Homeबुन्देलखण्ड का शौर्यआल्हाखण्डAlhakhand Yoddhao Ka Parichay आल्हाखण्ड योद्धओं का परिचय

Alhakhand Yoddhao Ka Parichay आल्हाखण्ड योद्धओं का परिचय

आल्हाखंड के कथानक का विस्तार अद्भुत है। Alhakhand Yoddhao Ka Parichay अपने आप मे आलौकिक और शौर्य पूर्ण है।  उसमें आल्हा, उनके पिता और उनके पुत्र तीन पीढ़ियों की कथा को एक साथ समावेश आल्हाखण्ड मे किया गया है। उसकी घटनाएँ मध्यप्रदेश के तत्कालीन प्रमुख राज्यों महोबा, दिल्ली और कन्नौज के विस्तृत क्षेत्र में घटित होती है। चरित काव्यों की तरह उसमें आल्हा, ऊदल, मलखान आदि वीर नायकों के जन्म से मृत्यु तक का वर्णन हुआ है।

आल्हा-ऊदल का जन्म
गुरु के आदेश पर राजा परिमाल ने युद्ध करना छोड़ दिया था, तो भी कोई राजा उनका बाल-बाँका नहीं कर सकता था। उनके पास जस्सराज और बच्छराज नामक के दो योद्धा थे। इनके पराक्रम से परिमाल के राज्य की पूर्ण सुरक्षा होती थी। एक बार मांडौगढ़ के राजकुमार करिया राय गढ़गंगा पर स्नान करने गए।

उन दिनों गढ़ मुक्तेश्वर के गंगास्नान मेले में स्नानार्थी राजाओं के शिविर लगा करते थे। वहीं सब प्रकार के सामान भी बिकने के लिए लाए जाते थे। एक महीने तक बड़ा आकर्षक बाजार लगा रहता था। राजा करिया राय मेले में नौलखा हार (हीरों का जड़ा) खोज रहे थे, जो उन्हें अपनी बहन को उपहारस्वरूप देना था।

हार बिकने ही नहीं आया था, तो मिला भी नहीं। हार तो नहीं मिला, पर करिया राय को माहिल मिल गया। माहिल ने कहा, “हार तो मिल जाएगा, परंतु खरीद नहीं सकते, लूटना पड़ेगा।” करिया राय के पूछने पर माहिल ने बताया, मेरी बहन मल्हना के पास असली हीरों का नौलखा हार है। तुम्हारी हिम्मत है तो महोबा जाकर लूट लो। करिया राय माहिल के उकसावे में आ गया और हार लूटने के लिए महोबा पहुँच गया, लेकिन महोबा में जस्सराज, बच्छराज, ताल्हन सैयद ने उसे युद्ध में बुरी तरह परास्त कर भगा दिया।

कुछ दिन बाद ताल्हन सैयद किसी काम से काशी गए थे। माहिल ने फिर चुगली खाई। उसने करिया राय को जाकर बताया कि अब अवसर है। महोबे जाकर नौलखा हार लूट लो। करिया राय ने मौके पर मिली सूचना का पूरा लाभ उठाया। उसने आधी रात को छापा मारा। जस्सराज और बच्छराज दोनों वीरों को सोते हुए ही पकड़ लिया।

दिवला रानी के गले से नौलखा हार झपट लिया। अनेक स्वर्ण-आभूषण, पचसावत नामक हाथी तथा पपीहा नामक घोड़ा आदि लूटकर मांडौगढ़ लौट गया। जस्सराज और बच्छराज दोनों भाइयों की वीरता के कारण ही परिमाल राजा पर कोई आक्रमण नहीं करता था। उनको बंदी बनाकर करिया राय ने उन्हें बहुत कष्ट दिए।

