अति प्राकृत लोक-विश्वास Ati Prakrat Lok Vishwas का अर्थ उन विश्वासों और धारणाओं से है जो स्वाभाविक या प्राकृतिक घटनाओं के परे जाकर अलौकिक शक्तियों, आत्माओं, भूत-प्रेतों या अदृश्य शक्तियों पर आधारित होते हैं। ये विश्वास प्राचीन समाजों से लेकर आधुनिक युग तक विभिन्न संस्कृतियों में प्रचलित हैं, और अक्सर धार्मिक या सामाजिक धारणाओं का हिस्सा होते हैं। ये विश्वास आमतौर पर भय, अज्ञान, या अदृश्य शक्तियों के प्रति आस्था के रूप में प्रकट होते हैं। नीचे कुछ प्रमुख अति प्राकृत लोक-विश्वास दिए गए हैं:
1-भूत-प्रेत और आत्माओं में विश्वास
कई संस्कृतियों में यह मान्यता है कि मृतकों की आत्माएं जीवितों की दुनिया में रह सकती हैं और उनसे संवाद या संपर्क कर सकती हैं। भारत के ग्रामीण इलाकों में, विशेषकर, यह विश्वास है कि किसी व्यक्ति की असमय मृत्यु या अनसुलझे मुद्दों के कारण उसकी आत्मा “भूत” बनकर परेशान करती है। आत्माओं को शांत करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान, तंत्र-मंत्र, या बलि देने की परंपराएं भी प्रचलित हैं।
2-टोना-टोटका और जादू-टोने में विश्वास
टोना-टोटका का संबंध किसी व्यक्ति या समूह पर अलौकिक प्रभाव डालने या उसे हानि पहुंचाने से होता है। यह विश्वास होता है कि कुछ लोग तंत्र-मंत्र और काले जादू से दूसरों को नुकसान पहुंचा सकते हैं या किसी पर बुरी शक्तियां भेज सकते हैं। इसके अलावा, कई स्थानों पर बुरी शक्तियों से बचने के लिए नींबू-मिर्च लटकाने, लोहे की कील ठोकने, या धागे बांधने जैसे टोटके अपनाए जाते हैं।
3-बुरी नजर (नजर लगना)
यह लोक विश्वास है कि किसी की ईर्ष्यालु या बुरी नजर से व्यक्ति, परिवार या संपत्ति को नुकसान हो सकता है। इसे “नजर लगना” कहा जाता है, और इससे बचने के लिए काजल लगाने, ताबीज पहनने, या नींबू-मिर्च का उपयोग करने जैसी प्रथाएं प्रचलित हैं। यह विशेष रूप से बच्चों और नवजात शिशुओं के साथ जुड़ा हुआ है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे बुरी नजर का शिकार हो सकते हैं।
4-विचारों से चीजों को प्रभावित करने का विश्वास
कई लोगों का मानना है कि किसी की विचारधारा या भावनाएं भी भौतिक संसार को प्रभावित कर सकती हैं। इसे “मनोवैज्ञानिक प्रभाव” या “मनो-संशोधन” के रूप में भी जाना जाता है। यह विचार है कि यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक सोचता या चिंता करता है, तो वह वास्तविकता को बदल सकता है। जैसे, कुछ लोग मानते हैं कि अगर किसी घटना को बार-बार सोचा जाए, तो वह सच हो सकती है।
5-पिशाच, चुड़ैल और जादूगरनी में विश्वास
भारत के कई ग्रामीण इलाकों और अन्य देशों में पिशाच या चुड़ैलों के अस्तित्व में विश्वास होता है। यह धारणा होती है कि ये अलौकिक प्राणी मनुष्यों को नुकसान पहुंचा सकते हैं या उनके जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। कुछ क्षेत्रों में अब भी चुड़ैल प्रथा के नाम पर लोगों, खासकर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है।
6-भविष्यवाणी और ज्योतिष
भविष्यवाणी और ज्योतिष में विश्वास एक प्राचीन लोक-विश्वास है, जिसमें यह माना जाता है कि ग्रहों, सितारों और अन्य खगोलीय घटनाओं के आधार पर भविष्य का आकलन किया जा सकता है। यह विश्वास है कि किसी व्यक्ति का भविष्य उसकी कुंडली, जन्म का समय, और सितारों की स्थिति से निर्धारित होता है। इसके आधार पर विभिन्न अनुष्ठान और उपाय किए जाते हैं, जैसे कि रत्न पहनना या विशेष तिथियों पर कार्य करना।
7-शगुन और अपशगुन
