भारत मे जगह-जगह अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज़ें उठाने लगी थीं । क्रान्ति के प्रारम्भ में इलाहाबाद तथा कानपुर जेल से सजायाफ़्ता बंदी छूटकर बांदा के अड़ोस-पड़ोस के क्षेत्र में 15 जून को दाखिल हुये और यहीं से Banda Me Vidroh Ki Chingari सुलग उठी । कुछ बन्दी मऊघाट पर 8 जून को पहंचे । उन्होंने इन क्षेत्रों के आदमियों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ भड़काया तथा उन्हे विद्रोह करने के लिये तैयार किया।
इन विद्रोहियों ने मऊ, मनकवारा एवं पूर्वी पट्टी के आदमियों से मिल कर मऊ तहसील को लूटा । इन्होंने कुछ दिनों तक तहसीली तथा थाने के अमले को कैद रखा। हिंगनघाट के जमादारों ने विद्रोहियों के चंगुल से इम अमले को मुक्त कराया। मऊ तहसीली के भवन व रिकार्ड को विद्रोहियों ने जला दिया तथा खजाने से बारह सौ रुपये ले भागे । तहसीलदार अपनी जान बचाकर भागने में सफल रहा।
मऊ लूटने के बाद विद्रोही राजापुर की ओर बढ़े । उन्होंने राजापुर के बाजार को लूटकर बस्ती में धावा बोला । राजापुर के महाजनों ने साहस के साथ उनका मुकाबला किया । गाँव वालों ने उन महाजनों को इस काम में सहयोग भी दिया विद्रोहियों ने अनेक हमले किये लेकिन वे सफल न हो सके । बांदा जिले के ही जमींदारों तथा जनता ने जिनमें मरका तथा समगरा के जमींदार प्रमुख हैं, उन्होंने ६ जून को बिद्रोह कर दिया ।
राजापुर का भगोड़ा तहसीलदार जान बचाकर 11 जून को बाबेरू पहुंचा । मरका तथा समगरा के जगीरदारों को जब यह पता चला तो उन्होंने अगले दिन 12 जून को बाबेरू पर आक्रमण वोला । उन्होंने खजाने से पांच सौ रुपये लूटे । तहसीलदार यहां से भी भागने में सफल रहा। तहसीलदार और बाबेरू का थानेदार बांदा पहुंचे जहाँ उनकी जान में जान आई।
अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध विद्रोहियों के बढ़ रहे कदमों की जानकारी आसपास के ग्रामीण अंचलों में पहुंची उन ग्रामीणों ने भी साहस जुटाया बेंदा, जौहरपुर तथा पैलानी की जनता भी उपद्रव पर उतारू हो गई। इन लोगों को सेमरी, बासलपुर की जनता ने भी सहयोग दिया । इन सब ने मिलकर 11 जून को तिन्दवारी तहसीली को लूटा । वहां का रिकार्ड नष्ट कर दिया तथा खजाने के साढ़े तीन हजार रुपये लूटे । तहसीली का अमला जान बचाकर 13 जून को वांदा भाग गया।
इसी दौरान बरौंधा के राजा ने अंग्रेज सरकार का रसिन नामक गांव भी छीन लिया। बांदा का प्रमुख अमीन तसद्दुक हुसेन खां नामक व्यक्ति था । वह भी विद्रोही दल में शामिल हो गया । इसी प्रकार बाँदा के नवाब का चौबदार रामप्रसाद भी बागियों से जा मिला । इस तरह बांदा नगर के वातावरण में अशान्ति के लक्षण दिखने लगे ।
कलेक्टर ने जून में ही नागौद के पोलीटिकल असिस्टेन्ट को लिखा कि बाँदा की सुरक्षा के लिये अतिशीघ्र सेना की व्यवस्था कर दें। इस पर पोलीटिकल असिस्टेन्ट ने नागौद छावनी के मेजर हेम्पटन को लिखा कि वह बांदा जाना चाहता है, अतः उसके साथ सुरक्षा के लिए फोर्स की व्यवस्था कर दी जाय । मेजर ने उसके अनुरोध को टाल दिया और लेफ्टीनेन्ट बाबी को भी नहीं भेजा। उसने समझाया कि नागौद की स्थिति भी ठीक नहीं है, अतः उसे इस समय नागौंद नहीं छोड़ना चाहिये।