माहिल की सलाह पर दोनों के सिर काटकर बड़ के पेड़ पर लटका दिए, जिसकी सूचना लोगों ने राजा परिमाल तक पहुँचाई। जस्सराज के पुत्रों को परिमाल अपने ही महल में ले आए। उनकी रानी ने उन बच्चों का पालन-पोषण किया। जस्सराज और बच्छराज को तो परिमाल वन से लाए थे। वे वनवासी थे, अतः बाद में उनका गोत्र ही ‘बनाफर राय’ प्रसिद्ध हुआ। आल्हा-ऊदल ही जस्सराज के पुत्र थे, जिनका पालन-पोषण परिमाल राजा की रानी मल्हना ने किया था।

पात्रों का संक्षिप्त परिचय
आल्हाखंड की कथा में जिन-जिन का नाम तथा वर्णन आएगा, उन पात्रों का संक्षिप्त परिचय देने से पाठकों को सरलता से कहानी समझ में आती रहेगी। अभी तक यह बताया गया है कि आल्हा-ऊदल जस्सराज के पुत्र थे। उनको करिया राय (मांडौगढ़ का राजा) ने धोखे से पकड़कर मरवा दिया।

माहिल राजा परिमाल का साला था, अतः आल्हा का मामा था। माहिल मन का दुष्ट, ईर्ष्यालु तथा चुगलखोर था। उसे महोबा से निकालकर उरई भेज दिया गया था। अतः वह ऊपर से खुश दिखाई देता था, पर अपने बहनोई तथा भानजों से बदला लेने का कोई अवसर चूकता नहीं था। अपनी ही बहन के नौलखा हार की लूट माहिल ने करवाई थी।

पृथ्वीराज
पृथ्वीराज भारतीय इतिहास का प्रसिद्ध पात्र है, परंतु उसके जन्म की कथा इतिहास के छात्रों के लिए भी अज्ञात है। साहित्य भी ऐतिहासिक शोध के लिए एक प्रमुख स्रोत होता है। ‘पृथ्वीराज रासो’, ‘परिमाल रासो’ तथा ‘बलभद्र विलास’ नामक ग्रंथों से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर (दिल्ली) के राजा अनंगपाल तोमर का राजा कामध्वज से युद्ध हुआ।

अजमेर के राजा सोमेश्वर ने राजा अनंगपाल की सहायता की। तब अनंगपाल ने अपनी पुत्री इंद्रावती का विवाह राजा सोमेश्वर से करके उनका एहसान चुकाया। रानी इंद्रावती का ही एक नाम कमला भी था। एक बार इंद्रावती अपने मायके (दिल्ली) आई। ज्ञात हुआ कि वह गर्भवती है।

अनंगपाल ने पंडित चंदनलालजी से गर्भस्थ शिशु का भविष्य जानना चाहा। यों तो जन्म के समय एवं नक्षत्र से ही भविष्य बताया जा सकता है, परंतु जन्म होने के समय की गणना करके भी अनुमान लगाया जा सकता है। पंडितजी ने बताया कि ‘जातक बहत बलशाली होगा। प्रतापी राजा बनेगा। आपके हस्तिनापुर का राजा भी यही बनेगा।’ जब कुटुंब के अन्य जनों को यह ज्ञात हुआ तो उन लोगों ने साजिश रची।

रानी इंद्रावती को बताया गया—”तुम्हारे प्रतापी पुत्र होने वाला है, परंतु यदि मायके में बनी रही तो गर्भ गिरने की संभावना है, अतः तुम परिवार और सैनिक साथ लेकर तीर्थाटन पर चली जाओ।” इंद्रावती ने अपने पिता की बात का भरोसा किया और तीर्थाटन को चली गई। जिनको साजिश की जिम्मेदारी दी गई थी, उन लोगों ने एक रात को सोती हुई इंद्रावती को कुएँ में फेंक दिया और लौटकर यह खबर फैला दी कि इंद्रावती की मृत्यु हो गई।

इंद्रावती की जब नींद खुली और वह चीखी-चिल्लाई, तब वन में रहने वाले एक साधु ने उसे कुएँ से बाहर निकाला। इंद्रावती ने अपने पिता अनंगपाल तथा पति सोमेश्वर का परिचय दिया। योगी अश्वत्थामा ने रानी को पतिगृह या पितृगृह जाने की इच्छा पूछी तो इंद्रावती ने कहा, “महाराज! आपने मुझे जीवन दान दिया है।

