Homeबुन्देलखण्ड का इतिहास -गोरेलाल तिवारीBanda Ke Nawab Ka Sangharsh बांदा के नवाब का संघर्ष

Banda Ke Nawab Ka Sangharsh बांदा के नवाब का संघर्ष

अजयगढ़ राज्य तथा बांदा जिला किसी समय महाराजा छत्रसाल के राज्य के अंग थे। बाँदा का वह भूभाग अली बहादुर प्रथम ने फतह करके ले लिया और नवाब का खिताब प्राप्त करके बांदा को राजधानी बनाया था। 1856-57 में अजयगढ़ का राजा विजय सिंह थे और बांदा का नवाब अली बहादुर द्वितीय जो उस समय केवल एक पेनशनर थे । महाराज छात्रसाल के वंशज बांदा को भी लेना चाहते थे विजय सिंह के मरने के बाद अजयगढ के राजा रणजोर सिंह भी बांदा को लेना चाहता था । ऐसे समय मे Banda Ke Nawab Ka Sangharsh और अधिक हो गया ।  

अजयगढ़ राज्य ने बांदा की अशान्त स्थिति को देखा तो उसने बाँदा को हथिया लेने के लिए अपनी सेना के कमान्डेन्ट रणजोर दौआ को सेना के साथ भेजा । बाँदा से सात मील दूर पर निमनी नदी है जो अजयगढ़ राज्य तथा बाँदा जिले की सीमा बनाती थी। निमनी नदी के उस पार अजयगढ़ राज्य का किला है । जहाँ रणजोर दौआ ने अपनी सेना के साथ डेरा डाल लिया और वहां से वह अकसर बांदा में घुसपैठ करता था।।

अजयगढ़ राज्य के सिपाहियों ने बांदा के एक महाजन कल्ला आत्मज बाजीमल को कैद कर लिया । एक दिन इस पर लड़ाई भड़क उठी ।  रणजोर दौआ ने अगस्त 1857  की लड़ाई में नवाब से कुछ गांव छीन लिये। इसके पहिले भी अकसर झगड़े हुआ करते थे। क्योंकि इन गांवों के राजस्व वसूली  से दौआ आधा भाग चाहता था। जबकि नवाब रुपया में पांच आना ही देने को तैयार थे । मामला बढ़ता ही गया दानापुर की बागी पल्टन के अधिकारियों ने भी दौआ को बहुत कम समझाया लेकिन दौआ नहीं माना।

बांदा जिले में इंशाउल्ला एक सशक्त मालगुजार था और अंग्रेज सरकार का हिमायती भी। नवाब ने नए भर्ती किये गये सिपाहियों को उसके अधीन रखा। यदि नवाब उसे अपनी सेना में न लेता तो वह अजयगढ़ राज्य की सेवा में चला जाता और बांदा को शिकस्त देने से नहीं चूकता । रणजोर दौआ और  मीर इंशाउल्ला बांदा नवाब के खिलाफ बड़े गहरे विरोधी साबित होते । क्योंकि बांदा जिले के अधिकाँस  जमींदार मीर इंशाउल्ला का ही पक्ष लेते ।

नागौद का पोलीटिकल असिस्टेन्ट मेजर इलिस इधर तो रणजोर दौआ से कहता कि वह नवाब बांदा से लड़े और उधर नवाब को सलाह देता कि रणजोर दौआ को अच्छी शिकस्त दे । मीर इन्शाउल्ला को नवाब बांदा ने अपने पक्ष में रखना उचित समझा ।

बांदा का एक अन्य क्रान्तिकारी सरदार खां था। उसके साथी नजीब थे। पोलीटिक्ल असिस्टेन्ट ने उसे पकड़ने की घोषणा कर रखी थी। यह सुनकर सरदार खां ग्वालियर की तरफ भाग गया और नजीबों की एक टुकड़ी भी उसके साथ चली गई। सरदारखां को पकड़ने के लिये व्रीटिस सरकार को बांदा के ही चौधरी मन्नलाल तथा जावोराम ने अश्वासन दिया था। लेकिन इसी समय  रणजोर दौआ ने कपसा के पास सरदार खां को पकड़ लया । उसके पास जो कुछ भी  था उसे हड़प लिया ।

लेकिन सरदार खाँ किसी तरह छूट कर भाग निकला । लल्ला ब्राम्हण जो अक्सर कलेक्टर को इन गतिविधियों को सूचना देता रहता था उसको भी पकड़ लिया गया तीन माह कैद रखने के वाद जमानत पर नवाब ने उसे छोड़ दिया । इन दिनों नवाव को देखभाल और मदद में बुन्देलखण्ड के अन्य प्रमुख क्रान्तिकारी राहतगड़ के नवाव तथा झीझन के देशपत बुन्देला का परिवार बांदा नगर में डेरा डाले हुए था।

