माहिल ने परिमाल से बदला लेने के लिये करिया राय को महोबा पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। Mahoba Ka Pratham Yuddh महोबा वालो के लिये श्राप की तरह था। माडौगढ़ के राजा जब्बेराय बघेलवंशी राजपूत थे। उनका पुत्र करिया राय वीर ही नहीं, चतुर-चालाक भी था। ज्येष्ठ मास के दशहरा पर हर साल गंगा घाटों पर मेले लगते हैं। जाजमऊ घाट पर भी मेला लगता है। वहाँ भी आस-पास के राजा-रईस गंगामाता की जय-जयकार करते हुए स्नान करने आते हैं।
बनाफरों का महोबा आगमन नए इतिहास का आरंभ
करिया राय ने अपने पिता से जाजमऊ मेले में जाने की अनुमति माँगी। राजा ने कहा, “मेले में जाना ठीक नहीं होगा। वहाँ कन्नौज का राजा जयचंद भी आएगा। हमने उससे कर्जा लिया था और पिछले बारह वर्ष में एक रुपया भी नहीं चुकाया। वह तुम्हें मेले में अपमानित कर सकता है।” करिया राय को ही करिघा राय भी कहा जाता था।
करिया राय “हे दादा! आप मुझे जाने दें। राजा जयचंद से सामना हो भी गया तो मैं अपनी चतुराई से पूरा कर्ज ही माफ करवा लूँगा।” जब्बे राय ने गंगास्नान पर जाने की अनुमति दे दी। करिया राय तब अपने महल में गया और अपनी प्यारी बहन बिजैसिनी को गंगास्नान करने जाने का समाचार दिया। बहन ने कहा, “मेले में तो मैं नहीं जाऊँगी, परंतु मेरे लिए मेले से कुछ ऐसा उपहार लाना, जो बहुमूल्य हो और जीवन भर याद रहे।” करिया ने बहन से उपहार लाने का वायदा किया और जाजमऊ गंगा घाट को चल पड़ा।
जाजमऊ जाकर गंगास्नान किया, फिर ब्राह्मणों को दान दिया। गंगास्नान पर मेले में बाजार लगने की भी परंपरा है। लोग अपने काम की तथा अपनी पसंद की चीजें मेले से खरीदकर ले जाते हैं, ताकि याद बनी रहे। परिवारजनों तथा मित्रों के लिए उपहार भी ले जाते हैं। करिया राय को भी बहन के लिए उपहार खरीदने की याद आई। उसने सोचा कि हीरों जड़ा नौलखा हार उपहार में दिया जाए तो कैसा रहे! बाजार में बार-बार घूमा, पर असली हीरोंवाला नौलखा हार कहीं नहीं मिला।
इसी दौरान करिया राय की भेंट माहिल राय से हो गई। जब माहिल को पता चला कि करिया नौलखा हार की तलाश में है तो उसने चुगली लगाई, “राजा होकर बाजारों में हार खोज रहे हो। जिनके यहाँ हार हो, अपनी शक्ति से छीनकर ले आओ।” करिया तो उत्पाती था ही, बोला, “अरे! यह तो पता चले कि नौलखा हार मिलेगा कहाँ? फिर तो उसे उड़ा लाना मेरा काम है।” माहिल ने बताया, “महोबा में राजा परिमाल की रानी मल्हना के पास हीरों जड़ा नौलखा हार है। जाओ छीन लाओ।” करिया राय को तो मानो पंख लग गए। वह तुरंत महोबा के लिए चल पड़ा। सेना तो साथ होती ही है।
एक गाँव में रहिमल, टोडरमल, दस्सराज तथा बच्छराज चार भाई रहते थे। वे बक्सर के रहने वाले थे। इनका वनवासी होने के कारण बनाफर गोत्र था। इनके पास ही बनारस का रहने वाला ताल्हन रहता था, जिनके नौ पुत्र और थे। जयचंद की रियासत में इनके साथ कछ झगडा हो गया। आपसी विवाद को निपटाने के लिए दोनों परिवार जयचंद के दरबार जाने के लिए चले। वे महोबा जा पहुँचे।
