1858 Banda Ka Swatantra Sangram अपने चरम पर था। नवाब आली बहादुर ने छतरपुर राजा को पत्र लिखा कि वह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने में मदद करें। इसके विपरीत बुन्देलखण्ड में व्याप्त विद्रोह का दमन करने हेतु छतरपुर की रानी ने ब्रटिश सरकार को फौजी सहायता दी । इस फौज का कमान्डर के. गिरफिन था । यह अपने दस्ते के साथ ही बांदा जिले के क्रान्तिकारियों का सफाया करने में आठ माह तक लगा रहा
चिल्लातारा घाट से मऊ होते हुए मानिकपुर का 128 मील का सफर करने में कमान्डर के.गिरफिन को सात दिन लगे। अपनी सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिये नवाब ने चिल्लातारा घाट पर अपनी सभी नावों को डुबा दिया था । ताकि उस पार से अंग्रेजी फौज बांदा की ओर न आ सके। इसके अलावा महल के चारों ओर खाइयाँ खोदली थी। नवाब के सिपाहियों ने अपनी-अपनी पोजीशन संभाल ली थी। नवाब के पास इस समय पाँच हजार सिपाही चिल्लातारा घाट पर तथा दो हजार सिपाहो बांदा में तैनात थे ।
10 जनवरी 1858 को बांदा नवाब ने चिल्लातारा घाट पर एक सौ सिपाहियों को तोपें के साथ तैनात किया। इस बात का वह इन्तजार कर रहा था कि जैसे ही सरकार पेशवा की अनुमति उसे प्राप्त हो तो वह यमुना पार फतेहपुर पर हमला बोलकर उसे हथिया ले या बरबाद कर दें। चरखारी पर आक्रमण करने के लिये ताँत्या टोपे स्वय कालपी से आ रहे थे ।
जनवरी 1858 में नवाब ने उनकी सहायता के लिए अपनी फौजें केन नदी पर भेजी ताकि वहाँ से ये फौज तात्या टोपे की फौज के साथ चरखारी जा सके । बालाराव ने बादा नवाब तथा नारायण राव को पत्र लिखा कि (ब्रिटीस ) फौज बांदा की ओर बढ़ रही है । इस फौज को रोकने के लिये नारायण राव ने यमुना के राजापुर घाट पर चार सौ सैनिकों के साथ दो तोपें लगा दी। नारायण राव को यह फौज 13 फरवरी को वापस आ गई क्योंकि ब्रिटीस फौज अब तक राजापुर नहीं पहुंची थी।
यमुना तट पर स्थित राजापुर तथा मऊघाट को नारायण राव (कर्वी) के सिपाहियों ने हथिया लिया । 3 मार्च 1858 की बात है कि नवाब तथा कर्वी के नारायण राव के करीब छ: सौ सैनिकों ने नवाब के नेतृत्व में कई गांवों को लूट लिया, उस सयय नारायण राव की दो तोपें भी नवाब के पास थी।
विद्रोही जनता ने अवसर पाकर फरवरी 1858 में बाँदा स्थित सरकारी भवनों व चर्च को जो बच गये थे, नष्ट कर दिया और रिकार्ड जला दिया। इस समय नवाब आली बहादुर का, बांदा जिले पर पूरा नियन्त्रण था बांदा के दक्षिणी परगने की लगान नवाब तथा नारायण राव मिलकर वसूल करते थे।। नवाब अक्सर अपनी विद्रोहात्मक गतिविधियों की सूचना नाना साहब को देते रहते थे ।
नवाब आली बहादुर ने ऐसा ही चिल्लातारा घाट की सुरक्षा के बारे में नाना साहब के भाई को 16 फरवरी 1858 को एक संदेश भेजा कि मैंने यमुना के चिल्ला तारा तथा अन्य घाटों की सुरक्षा कर ली है। नवाब के अलावा नारायण राव तथा उनके कामदार राधागोविन्द ने भी बताया कि वे भी यमुना के राजापुर तथा उसके अन्य घाटों की सुरक्षा का प्रबन्ध सन्तोषजनक ढंग से कर रहे हैं । ऐसी ही एक सूचना नाना साहब के पास बांदा निवासो बाला बक्सी के जरिये भेजी गई । नाना उस समय अवध में ही गंगापार कहीं ठहरे हुए थे । अतः यह यमुना- गंगा को पार करता हुआ नाना साहब के पास गया।
