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बुन्देलखण्ड मे पर्यटन उद्योग का विकास

अगर बुन्देलखण्ड के इस भूभाग मे Development of tourism industry in Bundelkhand सही ढंग से स्थापित हो  तो बुन्देलखण्ड पर्यटन की दृष्टि से सबसे आगे होगा । बुन्देलखण्ड एक  ऐसा विशेष प्रदेश जिसमें आदि काल से खनिज एवं वन संपदा जैसे जैसे अनेक प्रकार की फलदार वृक्ष एवं औषधीय वृक्षों से लेकर विभिन्न प्रकार के पत्थरों एवं रत्नों का भंडार रहा है । बुन्देलखण्ड की अवधारणा उत्तर वैदिक युग के दौरान फली-फूली। इसकी  शिल्प कौशल की परंपरा का इतिहास 1000 साल से भी अधिक पुराना है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में परिदृश्य काफी बदल गया है ।

हमें अपने पूर्वजों से और अपने अतीत से विरासत में मिला है। वह हमसे काफी दूर हो रहा है या यूं कहें की हम अपनी संस्कृति और विरासत से दूर हो गए हैं । हमारे पूर्वज जो समय-समय पर अपनी संस्कृति और विरासत अपनी युवा पीढ़ी को सौंपते हैं। और वह युवा पीढ़ी  अपनी विरासत को आगे बढ़ाती है तभी हम अपनी समृद्ध विरासत को संरक्षित कर सकते हैं।

Development of tourism industry in Bundelkhand
यह एक ऐसी परिकल्पना है जिससे मैंने अपनी मन की आंखों से देखा है। यह एक ऐसा सपना है जिसे मैंने नींद में नहीं जागते हुए देखा है। इस सपने को देखने के बाद मेरी व्याकुलता इतनी बढी और तब  से निरंतर प्रयासरत हूं….। इसमे मुझे बुन्देलखण्ड की संस्कृति और परम्पराओं की पौराणिक और ऐतिहासिक झलक दिखाई दे रही है । मुझे लगता है कि मै कुछ ऐसा करूँ  जिसे नई पीढ़ी देखकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें कि हमारे पूर्वजों की संस्कृति कितनी समृद्धि थी।

बुंदेलखंड जो प्राकृतिक साधनों से लबालब भरा हुआ है लेकिन इसके बावजूद यहां का युवा बेरोजगार है,  और यहां के लोग  बेरोजगारी के कारण पलायन करते  जा रहे है यह बुंदेलखंड के लिए बहुत ही भयावह है। सबसे ज्यादा जरूरी है पलायन रोकना और पलायन कैसे रुकेगा जब हम रोजगार देंगे और रोजगार देने के लिए जरूरी है जब बाहर से इन्वेस्टर आयें  और यहां आकर कुछ बड़े उद्योग लगाएं , फैक्ट्रियां लगाएं लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है कि हम बुंदेलखंड में पर्यटन को आगे बढ़ाएं ?

Development of tourism industry in Bundelkhand क्योंकि हमारी जो प्राकृतिक, पौराणिक और एतिहासिक संपदा बहुत सम्पन्न है। क्यों ना हम उस संपदा का सदुपयोग करके पर्यटन को आगे बढ़ाएं पर्यटन के माध्यम से देश-विदेश से लोग बुंदेलखंड में आएंगे यहां रहेंगे यहां के बारे में जानेंगे,  देखेंगे।  इसके लिए हमें बुंदेलखंड के प्राकृतिक स्थानों को चिन्हित कर उनको विकसित करना होगा उनमें कुछ कृत्रिम तरीके से उनको सजाना संवारना होगा ताकि अधिक से अधिक पर्यटक आकर्षित हो उन स्थानों पर पहुंचे।

आज बुंदेलखंड को लेकर लोगों की यही मानसिकता है कि बुंदेलखंड में लुटेरे,  डकैत,  खनन माफिया यही सब रहते हैं लेकिन इसका दूसरा पहलू लोग  उजागर नहीं करते कि यहां का प्राकृतिक सौंदर्य और प्राकृतिक खनिज संपदा,  पौराणिक एवं ऐतिहासिक धरोहर जिनके माध्यम से हम देश विदेश से पर्यटकों को ला सकते हैं और इस पर्यटन से हम अनेक व्यवसायों को जोड़ भी सकते हैं।

