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Bundelkhand Literature Festival बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव

बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव (Bundelkhand Literature Festival) परिवार का अन्तरावलोकन इस विचारधारा पर कार्य करता है कि एक अखण्ड राष्ट्र की आत्मा को जीवित रखने के लिए साहित्य एवं संस्कृति को भी जीवित रखना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण है तब यह अभिव्यंजित है कि जब से समाज का अस्तित्व इस दुनिया में है तभी से साहित्य का भी।

विदित हो कि साहित्य की प्रथम विशेषता समन्वयन की भावना है। यह भी तथ्य है कि साहित्य के अविर्भाव से लेकर आधुनिक साहित्य तक समाज के विकास एवं प्रगति में साहित्य की एक अहम भूमिका रही है एवं एक अकेला मनुष्य सभ्यताएँ नहीं गढ़ता बल्कि एक दृढ सामाजिक संरचना गढ़ती है। इसलिए Bundelkhand Literature Festival (बी.एल.एफ़.) समिति न केवल बुन्देलखण्ड के विद्वानों को अपितु समस्त राष्ट्र एवं अंतर्राष्ट्रीय भाषा एवं कला संरक्षक विद्वानों को बुन्देलखण्ड के इस अभिन्न साहित्यिक उत्सव का सहभागी बनाते हुए इस विचारधारा को परिपूर्ण करने की इच्छा रखती है।

“गिरि गहर नद – निर्झर मय लता गुल्म तरु कुंज भूमि है, तपोभूमि साहित्य कलायुत वीर भूमि बुंदेल भूमि है ।”
बुन्देलखण्ड प्रागैतिहासिक काल से ही अद्भुत कलाओं, प्रचीन सभ्यताओं और संस्कृतियों का गढ़ रहा है। यहां की संस्कृति आध्यात्म भावना पर आश्रित है। यहाँ भौतिकवाद की अपेक्षा अध्यात्मवाद पर अधिक बल दिया गया है। सटीक शब्दों में कहा जाये तो भौगोलिक और सांस्‍कृतिक विविधताओं के बावजूद बुंदेलखंड में जो एकता और समरसता है, उसके कारण यह क्षेत्र अपने आप में सबसे अनूठा बन पड़ता है। बुंदेलखंड की अपनी अलग ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्‍कृतिक विरासत है। बुंदेली माटी में जन्‍मी अनेक विभूतियों ने न केवल अपना बल्कि इस अंचल का नाम खूब रोशन किया और इतिहास में अमर हो गए।

बुंदेलखंड के अनन्त वैभव की झलक हमें आज उक्त भूमि पर संजोई हुई अमरगाथाओं से प्राप्त होती है। इस भूमि पर इस कला ने असीमित आदर पाया और उसका भरपूर विकास हुआ। जहां बुन्देलखण्ड का “इत जमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टोंस” से परिचय दिया जाता है। वहां भौगोलिक दृष्टि जनजीवन, संस्कृति और भाषा के सन्दर्भ से बुन्देला क्षत्रियों के वैभवकाल से जोड़ा जाता है। बुन्देली इस भू-भाग की सबसे अधिक व्यवहार में आने वाली बोली है। विगत ७०० वर्षों से इसमें पर्याप्त साहित्य सृजन हुआ। बुन्देली काव्य के विभिन्न साधनाओं, जातियों और आदि का परिचय भी मिलता है।

देखा जाये तो किसी भी स्थान की संस्कृति उस स्थान के धर्म, दर्शन, साहित्य, कला तथा राजनितिक विचारों पर आधारित रहती है। इसी तरह बुन्देलखण्ड की संस्कृति भी अनेक तत्वों के मिश्रण से बनी है। गौरतलब है कि समय के साथ बदलते हुए दौर में आधुनिकतावाद के पीछे भागते हुए विश्व की अनेक प्राचीन संस्कृतियां नष्ट हो गईं, परन्तु भारतीय संस्कृति की धारा आज भी प्रवाहित है। 

जिस प्रकार साहित्य, संस्कृति और कला-प्रेमियों ने गहन अनुसंधान कर इस मूल्यवान धरोहर को संजोया है। बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव का गठन भी इसी प्रकार बुन्देलखण्ड प्रान्त के अमूल्य साहित्य और यहां की अद्भुत कलाओं और संस्कृति को सहेजने और उसे और व्यापक बनाने के लिये किया गया है। बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्यिक परंपराएं प्राचीन काल से ही समृद्ध एवं विशिष्ट रही हैं जिसे बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव Bundelkhand Literature Festival के युवाओं की अपार कार्यक्षमता, एवं विद्वान अग्रजों की छत्रछाया ने संजोये रखने की कोशिश की है।

बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव महज़ एक कार्यक्रम नहीं बल्कि एक महाउत्सव है जहां साहित्यिक सृजन से लेकर बुन्देली साहित्य के भविष्य तक, कलाओं के उद्गम से लेकर उनकी पराकाष्ठाओं तक एवं संस्कृतियों की अनूठी मिसालों का अनूठा संगम देखने को मिलता है। एक ऐसा उत्सव जहां विद्वान साहित्यकारों से लेकर आज वर्तमान व आने वाली युवा पीढ़ी के साहित्यकारों तक सभी एक साथ बुन्देलखण्ड की इस पावन धरा की गरिमा को ऐसे ही अमूल्य बनाये रखने की भरसक कोशिश करते हैं। केवल इतना ही नहीं अन्य विचारधाराओं के प्रति सहिष्णुता बुन्देली संस्कृति की विशेषता रही है एवं पूर्ण रूप से ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (सारा संसार एक परिवार है) की भावना से ओत-प्रोत है।

बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव एक ऐसा अनुष्ठान है जहाँ वरिष्ठ विद्वान साहित्यकारों से लेकर आज वर्तमान व आने वाली युवा पीढ़ी के साहित्यकारों एवं कलाप्रेमियों का खुले ह्रदय से स्वागत किया जाता है जहाँ वे सभी एक साथ विभिन्न सामाजिक, मौलिक एवं अनुसंधानिक परिप्रेक्ष्यों पर सामूहिक रूप से विचार-विमर्श करते हैं एवं मानवभाव बुद्धिमत्ताओं का संगठन कर एक बेहतर समाज निर्माण का बीड़ा उठाते हैं एवं इस अनुष्ठान में साहित्य जगत, कला जगत, सिनेमा जगत एवं ज़मीनी सभ्यतायें कुछ भी इससे अछूता नहीं है।

बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव Bundelkhand Literature Festival की कार्यशैलियों पर बात करें तो यहां एक ही छत के नीचे विविधताओं में एकता देखने को मिलती है। जहां केवल बुन्देलखण्ड ही नहीं अपितु समस्त भारत के साहित्यकारों और कलाप्रेमियों को खुले हृदय से स्वागत किया जाता है एवं समस्त राष्ट्र के मौलिक एवं अनुसंधानिक परिप्रेक्ष्यों पर परिचर्चाएं की जाती हैं जैसे कि साहित्य जगत, कला जगत, सिनेमा से लेकर ज़मीनी सभ्यताएं कहीं से भी इससे अछूती नहीं हैं। यही वजह है कि प्राचीन सभ्यताओं एवं परम्पराओं से लेकर आधुनिक तकनीकों का साहित्य एवं कला में योगदान देख सकते हैं इसी तरह युवा पीढ़ी से लेकर वरिष्ठ साहित्य एवं कला के कद्रदानों द्वारा मिलकर इस संस्कृति को संजोये रखने की अनूठी मिसालें देख सकते हैं।

    यदि गत वर्ष 2020 में आयोजित बुंदेलखंड साहित्य महोत्सव की बात करें तो बीते वर्ष ही बुंदेलखंड साहित्य महोत्सव की नीव रखी गई थी। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम का उद्देश्य बुंदेलखंड के साहित्य, संस्कृति, कला को देश भर में पहुंचाना था। इस त्रिदिवसीय महोत्सव में केवल बुंदेलखंड के ही नहीं देश के कोने-कोने से रचनाकार और फनकार पधारे।

विशेष तौर पर तीनों दिवस उ०प्र० कृषि विभाग के साथ कृषि जागरुकता संगोष्ठी का आयोजन किया गया। महोत्सव मे साहित्य, कला, मीडिया और सिनेमा क़े गणमान्य व्यक्ति शामिल हुये। जिनमें प्रमुखत:  मैत्रेयी पुष्पा, पद्मश्री कैलाश मड़बईया, ऋचा अनिरुध, अंकिता जैन, नवीन कुमार(AAJ TAK), नवीन चौधरी, अकबर- आज़म कादरी, प्रह्लाद अग्रवाल, इंद्रजीत सिंह, दिनेश शंकर शैलेन्द्र, इंदिरा दांगी, कुलदीप राघव, गीत चतुर्वेदी, विवेक मिश्र, राजा बुंदेला, सुष्मिता मुखर्जी, डॉ शरद सिंह, डॉ पंकज चतुर्वेदी (NBT), दीपक दुआ, आदि सम्मिलित हुये।

बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव ने एक आयोजक के तौर पर इस उत्सव की भव्यता को बनाये रखने का भरसक प्रयत्न किया जिसमें कई तरह की कलात्मक गतिविधियों को शामिल किया गया एवं खास तौर पर बुन्देली हस्तशिल्प एवं कला स्टॉल, कृषि विशेष स्टॅाल, वीरांगना मंडप, अथाई मंडप, सांस्कृतिक मंडप आदि कुछ विशेष पंडाल भी लगाये गये।

 

बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव ने जिस प्रकार व्यापक तौर पर साहित्य, कला, सिनेमा एवं पत्रकारिता से जुड़े विशेष अतिथियों एवं दिग्गज कलाकारों को आमंत्रित किया इसी के साथ साहित्य एवं कला के क्षेत्र में रुचित नौजवानों को भी अपना हुनर दिखाने का मौका दिया। तीन दिवसीय महोत्सव में तीनों दिन संध्या समय ओपन माइक हुनर मंच का भी आयोजन किया गया जहां अनेकों युवा कलाकारों ने अपनी कलाओं( लेखन, संगीन, गायन) का प्रदर्शन किया जिसमें बुन्देलखण्ड के कई क्षेत्रों से आये युवा म्युज़िक ग्रुप्स भी जुड़े।

 

साहित्य महोत्सव के इस आयोजन को और अधिक वैभवशाली बनाये रखने के लिये तीनों दिवस विशेष तौर पर पुस्तक मेले का आयोजन किया गया जिसमें देश के अलग- अलग स्थानों के कई जाने माने प्रकाशकों ने शिरकत की एवं साहित्य महोत्सव की गरिमा को बनाये रखने का बीड़ा उठाया।

 

साभार-प्रताप गीता राज एवं बी.एल.एफ. परिवार

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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