जबलपुर जिले का एक प्रख्यात विद्रोही नेता कुन्दन सिंह का पत्र व्यवहार नाना पेशवा के भाई तथा तात्या टोपे के साथ होता रहता था। कुन्दन सिंह बाँदा गया हुआ था। उसने वहाँ पर बड़ी भारी सेना देखी। वहां पर रामगढ़ राजा के वकील से भी मिला जो कि वहां पर तात्या टोपे को आमन्त्रित करने के लिये गया हुआ था कि वह दक्षिण (जबलपुर की ओर) भी चले, वहां पर उसे बताया गया कि तात्या टोपे का निर्देश है कि अभी सहनशील एव शान्त बने रहें, उत्तेजित होने का समय नहीं आगे तात्या टोपे का यह भी कहना था कि उनका विचार जबलपुर आने का है।
बाँदा के गुसाईयों में दो गुट हो गये थे। दीनदयाल गिरि का गुट बाँदा नवाब का साथ दे रहा था, दीनदयाल गिरि अंग्रेज सरकार का वफादार रहा था । दीनदयाल गिरि को बांदा कोष से 586 रुपया मासिक मिलती थी। 1857 में जब विद्रोह प्रारम्भ हुआ तब उस समय जगत गिरी तो भाग कर पन्ना पहुँचा । पन्ना में नागौद का पोलिटिकल एजेन्ट ठहराया हुआ था।
दीनदयाल गिरि ने जगत गिरि का साथ नहीं दिया। वह भूरागढ़ के युद्ध में नवाब बाँदा का साथी था । वहां नवाब की करारी हार हुई अन्त में दीनदयाल गिरि पकड़ा गया और 26 अप्रेल 1858 को दीनदयाल गिरि को फांसी दे दी गई। विद्रोह की अवधि लम्बी खिचती चली जा रही थी। नवाब भी अर्थिक संकट से ग्रस्त थे ही, उस पर भी बागी सिपाही, नवाब से वेतन बढ़ाने के लिए आग्रह करने लगे । इस पर नवाब ने अपनी मजबूरी बताई, कि किन्तु बागी सिपाही नहीं माने, उन्हें भी तो अपना और परिवार की गुजर बसर करना था।
इधर नवाब को बागी सिपाहियों से अधिक सहयोग की उम्मीद कम होती गई और दूसरी ओर सेन्ट्रल इन्डिया फील्ड फोर्स जनरल विटलाक के अधीन बांदा की ओर बढ़ रही थी। ब्रिगेडियर मेकलफ स्वयं जबलपूर की ओर से बाँदा की ओर आ रहा था । इस फोर्स के साथ थर्ड मद्रास यूरोपियन भी थी जिसका नेतृत्व लेफ़्टिनेन्ट कालवेल कर रहा था । कर्नल अपथ्रप, लेफ्टीनेन्ट जोन विडियर नेपियर, मेजर डलान, कैप्टन गिरफेन, लेफ्टीनेन्ट मेटर्जी, बांदा के पड़ोसी इलाकों में विद्रोहियों को तितर-बितर करने में लगे हुए थे जिससे अन्य विद्रोहियों का बाँदा पहँचना मुश्किल हो रहा था ।
चरखारी राजा, पन्ना राजा छतरपुर की फोर्स भी जनरल विटलाक की सहायता के लिये आ गई थी । पन्ना राजा ने 414 बदूकें भेजी थी, और चरखारी राजा के तीन हजार सिपाही बांदा आ चुके थे। नवाब के पास इस समय विद्रोही 1000, विद्रोही पैदल 600, नजीब 100, नई भर्ती के सवार 500, नई भर्ती के पैदल सिपाही 800 तथा उसकी स्वयं की 16 तोपें तथा अजयगढ़ से छीनी गई 4 और तोपें थी। बाकी सिपाहियों में लगभग 600-700 अवध के बागी सिपाही भी शामिल थे।
अंग्रेजी सेना और विशेषकर जनरल विटलाक के अभियान से पेशवा की चिन्त बढ़ना स्वाभाविक थी । इसके पूर्व एक बार तो बांदा नगर पर आक्रमण के प्रयास को नवाब ने विफल कर दिया था । नवाब ने ब्रिटीस फौज से चार तोपें तथा हाथी छीन लिये थे । इस मुडभेड़ में थर्ड मद्रास यूरोपियन का लेफ्टीनेन्ट कालबेक गम्भीर रूप से घायल हो गया और बारहवीं सेना का लेफ्टीनेन्ट साधारण सा घायल हुआ था ।
गम्भीर रूप से घायल होने के कारण बाद मे लेफ्टीनेन्ट कालबेक चल बसा। नवाब को जव मालूम हुआ कि जनरल विटलाक एक बड़ी फोर्स के साथ बढ़ रहा है तो उसने जनरल को रोकने के लिये तथा बांदा को स्थिति मजबूत करने के लिए अपनी फोर्स कालिन्जर से बुलाई इसके अलावा उसने अपनी सेना के पांच सौ सिपाही मौदहा पर भी तैनात कर दिये ।