वहाँ उन्होंने किसी राहगीर से कन्नौज जाने का मार्ग पूछा। राहगीर ने जाने का कारण पूछा तो उन्होंने दोनों परिवारों का आपसी विवाद सुलझाने की बात बताई। यात्री ने कहा, “कहाँ जयचंद को खोज रहे हो, यहीं महोबा में महाराज परिमाल के पास चले जाओ।” दोनों परिवारों को सुझाव अच्छा लगा। महोबा के द्वार पर राहगीरों के लिए ठहरने के लिए कमरों की व्यवस्था थी।
द्वार रक्षकों ने दोनों परिवारों को वहीं ठहरा दिया और कहा, “राजा परिमाल को समाचार भेज देते हैं। जब तक वे दरबार में बुलाएँ, आप यहाँ प्रेम से रहिए। भोजन का प्रबंध राजा की ओर से होता है। आप लोगों को कोई असुविधा नहीं होगी।
द्वार रक्षकों की बात सुनकर दोनों परिवार वहीं ठहर गए। इधर करिया राय उरई नरेश माहिल के बहकावे में आकर महोबा पहुँचा। उसने प्रवेश करना चाहा तो द्वारपालों ने रोक दिया। वह तो राजमहल में लूट के विचार से आया था। अतः सोचा, पहले यहीं से आतंक फैलाना शुरू करूँ तो आगे तक सब डर जाएँगे।
दस्सराज और बच्छराज भी बनाफर राजपूत थे। उन्होंने सोचा, “तीन दिन से हम यहाँ राजा के मेहमान बने हैं। उस पर किसी डाकू का आक्रमण हो तो हम चुपचाप कैसे देखते रह सकते हैं।” उधर ताल्हन सैयद ने भी अपने पुत्रों-पोत्रों को तैयार किया। करिया राय के पास घुड़सवार और हाथी भी थे, परंतु फिर भी वह अपने लूट के कुकर्म में सफल नहीं हुआ। बनाफर भाइयों तथा ताल्हन मियाँ ने उन्हें मारकर भगा दिया।
करिया राय अपनी सेना मरवाकर वापस चला गया। राजा परिमाल के महलों में इस घटना का पता चला तो उन्होंने राजदरबार में बुलाकर उन सबका सम्मान किया। रानी मल्हना ने राजा परिमाल से कहा, “राजन! आपने तो युद्ध से हाथ खींच लिये। शस्त्र सागर को समर्पित कर दिए। यदि कोई शत्रु आक्रमण कर दे तो बिना नायक के सेना कैसे लड़ सकेगी?
राजा ने कहा, वैसे भी अब मैं युद्ध करना ही नहीं चाहता। तुम्हारे भाई तो कोई सहायता करते नहीं हैं। मल्हना ने कहा, ये जो बनाफर लड़के दस्सराज-बच्छराज हैं, इन्हें अपनी सेवा में रख लो। सेना में बड़े पद दे दो। ताल्हन मियाँ को भी यहीं रख लो। राजा को सलाह पसंद आई। राजा ने उनको बताया तो वे भी प्रसन्न हो गए।
विवाद छोड़कर महोबे में ही रह गए। पहले तो राजमहल में ही रहे, फिर राजा ने उनके लिए अलग महल बनवा दिया। ताल्हन को सेनापति बना दिया। दस्सराज-बच्छराज को भी सेना में ऊँचे पद दे दिए। वे अब महोबा निवासी बन गए। मल्हना ने उनका विवाह भी अच्छे राजपूत कन्याओं से करवा दिया।
दस्सराज की पत्नी दिवाला के गर्भ से आल्हा का जन्म हुआ, जो महान् वीर तथा धर्मराज युधिष्ठिर का अवतार है। बच्छराज की रानी ब्रह्मादे के गर्भ से मलखान का जन्म हुआ, जो सहदेव के अवतार माने जाते हैं। स्वयं रानी मल्हना के उदर से ब्रह्मानंद ने जन्म लिया, जो वीर अर्जुन के अवतार थे। रतिभान की रानी तिलका ने लाखन को जन्म दिया, जो नकुल के अवतार है। इस बार रानी दिवला ने ऊदल को जन्म दिया, जो महाबली भीम का अवतार है।
