बुन्देली फाग साहित्य में लोगों का मानना है कि Adhar Ki Fagen गंगाधर व्यास जी के द्वारा शुरू हुईं और इनका बिस्तार अनेक कवियों ने किया। इन फागों के उच्चारण में होंठ से होंठ (Lips) नहीं मिलता। व्यास जी से प्रभावित होकर अन्य की फागकारों ने ‘प’ अक्षर रहित निरोष्ठ फागों की रचनायें की।
झाँकी लख गिरिजा नन्दन की आनन्द के कन्दन की ।
राजत शीश चन्द्र हैं जिनके, लसै खीर चन्दन की॥
झांसी के “लोकभूषण”पन्नालाल असर की ‘प’ अक्षर रहित निरोष्ठ रचना का उदाहरण
जगत जगत जंजाल जगत के कष्ट हरें गिरजा नंदन
चरण चरण नर सरसआचरण का ही लगाये यदि चंदन
नेह स्नेह का साधन सच्चा है हृदय से कर लेना
लेना -देना, दया दान ही दर्द दीन का हर लेना
सकल सकल कलरहे सदाही डर तजकर करना चिंतन
सत संगत का रंग निराला सदा रहे जिसकी रंगत
गत ये गतागत रंग निखारे करने से सत की संगत
सघन सघन घन छाये घटा ना देगा दिखाई कहीं क्रंदन
धारण कर साधरण सी है रीत साधना की सिंचित
हदअनहद साकार ध्यानधर लेकिन हटे न चित किंचित
अधर अधर ही रहे असर ये राज काज आनन्द कन्दन