Homeबुन्देलखण्ड का शौर्यआल्हाखण्डSambhal Tirth Par Yuddh – kathanak संभल तीर्थ पर युद्ध- कथानक  

Sambhal Tirth Par Yuddh – kathanak संभल तीर्थ पर युद्ध- कथानक  

दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान और महोबावाले बनाफरों के बीच Sambhal Tirth Par Yuddh मनोकामना सिद्ध मंदिर के टेक्स (भेंट) को लेकर हुआ था जिसमे आल्हा को विजय प्राप्त हुई । दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान ने संभल में सवा सौ मंदिर बनवा दिए। इनमें एक भगवती दुर्गा का मंदिर भी था। इसे मनोकामना सिद्ध मंदिर भी कहा जाता था। दूर-दूर से राजा और प्रजा इस मंदिर में श्रद्धापूर्वक पूजा करने आते थे।

एक मंदिर के पास सुंदर सी बगिया भी थी। प्रायः घोड़े को राजा बगिया में छोड़कर मंदिर में पूजा करने जाते थे। एक बार किसी राजा के घोड़े से माली परेशान हो गए। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान से शिकायत की तो पृथ्वीराज ने यह निर्णय लिया कि जो कोई राजा संभल में तीर्थ स्नान के लिए आएगा, वह एक घोड़ा ‘कर’ के रूप में भेंट करेगा या घोड़े की कीमत पृथ्वीराज को देगा, तब ही गंगास्नान कर सकेगा।

यह प्रथा बरसों तक चली तो पंडित जन परेशान हो गए। उन्होंने रात्रि जागरण तथा यज्ञ करके देवी से प्रार्थना की। देवी ने प्रगट होकर पंडों को दर्शन दिए और प्रार्थना सुनी। पंडित ने कहा कि राजा पृथ्वीराज ने इतनी बड़ी भेंट कर के रूप में लेनी शुरू कर दी कि यात्रियों के पास दान-दक्षिणा के लिए कुछ बचता ही नहीं। अब हमारा तो गुजारा चलना भी कठिन हो गया है। देवी ने आश्वासन दिया कि अब इस कर प्रथा को बंद करने का प्रबंध मैं कर दूंगी।

सिरसागढ़ का राजा मलखान भी देवी का जन्मजात भक्त था। देवी से उसे दर्शन दिए और आदेश दिया कि वह पृथ्वीराज से लड़कर इस प्रथा को बंद करवाए। देवी की आज्ञा पाकर मलखान अगले ही दिन अपने साथी मन्ना गूजर और परसा राय के साथ संभल के लिए रवाना हुआ, साथ में कुछ फौज भी ले ली।

संभल आकर स्नान करना ही चाहता था तो पृथ्वीराज द्वारा नियुक्त कुछ नागा साधुओं ने कर देने से पहले स्नान न करने देने की धमकी दी। भगवती का आदेश था। मलखान के वीरों ने नागाओं की अच्छी धुनाई कर दी। उन्होंने जाकर राजा पृथ्वीराज को बताया कि कोई राजा घमंडी राय आया है। कर तो चुकाया ही नहीं, हम सभी को लहूलुहान कर दिया।

राजा को क्रोध आता ही, उसकी सत्ता को ललकारा जो गया था। पिथौरा राय ने धीर सिंह और चामुंडा राय को भेजा तथा घमंडी राय को पकड़ लाने को कहा। दोनों ने दो ओर मोरचा सँभाल लिया। मलखान ने मन्ना गूजर और परसा राय को उनसे भिड़ा दिया। अजयजीत सिंह और विजय जीत सिंह को भी तैयार होकर अपनी फौज सहित संभल में बुला लिया। उन्होंने हाथी सजा लिये और संभल के मैदान में जा पहुंचे।

फिर युद्ध होने लगा। एक ओर मन्ना गूजर, दूसरी ओर परसा राय ने मोरचा सँभाला था और बीच में स्वयं मलखान ने नेतृत्व सँभाला। भीषण युद्ध हुआ। दोनों ओर से ‘हर-हर महादेव’ का उद्घोष हो रहा था। धीर सिंह की ललकार सुनकर मलखान को क्रोध आ गया।