अब आप ही मेरी रक्षा करें। मैं कहीं और नहीं जाना चाहती।” योगी संन्यासी तो स्वभाव से ही परोपकारी होते हैं। इंद्रावती की प्रार्थना स्वीकृत हुई। पृथ्वीराज का जन्म संवत् 1132 में वन में ही हुआ। अश्वत्थामा संन्यासी ने ही पृथ्वीराज का नामकरण तथा पालन-पोषण किया। गुरु बनकर धनुष-बाण चलाने सिखाए तथा अच्छे संस्कार भी दिए।

एक दिन शिकार की खोज में राजा सोमेश्वर उसी जंगल में आ निकले। वहाँ एक बालक को वन में विचरण करते देखकर चकित हुए। बालक से परिचय पूछा तो उसने माता का नाम कमला बताया, परंतु पिता का नाम नहीं बताया। उसने कहा, “मैं और मेरी माता एक ऋषि के आश्रम में रहते हैं। आप मिलना चाहें तो मेरे साथ चलें।”

राजा सोमेश्वर के मन में बालक के प्रति मोह उमड़ रहा था। वे बालक पृथ्वीराज के साथ ऋषि अश्वत्थामा के आश्रम में पहुँच गए। राजा ने प्रथम अपना परिचय दिया और यह भी बताया, “मेरी रानी इंद्रावती अपने मायके से तीर्थाटन के लिए गई थी। मार्ग में उसकी मृत्यु हो गई। वह गर्भवती थी।

यदि उसके भी पुत्र होता तो इतना ही बड़ा होता।” इतना कहकर राजा रुआँसा हो गया। रानी इंद्रावती भी पति को पहचान चुकी थी, उसकी गाथा सुनकर वह भी रो पड़ी। तब अश्वत्थामा मुनि ने बताया कि रानी के साथ साजिश रची गई थी। उसे जीवित ही कुएँ में फेंक दिया गया था। जो उसे मारना चाहते थे, परमात्मा ने उसे बचाने के लिए मुझे भेज दिया। किसी को मारने की इच्छा रखने वाले स्वयं मर जाते हैं, परंतु जिसे ईश्वर बचाना चाहे, उसे कोई नहीं मार सकता।

ऋषि ने अपनी आँखों देखी एक घटना सुनाई। एक कबूतर-कबूतरी पेड़ की डाल पर मौज से बैठे थे। तभी एक शिकारी की निगाह उनपर पड़ी। उसने अपने धनुष-बाण उठाए। वह निशाना साधनेवाला था, तभी ऊपर से एक बाज उन्हें झपटने के लिए मँडराने लगा। बाज कबूतरों को अपना भोजन बनाना चाहता था। कबूतरों ने सोचा, अब तो ईश्वर ही बचा सकता है। यहाँ से उड़े तो बाज झपट्टा मारेगा। इधर कुआँ, उधर खाई। बचने की राह नहीं दिखाई देती।

तभी पेड़ की जड़ से सर्प निकला और शिकारी को डस लिया। शिकारी का निशाना हिला और बाण बाज को जाकर लगा। बाज धरती पर आ गिरा। तब तक शिकारी भी धरती पर लोट-पोट हो चुका था। कबूतर का जोड़ा उड़ गया। मारने आए शिकारी और बाज दोनों मर गए। कथा सुनकर सोमेश्वर मुनि की बात समझ गए कि सबकुछ ईश्वर की इच्छा से ही होता है। मुनि ने इंद्रावती और पृथ्वीराज को सोमेश्वर के साथ विदा कर दिया। पृथ्वीराज अजमेर का राजकुमार बन गया।