अंग्रेज सरकार ने पन्ना राजा से भी सहायता माँगी। बाँदा जिले का दमन करने हेतु पन्ना राजा ने पोलीटिकल असिस्टेन्ट को बताया कि वह छै: तोपों के अलावा एक हजार बन्दूकची देने को तैयार है। इसके पहिले भी पन्ना राजा ने अंग्रेज सरकार के पास चार हाथी, पचास बैल तथा पच्चीस भैसे नागौद भेजे थे । इसके साथ एक हजार सिपाही तथा एक तोप भी भेजी थी।
यही नहीं बांदा के कलेक्टर मि० मेन के पास छतरपुर-राजा ने भी पांच सौ सिपाही तथा दो तापें भेजी। कलेक्टर ने गौरिहार, अजयगढ तथा चरखारी के राजाओं से भी सहायता माँगी । गौरिहार राजा ने १२५ सैनिक तथा एक तोप, अजयगढ़ राजा ने दो सौ बन्दूकची और सवारों के अलावा दो तोप बांदा भेजी।
जून 1857 के मध्य में बाँदा में अफवाह फैल गई कि चिल्ला तारा घाट की ओर से अंग्रेज फौज आ रही है। बाद में मालूम पड़ा कि कोई फौज आदि कही से नहीं आ रही है । लेकिन दूसरे ही दिन 12 जून को किन्हीं अज्ञात व्यक्तियों ने रात को दो बंगले जला डाले और उसके बाद 13 जून की रात के नौ बजे तीन चार और भी बंगले जला दिये गये । नवाब को इन हरकतों की जैसे ही सूचना मिली उसने अपने आदमियों के दल शहर में शान्ति बनाये रखने के लिये भेजे।
बाँदा के मुसलमानों पर से तो अंग्रेजों का विश्वास उठ गया। था। नागौद के पोलीटिकल असिस्टेन्ट ने इस बाबत गवर्नर जनरल के एजेण्ट को बताया और उसने सरकार को सलाह दी की हिंदुस्तान के राजा नवाबों की मुस्लिम फौज पर कभी भी विश्वास न किया जाए।
विद्रोह के समय बांदा की छावनी में कैप्टन बेनर के अधीन बारही बंगाल देशी पल्टन की तीन कम्पनियां थीं। कलेक्टर ने बाँदा के संभ्रांत नागरिकों को यह अनुमति दे दी कि वे अपनी सुरक्षा के लिए सशस्त्र चौकीदार रख सकते हैं । व्यापारियों तथा दुकानदारों से कह रखा था कि वे भी अपनी-अपनी संस्था की हिफाजत के लिये एक या दो आदमी रख सकते हैं । कलेक्टर ने शहर की चौकसी हेतु शहर के मुख्य मार्गों पर गश्ती दल तैनात कर दिये थे ।
यमुना नदी पर, चिल्ला तारा घाट पर जहां से इलाहाबाद के विद्रोहियों के आने की आशंका थी, मोहम्मद सरदार खाँ डिप्टी कलेक्टर की देखरेख में फौज की एक टुकड़ी तैनात कर दी थी हमीरपुर तथा चिल्ला तारा घाट से आने वाले मार्गों तथा शहर की सड़कों पर गश्ती दल की देख-रेख का भार असिस्टेन्ट मजिस्ट्रट मिस्टर वेवस्टर पर था। कलेक्टर सभी की देख रेख करता था।
8 जून को सरदार खां ने कलेक्टर को बताया कि बागी सिपाही चिल्ला तारा घाट से यमुना नदी पार कर रहे हैं, बाद में कलेक्टर ने स्वयं देखा कि 12 जून और 13 जून को क्या घटा है। अत: कलेक्टर स्वयं ही नवाब के पास गया और बाँदा में अंग्रेजों की सुरक्षा करने हेतु अनुरोध किया । कलेक्टर की प्रार्थना पर नबाब ने उसे आश्वासन दिया कि वह यूरोपियन महिलाओं एवं बच्चों को नवाब के महलों में पहुंचा दें। महिलाओं तथा बच्चों की संख्या 32 थी।