उसने कहा, “गर्व मत करो। रावण ने गर्व किया था, देखो उसका क्या हाल हुआ? दुर्योधन का गर्व भी पांडवों ने चूर कर दिया। हिरण्यकष्यप को तो भगवान् ने स्वयं नखों से चीर दिया।” फिर तो भारी युद्ध हुआ। लाशों पर लाश बिछ गई, यहाँ तक कि जिंदा सिपाही लाशों के नीचे छिप गए।

तलवारें मछली सी और ढालें कछुए जैसी रक्त में तैरने लगीं। मलखान ने अपनी फौज के वीरों को उत्साहित करते हए कहा, “हर कदम आगे बढ़ने पर एक अशर्फी इनाम दूँगा।” योदधा आगे बढ़ते-बढते एक-दसरे की सेना में घुस गए। अपने-पराए की पहचान न रही। बस मारो-मारो का स्वर सुनाई पड़ रहा था।

मलखान को अपनी फौज में कमजोरी दिखाई दी तो अपना घोड़ा बीच में घुसा दिया। मलखान को बढ़ता देख मन्ना गूजर भी आगे बढ़ा और दोनों ने ऐसी मार-काट मचाई कि हाथ-पाँव व सिर कटते और उड़कर गिरते ही दिखाई दे रहे थे।

पृथ्वीराज चौहान को समाचार मिला कि मलखान ने मनोकामना तीर्थ पर भीषण युद्ध करके दिल्ली की सेना को बहुत हैरान कर दिया है तो पृथ्वीराज ने चौंडा बख्शी और पारथ सिंह को साथ लिया। धीरा ताहर को भी तैयार किया और बताया कि मलखान ने तीर्थ पर भेंट देने से मना कर दिया। वह सबसे कह रहा है कि दिल्लीपति को कोई भेंट लेने का हक नहीं है। अगर भेंट बंद कर दी गई तो यह हमारी तौहीन होगी। जब मंदिर हमने बनवाए हैं तो भेंट लेने का हक भी हमारा है। चौहानों की आन की रक्षा के लिए मलखान को रोकना आवश्यक है।

फिर पृथ्वीराज चौहानों की एक बड़ी सेना लेकर संभल पहुँच गया। दोनों सेनाएँ एक-दूसरे के खून की प्यासी हो गई। पृथ्वीराज ने कहा, “हे बनाफरवंशी मलखान! क्यों दोनों ओर की सेनाओं को मरवा रहे हो? यह भ्रम मन से निकाल दो कि तुम से बढ़कर कोई वीर नहीं है। तुमने इतने नागा साधुओं की हत्या कर दी है, तुम पापी हो। तुम मुझे भेंट नहीं दोगे, तब तक यहाँ से वापस नहीं जा सकते। अगर तेरे पास देने को कुछ नहीं बचा तो अपना घोड़ा छोड कर चले जाओ।”

मलखान यह बात सनकर आग-बबला हो गया और बोला, “महोबावाले ऐसी बातें नहीं सुन सकते। हम तुम्हारे नौकर-चाकर नहीं हैं, जो तुम्हारी खुशामद करें। मैं पुष्य नक्षत्र में पैदा हुआ हूँ। पुष्य और रोहिणी नक्षत्र में जो पैदा होते हैं, विश्व उनका लोहा मानता है। राजा राम और श्रीकृष्ण भी इसी मुहूर्त में उत्पन्न हुए, जिन्होंने पापियों का नाश किया। चौहानों की क्या ताकत है, जो मुझसे मुकाबला कर सकें। मैं तीर्थ की भेंट बंद करवाने ही आया हूँ और बंद करवाकर ही मानूंगा।”

पृथ्वीराज ने अपने सरदारों को आदेश दिया कि इस मलखान को जान से मार दो। पहले तोपें चलीं, फिर बंदूकें, तीर भी सनसनाए, फिर सांग भी चली, परंतु कोई पीछे न हटा। अंत में तलवारें खनकने लगीं। मानाशाही सिरोही और वरदवान का तेगा तेजी से चल रहे थे।

एक को मारें तो दो मर जाते थे और तीसरा डर से ही साँस छोड़ देता था। हालत यह हो गई कि तीर्थ में कहीं पानी बह रहा था तो कहीं खून की धार बह रही थी। पृथ्वीराज ने अपने सरदारों को ताना मारा, “अरे! तुम इतने होकर अकेले मलखान को काबू में नहीं कर पा रहे?”