निमनी पार की लड़ाई निमनी पार नाले को सुरक्षा के लिये अजयगढ़ राज्य की ओर से एक सेनाधिकारी तथा उसके आधीन बीस सिपाही तैनात थे। मोहर्रम  के पांचवें दिन मुसाहेब जान को परवाना ( सरकारी पत्र )  मिला कि अनाज तथा रसद की देखभाल करें । वह अजयगढ़ से चला तथा बांदा आया वहां उसे एक पत्र रणजोर दौआ को देना था तथा दूसरा खरीता (पत्र) नवाब बांदा के लिये था।

नवाब ने अपने चोबदार रामप्रसाद को आदेश दिया कि “वह जाकर सेना को बतादें कि युद्ध बन्द कर दिया जाये केवल दो चार सिपाही वहां मौजूद रहें, ताकि वहाँ से अजयगढ़ राज्य के आदमियों को बांदा नगर में प्रवेश करने से रोका जाये, यदि कोई आना भी चाहे तो बिना हथियार के आने दिया जा सकता हैं।

अगले दिन नवाब की सेना मैदान से हट गई केवल कुछ सिपाही डियूटी पर रहे गये। इसके एक दिन बाद मुसाहिब जान फिर से दौआ के पास गया कि वह भी अब अजयगढ़ की फौज को मैदान से बापस कर ले । दौआ ने कहाकि वह तो अजयगढ़ रानी के आदेश के बिना सेना को नही हटा सकता  ।

नवाब को जब यह मालूम हुआ कि आरा से बागियों की दो रेजीमेन्ट आ रही है, तो उसने अपने ए-डी-सी-मकसूद अली, पडित लक्ष्मण रे तथा काजी महबूब अली को पन्द्रह सोलह सवारों एवं कुछ सिपाहियों के साथ आरा की रेजीमेंट के पास ये जानने के लिए भेजा की उनका  क्या उद्देश्य है ।

बांदा से दस बारह मील की दूरी पर ये लोग बिलगाँव नामक स्थान पर पहुँचे। जहां आरा की रेजोमेन्ट रुकी हुई थी। वहां तो एक बाजार लग गया था । बाजार की दुकानों से सिपाही रसद आदि खरीदते थे । चार दिन रुकने के बाद पांचवें दिन सुबेदार भवानी सिंह पांच कम्पनियों को लेकर नागौद गया । पचास सवार नवाब के महलों के प्रथम द्वार पर पहुँचे । वहाँ सवारों के कमान्डेन्ट ने नवाब को एक तलवार भेंट की और नवाब ने उस पर अपना हाथ रखकर अपनी स्वीकृत प्रदान की थी ।

सवारों ने नवाब को बताया कि धर्म के लिये ही देहली जा रहे हैं। नवाब महल के एक कमरे में बातचीत करने के लिये चला गया जहाँ उसके पास केवल विलायत हुसैन महबूब अली, मकसूद अली काजी तथा मोरम थे। शेष लोगों को विदा लेनी पड़ी । गुपचुप बैठक दो घन्टे तक चली । इस बीच निमनी पार दौआ की सेना अड़ी हई थी । मुसाहब जान ने अगले दिन दौआ से कहा की वह अपनी  फौज अब भी वापस ले जाये ।

चार पाँच दिन बाद करीब पचीस बागी जो दानापुर पल्टन के थे दौआ के पास गये जिनमें कुछ बागी सिपाही पचासवीं पल्टन के थे जो नागौद में वगावत  करने के बाद बाँदा आये थे । इन सब सिपाहियों के साथ सूबेदार शिवदयाल भी था। दौआ के पास उस समय बांदा के साहूकार का एक नन्हा बालक भी था जिसे दौआ ने अपहरण कर रखा था, और वह फिरौती की  मांग कर रहा था । शिवदयाल सुबेदार ने आक्रमण करने का भय दिखाया तो दौआ ने उस बालक को छोड़ दिया ।

एक दिन की बात है दौआ की जंगपुर चौकी के जवानों ने तिलंगी फौज पर गोली चला दी , जिसमें 15-16 तिलंगी मारे गये, दौआ रात होते ही कुरारा भाग गया। यह लड़ाई 6  घटे तक हुई। 6  अक्टूबर 1857  का दिन था,  इस लड़ाई में बागी पल्टन के साथ बाबू कुंअर सिंह भी थे । नवाब ने तो दो दिन तक युद्व का स्वय संचालन किया ।