बुन्देलखण्ड की क्रान्ति का दमन करने के लिए ब्रिटिस सरकार ने नवंबर 1857 में जनरल विटलाक को सेना का कमान्ड करने का काम सुपुर्द किया। वह सागर फील्ड फोर्स का सेनापति बनाया गया। वह 10 जनवरी 1858 को काम्पटी आया और अपनी फौजी तैयारी में लगा रहा। काम्पटी से चलकर वह 3 फरवरी1858 को जबलपुर आया।
जबलपुर से मद्रास लाइट केवलरी की चौकी और छठी टुकड़ी को इलाहावाद जाने के लिए आदेश दे दिया गया था और वह रवाना भी हो चुकी थी कि इतने में सम चार मिला कि नाना पेशवा ने बहुत बड़ी सेना सहित बुन्देलखण्ड में प्रवेश कर लिया है। अब तो ब्रिटिस सरकार और भी बेचैन हो उठी । जनरल विटलाक पर बुन्देलखण्ड का इंचार्ज था ही, उसने मद्रास लाइट केवलरी की टुकड़ियों को खबर दी कि वे रुक जाय और उनकी प्रतीक्षा करें ।
जनरल विटलाक 3 फरवरी 1858 को जबलपुर पहुँचा और वहां से चौथी तथा छठी मद्रास लाइट केवलरी, 11 फरवरी 1858 को जबलपुर से चल दी। जनरल विटलाक जबलपुर से 17 फरवरी को 1600 सिपाहियों के साथ चला। उसके साथ में सागर और नर्मदा टेरोटरीज का कमिश्नर मेजर हस्कसन भी था । वह झुकेही 24 फरवरी 1858 को पहुँचा ।
उसने वहां देखा कि रीवा राज्य की सेना ने उस गाँव को बिल्कुल नष्ट कर दिया हैं । जनरल विटलाक के सामने सबसे प्रमुख कार्य तो बांदा पहुँचना था जिस ओर कि पेशवा के आने की शंका हो रही थी। उसने कमिश्नर की सलाह को भी टाल दिया । कमिश्नर ने चाहा था कि मार्ग के जितने किलों में विद्रोहियों के छिपने का आशका है उन्हें नष्ट कर दिया जाय। ऐसे किलों मे रामनगर, मदनगढ़ थे ।
इस समय जनरल अपनी सेना के किसी भी सिपाही को दूसरे काम में नहीं लगाना चाहता था। जनरल अपनी फौज के साथ 26 फरवरी 1858 को दामोह आया, उसे व उसके आस-पास के क्रान्ति को भी चिन्ता नहीं थी जितनी नयानया साहब की फौज का मुकाबला करने की । दमोह के पास हिन्डोरिया का किशोर सिह लोधी का उत्पात चरम सीमा पर था, उसे दबाना जरूरी था।
दमोह में ब्रिग्रेडियर कारपेन्टर के अधीन कुछ सेना छोड और शेष सेना के साथ वह दमोह से चलकर 5 मार्च 1858 को सागर आ पहुंचा । ह्यू रोज ने सागर को तो 3 फरवरी 1858 को विद्रोहियों से मुक्त करा ही लिया था । जनरल विटलाक को केवल सागर के खजाने को जबलपुर भेजने का काम करना था सो उसने इस खजाने को एक गार्ड के साथ जबलपुर भेज दिया, इस काम के बाद जनरल विटलाक १२ मार्च को दमोह लौट आया। कमिश्नर तो दमोह से वापस जबलपुर लौट गया क्यों कि उसकी सलाह को जनरल मानता भी नहीं था। दमोह से चलकर जनरल विटलाक, पन्ना २६ मार्च 1858 को पहुँचा और पन्ना में वह २ अप्रैल तक रुका रहा।
जनरल विटलाक पन्ना से मढ़वाघढ़ होकर मण्डला के लिए चला । यहाँ पर उसे अपनी तोपों को भी दुरुस्त कराना था। अतः उसे रुकना पड़ा । यहाँ से वह ६ अप्रेल1858 को चला और 9 अप्रेल को छतरपुर आया, वहाँ से उसे मेजर इलिस पोलटिकल असिस्टेंट नागौद का समाचार मिला कि जीझन गाँव (देशपत बुन्देला का गाँव) में लगभग दो हजार विद्रोही जमा हैं । अतः जनरल ने रात को ही जीझन पर धावा बोलने का विचार किया ।