अति प्राकृत लोक विश्वासों में शगुन और अपशगुन का खास महत्व है। यह विश्वास है कि कुछ घटनाएं या संकेत शुभ होती हैं, जबकि कुछ अपशकुन होती हैं। जैसे, घर से निकलते समय अगर बिल्ली रास्ता काट जाए, तो उसे अपशकुन माना जाता है। इसी प्रकार, दाहिने हाथ में खुजली होने को शुभ और बाएं हाथ में खुजली होने को अशुभ माना जाता है। कई समुदायों में घर के मुख्य दरवाजे पर शुभ प्रतीक बनाने की परंपरा भी होती है।
8-अलौकिक स्थानों और आत्माओं का निवास
कई क्षेत्रों में यह विश्वास होता है कि कुछ स्थान विशेष रूप से अलौकिक गतिविधियों के केंद्र होते हैं। जैसे, कुछ पेड़, कुएं, या पहाड़ों को आत्माओं या भूत-प्रेतों का निवास स्थान माना जाता है। इन स्थानों से बचने या वहां जाने पर विशेष सावधानियां बरतने की परंपरा होती है।
9-देवताओं की कृपा और प्रकोप का भय
अति प्राकृत लोक विश्वासों में देवताओं या अलौकिक शक्तियों के प्रकोप का डर भी शामिल है। अगर कोई व्यक्ति धार्मिक अनुष्ठानों का पालन नहीं करता है या देवताओं को नाराज कर देता है, तो यह माना जाता है कि उसे दैवी प्रकोप का सामना करना पड़ सकता है। इस कारण लोग देवताओं की पूजा और विभिन्न तंत्र-मंत्र का सहारा लेते हैं ताकि उन्हें प्रकोप से बचाया जा सके और उनकी कृपा प्राप्त हो।
10-स्वप्नों और संकेतों में विश्वास
कई समाजों में यह विश्वास होता है कि स्वप्न भविष्य के बारे में संकेत दे सकते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि अगर उन्हें स्वप्न में कोई विशेष दृश्य या घटना दिखाई देती है, तो वह उनके जीवन में कुछ खास होने का संकेत है। स्वप्नों के आधार पर लोग अपने जीवन के निर्णय लेते हैं और भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाते हैं।
अति प्राकृत लोक-विश्वास अक्सर भौतिक और आध्यात्मिक दुनियाओं के बीच संतुलन बनाने का प्रयास होते हैं। ये विश्वास व्यक्ति और समाज के लिए सुरक्षा, मार्गदर्शन, और चिंता से राहत प्रदान करते हैं, भले ही वैज्ञानिक रूप से इनकी सत्यता को प्रमाणित करना कठिन हो।
भूत-प्रेत की कल्पना समाज में बहुत पहले से व्याप्त है। यह तथ्य अत्यन्त सरलता से स्वीकार किया जाता है कि भय मनुष्य को भीरू बनाता है। भूत-प्रेत से सम्बन्धित कपोल कल्पनायें कहानियां आदि प्रचलित हैं। वे सभी मानव मन की भीरूता को प्रदर्शित करती हैं। उनमें सत्यता की परख करने का प्रयास कभी नहीं किया गया। गांव की चौपाल पर अलाव के आस-पास बैठकर रोमांच हेतु सुनाये गये भूत-प्रेतों के किस्से अधिकांशतया मनगढ़ंत ही होते हैं। यह सुनाने वाले की क्षमता व वाकपटुता पर निर्भर होता है कि वह उसमें सत्यता का पुट कितना दे सकता है।
मानव स्वभाव है कि जिसे देखा नहीं है उस रहस्य-रोमांच तथा परा-शक्तियों में उत्सुकता रखना, इसी कारण भूत-प्रेत का लोक-विश्वास जन-सामान्य में विकास-क्रम के साथ चला आ रहा है । संभवत: आने वाली शताब्दियों में भी वे इसी प्रकार प्रचलित रहेंगें। इसका दूसरा कारण अशिक्षा एवं कथाओं को ताकिक कसौटी पर न कसना भी है। वैसे यदा-कदा भूत-प्रेत के लोक-विश्वास को समाप्त करने के उद्देश्य से अनेक कहानियां बनाई गईं जैसे- कपड़े की छाया को भूत समझना, वृक्षों से गुजरती हवा की सांय-सांय को भूतों की काल्पनिक आवाज समझना, खाली मकान, खंडहर पशु-पक्षियों या अराजक तत्वों के निवास-स्थान बन जाते हैं। उनको भूत-प्रेतों का निवास घोषित करना।
किन्तु यह भ्रम नाशक कथायें सदियों पुराने लोक-विश्वास की मजबूत जड़ों को उखाड़ने में अक्षम रहीं। भूत-प्रेत का नाश केवल तंत्र-मंत्र से होता है, यह विश्वास बुन्देलखण्ड के ओझा और तांत्रिकों के व्यवसाय को आधार प्रदान करता है। इसे दूर करने के लिये शिक्षित समाज को आगे आना होगा ।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल
बघेलखंड की लोक कलाएं