ताना सुनकर धीर सिंह आगे बढ़कर मलखान से भिड़ गया। उसने कहा, “धीर सिंह को तू नहीं जानता। मैं मुगल पठानों को, गजनी के खानों को और विलायत के जवानों को भी लोहा मनवा चुका हूँ। तू भी भेंट देकर अपनी जान बचाकर भाग जा, वरना पछताएगा।” मलखान ने कहा, “इतना अभिमान मत कर। अभी पता चल जाएगा कि किसकी धार तेज है।”

तब धीर सिंह ने भयंकर युद्ध शुरू कर दिया। उसने तीर चलाया, भाला मारा, तलवार के वार किए, पर मलखान ने सब वार बचा दिए। फिर पृथ्वीराज ने सभी सरदारों से कहा कि क्या तुम सब मिलकर एक मलखान को काबू नहीं कर सकते? इतनी बात सुनकर सब सरदार मलखे की ओर बढ़ते हुए मारकाट मचाने लगे।

धीर सिंह का हाथी विचल गया। वह सूंड़ घुमाकर भी सैनिकों को गिरा रहा था और पैरों से भी उन्हें रौंद रहा था। इधर मलखान का घोड़ा भी चारों टापों से वार करता और मुँह से भी मार करता। मलखान की तलवार तो लगातार चल रही थी। सब सरदार और निकट आ गए। सभी के वार अकेले मलखान पर हो रहे थे।

वह भी अद्भुत वीर था। किसी के भी वार को आसानी से बचा जाता। सभी का कुछ-न-कुछ अंग कटा, सब घायल हुए, परंतु मलखान का बाल बाँका नहीं हुआ। धीर सिंह की सिरोही की मूठ हाथ में रह गई सिरोही टूटकर गिर गई। अब वह असहाय रह गया। उसे लगा अब अगर मलखान ने वार कर दिया तो उसके प्राण नहीं बचेंगे।

इसलिए वह हौदे पर खड़ा हो गया। उसने सांग उठाकर फेंकी, पर मलखान की घोड़ी आसमान में उड़ गई। कबूतरी सचमुच कबूतरी थी। मलखान अपने लश्कर में जा पहुँचा। उसने अपने सब साथियों को आखिरी लड़ाई के लिए ललकारा।

इधर धीर सिंह ने पिथौरा राय से कहा, “राजन! मलखान को हराने में शायद हमारे सारे सैनिक समाप्त हो जाएँगे। हो सकता है, सरदार भी एक-आध ही बचे। मलखान अनोखा वीर है और उसकी घोड़ी तो पशु नहीं, पक्षी है उड़कर बचा ले जाती है। मेरा विचार है कि सभी राजाओं को सूचित कर दो कि ‘भेंट-कर’ बिना दिए स्नान कर सकते हैं और सरदारों ने भी धीर सिंह की बात को पानी दिया। पृथ्वीराज चौहान ने कहा, “चौंडा राय मलखान से जाकर कह दो कि अब किसी से कोई कर नहीं लिया जाएगा। मनोकामना तीर्थ पर कोई भी राजा स्नान कर सकता है। युद्ध बंद कर दो।”

चौंडा राय मलखान के पास पहुँचा और युद्ध बंद करने को कहा। मलखान बोला, चौहान के ऐलान पर कोई भरोसा नहीं। यदि यह ऐलान सच्चा है तो पृथ्वीराज अपने हाथ से लिखकर, मुहर लगाकर सभी राजाओं को संदेश भेजे। यह भी लिखे कि मलखान ने यह कर बंद करवाया है।

चौंडा राय ने पृथ्वीराज को पूरी बात कह सुनाई। फिर तो पृथ्वीराज ने ऐसे पत्र लिखकर, मुहर लगाकर सबको भेज दिए। वैसा ही पत्र मलखान के पास भी भिजवा दिया। देवीजी के वरदान से मनोकामना मंदिर तीर्थ पर मनोकामना पूर्ण करके मलखान सिरसा वापस लौट गया। दिल्ली की फौजों के साथ पृथ्वीराज भी दिल्ली लौट गया।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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