पृथ्वीराज का दिल्ली का राजा बनना
पृथ्वीराज की कहानी हमारा लक्ष्य नहीं है, परंतु वह अजमेर से दिल्ली कैसे आया तथा पंडित चंदन लाल की भविष्यवाणी कैसे पूर्ण हुई, यह बताना आवश्यक है। अतः प्रसंगवश जान लीजिए। एक बार गजनी का बादशाह भारत पर आक्रमण करने आ गया। उसने अटक नदी के पार डेरा डाल दिया और राजा अनंगपाल को संदेश भेज दिया कि वे लड़ना चाहते हैं या बिना लड़े ही मुझे अपना राज्य सौंप देंगे।

राजा अनंगपाल ने सभासदों से चर्चा की। निर्णय लिया गया कि वे अपने नाती पृथ्वीराज को बुलवा लें। उसे यहाँ कुछ दिनों के लिए राजा बना दें, फिर गजनी के बादशाह से युद्ध करने जाएँ। पृथ्वीराज को बुलाया गया। उस समय वह सोलह वर्ष का नवयुवक था। अनंगपाल का प्रस्ताव उन्होंने मान तो लिया, परंतु शर्त रख दी कि आपके परिवारजन तथा सभा के दरबारी सब मुझे राजा स्वीकार करें। आप भी लौटकर आएँ तो मुझसे अनुमति लें। शर्त स्वीकार कर ली गई। इस तरह पृथ्वीराज दिल्ली के शासक बन गए। राजा अनंगपाल युद्ध करने चले गए।

पृथ्वीराज के विवाह
उस काल में विवाह बिना युद्ध के नहीं होते थे। पृथ्वीराज ने गुजरात के राजा भोलाराम की पुत्री इच्छा कुमारी से विवाह किया। फिर दाहिनी नामक सुंदरी (जो चंडपुडार की कन्या थी) से विवाह किया। इसके पश्चात् पद्मसेन की पुत्री पद्मावती से विवाह किया। हर विवाह-युद्ध में अन्य राजाओं के साथ हुआ। हाँ, राजा माहिल की बहन अगया से बिना युद्ध के विवाह हुआ। वह रूपवती ही नहीं, बुद्धिमती भी थी। सब पर उसी का शासन चलता था। उसकी बेटी का नाम बेला था। ऐसा माना जाता है कि बेला ही द्रौपदी का अवतार थी।

मुख्य विवाह संयोगिता से हुआ। संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थी। पृथ्वीराज इतनी पत्नियों के रहते हुए भी संयोजिता को युद्ध से अपहरण करके ले आए। इसी कारण भीषण युद्ध में दोनों ओर के अनेक योद्धा मारे गए। जयचंद और पृथ्वीराज की शत्रुता बढ़ी। जयचंद्र जाकर शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी से मिल गया। पृथ्वीराज को हरवाने और मरवाने में जयचंद ने सहायता की। साधारण प्रेम और वैर के कारण से देश यवनों-मुसलमानों के अधीन हो गया। हिंदुस्तान का गौरवमय इतिहास राजाओं की आपसी लड़ाई ही गुलामी का कारण बना।

आल्हा का परिचय
जस्सराज ही दस्सराज कहलाता था। वनवासी होने के कारण उन्हें ‘बनाफर’ कहकर भी पुकारा जाता था। जस्सराज का विवाह देव कुँवर से हुआ था। उसी की प्रथम संतान होने पर राजा परिमाल ने पंडितों को बुलाकर उसका नामकरण करवाया तथा भविष्य पूछा। पंडितों ने कहा कि बालक सिंह लग्न में जन्मा है। सिंह के समान निर्भय वीर होगा। वीरता एवं धर्मपालन में सबसे उत्तम होगा, अतः इसका नाम ‘आल्हा’ रहेगा।

राजा परिमाल ने प्रसन्न होकर पंडितों को दक्षिणा और पुरस्कार दिए। आल्हा का विवाह नैनागढ़ के राजा नेपाल सिंह की सुंदर कन्या सुलक्षणा के साथ हुआ था, जिसका एक नाम ‘मछला’ भी था। आल्हा ने अनेक युद्ध किए, परंतु कभी हार का मुँह नहीं देखा। आल्हा को युधिष्ठिर का अवतार माना जाता है। आल्हा ने कभी अधर्म तथा अन्याय नहीं किया।

ऊदल
दस्सराज और देव कुँवरि का दूसरा पुत्र था ऊदलराजा परिमाल ने इसके लिए भी पंडित बुलवाकर भविष्य पुछवाया। वह महान् वीर होगा, यह जानकर राजा प्रसन्न हुआ, परंतु माँ देव कुँवरि ऊदल के जन्म से दुःखी थी। चूँकि उसके जन्म से पहले ही दस्सराज और बच्छराज को करिया राय चुराकर ले गया था और उनके सिर काटकर वटवृक्ष पर टाँग दिए थे। इस तरह ऊदल का जन्म पिता की मृत्यु के पश्चात् हुआ था, तभी वह इसका जन्म अशुभ मान रही थी।

इस बालक को उसने अपनी दासी को पालने के लिए दे दिया था, क्योंकि वह उस बालक को देखना नहीं चाहती थी। दासी ने ऊदल को ले जाकर महारानी मल्हना को सौंप दिया। रानी ने ही बड़े प्रेम से आल्हा, ऊदल दोनों का पालन-पोषण किया। ऊदल को भीम का अवतार माना जाता है। उसमें भी शारीरिक बल सैकड़ों हाथियों के बराबर बताया गया है। ऊदल भी युद्धों में केवल जीतने के लिए जन्मा था।

ब्रह्मानंद का जन्म
राजा परिमाल की रानी मल्हना के गर्भ से भी एक पुत्र का जन्म हुआ। अधेड़ अवस्था में पुत्र जन्म से राजा का प्रसन्न होना स्वाभाविक था। राजकुमार के जन्म से पूरे महोबा में ही प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। ज्योतिषियों ने बताया कि मेष लग्न में सूर्योदय के समय रोहिणी नक्षत्र में तथा वृष राशि में जनमा यह बालक अत्यंत तेजस्वी होगा।

इसी अक्षय तृतीया के दिन ऋषि परशुराम का भी जन्म हुआ था। अरिष्ट ग्रह पूछने पर ज्योतिषी बोले, “संसार में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसके सब ग्रह श्रेष्ठ हों। एक-आध नेष्ट ग्रह तो हो ही जाता है।” उन्होंने बताया कि स्त्री पक्ष नहीं है। स्त्री के कारण ही इसका प्राणांत भी हो सकता है।

बालक का नाम ब्रह्मानंद रखा गयाब्रह्मानंद को वेदज्ञ पंडितों ने अर्जुन का अवतार माना है। पृथ्वीराज की पुत्री बेला कुँवरि से इसका विवाह होना तय हुआ था। पृथ्वीराज के सब वीर मिलकर भी ब्रह्मानंद को नहीं हरा सके, तब माहिल ने अपनी दुष्टता का परिचय दिया और पृथ्वीराज को बचपन में प्राप्त अश्वत्थामा मुनि के दिए उस अर्ध-चंद्राकार बाण की याद दिलाई, जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। वही तीर ब्रह्मानंद की मृत्यु का कारण बना। इस प्रकार श्रीकृष्ण भगवान् ने अर्जुन को पृथ्वीराज रूपी दुर्योधन के द्वारा युद्ध में मरवाकर दोनों की पिछले जन्म की युद्ध-पिपासा को तृप्त किया।

लाखन राठौर
कन्नौज के राजा वीरवर जयचंद्र का अनुज रतिभानु भी महान् वीर था। युद्ध में उसका कौशल देखते ही बनता था। उसी का सुपुत्र विशाल नेत्रों तथा सुंदर मुखवाला हुआ। लाखों में एक होने के कारण उसका नाम ‘लाखन’ रखा गया। बूंदी शहर के राजा गंगाधर राव की राजकुमारी कुसुमा से इनका विवाह हुआ था। उसकी मृत्यु पृथ्वीराज के बाणों से हुई। लाखन को नकुल का अवतार माना जाता है

