नीतिपरक लोक-विश्वास Nitiparak Lok Vishwas वे धारणाएँ और कहावतें होती हैं जो नैतिकता, आदर्शों और सदाचार पर आधारित होती हैं। इन विश्वासों का मुख्य उद्देश्य समाज में नैतिक आचरण को बढ़ावा देना और लोगों के बीच सही और गलत के बीच अंतर समझाना होता है। ये लोक-विश्वास समाज की नैतिक संरचना को बनाए रखने में सहायक होते हैं और लोगों को सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में अनुशासित एवं नैतिक तरीके से जीने के लिए प्रेरित करते हैं।
1- जैसा करोगे, वैसा भरोगे
यह लोक विश्वास कर्म के सिद्धांत पर आधारित है। इसका मतलब यह है कि व्यक्ति जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही फल प्राप्त होगा। यदि कोई अच्छे कार्य करेगा, तो उसे अच्छे परिणाम मिलेंगे, और यदि कोई बुरे कार्य करेगा, तो उसे बुरे परिणाम का सामना करना पड़ेगा। यह विश्वास व्यक्ति को नैतिक रूप से सही काम करने के लिए प्रेरित करता है।
2- सच की हमेशा जीत होती है
इस लोक विश्वास के अनुसार, सत्य और ईमानदारी का मार्ग अंततः विजयी होता है, चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं। यह विश्वास समाज में सत्य की महत्ता और ईमानदारी के मूल्यों को बढ़ावा देता है, और लोगों को नैतिक रूप से सच्चे और ईमानदार बने रहने की प्रेरणा देता है।
3- बड़ों का आदर करो, सम्मान पाओ
भारतीय समाज में यह लोक विश्वास गहराई से जुड़ा हुआ है कि यदि आप अपने से बड़ों का आदर करते हैं, तो आपको भी समाज में सम्मान मिलेगा। इस विश्वास से सामाजिक व्यवस्था और अनुशासन बना रहता है, और लोग अपने बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करते हैं, जिससे परिवार और समाज में सौहार्द बना रहता है।
4- दान-धर्म से बढ़कर कोई पुण्य नहीं
यह लोक विश्वास उदारता और दान की महत्ता को दर्शाता है। इसे मानने वाले लोग यह विश्वास करते हैं कि दूसरों की मदद करने से और दान करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं। इस विश्वास के आधार पर लोग गरीबों की सहायता करने, अन्नदान और वस्त्रदान करने को पुण्य मानते हैं।
5- अहंकार पतन का कारण है
इस लोक विश्वास के अनुसार, अहंकार का परिणाम हमेशा बुरा होता है और यह व्यक्ति के पतन का कारण बनता है। इसे विभिन्न कहावतों और लोककथाओं के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। यह विश्वास व्यक्ति को विनम्र बने रहने और अपने अहंकार को नियंत्रण में रखने की शिक्षा देता है।
6- बुरी संगत का बुरा परिणाम होता है
इस नीतिपरक लोक विश्वास का तात्पर्य है कि अगर व्यक्ति बुरी संगत में रहता है, तो उसे बुरे परिणाम भुगतने पड़ते हैं। यह विश्वास लोगों को सही मित्रों और संगति का चुनाव करने की प्रेरणा देता है। यह बच्चों और युवाओं को विशेष रूप से सही दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए उपयोगी है।
7- माँ-बाप की सेवा सबसे बड़ा धर्म
भारतीय लोक विश्वासों में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। यह विश्वास है कि जो व्यक्ति अपने माता-पिता की सेवा करता है, उसे जीवन में सभी प्रकार की खुशियाँ और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यह नीतिपरक विश्वास परिवार में सामंजस्य बनाए रखने और माता-पिता का आदर करने पर जोर देता है।
8- अति सर्वत्र वर्जनीय
यह विश्वास सिखाता है कि किसी भी चीज़ की अति बुरी होती है। चाहे वह क्रोध हो, लालच हो, या कोई अन्य भावना, अति करना हमेशा नुकसानदायक होता है। इस लोक विश्वास से व्यक्ति को संयम और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है।
9- मित्र वही है जो संकट में काम आए
