Homeबुन्देलखण्ड का इतिहास -गोरेलाल तिवारीBanda Me Vidroh Ki Shuruat बांदा में विद्रोह की शुरूआत

Banda Me Vidroh Ki Shuruat बांदा में विद्रोह की शुरूआत

स्वाधीनता संग्राम का बिगुल बज चुका था जहां- तहां छावनी में विद्रोह शुरू हो चुका था लोग अंग्रेजी सेना से बागी हो रहे थे और अपने देश की स्वतंत्रता के लिए जान देने के लिए तैयार हो गए थे।  ऐसे समय में Banda Me Vidroh Ki Shuruat हो गई । बागी सैनिकों ने अंग्रेजों के सरकारी बंगले तोड़ना और उन्हें आग के हवाले कर देना शुरू कर दिया।

खल्क खुदा की मुक बादशाह का हक्म नवाब अली बहादुर का

रविवार 14 जून को बाँदा स्थित बारहवीं बंगाल देशी पल्टन की  दो टुकड़ियों के सिपाहियों ने अधीनता पूर्वक काम करने में बहुत ही ढील  दिखाई । उन्होंने खजाना देने से इनकार कर दिया यह वही खजाना था बाँटने के लिए पूर्व में ही कलेक्टर तथा नवाब में समझौता हो गया था।

बाँदा नगर में विद्रोह की आशंका को देखते हुए कलेक्टर ने फतेहपर से फोर्स बुलाई । फोर्स बाँदा आ पहुंची। बांदा के डिप्टी कलेक्टर ने (जो बाद में विद्रोही हुआ) इस फोर्स को विद्रोहियों का दल समझा और तदनुसार उसने इसकी सूचना कलेक्टर को दी। कलेक्टर ने अजयगढ़ राज्य को फोर्स तथा नवाब के सिपाहियों को बुलाया तथा फतेहपुर की ओर से आ रहे संदिग्ध विद्रोहियों को रोकने का आदेश दिया।

उस समय नवाब की फोर्स का कमान्डेन्ट बिन्जामिन उपस्थित नहीं था। अतः लेफ्टीनेन्ट वेनेट ने कमान सम्भाली। इस पर बांदा नवाब के सिपाही विगड़ पड़े । स्थिति को बिगड़ता देखकर लेफ्टीनेन्ट फ्रेजर तथा इन्साइन क्लर्क बांदा नवाब के पास पहुंचे। उन्होंने नवाब को कलेक्टर की प्रार्थना सुनाई। कि कलेक्टर ने नवाब से अनुरोध किया है कि नवाब स्वयं मौके पर जाकर सिपाहियों को समझावें तथा उनसे कहें कि बेनेट को अपना कमान्डर स्वीकार करें।

कलेक्टर तथा नबाब स्वयं सिपाहियों के पास गये नवाब ने उनसे कहा कि ‘आप सभी लोग हमारे पुराने सेवक हैं। और यह समय है जबकि उन्हें अपनी वफादारी बतानी है । उनका फर्ज है कि वे मेरे कहने के मुताबित चलें ।” कलेक्टर ने इसी समय मिर्जा विलायत हुसैन से कहा कि वह भी सिपाहियों को समझावें। कलेक्टर इस वात के लिए तैयार हो गया कि इन सिपाहियों को पचास हजार रुपये तथा इतनी ही राशि नवाब के सिपाहियों व सवारों तथा अन्य आदमियों को दी जाय । सिपाही इस पर तैयार थे और बेनेट को अपना कमाण्डर स्वीकार करते थे।

कैप्टन  जो उस समय वहीं मौजूद था, इन सिपाहियों से उल्टे सीधे प्रश्न करने लगा और कुछ कड़ा रुख अपनाया। उसने इन सिपाहियों के हवालदार को एक तमांचा रसीद कर दिया, इस पर सिपाही बिगड़ उठे और वे लाइन की ओर चल दिए।