मलखान
जस्सराज के भाई बच्छराज की रानी तिलका ने बच्छराज की मृत्यु के पश्चात् मलखान को जन्म दियाराजा परिमाल ने पंडितों से पूछा तो ज्ञात हुआ कि यह बालक भी सिंह लग्न में उत्पन्न हुआ है। सिंह के समान निर्भय तथा वीर होने की तो भविष्यवाणी थी ही, एक विशेष बात और थी कि इसके पाँव में पद्म का चिह्न है। यह किसी अन्य के शस्त्रों से नहीं मरेगा। जब इसके पाँव का पद्म फटेगा, तभी इसकी मृत्यु होगी। यह बालक देवी का सच्चा भक्त होगा तथा देवी से वरदान भी प्राप्त करेगा। वास्तव में मलखान बड़ा वीर और देवी भक्त हुआ। मलखान को सहदेव का अवतार माना जाता है।

ढेवा
महोबा के राज पुरोहित चिंतामणि का पुत्र देव कर्ण ही ‘ढेवा’ नाम से जाना जाता थारानी मल्हना इसे बहुत स्नेह करती थी। इसकी ऊदल से गहरी मित्रता थी। एक बार ढेवा ने युद्धभूमि में मूर्च्छित पड़े पृथ्वीराज की रक्षा की थी।

धाँधू
दस्सराज की पत्नी देवकुँवरि ने ही इस शिशु को जन्म दिया था, परंतु यह अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्मा था। पंडितों ने बताया था कि इसका मुख देखकर पिता जीवित नहीं रहेगा। यह अपने ही वंशवालों से युद्ध करेगा। ऐसा सुनकर राजा परिमाल ने इस बालक को एक दासी (धाय) को दे दिया। उसे नगर के बाहर एक मंदिर में रहने और बालक को पालने-पोसने का आदेश दिया।

एक बार वह धाय गंगास्नान के कार्तिक मेले में गई। वहाँ पृथ्वीराज ने इस तेजस्वी बालक को देखा तो अपने गुप्तचरों से शिशु को चुराकर मँगवा लिया। पृथ्वीराज के भाई कान्ह कुमार के कोई संतान नहीं थी। उसने प्रार्थना करके यह बालक पृथ्वीराज से माँग लिया। बालक का पालन-पोषण राजघराने में होने लगा। उसका नाम ‘देवपाल’ रखा गया। बालक मोटा-ताजा और मस्त था, अतः उसको प्यार से ‘धाँधू’ कहा जाने लगा।

धाय ने महोबा जाकर बालक के चोरी होने का समाचार दिया। परिवार को संतोष हुआ। बाद में परिमाल राजा को यह ज्ञात भी हो गया कि कान्ह कुमार ने एक बालक को गोद लिया है, वह बालक हमारा ही है। अतः उसके अशुभ होने का भय भी समाप्त हो गया।

कुँवरि चंद्रावलि
महोबा के महाराज परिमाल की महारानी मल्हना ने एक पुत्री को भी जन्म दिया, जिसका नाम चंद्रावलि रखा गया। अपनी माता मल्हना से भी अधिक सुंदर इस कन्या की ख्याति सुगंध के समान चारों ओर फैल गई। अभी सोलह वर्ष की भी नहीं हुई थी कि बौरीगढ़ के राजा वीर सिंह ने महोबा को घेर लिया।

