आओ को अमरौती खाकें, ई दुनियां में आकें।
नंगे गैल पकर गए धर गए, का करतूत कमाकें।
जर गए बर गए धुन्धक लकरिया, धर गए लोग जराके।
बार-बार नई जनमत ईसुर, कूंख आपनी मांके।
अपने मन मानिक के लाने, सुघर जौहरी चाने।
नर तन रतन खान से उपजे, चढ़ो प्रेम खरसाने।
बेंचो आई दुकाने चायै, जो कीमत पहचाने।
ईसुर कैउ जगां धर हारे, कोउ धरत न गानै।
एक दिन होत सबई कौ गौनों, होनों और अन्होंने ।
जाने परत सासरे सांसउ, बुरौ लगे चाय नौनों।
जा ना बात काउ के बस की, हँसी लगे चाय रोनों।
राखौ चायें जौ नौ ईसुर, दयें इनई भर सोनो।
नइयां ठीक जिन्दगानी को, बनो पिण्ड पानी को।
चोला और दूसरो नइयां, मानुस की सानी को।
जोगी जती तपी सन्यासी, का राजा रानी को।
जब चायें लै लेव ईसुरी, का बस है प्रानी को।
जो कोउ जोग जुगत कर जानें, चढ़-चढ़ जात विमाने।
ब्रह्मा ने बैकुण्ठ रचो है, उन्हीं नरन के लाने।
होन लगत फूलन की बरसा, जिदना होत रमाने।
ईसुर कहत सबई के देखत, ब्रह्म में जात समाने।
करलो ऐंगर हो दो बातें, यार पुराने नातें ।
मोरी कभउं खबर तो लेते, दुख और पीर पिराते।
जो तुम तारि देउ तो टउका, जात न कईये जाते।
ईसुर एक दिन तुम चलि जैहो,देकर पथरा छाते।
महाकवि ईसुरी कहते हैं कि इस दुनिया के रिश्ते-नाते क्षण भंगुर हैं, जो आया है वह जाता है, यह अमिट सत्य है। मनुष्य तन पाकर जो भी रिश्ते-नाते बने हैं, उन्हें स्थायित्व देकर निर्वाह करना चाहिए।