मगध राज्य के आसपास कई ऐसे राज्य थे जहाँ पर शासन-संस्था प्रजा-सत्तात्मक्त थी। चंद्रगुप्त ने इन सबको अपने अधिकार मे कर लिया। अन्य राजाओं को चंद्रगुप्त के राज्य में मिल जाना पढ़ा। चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में नर्मदा के उत्तर का समस्त भाग आ गया था। इससे बुन्देलखंड भी चंद्रगुप्त के साम्राज्य में था। इससे ज्ञात होता है कि Bundelkhand Me Maurya Samrajya बुन्देलखण्ड मे मौर्य साम्राज्य का प्रभाव था। चंद्रगुप्त के मृत्यु के बाद उसका लड़का बिंदुसार विक्रम- संवत् के 240 वर्ष पूर्व साम्राज्य का अधिकारी हुआ।
विक्रम संबत् के लगभग 300 वर्ष पहले मगध का राज्य बहुत शक्तिशाली हो गया था । यहाँ पर शासन-संस्था एक-सत्तात्मक थी। इसके सिवा भारत के अन्य भागों मे कही-कहीं गणतंत्र राज्य थे। जब सिकंदर ने भारत पर चढ़ाई की तब उसको भारत में कई गणतंत्र राज्य मिले थे। बुद्ध भगवान का देहांत हुए लगभग साढ़े चार सौ वर्ष हो चुके थे जब सिकंदर ने यूनान से चढ़ाई की ।
उस समय मगध मे नंद घराने का राजा राज्य करता था। सिकंदर के लौट जाने के बाद प्राचीन राजघराने का एक युवक, जिसका नाम चंद्रगुप्त मौर्य था, नंदवंश के शासक को मारकर स्वयं राजा बन गया। चंद्रगुप्त बढ़ा बुद्धिमान और पराक्रमी राजा था। इसका मंत्री कौटिल्य था। कैटिल्य राजनीति में बहुत प्रवीण था। कैटिल्य की सलाह से कार्य करने में चंद्रगुप्त को हमेशा सफलता मिली।
मौर्य साम्राज्य बड़ा होने के कारण उसके चार बड़े विभाग थे। प्रत्येक विभाग की राजधानी में साम्राज्य की ओर से एक शासक नियुक्त रहता था । बुंदेलखंड उज्जैन के शासक के अधीन था । बिंदुसार के राज्य-काल मे उसका बेटा अशोक उज्जैन का शासक नियुक्त किया गया था। यही विक्रम-संवत् के 215 वर्ष पूर्व अपने पिता के मरने पर साम्नाज्य का अधिकारी हुआ।
अशोक बौद्ध थे और उन्होने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये बहुत कार्य किये। मौर्य साम्राज्य के समय की शासन-व्यवस्था कौटिल्य के अर्थशास्त्र से प्रभावित या मिलती जुलती थी । वाणिज्य और व्यवसाय पर हमेशा राज्य की ओर से निगरानी रखी जाती थी और इनकी उन्नति के लिये सब प्रकार के काम किए जाते थे। प्रत्येक ग्राम तथा बड़े स्थानें में न्यायालय थे। जन्म और मृत्यु का पूरा विवरण राज्य के कर्मचारी रखा करते थे। विद्यालयों का प्रबंध प्रत्येक स्थान में था और उच्च शिक्षा के लिये काशी और तक्षशिला में शिक्षा परिषदें थीं।
अशोक ने कई स्थानों पर धर्म-प्रचार के लिये शिलालेख ख़ुदवाकर लगवाए थे। इसके शिलालेख नागाद और जबलपुर के पास रुपनाथ मे हैं। इस समय बुंदेलखंड में भी बैद्धधर्म का प्रचार- प्रसार हो गया था। संभवत: इस समय एरन राजधानी रही होगी। चंद्रगुप्त के राज्य-काल्य में यूनान से मेगास्थिनीज नाम का एक प्रवासी भारत मे आया था।
सम्राट् अशोक का देहांत संबत् के 174 वर्ष पूर्व हुआ। अशोक के पुत्र अशोक के समान योग्य न हुए और अशोक का देहांत होते ही साम्राज्य दे भागों मे बँट गया। पूर्व के भाग का शासक दशरथ और पश्चिम भाग का शासक संप्रति नाम का अशोक का नाती हुआ । अनुमान से जाना जाता है कि बुंदेलखंड पश्चिम के भाग में ही रहा।
इसके पश्चात मौर्य साम्राज्य का सेनापति पुष्यमित्र शुंग, अपने स्वामी बृहद्र्स्थ को मारकर स्वयं राजा बन गया और सारा मौर्य साम्राज्य अपने अधिकार मे कर लिया। इस प्रकार शुंगों के राज्यकाल का आरंभ विक्रम-संवत् के 127 वर्ष पूर्व हुआ । यह वंश जाति का ब्राह्मण था।
बुन्देलखंड भी शुंगों के अधिकार में रहा। बेसनगर ( मिलसा/विदिशा के निकट ) मे पुष्यमित्र शुंग का युवराज अग्निमित्र सूबे दार था। बुंदेलखंड इसी सूवे के अंतर्गत था। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये बहुत प्रयत्न किया था और जीवहिंसा बंद करा दी थी। परंतु पुष्यमित्र शुंग बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी था और उसने वैद्ध धर्म को उखाड़ देने के लिये भरपूर प्रयन्न किया।
पुष्यमित्र ने अश्वम्रेघ यज्ञ रचा और फिर से हिंसामयी पूजा का आरंभ कर दिया। उसने कई बैद्ध भिच्छुओं का मरवा डाला और बौद्ध विहारों में आग लगवा दी । शुंगों का राज्य 112 वर्ष तक रहा। पृष्यमित्र के मरने पर फिर राजाओं में वहुत अदला-बदली हुई । इस वंश का अंतिम राजा देवभूति अपने ब्राम्हण मंत्री बसुदेव के हाथ से भारा गया।
हत्या करने के बाद यही मंत्री राजसिंहासन पर बैठ गया। वसुदेव से दूसरा राजवंश आरंभ होता है जिसे कान्वायन वंश कहते हैं। कान्वायन राजवंश 44 वर्ष के बाद ही नष्ट हो गया। इस वंश का नाश विक्रम-संबत् 30 में हुआ। यह वंश भी ब्राम्हण ही था |
मौर्य राज्य के पहले से ही भारतवर्ष में अनेक गणतंत्र राज्य थे। इनमे से मध्यदेश मे पांचाल, कुरू, मत्सय, यौधेय, सपटच्चर, कुंत्य और शूरसेन लोग रहते थे। इनको मौर्य साम्राज्य ने कहीं पर इन्हे नष्ट कर दिया था और कहीं साम्राज्य के अंतर्गत मिला लिया था। गणतंत्र राज्यों में मल्लक (मालवा ) नाम का राज्य बुंदेलखंड के पश्चिम में और पंचाल के उत्तर मे था। अशोक के समय में ये सब साम्राज्य के अंतर्गत थे। मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात इन स्थानों में फिर से गणतंत्र राज्य स्थापित हो गए ।
बुंदेलखंड का चेदि राज्य एक राजा के अधिकार में था। मौर्यों ने उसे अपने अधिकार मे कर लिया था। मौर्य साम्राव्य के नष्ट होने पर चेदि देश मे फिर से पुरानी प्रथा का एक-सत्तात्मक राज्य स्थापित हो गया । पश्चिम में मालवा देश में फिर से पुरानी प्रथा का एक सतात्मक राज्य स्थापित हुआ। मालवा का गणतंत्र राज्य बड़ी शक्तिशाली और दूर तक फैला था। इन गणतंत्र राज्यों के सिक्के मिले हैं, जिनसे इनका समय और स्थान ज्ञात हो जाता है।
एरन सागर जिले मे, खुरई के पश्चिम मे वीना नदी के किनारे बसा हुआ है। यहीं पर कई पुरानी मूर्तियां भी मिली है । एरन का प्राचीन नाम एराकण्या था। वहांप्राचीन सिक्के भी मिले हैं। वे एरन के गणराज्य के चलाए हुए सिक्के हैं। इन सिक्कों मे से एक पर धर्मपाल राजन्या लिखा है पर उसका चित्र नहीं है।
शेष नाम-रहित है। इससे यह पाया जाता है कि ये सिक्के किसी एक राजा के चलाए नहीं है। इन पर वोधिवृक्ष, धर्मचक्र बने हैं। सूर्य का चिह् भी बना है। इनसे यह भी जान पड़ता है कि यहाँ बौद्ध धर्म का ही प्रभाव रहा है । यह गणराज्य भी मौर्य साम्राज्य के नष्ट होने पर बना होगा।
इन गणतंत्र राज्यों की सबसे बड़ी शासन-सभा को गण कहते थे । इस गण मे राज्य के सब लोग अपने प्रतिनिधि भेजते थे। कही पर गण के सब सदष्य राजा कहलाते थे। इन राज्यों को अपना अस्तित्व बनाए रखने मे बड़ी कठिनाई हुई। इन्हें उत्तर मे शक लोगों से और पूर्व मे गुप्त लोगों से सामना करना पड़ा । अंत में इनकी प्रजा-सत्तात्मक शासन-संस्था का लोप ही हो गया।
इसी समय मालवा के उत्तर मे नाग राजाओं का राज्य था। नाग राजाओ का उदाहरण विष्णुपुराण मे भी मिलता है। नौ नाग राजाओं का राज्य पदमावती और कांतिपुरी मे रहेगा ।पद्मावती का आधुनिक नाम पावायां है यह ग्वालियर रियासत के डबरा स्टेशन से 12 मील पर है। कांतीपुरी का आजकल कुतवार कहते हैं। यह अहसन नदी फे तट पर ग्वालियर से 20 मील पर स्थित है।
नरवर मे नागवंशी राजाओं के बहुत से सिक्के मिले हैं। इन सिक्कों से निम्नलिखित राजाओं के नामें का पता लगा है।
1- भीम नाग विक्रम-संवत् 47
2- रबा (खर्जुर नाग) विक्रम-संवत् 82
3 – वा(वर्म्मा या वत्स ) विक्रम-संवत् 107
4 – स्कन्द नाग विक्रम-संवत् 132
5- बृहस्पति नाग विक्रम-संवत् 187
6- गणपति नाग विक्रम-संवत्202
7 – व्याघ्र नाग विक्रम-संवत् 227
8- बसु नाग विक्रम-संवत् 252
9- देवनाग विक्रम-संवत् 277
देवनाग नाग बंश नवॉ राजा था। इस वंश का पतन गणपत नाग के समय से ही हो चला था। इसे ससुद्रगुप्त ने अपने अधिकार में कर लिया था।
पवायाँ में वि० सं० 82 में नागवंशी राजाओं के 30 सिक्के और शिवनंदन नामी एक राजा का शिलालेख भी मिले हैं। इन सिक्कों में से 20 सिक्के गणेंद्र (गणपत ) के, 6 देव (देवेंद्र ) के और एक स्कंद नाग का है।
नाग राजाओं के समय से ही भारतवर्ष पर शक लोगों के आक्रमण होने लगे थे। पहले शक लोगों का राज्य पंजाब में आये । यहाँ से ये लोग उज्जेन, काठियावाड़ और महाराष्ट्र मे फैले । इनके प्रांतीय शासक क्षत्रप और महाक्षत्रप कहलाते थे। इन क्षत्रपों के राज्यकाल के सिक्के मिले है। इन सिकों पर एक ओर यावनी भाषा मे शासकों के नाम लिखे हैं तथा दूसरी ओर उनका अनुवाद ब्राम्ही अक्षरों में है।
शकों का राज्य मालवा में स्थापित हो गया था और यहाँ एक क्षत्रप रहता था। जबलपुर जिले मे भेड़ा- घाट नासक स्थान मे छुछ प्राचीन मूर्तियां मिली हैं जिनमे लिखा है कि भूमक की लडकी ने इनकी स्थापना की । इससे अनुमान होता है कि भूमक का राज्य यहाँ तक भी रहा होगा। भूमक शक लोगों का एक क्षत्रप था। इसी से जान पड़ता है कि सारे बुंदेलखंडमे शक लोगों का आधिपत्य हो गया था। कितु इन लोगों का राज्य बुंदेलखंड मे बहुत दिन नहीं रहा।
नासिक के एक शिलालेख मे लिखा है कि शालिवाहन घंश के राजा ने शक लोगों को महाराष्ट्र से भगा दिया था। शालिवाहन वंश के राजा का नाम गैतमी पुत्र और क्षत्रप का नाम नहपाण था जिसे क्षहराट भी कहते थे। इसी समय तेलं गाने के आंध्रभृत्यों ने शक्क लोगों को हरा दिया। पुराणों मे लिखा है कि कान्वायन वंश के पश्चात् आंध्रभृत्यों का राज्य हुआ ।
इससे पता लगता है कि कान्वायनों के बाद भारतवर्ष के अधिकांश में आध्रभृत्यों का ही राज्य रहा और इन लोगों ने भारतवर्ष के पूर्व के देशों पर अपना अधिकार अवश्य ही कर लिया होगा। बुंदेलखंड मे इनका अधिकार हुआ या नहीं और हुआ ते कितने दिन रहा यह कहना कठिन है।
आंध्रराजा पुलुमायी उज्जैन के महाक्षत्रप रुद्रदमन का दामाद था। इन दोनों में भी लड़ाई हो गई थी और आंध्र राजाओं ने जितना भाग पहले ज्ञत्रपों से ले लिया था वह भाग फिर से रुद्रदमन ने पुलुमायी को हराकर अपने अधिकार में कर लिया । इसलिये यदि बुंदेजखंड में आंध्र राजाओं का अधिकार हुआ भी हो ते वह बहुत दिन नहीं ठहरा।