दूत के हाथ संदेश भिजवाया कि महोबा को तहस-नहस होने से बचाना चाहते हो तो अपनी पुत्री चंद्रावलि का विवाह राजा वीरसिंह के साथ कर दो। राजा परिमाल ने अपनी पत्नी मल्हना से सलाह ली। मल्हना सुंदर ही नहीं, बुद्धिमती भी थी। उसने कहा, “राजन! आपने तो शस्त्र उठाना छोड़ दिया। हमारे वीर जस्सराज, बच्छराज को सोते में अपहरण करके मौत के घाट उतार दिया। सैयद ताल्हन वाराणसी में जाकर बस गए। आल्हा-ऊदल अभी छोटे हैं तो युद्ध करेगा कौन? भलाई इसी में है कि वीरसिंह से बेटी चंद्रावलि का विवाह कर दिया जाए। विवाह तो किसी-न-किसी से करना ही होगा।

तब राजा परिमाल ने संदेश भिजवाया कि विवाह तो चंद्रावलि का आपके साथ ही करेंगे, परंतु युद्ध से नहीं, प्रेम से करेंगे। आप वापस जाओ। हम तिलक (सगाई) लेकर सम्मान सहित आपके यहाँ आएँगे। तिथि, वार शुभमुहूर्त निश्चित कर देंगे, तब आप सादर बरात लेकर हमारे द्वार पधारें।

तत्कालीन राज समाज
राजा हर्षवर्धन के पश्चात् भारत में एकछत्र राज किसी सम्राट का नहीं रहा। छोटी-छोटी रियासतें बन गई। सभी ने अपनी राजधानियाँ बना लीं। अपने-अपने गढ़ (किले) बना लिये। एक-दूसरे के शादी-संबंध और उत्सवों में सभी आते-जाते थे। बात बारहवीं शताब्दी की है। दिल्ली में राजा अनंगपाल का शासन था। उनकी एक पुत्री कन्नौज में ब्याही थी तथा दूसरी अजमेर में।

अजमेर में पृथ्वीराज तथा कन्नौज के राजा जयचंद के अनंगपाल नाना लगते थे। अनंगपाल के पुत्र नहीं हुआ था। उन्होंने पृथ्वीराज को गोद ले लिया और दिल्ली का युवराज बना दिया। इसीलिए जयचंद और पृथ्वीराज में वैमनस्य हो गया। जस्सराज और बच्छराज की मृत्यु के पश्चात् सिरसा पर पृथ्वीराज ने कब्जा कर लिया। बच्छराज के वीर पुत्र मलखान ने युद्ध जीतकर सिरसागढ़ वापस छीन लिया।

कुछ घायल वीरों सहित पृथ्वीराज एक उद्यान में ठहरे। माली ने विरोध किया तो एक घायल सैनिक ने माली का सिर काट डाला। परिमाल ने आल्हा-ऊदल को बुलाया। उन्होंने राजा को समझाया कि घायलों पर हमें वार नहीं करना चाहिए, परंतु मामा माहिल ने अपनी आदत के अनुसार राजा को भड़काया तथा उनकी चुगली की। आल्हा ने ऊदल को जाने के लिए कह दिया। ऊदल ने जाकर पृथ्वीराज के उन घायल सैनिकों को मार दिया।

पृथ्वीराज को दिल्ली में समाचार मिला कि घायल सैनिक मार दिए गए। चुगलखोर माहिल ने इधर तो परिमाल को भड़काकर सैनिक मरवाए थे, उधर दिल्ली पहुँचकर पृथ्वीराज को राजा परिमाल के विरुद्ध भड़काया। ऐसी घटनाओं से सभी राजा एक-दूसरे के शत्रु बन गए। उनमें देशभक्ति की जगह अपनी राजगद्दी का लोभ और स्वार्थ बढ़ता गया।

इसी आपसी फूट का लाभ उठाकर मुसलिम आक्रमणकारियों ने बार-बार आक्रमण किए। पहले लूटपाट की, फिर यहीं बसकर स्थायी लूट में लग गए। ऐसे महान् वीर योद्धाओं के होते हुए आपसी फूट के कारण हिंदुस्तान बारह सौ वर्ष गुलाम रहा। आज भी हिंदू यदि आपसी कलह छोड़कर संगठित हो जाएँ तो विश्व में अपनी प्रतिभा का प्रभाव स्थापित कर सकते हैं।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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