। महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म के रूप में समतामूलक एक ऐसी आचार संहिता प्रदान की जिसके द्वार सभी के लिए खुले हुए थे। महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म के रूप में एक सरल, संतुलित, तर्कयुक्त मार्ग समस्त जीवों के कल्याण के लिए खोला। जिसमें ’सर्वो भवन्ति सुखिनः’ और समस्त जीवों के कल्याण की भावना समाहित थी। महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म में मानवता की सर्वोच्चता और मानवाद की पराकाष्ठा को प्रतिष्ठित किया।