कलेक्टर ने वैसी ही व्यवस्था की। कलेक्टर मेन, जज और कैप्टन बेनेट ने भी महल में शरण पाई । बागियों को जब इस बात का पता चला तो वागी नवाब के पास पहुंचे तथा इन यूरोपियों को उनसे मांगा । वागी तीन दिन तक महल को घेरे रहे लेकिन नवाब ने यूरोपियनों को अपनी शरण में रखा और कहा कि शरण लेने वालों को सुरक्षा करना हमारा फर्ज है ।
जुल्फिकार अली के समय में भी तो अंग्रेज अधिकारियों ने महलों में शरण पाई थी। उस समय जैतपुर के राजा परीक्षत तथा अन्य पंडितों ने लूट मचाई थी। महल में यूरोपियनों को भली प्रकार रखा । महल के नीचे तल में उनका कार्यालय था वहीं पर खजाना भी रखा गया । जिस समय यह खजाना महल में ले जाया जा रहा था उस समय देशी सैनिकों को अच्छा नहीं लग रहा था।
उस समय खजाने में आठ लाख रुपये थे जिसमे से अस्सी हजार अमले (स्टाफ) को वेतन दे दिये। इलाहाबाद 2,20,00 25000 तथा नागौद 50000 भेजने के बाद दो लाख रुपपे बचे। उन्हे छावनी भेज दिये गया और वहां से महलों में भेज डिया गया । सभी यूरोपियन अधिकारी महल में चले गये थे केवल छावनी का पल्टन अधिकारी मेन छावनी मे ही रुका रहा। महल में अधिकारियों ने तय किया कि खजाने का खर्च इस प्रकार किया जाये ।
1 – बांदा के सभी सैनिकों को एक माह का वेतन दे दिया जाये। 2 – स्टाफ को भी वेतन दे दिया जाये । 3- नवाब को कुछ पेन्शन अग्रिम के रूप में दे दी जाये।
आधार-
1 – मजूमदार आर०सी०-द सिपाय म्यूटिनी एण्ड द रिवोल्ट आफ 1857 प्रा० 120
2 -सिन्हा एस०एन०- रिवोल्ट आफ 1857 इन बुन्देलखण्ड पृष्ठ 85-86
3 -हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूमेन्ट इन इण्डिया रीवा के अभिलेखों से
4 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीटिग्ज, ग्यारहवां भाग अनुक्रमांक 1530 पश्चिमोत्तर प्रान्त सरकार की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या 16 दिनांक 26-11- 1758
5 – राष्ट्रीय अभिलेखागार राष्ट्रीय प्रोसीडिंग्ज, 25-6-1857 प्रथम भाग, अनुक्रमांक 243 भारत सरकार की ओर से गवर्नर जनरल के एजेन्ट के नाम पत्र संख्या 3689 दिनांक 11-9 – 18 57
6 – राष्ट्रीय अभिलेखागार- कन्सलटेशन 204 दिनांक 29-1 -1858 पोलीटिकल, मुसाहब जान का बयान।
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन 352-3 दिनांक 25-9-1857 सिक्रेट, पोलीटिकल असिस्टेन्ट, बुन्देलखण्ड की ओर से मेजर हेम्पटन के नाम पत्र-दिनांक 15-6-1857 तथा 21-6-1857 ।
8 – राष्ट्रीय अभिलेखागार – डिसपेच सिक्रेट कमेटी, 1857 अनुक्रमांक 55, पालीटिकल असिस्टेन्ट, बुन्देलखण्ड का मेसेज दिनांक 30-7-1857।
9- राष्ट्रीय अभिलेखागार – सिक्रेट डिसपेच टू गबर्नर जनरल; 1857, पोलोटि कल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र दनांक 11-7-1857
10 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्रोसीडिंग्ज 11-3-1859, अनुक्रमांक 207 पोलीटिकल असिस्टेन्ट, बुन्देलखण्ड की रिपोर्ट संख्या 156 दिनांक 20-6-1858 11 – सिन्हा एस० एन० रिवोल्ट आफ 1857 इन बुन्देलखण्ड, पृष्ठ 83 ।