आखिरकार दौआ परास्त हुआ। उसने श्वेत झंडा लहरा दिया दौआ ने अजयगढ़ जाने के लिए मार्ग माँगा कि तु उसकी यह मांग ठुकरा दी गई । दो बार झड़पा-झड़पी हुई, दौआ की फौज ने तिलंगियों पर गोलो की वर्षा की  लेकिन चौथे दिन महताब अली तथा सूबेदार भवानी सिंह ने दौआ को पकड़ लिया । अजय गढ़ के तीन अन्य सैनिक अधिकारी भी पकड़े गये उनको नवाब के पास बांदा भेज दिया गया।

बागी पल्टन ने रणजोर दौआ को जब नवाब के पास पकड़कर भेजा तो वहां पर सिपाहियों ने नवाब से दो लाख रुपये मांगे, लेकिन बांदा नवाब नहीं दे सके । इस पर लोगों ने रणजोर दौआ को गौरिहार के जागीरदार से दो लाख रुपये इनाम मांगा जागीरदार ने बागी सिपाहियों से कहा कि तुम यदि अलीबहादुर नवाब को पकड़कर लाओगे और ब्रिटिश सरकार के हवाले कर दोगे तो हमसे चार लाख रुपये और ले लेना ।

बागी सिपाहियों को यह नागवार गुज़रा । उन्होंने मौका देखकर गौरिहार के जागीरदार के बांदा स्थित महल को लूट लिया । दौआ को भी छीन कर नवाब के कब्जे में कर दिया। महल को बहुमूल्य वस्तुयें, रुपये, कीमती फर्नीचर तथा सामान जला दिये गये।

बागी सिपाहियों ने नवाब से इस लूट से चालीस हजार रुपये मांगे, नवाब ने आनाकानी की तो इन्होंने बखेड़ा खड़ा कर दिया और नबाब से मांग की कि दौआ को उनके सुपुर्द कर दिया जाय तथा वे दो तोप  भी जो उन्होंने निमनी पार युद्ध में अजयगढ़ राज्य के सिपाहियों से छीनी है । यदि उनकी मांग स्वीकार न की गई तो वे नवाव के महल तथा बांदा नगर को लूट लेंगे। पर नवाब रंच मात्र भी नहीं झुके !

इमाम बक्स ने और अधिक देर नहीं की और उसने दौआ को फासी पर लटकाने का आदेश पारित कर दिया; रणजोर दौआ का आतंक समाप्त हो गया । इधर सूबेदार मेजर ने उन दो तोगों में से एक लोहे की तोप को ले लिया। बाद में अजयगढ़ के आदमी वापस निमनी पार किले लौट गये ।

1 – सिन्हा, एस० एन० –रिवोल्ट आफ १८५७ इन बुन्देलखण्ड पू० ८८।
2 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कनसलटेशन ३३२-३३५, सिकट गर्वनर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३१७ दिनांक २६ ५-१८५८।
3 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-२ अनुसार ।
४ – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलिटिकल प्रासोडिंग्ज ३०-१२-१८५६. द्वितीय भाग अनुक्रमांक ४६ नवाब अली बहादुर का कथन ।
5  – [१] अभिलेखागार-कन्सटेशन ८३६-४३ दिनांक १८-१२-१८५७ सिक्रेट, मा गर्वनर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या १७८ दिनांक १५-१०-१८५७. [२] राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन ३४६ दिनांक ३०-१०-१८५७।
6 -सिक्रट, भारत सरकार की ओर से गवर्नर जनरल के एजेन्ट के नाम पत्र संख्या १३६ दिनांक ८-१०-१८५७.
7 –राष्ट्रीय अभिलेखागार-२ अनुसार राष्ट्रीय अभिलेखागर-कन्सलटेशन २०५ दिनांक २६-१-१८५८. दुर्गा प्रसाद का बयान दिनाँक १५-११-१८५७. [२] राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन २०४ दिनांक २६-१-१८५८ । मुसाहब जान का बयान ।
8 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-७ अनुसार।राष्ट्रीय अभिलेखागार-७ [२] के अनुसार ।
9 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-६ के अनुसार ।
10 – राट्रीय अभिलेखागार-६ के अनुसार ।
11 – सिन्हा एस० एन०-रिवोल्ट आफ १८५७ इन बुन्देलखण्ड पृष्ठ ८८ १३ – राष्ट्रीय अभिलेखागार- कन्सलटेशन २३३-३४ दि० २८-५-१८५८ सिक ट, गवर्नर जनरल के एजेन्ट का भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३१७ दिनांक २६-५-१८५८।
12 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-कन्सलटेशन २४५-५६ दिनांक १-४-१८५६ मजिस्ट्रट बाँदा को ओर से कमिश्नर चतुर्थ सम्भाग के नाम रिपीट की सख्या ४६६ दिनांक १०-११-१८५८.

 

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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