यह नीतिपरक लोक विश्वास सच्ची मित्रता की पहचान को स्पष्ट करता है। इसके अनुसार, सच्चा मित्र वही होता है जो कठिन समय में आपके साथ खड़ा रहता है। यह विश्वास लोगों को सच्चे और भरोसेमंद मित्रों का चुनाव करने के लिए प्रेरित करता है।
10- ईर्ष्या और द्वेष से व्यक्ति का नाश होता है
इस लोक विश्वास का तात्पर्य है कि ईर्ष्या और द्वेष न केवल दूसरों के प्रति हानिकारक होते हैं, बल्कि ये स्वयं व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक संतुलन को भी बिगाड़ते हैं। यह विश्वास दूसरों के प्रति दयालु और सहनशील बने रहने की शिक्षा देता है और समाज में सौहार्द बनाए रखने में सहायक होता है।
11- गुरु का स्थान सर्वोपरि है
इस लोक विश्वास में गुरु को विशेष महत्ता दी जाती है। यह मान्यता है कि गुरु ही वह व्यक्ति होता है जो अज्ञान के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। गुरु के प्रति समर्पण और सम्मान व्यक्ति के जीवन में नैतिकता और ज्ञान का विकास करने में सहायक होते हैं।
12- ईश्वर सब देखता है
यह विश्वास सिखाता है कि चाहे कोई व्यक्ति कुछ भी करे, ईश्वर सब देखता है और हर व्यक्ति के कर्मों का हिसाब रखा जाता है। यह नीतिपरक लोक विश्वास लोगों को सही और नैतिक आचरण बनाए रखने की प्रेरणा देता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि गलत कर्मों का दंड निश्चित रूप से मिलेगा।
13- धैर्य और सहनशीलता से जीत होती है
इस लोक विश्वास के अनुसार, जो व्यक्ति धैर्य और सहनशीलता से काम लेता है, वह अंततः सफलता प्राप्त करता है। यह विश्वास कठिन परिस्थितियों में लोगों को हिम्मत बनाए रखने और जल्दबाजी में गलत फैसले न लेने की प्रेरणा देता है।
14- लालच बुरी बला है
यह नीतिपरक विश्वास बताता है कि लालच व्यक्ति को गलत दिशा में ले जाता है और अंततः उसे नुकसान पहुंचाता है। यह विश्वास सिखाता है कि संतोष में ही सुख है और व्यक्ति को अपने लालच पर नियंत्रण रखना चाहिए।
15- दूसरों की मदद करना सबसे बड़ा धर्म है
यह विश्वास समाज में परोपकार और दया के महत्व को बताता है। इसके अनुसार, दूसरों की मदद करना या संकट के समय में उनका सहारा बनना सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। यह लोक विश्वास न केवल समाज में सहयोग और सद्भावना को बढ़ावा देता है, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी शांति और संतोष लाता है।
नीतिपरक लोक-विश्वास समाज के नैतिक और सांस्कृतिक ढांचे को मजबूत बनाते हैं और व्यक्ति को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं। ये विश्वास पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आए हैं और आज भी समाज में नैतिकता और सदाचार के आदर्शों को बनाए रखने में सहायक हैं।
नीतियाँ सम्पूर्ण जीवन के कार्यों को प्रभावित करती है। वास्तव में नीति परक लोक-विश्वास मनुष्य के मानवीय गुणों को परिमार्जित कर लोक-कल्याण के कार्यों में लगाने हेतु, प्रेरित करते हैं। ‘पराधीन को कोई सुख नही होता’, यह स्वतंत्रता संघर्ष हेतु प्रेरित करता है। दूसरे के दुःख में स्वयं दुःखी होकर दुःख की सीमा को समझा जा सकता है, दूसरे की आशा न करे बल्कि स्वयं उद्यम करें।
जो करेगा वो पायेगा। कर्म करने वाले से ईश्वर या भाग्य भी हार जाता है। वृद्धों और सज्जनों का आर्शीवाद सेवा करके प्राप्त करें। अवश्य फली भूत होगा। दुर्जन पुत्र से योग्य पुत्री भली है। यह समस्त लोक-विश्वास लोक-नीतियों के आधार है, इनका पालन करने से मनुष्य का नैतिक विकास सम्भव है जो मानवता की सेवा हेतु अत्यंत आवश्यक है। यह समस्त भाव समाज में बड़ों का आदर, छोटो को स्नेह देने तथा सदाचार करने की प्रेरणा देते हैं।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल