भारत के ग्रामीण जनमानस में नीति, धर्म, सदाचार, स्वास्थ्य, ज्योतिष , कृषि, वर्षा आदि अनेक विषयों पर लोकोक्तियों अथार्त कहावतों का अनमोल भण्डार मौखिक साहित्य के रूप में सुरक्षित चला आ रहा है । Bundeli Kahavaton Me Lok Vigyan की रचना अनुभव रूपी ज्ञान के आधार पर हुई होगी । जो भी विषय अनुभव से लाभदायक सिद्ध हुआ, उसे उन्होंने अपनी सीधी-सादी भाषा में तुकबंदी के सहारे बांध लिया ।
यह मानवी ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं । इनकी महत्ता इसी से स्पष्ट है कि इनमें वर्णित एक-एक तत्व सोने की तरह कसौटी पर कसने पर खरा उतरता है । कहावतें भारत के हर जनपद में प्रचलित हैं । कहावतें प्रकृति ज्ञान की भांति सार्वभौमिक हैं, फिर भी उन पर जनपद विषेष की बोली, रीति-रिवाज, संस्कार, परिस्थिति और जलवायु का प्रभाव पड़ता है ।
बुंदेलखण्ड एक प्राचीन जनपद (अंचल) है । यहां की कहावतों में हर तरह का अनुभवगम्य लोकोपयोगी ज्ञान भरा पड़ा है, जो मानव मात्र के लिए लाभदायक है और स्वास्थ्य संवर्द्धक प्रमाणित होगीं। स्वास्थ्य संबंधी कहावतों को यहां उदाहरण स्वरूप दिया जाता है –
भोजन और स्वास्थ्य
सावन ब्यारू जब तब कीजै । भादों बाको नाम न लीजै ।
कुंवार मास के दो पाख । जतन जतन जिय राख ।
आधे कातिक होय दिवारी । फिर मन मानी करो ब्यारी ।
सावन, भादों और कुंवार महीनों में वर्षा खूब होती है । पृथ्वी की उष्णता निकलने और परिश्रम न करने से मंदाग्नि हो जाती है। फलतः भोजन के भली प्रकार न पचने से तमाम रोगों और दोषों का जन्म होता है । इसी सिद्धांत को देखते हुए कहा गया है कि सावन मास में रात्रि में भोजन (ब्यालू) कभी-कभी करे किन्तु भादों मास में रात्रि भोजन का नाम ही न ले अर्थात रात्रि भोजन बिल्कुल न करें ।
कुंवार के महीने को बड़ी सावधानी से बिना रात्रि भोजन के बिता दें । कार्तिक मास में दिवाली के बाद इच्छा पूर्ण रात्रि भोजन से कोई हानि नहीं होगी ।
अघने जीरो, फूसे चना, माओ मिसरी, फागुन धना ।
चैतै गुर बैसाखे तेल, जेठ महुआ, असाड़े बेर ।
सावन दूध उर भादों दही, कुवांर करेला कातिक मई ।
जो इतनी नहीं माने कही, मर है नई तौ परहै सई ।
उपर्युक्त कहावत में बताया गया है कि वर्ष के 12 महीनों कोई न कोई वस्तु हर माह में दोषकारक या कुपथ्य है । इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए घातक-कुप्रभाव कारक है। अतः इनका त्याग उस विषिष्ट मास में कर देना चाहिए ।
अगहन (मार्गषीर्ष) में जीरा, पौष में चना, माघ में मिश्री, फाल्गुन में धना, चैत्र में गुड़, ज्येष्ठ में महुआ (मधुफूल), आषाढ़ में बेर (बद्रीफल), श्रावण में दूध, भाद्रपद में दही, आष्विन (कुंवार) में करेला और कार्तिक मास में मठा (मही) ग्रहण करना शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है ।
यदि कोई व्यक्ति इन महीनों में उपर्युक्त निषिद्ध वस्तुओं का सेवन करेगा तो मृत्यु भले ही न हो उसका बीमार पड़ना निष्चित है । इस कहावत के सृजनकर्ता का मत आयुर्वेद के सिद्धांत पर आधारित है । मार्गषीर्ष और पौष माह से हेमंत ऋतु का प्रभाव होता है, जिसके फलस्वरूप वात-पित्त कुपित हो जाता है ।
जीरा और चना षीतल होने से वात-पित्त को अधिक कुपित कर देते हैं । माघ और फाल्गुन में षिषिर ऋतु का प्रभाव रहता है। अतः मिश्री और धना वात और कफ को सबल बनाकर षरीर में रोग वृद्धि करते हैं।
चैत्र और वैषाख में ऋतुराज बसंत का प्रभाव रहता है, इससे देह में कफ कुपित हो जाता है । गुड़ और तेल कफकारक हैं । इसके प्रयोग से इन महीनों में कफ वृद्धि मानव को रुग्ण बना देती है । ज्येष्ठ और आषाढ़ में ग्रीष्म का प्रभाव होता है, जो पित्त कफ को प्रबल करता है । महुआ और बद्रीफल पित्त-कफ के पोषक बनकर रोग वृद्धि में सहायक होते हैं ।