कैप्टन बेनेट सहसा नवाब के पास आया और कहा कि बांदा के सिपाही उसे स्वीकार नहीं करते हैं। नवाब ने तुरन्त ही विलायत हुसेन तथा गुलाम हैदर को सिपाहियों के पास भेजा कि सिपाहियों को आगे बढ़ने से रोके । सिपाहियों ने इनकी भी बात नहीं मानी  तथा उनको भी भला बुरा कहा और वे लाइन की ओर बढ़ते गये। विलायत हुसैन और गुलाम हैदर वापस नवाब के पास आये । यह सब वाक्या सुनकर कलेक्टर को बहत अचम्भा हुआ ।

नवाब ने कलेक्टर को अपने साथ लिया और उसे अलग से एक कमरे में ले गया वहाँ पर उन्होंने इस घटना के परिपेक्ष में विचार किया इतो में लेफ्टीनेन्ट फ्रेजर  दौड़ता हुआ आया तथा बताया कि इन सिपाहियों ने बिगुल बजाकर सभी सिपाहियों को हथियारों सहित तैयार कर लिया है । अब तो सभी अधिकारी असहाय से हो गये । उन्होंने बाँदा नगर को छोड़ने का निश्चय किया।

उस समय अंग्रेजों को न तो अजयगढ़ के आदमियों ने और न ही नागौद के किलेदार ने सहायता दी । अंग्रेज अधिकारियों ने अपना सब माल असबाब नवाब के महल में छोड़ जाना ठीक समझा ताकि जब लौटकर आएंगे  तो सामान सुरक्षित मिल जायेगा। बांदा नगर छोड़ते समय कलेक्टर ने नवाब को पत्र लिखा कि उसकी अनुपस्थिति में बांदा जिले का प्रशासन नवाब संभालेंगे जब तक कि वह इलाहाबाद से वापस नहीं आता है।

बाँदा छोड़ कर 17  अंग्रेज 14  जून को रत को करीब आठ नौ बजे नागौद के लिये चल दिये उनके जाने के बाद छावनी  के सभी बंगले जला दिये गये। तथा सम्पत्ति लूट ली गई।  सम्पत्ति लूटते समय बागी चिल्लाने लगे थे फतह सरकार (पेशवा) हुई।  नवाब ने अपने महल में यूरोपियनों को शरण दे रखी थी। बागियों के मांगने पर भी नवाब ने यूरोपियनों को बागियों को नहीं दिया । बागी इस पर तीन चार दिन तक महल को घेरे रहे, ले कन कामयाबी हाथ न लगी।

15  जून को प्रातः बारहवीं पल्टन के बागी सिपाहियों ने जेल पर धावा बोला। जेल दरोगा भी बगावत में शामिल हो गया। बागी अपने साथ लोहारों को लाये थे। लोहारों ने बदियों के पैरों में पड़े लोहे की बेड़ी काटी और बन्दियों को जेल से मुक्त कर दिया।  जेल की दोनों तोपें मालखाना का सामान, गोलाबारूद आदि अपने कब्जे में किया।

नागौद के पोलीटिकल असिस्टेन्ट को जब इस घटना का समाचार  मिला तो वह पन्ना राजा के दो सौ सिपाहियों के साथ बादा पहुँचा। पन्ना राजा के सिपाही 15 जून को नागौद आ पहुँचे । बाँदा में 15  जून को हुए दंगों के सिलसिले में ले. बेनेट तथा फ्रेजर  को अपने स्थान से भागने के दोष पर सागर के ब्रगेडियर कमान्डिग ने निलम्बित कर दिया। जब कलेक्टर भाग गया तो वे बाँदा में रह कर अपने जीवन के साथ खिलवाड़ क्यों करते ।

बांदा से कलेक्टर मिस्टर मेन, एडमन्सिटन तथा यूरोपियन महिलायें मय बच्चों के 16  जून को रीवा होते हुए मिर्जापुर के लिए भागे, इन में वे भी अंग्रेज अधिकारी शामिल थे जो फतेहपुर से भागकर दो दिन पहले ही बांदा आये थे ।  नवाब ने अपने अमलों में काम करने वाले बिन्जामिन और क्रूस  को बांदा से भाग जाने की सलाह दी।