दस्सराज और बच्छराज बनाफरवंशी थे, परंतु चंदेले राजा परिमाल को पूरा आदर देते थे। राजा परिमाल के लिए वे पूरी निष्ठा से रण में जूझने को तैयार रहते थे। राजा ने अपने चंदेरी के राज्य और महोबे में आकर रहने की कहानी उन्हें सुना दी। माहिल और भौपति उनके सगे साले हैं, यह भी बता दिया। वे दोनों तन-मन से राजा की सेवा में लगे रहते। कुछ दिन बाद ताल्हन सैयद बनारस लौट गया और दस्सराज सेनापति बन गया।
माहिल का मन बरसों बाद भी परिमाल से बदला लेने को मचलता था। बहन का भी वह भला नहीं चाहता था। एक बार फिर उसने करिया राय को महोबा पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। उसे बताया कि ताल्हन बनारस चला गया है। दस्सराज-बच्छराज अलग महल में रहते हैं। राजा परिमाल शस्त्र नहीं उठाते।
अतः अब महोबा पर आक्रमण करो और बहन मल्हना का नौलखा हार व अन्य आभूषण लूट ले आओ। करिया राय ने भारी फौज लेकर महोबा पर आक्रमण कर दिया। आधी रात में दस्सराज व बच्छराज को सोते से उठा ले गया और हाथ-पाँव बाँधकर सिर काट दिए। इतना ही नहीं, वीरों के सिर उस दुष्ट ने वट वृक्ष पर लटका दिए, ताकि सबको पता चल जाए कि अब महोबा के रक्षक वीर नहीं रहे।
महोबा में हाहाकार मच गया। रानी मल्हना और चंदेला परिवार की सभी रानियाँ रोने लगीं। राजा परिमाल लाचार होकर गिर पड़े। जब वश नहीं चलता तब रोना ही शेष रह जाता है। ताला सैयद बनारस से वापस लौटे तो महोबा का हाल देखकर बहुत दुःखी हुए। सैयद ने एक बार तो मांडौगढ़ पर चढ़ाई करने की सोची, परंतु बाद में दिवला की सलाह मान ली। दिवला ने कहा, “तुम इन सब बच्चों को पालो और मजबूत बनाओ। समय आएगा तो वे स्वयं ही बदला ले लेंगे।”
इस घटना के तीन महीने बाद ही दिवला ने ऊदल को जन्म दिया। दिवला ने बाँदी से कहा कि इसे कहीं फेंक दे। इसके जन्म के कारण ही इसके पिता की मृत्यु हुई है। बाँदी ने रानी मल्हना को बालक देकर सारी बात बताई तो रानी ने उस बालक को अपने पास ही रख लिया। आल्हा और ब्रह्मानंद के साथ ऊदल का भी पालन-पोषण रानी मल्हना ने स्वयं किया।
राजा परिमाल ने पंडित बुलाकर उस बालक का भविष्य पूछा। ज्योतिषी ने बताया कि बालक बहुत बलवान होगा। इसका माथा, छाती और नयन सभी आकर्षक हैं। यह शूरवीर और प्रभावशाली होगा। राजा परिमाल ने प्रसन्नतापूर्वक पालन-पोषण करने के लिए उसे रानी मल्हना को दे दिया। मल्हना ऊदल और ब्रह्मा दोनों को अपनी छाती का दूध पिलाती थी। उसने दोनों को अपना ही पुत्र माना।
पहले बताया जा चुका है कि जस्सराज की पत्नी देव कुँवरि के एक पुत्र अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न हुआ था, जिसका भविष्य पूछने पर मालूम हुआ कि वह पिता के लिए अशुभ है, अतः परिमाल ने उसे बाँदी को पालने को दे दिया। एक बार वह गंगास्नान के मेले में गई थी तो पृथ्वीराज ने उस बालक को उठवा लिया। बाद में अपने भाई कान्ह देव को गोद दे दिया, क्योंकि उसकी संतान नहीं थी। बाद में वह देवपाल और धाँधू नाम से प्रसिद्ध हुआ।
रानी मल्हना सब लड़कों को बहुत प्यार करती थी। एक बार महोबा में गुरु अमरनाथ पधारे। मल्हना अपने साथ दिवला और ब्रह्मा रानी को लेकर (गुरू अमरा ) अमरनाथजी महाराज की सेवा में पहुँची। आल्हा, ऊदल, ब्रह्मानंद, मलखान, ढेवा आदि सबको गुरु अमरनाथजी के चरणों में प्रणाम करवाया। रानी ने कहा, “आप इन्हें अपना दास जानकर अपनी शरण में लेकर आशीर्वाद दीजिए।
