बनवा लेव पुंगरिया तड़के, आज पिया से अड़के।
ऐसी सखियां कोउ न पैरें, गांव भरे से कड़के।
हीरा-मोती खूब जड़े हों, भई मोल में बढ़के।
कहें ईसुरी प्यारी लाने, धुरी भुंसरा जड़के।
इसके पहले बुन्देली गहनों का विवरण है, जिनमें पुंगरिया नाक में पहनने का एक आभूषण होता है। ईसुरी बुन्देली माटी में जन्में पले-बडे़ होने के कारण बुन्देली संस्कृित का उन्हें पूर्णरूपेण ज्ञान था। सच्चा कवि वही माना जाता है, जो समकालीन परिप्रेक्ष्य की झलक अपने रचना संसार में समाहित करके सृजन धर्मिता का निर्वाह करे।
महाकवि ईसुरी को बुन्देली का महाकवि इसी आशय के साथ स्वीकारा गया है कि उन्होंने बुन्देली सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाज, संस्कार, तीज -त्योहारों आदि सभी को अपनी रचनाओं में समाहित किया है। उनकी फागें बुन्देली जनजीवन की आत्मा बनकर उभरी हैं।