नवाब का कामदार विलायत हुसैन आत्मज रहमतउल्ला विद्रोहियों की तहे दिल से मदद करता था और उसी के परामर्श पर नवाब भी अग्रेजों के खिलाफ हो गए थे । बांदा में जो कुछ भी घटित हुआ और अंग्रेजों पर जो भी अत्याचार हुए उसका उत्तरदायित्व विलायत हुसैन पर ही आता है । अन्त में वह पकड़ा गया और उसे फांसी पर लटका दिया गया। उसे आम माफी की घोषणा की तहत रियायत भी  नहीं दी गई । और न ही विशेष अधिकारियों के समक्ष अपील करने का भी मौका दिया।

बांदा से अंग्रेजों के भाग जाने के बाद नवाब ने बांदा में अपना राज्य कायम हो जाने की रातो-रात घोषणा कर दो। ‘खल्क खुदा की मुक बादशाह का हक्म नवाब अली बहादुर का’ इसके बाद नवाब ने शहर कोतवाल तथा बाँदा के तहसीलदार को बुलाया और बताया कि वे बदस्तूर अपने अमले के साथ काम करें। कोतवाल ने इसकी मुनादी शहर में करा दी । मुनादी सुनकर बागी सिपाहियों का एक दल कोतवाली आया और मुनादी करने वालों को भगा दिया तथा कोतवाल को डाँटा । उन्होंने मुनादी कराई कि सभी जनता ईश्वर की है। राज्य देहली के बादशाह का है और शासन फौज का है।  इन विद्रोहियों ने तहसील के अमले को तथा तहसीलदार को पकड़कर कैद कर लिया ।

अगले दिन नवाब अलीबहादुर ने भी अपने राज्य की स्थापना की घोषणा कर दी। और तुरन्त ही बागियों को आमन्त्रित किया। उनका सत्कार किया तथा मिठाई की दावत भी दी । नवाब ने उनके ही प्रशासन को मान्यता दी, इस पर वे प्रसन्न हुए और शान्त हो गये । हुक्म नवाब का ही चलेगा उन्होंने सरकारी अमले को बुलाया और कहाकि वे बदस्तूर काम अन्जाम दें ।

किसानों ने लगान अदा करने के वास्ते महाजनों से रुपये उधार लिया था । उनकी भूमि को महजानों ने अपने अधिकार मे  कर लिया था अथवा खरीद लिया था। और जिन महाजनों ने उधारी न चुकाने पर किसानों की जायदाद की कुर्की कराने की डिग्री हासिल कर ली थी, बागियों ने उन्हें नगर से बाहर निकाल दिया और उनकी सम्पत्ति लूट ली। सरकारी कर्मचारी भी भागने लगे । बागियों ने सरकारी सम्पत्ति लूट ली । तथा भवन आदि बरबाद कर दिये ।

छठी देशी पल्टन के सिपाहियों ने इलाहावाद में बगावत कर दी और वहां से भाग कर बाँदा जिले में 16  जून 1857  को दाखिल हुए। वहां उन्हें मालूम हुआ कि नवाब के महल में कुछ यूरोपियन परिवार शरण लिए हुए हैं। उन्होंने इसी समय नवाब से कहाकि उन यूरोपियनों को बागी सिपाहियों के हवाले कर दिया जाय अन्यथा वे नवाब के महल को नष्ट कर देंगे ।

नवाब ने कहा की ईसाईयों को किसी भी कीमत पर नहीं देगा क्योंकि वे उसकी शरण में आये हैं। शरणार्थी नवाब के महल में डेढ़ माह ठहरे तत्पश्चात नवाब ने पोलिटिकल असिस्टेन्ट की  राय पर इन को अजयगढ़ भिजवाने की व्यवस्था की  और बैण्ड बालों को दो सौ रुपये देकर नागौद पहुँचाया।