गुरु अमरनाथ जी ने आल्हा की पीठ ठोंकते हुए कहा, “सदा विजयी रहोगे। सभी बड़े योद्धाओं पर विजय प्राप्त करोगो।” फिर ऊदल की पीठ ठोंकी, बोले, “इस लड़के का शरीर वज्र का होगा, जिस पर हथियार भी असर नहीं करेगा।’ फिर मलखान पर हाथ फिराते हुए उसका शरीर वज्र करने लगे, तब ब्रह्मानंद ने कहा, महाराज! आप शिष्यों के पाँव न छुएँ।
गुरु अमरनाथजी ने कहा, रानी इनकी सारी काया वज्र की हो गई, बस पाँव रह गए। पाँव में ही मृत्यु का कारण रहेगा। यदि पाँव के तलवे में शस्त्र लग गया तो यह नहीं बचेगा। फिर ब्रह्मानंद और सुलिखे पर हाथ फेरा। मलखान ब्रह्मानंद के तो पाँव में जन्मजात पद्म का चिह्न है, उसके फटने से पूर्व उसे कोई नहीं मार सकता।
सातों लड़के ताला सैयद से युद्धकला सीखने लगे। मल्हना रानी स्वयं सबके खाने और खेलने का ध्यान रखती। इसी प्रकार सबके शरीर और बल में निरंतर विकास होता रहा। मल्हना ने फिर सातों कुमारों के लिए अच्छी नस्ल के घोड़े मँगवाए। उन्होंने आल्हा को हरिनाग नाम का ऊँची रास का घोड़ा पकड़ाया। राजकुमार ब्रह्मानंद को करिलिया नाम की घोड़ी पकड़ाई। कबूतरी घोड़ी मलखान को मिली। ऊदल को वैदुल घोड़ा सौंपा। ढेवा को मनुरथा घोड़ा मिला। सुलिखे को हिरोजिनी घोड़ी तथा रणजीत को भी हिरोजिनी घोड़ी दी गई।
मल्हना रानी ने सब राजकुमारों को अगले दिन सुबह दंडक वन में आखेट के लिए जाने का आदेश दिया, “जो हिरन का शिकार करके लाएगा, उसे मैं अपना सच्चा पुत्र मानूंगी।” यह कहकर उन सबमें जोश भर दिया, ताकि वे जी-जान से जुट जाएँ।
अगले दिन सवेरे ही सातों लड़के शिकार खेलने गए। दिन भर कोई शिकार नहीं मिला। सब परेशान थे। तब ऊदल को एक हिरन मिला। उसने अपना वैदुल घोड़ा हिरन के पीछे भगाया। हिरन दौड़ते-दौड़ते उरई के इलाके में जा पहुँचा और बाग में घुस गया। ऊदल भी घोड़े सहित बाग में जा घुसा।
हिरन को खोजते हुए ऊदल ने बाग में प्रवेश कर लिया। हिरन तो कहीं छिप गया, पर बाग में बहुत सा नुकसान हो गया। माली इकट्ठे हो गए। ऊदल को रोककर उन्होंने पूछा, “तुम कौन हो, कहाँ से आए हो? हमारे स्वामी माहिल ठाकुर को पता चलेगा तो तुम्हारा घोड़ा छीन लिया जाएगा।
ऊदल ने अपना परिचय दिया, “मेरा नाम ऊदल है। महोबा से आया हूँ। जहाँ के राजा परिमाल राय हैं। आल्हा का छोटा भाई हूँ। किसी में इतनी हिम्मत नहीं, जो मेरा घोड़ा छीन ले।” इतना कहकर ऊदल ने घोड़ा महोबा की ओर मोड़ दिया और शाम होते-होते महोबा पहुँच गए।
दूसरे दिन फिर सारे लड़के घोड़ों पर चढ़कर वन में शिकार के लिए निकले। सबने मिलकर हिरन का शिकार किया और लाकर राजा परिमाल व रानी मल्हना के सामने रख दिया। दोनों बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें विश्वास हो गया कि लड़के मांडौगढ़ के करिया राय से बदला लेने में समर्थ हो गए हैं। सबने आनंद मनाया और नित्य युद्ध का अभ्यास करने लगे।