शकों के महाक्षत्रप काठियावाड़ और मालवा में राज्य करते थे। मालवा का पहला महाक्षत्रप चेष्टन था। इसने विक्रम संवत् १३८ मे अपनी राजधानी उज्जैन में बनाई थी । इसके पश्चात् इसका नाती रुद्रदमन महाक्षत्रप हुआ जिसने पुलुमायी से लड़ाई की थी। इनकी गद्दी पर बैठने की प्रथा विचित्र थी। पिता के मरने पर ज्येष्ठ पुत्र को गद्दी नही मिलती थी पर॑तु उसके मरने पर उनके भाई वय:क्रम (आयु क्रम) के अनुसार गद्दी के अधिकारी होते थे।
वय:क्रम (आयु क्रम) के अनुसार सब भाइयों के राजा हो चुकने के पश्चात् बड़े भाई के बड़े लड़के को गद्दी मिलती थी। महाक्षत्रपों ने अपने नाम के सिक्के भी चलाए थे। इनके सिक्कों से इनके वंश और इनके वंश के शासकों का पता चलता है। संबत् 348 तक महाक्षत्रपों का राज्य मालवे मे रहा।
शकों को उत्तर मे पल्हव लोगों से सामना करना पड़ा। पल्हवों के शिलालेख पेशावर में मिले हैं। परंतु ये लोग पंजाब के दक्षिण तक नही बढ़े और मालवा तथा बुंदेलखंड में इतका कोई प्रभाव न हुआ। इन लोगों को कुषाण वंशी तुकों ने भारतवर्ष से हटा दिया और फिर भारतवर्ष में कुषाण-वंशी राजाओं का आधिपत्य हों गया |
कुषाण-वंशी राजाओं के सिक्के काबुल, पंजाब और मथुरा के सिवाय मालवा में भी मिले हैं। इसी से जान पड़ता है कि कुषाण राजाओं का राज्य मालवा में भी हो गया था। राजतरंगिणी में कनिष्क, हविष्क और वासुदेव इन तीन कुषाण-वंशी राजाओं का नाम है और उनके विषय मे लिखा है कि वे तुरुष्क वंश के थे। सिक्कों से पता चलता है कि कुषाण-वंश के पहले दे राजा और थे जिनका नाम कुजुल्-कड़फाइसेस और बेस-कड़फाइसेस था ।
इनमें से दूसरा शैव था, क्योंकि इसके सिक्का पर शिव और नंदी की मूर्तियाँ पाई जाती हैं। कुषाण-बंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क हुआ | यह बौद्ध अनुयायी था। कनिष्क का राज्य गुजरात तक फैल गया था। मालवा मे भी कनिष्क का राज्य था, परंतु कनिष्क के मरते ही उसका राज्य मालवा से ठठ गया।
बुंदेलखंड मे मौर्य साम्राज्य जब तक रहा तब तक शांति रही, पर मौर्य साम्राज्य के नष्ट होते ही शुंगों के समय में अवश्य ही राजकीय कलह इस देश में होते रहे होंगे। कान्वायनों के राज्य मे भी यही दशा रही होगी। इसी समय चेदि देश अपने राजा के आधिपत्य में स्वतंत्र हो गया और ऐसे ही मालवा में गणसत्तात्मक राज्य स्थापित हो गया। फिर शकों का आक्रमण हुआ । उनसे और आंध्रभृत्यों से युद्ध हुआ। इस समय भी बुंदेलखंड में बहुत अशांति रही होगी। परंतु बुंदेलखंड ने इतने आधात सहने पर भी अपनी स्वातंत्र-प्रियता नही छोड़ी ।
इस कलह के समय में देश की स्थिति मे सभ्यता की दृष्टि से कुछ विशेष उन्नति नही हो सकी । इस समय में बैद्ध राजाओं ने बैद्धधर्म का प्रचार किया पर दूसरों ने उसे उखाड़ फेकने की चेष्टा की । अन्य राजाओं का ध्यान भी इसी ओर रहा और उन्नति की ओर विशेष ध्यान नही दिया गया। इसी अशांति के समय में मगध मे गुप्तराज्य की शक्ति बढ़ी और बुंदेलखंड को भी उस शक्ति के आगे सिर झुका कुछ दिनों तक गुप्तों के आधिपत्य मे रहना पड़ा।
बुन्देलखण्ड में अंग्रेजों से संधियाँ
संदर्भ -आधार –
बुन्देलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास – गोरेलाल तिवारी