मेरा भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार दोनों से निवेदन है कि अगर बुंदेलखंड को पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध कर दिया जाए तो यहां पर्यटन के साथ-साथ अनेक रोजगारों को नई दिशा मिलेगी , नए आयाम मिलेंगे । जिससे यहां रोजगार के अनेक संसाधन स्वता: उत्पन्न होंगे । 

Development of tourism industry in Bundelkhand
बुंदेलखंड में फिल्म उद्योग का विकास
Development of Film Industry in Bundelkhand

फिल्म उद्योग
अगर बुंदेलखंड में पर्यटन का विकास होता है तो यहां पर्यटन के साथ-साथ फिल्म शूटिंग के लिए अनेक लोकेशन हो जाएंगी जिससे अनेक प्रदेशों से लोग यहां आकर फिल्म की शूटिंग भी कर सकेंगे जिससे एक नई इंडस्ट्री का निर्माण हो जाएगा जिसमें यहां के स्थानीय कलाकारों एवं तकनीशियन के साथ-साथ फिल्म निर्माण से संबंधित अनेक प्रकार के रोजगार उत्पन्न होंगे जिसमें काफी हद तक पलायन रोका जा सकता है। जैसे- लेखक, निर्देशक, प्रोड्यूसर, म्यूजिक कंपोजर, म्यूजिक डायरेक्टर, म्यूजिशियन, एडिटर, सिनेमैटोग्राफर, आर्ट डायरेक्टर, मेकअप आर्टिस्ट, हेयर डिजाइनर,  कॉस्टयूम डिजाइनर,  लाइट मैन लाइट बेंडर आदि।

फिल्म उद्योग से संबंधित व्यवसाय
Lighting Equipment on Rent
Camera equipment on Rent
Editing Studio
Recording Studio
Film Production property on Rent/ Purchase
Hotel Resort
Caterer
Vehicles
Ration shop
Vegetable shop
Fruit shop

फिल्म उद्योग प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना
फिल्म उद्योग प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना कर व्यवसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने की उचित व्यवस्था हो ताकि व्यावसायिक सिनेमा का विकास हो ।

Development of tourism industry in Bundelkhand
भरुआ सुमेरपुर का जूती उद्योग
भरुआ सुमेरपुर (हमीरपुर ) उत्तर प्रदेश मे सन 1952 मे  राजस्थान के कारीगरों ने आकार यहां चमड़े की जूती बनाने का जो रोजगार शुरू किया जो आगे चलकर  सम्पूर्ण बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि देश के अलग -अलग भागों में अपनी अलग पहचान बना ली। एक ऐसा समय था की देश के कोने-कोने से लोग जूती खरीदने के लिए भरुआ सुमेरपुर आते थे। कारण? ये जूती अन्य जगह की जूती की अपेक्षा अधिक पहनने मे आरामदायक थी ।

कुछ हमारी सोच, कुछ हमारी गलती ने जूती उद्योग की कमर तोड़ दी। भरुआ सुमेरपुर का यह कुटीर उद्योग बुरे दौर से गुजर रहा है। कभी कस्बे में तीन दर्जन से अधिक दुकानें संचालित होती थी। भरुआ सुमेरपुर की जूतियों की मांग इतनी थी कि दुकानदार जूती तैयार नहीं कर पाते थे लेकिन धीरे-धीरे इनकी चमक समाप्त हो गई। इसे पुनर्जीवित करना बहुत आवश्यक है ।

Development of tourism industry in Bundelkhand


मिट्टी शिल्प उद्योग
मनुष्य ने सबसे पहले मिट्टी के बरतन बनाए। मिट्टी से ही खिलौने और मूर्तियाँ बनाने की प्राचीन परंपरा है। मिट्टी का कार्य करने वाले कुम्हार होते हैं। प्रत्येक अंचल में कुम्हार मिट्टी-शिल्प का काम करते हैं। लोक और आदिवासी दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं के साथ कुम्हार परम्परागत कलात्मक रूपाकारों का निर्माण करते हैं। मिट्टीशिल्प अपनी विशेषताओं के कारण महत्वपूर्ण हैं। प्रदेश के विभिन्न लोकांचलों की पारम्परिक मिट्टी शिल्पकला का वैभव पर्व-त्योहारों पर देखा जा सकता है।

Development of tourism industry in Bundelkhand
काष्ठ शिल्प उद्योग
काष्ठ शिल्प की परंपरा बहुत प्राचीन और समृद्ध है। जब से मानव ने मकान में रहना सीखा तब से काष्ठ कला की प्रतिष्ठा हुई, इसलिए काष्ठ से निर्मित मनुष्य के आस्था केन्द्र मंदिर और उसके निवास स्थापत्य कला के चरम कहे जा सकते हैं। अलंकरण से लेकर मूर्ति-शिल्प तक की समृद्धि इन केन्द्रों में देखी जा सकती है।

आदिम समूहों में सभी काष्ठ में विभिन्न रूपाकार उकेरने की प्रवृत्ति सहज रूप से देखी जाती है। गाड़ी के पहियों, देवी-देवताओं की मूर्तियों, घरों के दरवाजों, पाटों, तिपाही पायों और मुखौटों आदि वस्तुओं में काष्ठ कला का उत्कर्ष प्राचीन समय से देखा जा सकता है।

Development of tourism industry in Bundelkhand
बाँस शिल्प उद्योग
बाँस से बनी कलात्मक वस्तुएँ सौन्दर्यपरक और जीवनोपयोगी होती है। बैतूल, मंडला आदि लोकांचल में विभिन्न जातियों के लोग अपने दैनिक जीवन में उपयोग के लिए बाँस की बनी कलात्मक चीजों का स्वयं अपने हाथों से निर्माण करते हैं। बाँस का कार्य करने वाली कई जातियों में कई सिद्धहस्त कलाकार हैं।


धातु शिल्प उद्योग
विभिन्न अंचलों में धातु शिल्प की सुदीर्घ परम्परा है। प्रदेश के लगभग सभी आदिवासी और लोकांचलों के कलाकार पारम्परिक रूप से धातु की ढलाई का कार्य करते हैं। टीकमगढ़ के स्वर्णकार और बैतूल के भरेवा कलाकारों ने आज तक अपनी परम्परा को अक्षुण्य रखा है। टीकमगढ़ की धातु कला की तकनीक का इतिहास अत्यन्त प्राचीन और पारम्परिक है। आजकल विशेषकर मूर्तियों का काम टीकमगढ़ के क्षेत्र में होता है।


पत्ता शिल्प उद्योग
पत्ता शिल्प के कलाकार मूलतः झाडू बनाने वाले होते हैं । छिन्द पेड़ के पत्तों से कलात्मक खिलौने, चटाई, आसन, दूल्हा-दुल्हन के मोढ़ आदि बनाए जाते हैं। पत्तों की कोमलता के अनुरूप कलात्मक वस्तुएँ बनाने में कलाकार परम्परा से लगे हैं।

बांस के कोमल पत्तों से दूल्हा -दुलहन की मौर , महुआ और पलास के पत्तों से दोना -पत्तल जो प्राकृतिक दृष्टि से प्रयावर्ण के अनुकूल हैं ।


गुड़िया शिल्प उद्योग
नयी पुरानी रंगीन चिन्दियों और कागजों से गुड़ियाएँ बनाने की परंपरा लोक में देखी जा सकती है। खिलौनों में गुड़िया बनाने की प्रथा बहुत पुरानी है, परंतु कुछ गुड़ियाएँ पर्व त्योहारों से जुड़कर मांगलिक अनुष्ठानपरक भी होती है, जिनका निर्माण और बिक्री उसी अवसर पर होता है।

ग्वालियर अंचल में कपड़े, लकड़ी और कागज से बनाई जाने वाली गुड़ियों की परंपरा विवाह-अनुष्ठान से जुड़ी होती है। उनके नाम से व्रत पूजा की जाती है। ग्वालियर अंचल की गुड़ियाएँ प्रसिद्ध हैं।

Development of tourism industry in Bundelkhand
चितेरी कला उद्योग
बुन्देलखण्ड की मशहूर कला  चितेरी कला की खूबियों से लैस मानव चेहरा, बुंदेली पजामे पहने व्यक्ति, पेशवाई एवं बुंदेली पगड़ियां बांधे रमतूला बजाते पुरुष, विदाई पालकी में बैठी नवविवाहिता एवं बेल बूटियों, फूलकारी आदि 

चितेरी आर्ट से सुसज्जित घरों के पर्दे,  गमछे,  दुपट्टे,  शॉल, चादर, रजाई के कवर कपड़े के बैग, एवं घर में सजावट के अन्य सामग्री में चितेरी कला को समाहित किया जा सकता है हम चाहें तो इस चितेरी कला को चीनी मिट्टी के बर्तनों के ऊपर उकेर कर, टेराकोटा के ऊपर उकेर कर इसे नई दिशा दी जा सकती है । 

Development of tourism industry in Bundelkhand
चंदेरी साड़ी उद्योग
चंदेरी में बनने के कारण इस साड़ी का नाम ‘चंदेरी साड़ी’ पड़ा। चंदेरी साड़ी सूती और रेशमी दोनों तरह की बनाई जाती है। चंदेरी साड़ी की मुख्य विशेषता उसके हल्के और गहरे रंग, कलात्मक चौड़ी बार्डर, मोर बतख की आकृतियाँ उकेरना है। चंदेरी साड़ी की लोकप्रियता देश और देश से बाहर तक पहुँची है।

Development of tourism industry in Bundelkhand
प्रस्तर शिल्प उद्योग
मंदसौर, रतलाम, जबलपुर, ग्वालियर, सागर आदि इस शिल्प के केन्द्र माने जाते हैं। पत्थर से मूर्ति गढ़ने वाले प्रदेश में कई शिल्पकार-जातियाँ हैं। ये शिल्पकार, गूजर, गायरी, जाट, सिलावट, लाट आदि होते हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं, नंदी आदि की मूर्तियाँ गढ़ते हैं। इसके अलावा वे कुछ मूर्तियाँ तथा शिल्प ऐसे भी गढ़ते हैं, जिनका महत्व सौन्दर्यात्मक अथवा दैनिक उपयोग की वस्तुओं का है। भेड़ाघाट संगमरमर की मूर्तियाँ और ग्वालियर पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाने का केन्द्र है।

Development of tourism industry in Bundelkhand
लोक कलाकारों को व्यवसाय
बुंदेलखंड में देश-विदेश से आए हुए पर्यटकों के मनोरंजन हेतु  बुन्देलखण्ड के लोक कलाकार ( लोक गीत -लोक नृत्य)  बुंदेलखंड की विभिन्न लोक कलाओं द्वारा उनका मनोरंजन करेंगे जो उनकी आमदनी का एक जरिया बनेगी। बुंदेलखंड की लोक कलाएं जो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं उन्हें अनुकूल वातावरण मिलने से वे पुनर्जीवित हो जाएंगी।

Development of tourism industry in Bundelkhand
दाल की बड़ी उद्योग
बुन्देलखण्ड की गर्मियों की कड़ी धूप का फायदा उठाना हो तो आप घर में मूंग दाल बड़ी (Moong Dal Badi) और उरद दाल की मसाले वाली ((Urad Dal Badi) बड़िया ।

रखिया बड़ी,  सेपू बड़ी,  सफेद कद्दू जिसे कोहड़ा भी कहते हैं और उड़द दाल या चना की दाल के साथ बनाए जाने वाला यह शाकाहारी व्यंजन बहुत ही स्वादिष्ट होता है भारतीय खाद्य संस्कृति की समृद्ध परंपरा में यह एक लोकप्रिय भोजन है।

Development of tourism industry in Bundelkhand
महोबा का पान उद्योग
पुनर्जीवित करना

Development of tourism industry in Bundelkhand
रानीपुर टेरीकॉट उद्योग
पुनर्जीवित करना

मालवा की लोक कलाएं 

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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