श्रावण और भाद्रपद वर्षा ऋतु के अधीन है। दूध और दही दोनों वातकारक है, अतः इनके सेवन से वात-व्याधि घेर लेती है । आष्विन और कार्तिक में षरद ऋतु का राज रहता है । यह पित्त कुपित कारक है, इसमें करेला और मठा ग्रहण करना हानिकारक है । अच्छे स्वास्थ्य के लिए इन माहों में वर्जित पदार्थों का त्याग ही लाभप्रद है ।
कुंवार करेला, चेत गुड़, भादों मूली खाय ।
पैसा जावें गांठ का, रोग ग्रस्त पड़ जाय ।।
कुंवार में करेला, चैत में गुड़ और भाद्रपद में मूली खाने वाले का पैसा तो नष्ट होगा ही, वह बीमार भी पड़ जाएगा । अतः यह वस्तुएं इन महीनों में नहीं खानी चाहिए ।
पहले ताप तलईन बसी ।
खीरा देखें खिल खिल हंसी ।।
जो सुन पाओ फूट को नांव ।
दै रमतूला घेरो गांव ।।
वर्षा ऋतु में उपर्युक्त वस्तुओं का उपभोग ज्वर को आमंत्रित करता है । ज्वर वर्षा के पानी के रूप में पहले छोटे-छोटे गंदे तालाबों में छिपा रहता है । इस पानी में स्नान करने या यह पानी पीने से वह ज्वर षरीर में प्रवेष करता है । खीरा खाने से इसको और अधिक मौका मिलता है । एक प्रकार के बरसाती फल का सेवन करने से यह उन प्राणियों को गाजे-बाजे के साथ धर दबाता है ।
जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव ।
ताको यही बताइए भइया घुइंयां पूरी खाव ।।
यदि आप किसी की मृत्यु, उस पर बिना आक्रमण किए और बिना षारीरिक घाव पहुंचाए चाहते हैं, तो उस व्यक्ति को सलाह दीजिए ‘हे भाई ! तू अरबी (घुइंयां) की सब्जी का सेवन पूड़ियों के साथ कर ।’ तात्पर्य यह है कि अरबी और पूड़ी का सेवन इतना हानिकारक होता है कि इनको खाने वाला व्यक्ति रोगग्रस्त होकर स्वर्ग सिधार सकता है । स्वास्थ्य प्रेमियों को इनके एक साथ खाने से बचना चाहिए ।
गया मर्द जो खाए खटाई ।
गई नार जो खाय मिठाई ।।
खट्टी वस्तुएं खाने से धातु दौर्बल्य हो जाता है । इससे पुरुष का पौरुष नष्ट हो जाता है अतः बलवान बने रहने के लिए पुरुष को कहती वस्तुएं खाने से बचना चाहिए । मिठाई गरिष्ठ और सौन्दर्य नाषक होती है । साथ ही जीभ को चटोरपन इसके खाने से लग जाता है । अतः महिलाओं को मिष्ठान्न सेवन से यथाषक्ति बचना चाहिए ।
आंत भारी
तो माथ भारी ।
पेट में अपच होने से सिर दर्द होता है । मस्तिष्क दर्द से मुक्ति हेतु अपच, कब्ज आदि से बचना चाहिए ।
भोजन करके पड़ै उतान ।
आठ सांस ताको परमान ।
सोलह दाहिने बत्तीस बाएं ।
तब कल परे अन्न के खाएं ।
भोजन कर के आठ ष्वास लेने के समय तक सीधे चित्त, सोलह ष्वास लेने तक दाहिने करवट और बत्तीस ष्वास लेने तक बाईं करवट लेटना चाहिए । यह क्रम पालन करने से भोजन ठीक से पच जाता है और मन को बड़ी षान्ति मिलती है ।
रहे निरोगी जो कम खाय ।
बिगरे काम न जो गम खाय ।
जो मनुष्य अपनी भूख से कम भोजन करता है, वह सदैव निरोगी रहता है । जो गमखोर होते हैं, उनकी सहनषीलता से काम नहीं बिगड़ता है ।
खाय के मूते सूते बाय ।
नाहक बैद बसावे गांव ।।
भोजन करने के बाद मूत्रत्याग कर लिया जाय और बायीं करवट सोने की आदत डाली जाय तो व्यक्ति स्वस्थ रहेगा ।
खाय कै पर रैये ।
मार कै भग जैये ।।
यदि स्वस्थ रहना है तो भोजन के बाद कुछ समय लेटे रहना आवष्यक है । जीवन रक्षा जरूरी है तो मारपीट करने के बाद भाग जाना चाहिए ।
ब्यारू कबहुं न छोड़िए बिन ब्यारू बल जाए ।
जो ब्यारू औगुन करे दिन में थोरो खाय ।।
रात्रिकालीन भोजन (ब्यालू) करना नहीं छोड़ना चाहिए । रात्रि भोजन न करने से बल का क्षय होता है । रात्रि भोजन से कोई विकार उत्पन्न होता हो तो दिन का भोजन कम कर दें । कम मात्रा में ही सही, रात को भोजन करते रहने की षक्ति बनी रहेगी ।
