वर पक्ष की बरात जाने पर घर में स्त्रियाँ पुरूष-स्त्री बनकर स्वांग रचती हैं और नृत्य भी करती हैं। इस नृत्य को Baba/Jugiya /Banhdol या बाबा-बाई का नृत्य भी कहते हैं। वह रात स्त्रियों की रात होती है और स्त्री-राज्य में स्त्री-मानसिकता का बोलबाला होता है। बाबा नृत्य भी इसी मानसिकता में किया जाता है।
स्त्री-पुरूष के दाम्पत्यपरक संबंधों का परीक्षण चलता रहता है। इसी कारण यह स्वांगपरक नृत्य पुरूष वर्ग को देखना वर्जित है। यह नृत्य ढोलक, लोटा, चिमटा आदि वाद्यों के बोलों पर होता है और स्त्रियाँ नृत्य करते हुए आंगिक मुद्राएँ बनाती हैं। कभी-कभी स्वांग भी नृत्यमय हो जाता है, जैसे बिच्छू का स्वांग नृत्य ही है। स्त्रियों की उन्मुकतता लोकनृत्य को तीव्रता प्रदान करने में उपकारक हैं।