आधार –

1 – सिन्हा एस० एन० – रिवोल्ट आफ १८५७ इन बुन्देलखण्ड ८६ ।
2 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज ३०-१२-१८५६ द्वितीय भाग अनुक्रमांक ४६ नवाब अली बहादुर का कथन ।
3 –राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन १८६ दिनांक २८ ५-१८५८ सिट कमिश्नर जबलपुर का भारत सरकार के नाम पत्र संख्य [ए] दिनांक २०-४-१८५८ ।
4 – राष्ट्रीय अभिलेखागार सिक्रेट प्रासीडिंग्ज २५ ६-१८५७, प्रथम भाग [अनुक्रमांक ३३३] बादा नवाब का पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड के नाम खरीता दिनांक २६ ६-१८५७ ।
5 –राष्ट्रीय अभिलेखागार सिक्रट प्रासीडिंग्ज २५-६-१८५७ प्रथम भाग अनुक्रमांक ३३३ कालीदास घोष पोस्ट अफिस राइटर बांदा का पत्र अपने चचेरे भाई के लिये पत्र दिनांक २८.६-१८५७ ।
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन २३३-४ दिनांक २८-५-१८५८ सिकट गर्वनर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम त्र संख्या ३१७ दिनांक २६-५-१८५८ ।
8 -राष्ट्रीय अभिलेखागार-सिक्रेट डिसपेच दू गर्वनर जनरल १८५७, अनुक्रमांक १८२ पोलीटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र दिनांक २-७-१८५७।
9 – मजुमदार आर० सी० द सिपोट म्युटिनो एण्ड रिवील्ट आफ १८५७ पृष्ठ १२० ।
10 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन ३५२-३ दिनांक २५-६-१८५७. 1 सिक्रेट पोलीटिक असिस्टेन्ट की ओर से मजिस्ट्रट बांदा के नाम पत्र संख्या ३२४ दिनांक १५-६-१८५७ ।।
11 – राष्ट्रीय अभिलेखागार– कन्सलटेशन १८० दिनांक ३१-७-१८५७; सिक्रेट पोलीटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम सविस मेसेज दिनांक २७-७-१८५७ ।
12 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिग्ज ३१-१२-१८५८, ग्यारहवां भाग अनुक्रमांक २१५७, पोलीटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या २२८, दिनांक ५-१०-१८५८ ।
13 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिंग्ज ३०-१२-१८५६, द्वितीय भाग अनुक्रमांक ४६ नवाब अली बहादुर का कथन ।
14 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-रिवोल्ट इन सेन्ट्रल इंडिया/२६ प्रे०।२-राष्ट्रीय अभिलेखागार-सिक्रेट प्रासीडिग्ज २५-६-१८५७ ।
15 – पोलीटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से गवरनर जनरल के एजेन्ट के नाम पत्र संख्या १७६ दिनांक ३-७-१८५७ ।।
16 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रासीडिग्ज, ३१-१२-१८५६, द्वितीय भाग अनुक्रमांक ४६ नवाब अली बहादुर का कथन ।
17 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिग्ज ३०-१२-१८५६ ।।

१-अनुक्रमांक ४६ विलायत हुसैन का स्टेट मेन्ट । २-अनुक्रमांक ५६ मजिस्ट्रेट बांदा की ओर से कमिशनर चतुर्थ सम्भाग के नाम पत्र संख्या ६८६ दिनांक ५-६-१८५६ । ३-अनुक्रमांक ५६ भारत सरकार का गवरनर जनरल के एजेन्ट के नाम पत्र संख्या ८०७ दिनॉक २४-१२-१८५६।
18 – राष्ट्रीय अभिलेखागार -१४ [iii] के अनुसार १७- राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलरेशन २३३-३४, दिनांक २८-५-१८५८, सिक्रेट गवरनर जनरल के एजेन्ट का भारत सरकार के नाम पत्र ।
19 – मजूमदार आर० सी०- द सिपोयम्युनिटी एण्ड द रिवाल्ट आफ १८५७, पृष्ठ १२०- १ सिक्रेट, गवर्नर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार

 

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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