बुन्देली लोक परंपरा और विज्ञान
औषधि और स्वास्थ्य
गुड़, गूगर चूना औ राई ।
जासों खता नाष हो जाई ।।
फोड़ों पर गुड़, गूगल, चना और राई को पीसकर एकसार करके बांध दिया जाए तो फोड़ा या बैठ जाएगा या फूटकर ठीक हो जाएगा ।
निन्नें पानी जे पिएं हर्र भूंज नित खांय ।
दूध ब्यारू जे करें उन घर बैद न जाएं ।।
जो व्यक्ति प्रातःकाल उठकर बिना कुछ खाए-पिए पानी पीता है, प्रतिदिन दोपहर को भूंजी हुई हर्र का सेवन करता है और रात्रि को सिर्फ दूध पीकर रहता है; वह निरोगी रहता है ,उसे कभी वैद्य की आवष्यकता नहीं होगी ।
आंखों में हर्रें दांतों में नोंन भूखा राखे चीथा कौन ।
ताजा खाए बायां सोए ताके बैद पिछारी राए ।।
हर्र, बहेड़ा, आंवला (त्रिफला) को कूटकर थोड़ी मात्रा में मिट्टी के बर्तन में रात को भिगोकर सबेरे उसी के पानी से जो आंख धोता है । कपड़छन सेंधा नमक ओर सरसों का तेल मिलाकर नित्य जो दांत को साफ करता है; पेट के चौथाई भाग को खाली
रखकर जो ताजा भोजन करता है, उसके पीछे वैद्य सदा रोता रहता है, अर्थात वह व्यक्ति कभी रोगी नहीं होता ।
हर्र बहेड़ा आंवला घी सक्कर सों खाय ।
हाथी दाबे कांख में तीन पैंड़ लों जाय ।।
त्रिफला (हर्र, बहेड़ा, आंवला) का जो मनुष्य घी षक्कर के साथ सेवन करता है, वह इतना षक्तिषाली हो जाता है कि वह हाथी को बगल में दाबकर तीन कदम तक ले जा सकता है ।
आंखें बंधन ।
तापे लंघन ।।
आंखें आ जाने पर उन्हें बांधना चाहिए । ज्वर आने पर निराहार रहना चाहिए। इससे दोनों ठीक हो जाते हैं ।
जल और स्वास्थ्य
भुंसारे खटिया से उठिके पिए तुरत ही पानी ।
कबहूं घर में बैद न आवे बात सबई की जाने ।।
प्रातः पलंग त्यागकर रात का रखा हुआ पानी षीघ्र पेटभर पिए। इस जल के पीने से आंतें मल को षीघ्र छोड़ देती हैं। इस
कारण अनेक व्याधियों का नाष होता है। मनुष्य स्वस्थ रहता है। उसके घर कभी वैद्य नहीं आता, यह बात सभी जानते हैं।
पानी पीजे छान के ।
गुरू कीजे जान के ।।
पानी सदैव छानकर पीने से उसमें पड़े हुए सभी दूषित तत्व पृथक हो जाते हैं। इससे व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है । गुरू ज्ञान का दाता होता है । सच्चा ज्ञान पाने के लिए गुरू का परिचय पूर्ण रूप से जान लेना चाहिए ।
पहले पीवे जोगी ।
बीच में पीवे भोगी ।
पीछे पीवे रोगी ।
योगी जन भोजन के पूर्व पानी पी लेते हैं अर्थात् भोजन पूर्व पानी पीना बुद्धिमानी का कार्य है और स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। भोगी गृहस्थ जन पानी भोजन के बीच में पीते हैं । यह पानी पीना पूर्ण लाभकारी नहीं है, किंतु मध्यम होने से कुछ ठीक है । जो रोगी हैं या होना चाहते हैं, वे लोग ही पानी भोजन के बाद पीते हैं । यह स्वास्थ्य की दृष्टि से हितकर नहीं है ।
सावन बेला ।
माघ तबेला ।
जेठे पीजे ओक ।
सावन मास में हरएक को सिर्फ एक कटोरा पानी पीना चाहिए । माघ में एक तबेला (बड़ा बर्तन) भर पानी पीना चाहिए ज्येष्ठ मास में भर पेट पानी पीना ठीक है । आषय यह है कि सावन यानि वर्षा ऋतु में थोड़ा पानी, माघ अथार्त बसंत ऋतु में कुछ अधिक पानी तथा ज्येष्ठ की ग्रीष्म ऋतु में अधिक मात्रा में पानी पीना लाभदायक है ।
यह है बुन्देली की कहावतों के कुछ स्वास्थ्य संबंधी रत्न । कहावतों का अनंत भण्डार भरा हुआ है हमारे जनपदीय ग्राम्य जनों के हृदयों में । यदि हमें निरोगी रहकर स्वास्थ्य सुख का लाभ उठाना है तो अपने-अपने जनपदों के ग्रामीण जनों में प्रचलित कहावतों का संग्रह कर उनके अनुभवों को जीवन में उतारना चाहिए ।