जनरल विटलाक 10 अप्रैल 1858 को ही रात के आठ बजे रवाना हुआ और 11 अप्रैल 1858 को सुबह 5 बजे तक जीझन से चार मील के फासले पर ही रहा होगा कि वह बहुत शीघ्रता से जीझन की ओर बढ़ा ताकि दिन निकलने के पहले ही उन पर यकायक धावा बोल दिया जाय। जब जनरल विटलाक अपनी फौज के साथ जीझन पहँचा तो सबेरा हो गया था, विद्रोहियों को भी खबर मिल गई और वे भागने में सफल रहे।
देशपत भी भागने में सफल रहे । तब भी जो कुछ भी विद्रोही गाँव के रह गये थे तोपों के गोलों की वर्षा के आगे ठहर नहीं सके । उनमे मे से 97 विद्रोही मारे गए और 39 पकड़े गए जिसमे 9 को उसे समय फांसी दे दी गई ।
आधार –
1 – अभिलेखागार कन्सलटेशन २१६-२२ दिनांक २२-११८५८ पोलीटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड के नाम संदेश संख्या
२- राष्ट्रीय अभिलेखागार दिनांक १६-१-१८५८।।
3 – राष्ट्रीय अभिलेखागर (१) पोलिटिकल सप्लीमेन्ट्री प्रासीडिंग्ज -१२-१८५६, पचम भाग, अनुक्रमांक ६२१, तात्याटोपे के नाम गोपालदास की अर्जी दिनाँक १०-१-१८५८ ।
पोलोटिकल प्रासीडिग्ज ३१-१२ १८५८, अनुक्रमांक ३८८, भूतपूर्व क्टिग कमान्डेन्ड, इलाहाबाद का भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ३८७ दिनांक २७३-१८५८ । (३) पोलीटिकल प्रासीडिंग्ज ३१-१२-१८५८ अनुक्रमांक २१८०, पोलीटिकल एजेन्ट रीवा की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र, संख्या ३८७ दिनांक २७-३-१८५८ । 4 -राष्ट्रीय अभिलेखागार- रिवाल्ट इन सेन्ट्रल इंडिया । पृष्ठ ३१
5 – राष्ट्रीय अभिलेखागार (१) गर्वनर जनरल डसपे। टू सिक्रेट कमेटी संख्या दनांक १६-११ १८५८,टेलीग्राफिक मेसेज दिनांक १६-२-१८५८ । (२) पोलीटिकल सप्लीमेन्ट्री प्रासीडिंग्ज ३० १२-१८५६, पचम भाग अनुक्रमांक ६१८ राव साहब के नम नवाब बाँद का पत्र दिनांक १६-२-१८५८ का अंश । (३) पोलिटिकल सप्लीमेन्ट्री प्रासोडिग्ज ३०-१२-१८५६, पंचम भाग अनुक्रमांक ६३३ राम चन्द्र नारायण भट्ट की ओर से गणेश बाबूदेवधर के नाम पत्र दिनांक ८-२-१८५८ । ६. राष्ट्रीय अभ ने खागार – कन्सलटेशन १८६ दिनाँक २८ ५-१८५८ सिक्रेट कमिश्नर जबलपुर की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या ए दिनांक २०-४-१८५८ ।
6 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-पोलीटिकल प्र.सीडिंग्ज ३१-१२-१८५८, ग्यारहवां भाग अनुक्रमांक २०६६, पोलि टकल अ सस्टेन्ट बु देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या १३ दिनांक २७-४-१८५८ ।
7 – राष्ट्रीय अभिलेखागार -कन्सलटेशन ७३, दिनांक १४ ५-१८५८, होम पब्लिक पोलिटिकल असिस्टेन्ट बुन्देलखण्ड की ओर से भारत सरकार के नाम पत्र संख्या दिनांक ९७४-१८५८ ।।
8 – राष्ट्रीय अभिलेखागार पोलीटिकल प्रासीडिग्ज ३०-१२-१८५६, अनुक्रमांक ४६, नवाब अली बहादुर का कथन ।
9 – राष्ट्रीय अभिलेखागार कन्सलटेशन २१२-१४ १५.१०.१८५८, गवनर जनरल के एजेन्ट की ओर से पत्र संख्या ३१२ दिनांक १४-७-१८५८ ।
10 – राष्टीय अभिलेखागार कन्सलटेशन १२२-२३, सिक्रेट गवरनर जनरल के एजेन्ट की ओर से भारत सरकार पत्र संख्या १२७ दिनांक २६-३-१८५७,
11 – रिवाल्ट इन सेन्ट्रल इंडिया पृष्ठ १७५
12 – राष्ट्रीय अभिलेखागार-गवरनर जनरल डिसपेच टू सिक्रेट कमेटी संख्या १, दिनांक १६-११-१८५८ टेलीग्राफ मेसेज दिनांक १५-१५
13 – राष्ट्रीय अभिलेखागार रिवाल्ट इन सेन्ट्रल इण्डिया पृष्ठ १७१ १३-१४ १५